क्रियात्मक अनुसन्धान (Action Research) हमारे विद्यालयों तथा शिक्षा संस्थाओं के लिए एक नये आन्दोलन के रूप में मुखरित हुआ है। क्रियात्मक अनुसंधान (Action Research) का सम्प्रत्यय मौलिक व प्रयुक्त अनुसंधानों की तुलना में अपेक्षाकृत नवीन है। विगत शताब्दी के प्रारम्भ में यह महसूस किया गया कि मौलिक व प्रयुक्तात्मक अनुसंधानों से सिद्धान्तों का प्रतिपादन करना तथा कार्य प्रणाली के वास्तविक स्वरूप का अध्ययन करना तो सम्भव है परन्तु व्यावहारिक क्षेत्रों में कार्यरत व्यक्ति अपनी दिन-प्रतिदिन की समस्याओं के समाधान में उनका लाभ नहीं उठा पाते हैं। स्थानीय स्तर की तात्कालिक समस्याओं का वैज्ञानिक ढंग से समाधान खोजने की दृष्टि से नवीन प्रकार की अनुसंधान प्रक्रिया का प्रादुर्भाव हुआ जिसे क्रियात्मक अनुसंधान के नाम से सम्बोधित किया गया।
सन् 1946 में कुर्ट लेविन (Kurt Levin) ने अपने क्षेत्रीय सिद्धान्त (Field Theory) में इस सम्बन्ध में संकेत किया था एवं सन् 1926 में बकिंघम (Backingham) ने शिक्षा के क्षेत्र में इसका सफलतापूर्वक प्रयोग किया था परन्तु शिक्षा के क्षेत्र में क्रियात्मक अनुसंधान को स्पष्ट रूप से प्रतिपादित करने तथा इसको बढ़ावा देने का वास्तविक श्रेय स्टीफन एम. कोरे (Stephan M. Corey) को दिया जाता है।
क्रियात्मक अनुसंधान का उद्देश्य कार्यरत कर्मियों के द्वारा अपनी समस्याओं का स्वयं अध्ययन करके उनका समाधान प्रस्तुत करना, प्राप्त परिणामों का क्रियान्वयन करना एवं अन्य सहयोगियों को इस सम्बन्ध में संसूचित करना था। वस्तुत: यह वर्तमान को समझने व सुधारने एवं भविष्य की योजनाएँ बनाने की एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें वैज्ञानिक अनुसंधान विधि का प्रयोग किया जाता है।
क्रियात्मक अनुसंधान में अनुसंधानकर्ता निरपेक्ष न रहकर समस्त परिस्थितियों का एक सक्रिय प्रतिभागी के रूप में मौजूद रहता है। जैसे कि पीछे इंगित किया जा चुका है कि अनुसंधान की इस विधि का व्यवस्थित ढंग से प्रतिपादन कोलम्बिया विश्वविद्यालय के टीचर्स कॉलेज के प्रो. स्टीफन एम. कोरे द्वारा किया गया। यद्यपि उन्होंने इस विधा के प्रयोग का प्रारम्भ शैक्षिक समस्याओं के अध्ययन एवं तत्काल समाधान के लिए किया था परन्तु शीघ्र ही इसने एक जन-आन्दोलन का स्वरूप ग्रहण कर लिया एवं प्रशासन, प्रबन्धन, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, सेना, बैंक, उद्योग, अर्थशास्त्र आदि अनेकानेक क्षेत्रों में इस विधि का प्रचुरता से प्रयोग किया जाने लगा।
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‘क्रियात्मक अनुसन्धान’ प्रत्यय का उद्भव तथा भारत में इसका प्रारम्भ
(Origin of Action Research and its beginning in India)
‘क्रियात्मक अनुसन्धान’ शब्द का प्रयोग द्वितीय महायुद्ध काल के दौरान होने लगा था। लेकिन इस शब्द के सर्वप्रथम अनुप्रयोग का श्रेय कॉलीयर (Collier) को है जो सन् 1933 से 1945 के बीच भारतीय मामलों के कमिश्नर थे। उनकी यह दृढ़ भावना थी कि शिक्षा में सुधार के लिए शिक्षा प्रशासकों तथा दूसरे सामान्य कर्मियों का शिक्षा से जुड़े पक्षों में अनुसन्धान कार्य में सम्मिलित होना आवश्यक है, अन्यथा शैक्षिक सुधारों की बात एक मिथ्या कल्पना मात्र ही होगी। उनका यह मानना था कि शिक्षा में कोई भी सुधार इन व्यक्तियों की इच्छा के विरुद्ध कार्यान्वित नहीं किया जा सकता है।
कोरे (Corey, S. M : Action Research to improve School Practices) ने अपनी पुस्तक विद्यालय प्रणाली में सुधार के लिए क्रियात्मक अनुसन्धान में कॉलियर के कथन को उद्धृत करते हुए लिखा है कि कॉलीयर क्रियात्मक अनुसन्धान पद्धति में विश्वास रखते थे तथा मानते थे कि “क्योंकि अनुसन्धान के परिणाम वास्तव में प्रशासनिक अधिकारी तथा साधारण व्यक्ति द्वारा अपनाए जाने हैं एवं उन्हीं के द्वारा उनकी आलोचना की जानी है, इसलिए यह आवश्यक है कि प्रशासक एवं साधारण व्यक्ति अपने क्षेत्र से सम्बंधित शोध में सक्रिय भागीदारी लें।”
कुर्ट लेविन (Kurt Levin) तथा उनके शिष्यों ने ‘मानवीय सम्बन्धों’ को सकारात्मक बनाने में कुछ अनुसन्धान किए हैं, जिन्हें क्रियात्मक अनुसन्धान का आधुनिक स्वरूप कहा जा सकता है। उनके अनुसन्धान का उद्देश्य मानवीय सम्बधों में सुधार लाना था, जिसका महत्व व्यावहारिक दृष्टि से अत्यधिक था।
‘क्रियात्मक अनुसन्धान’ प्रत्यय तथा इस दिशा में कार्य करने वालों में राइटस्टोन (Wrightstone) का नाम भी प्रमुख है। उन्होंने ‘Research Action’ प्रत्यय का प्रयोग किया। ऐसा उन्होंने पाठ्यक्रम ब्यूरों के कार्यों का वर्णन करते हुए किया। वैसे भी क्रियात्मक अनुसन्धान का विकास पाठ्यक्रम के क्षेत्र में ही अधिक हुआ है।
शिक्षा के क्षेत्र में ताबा, ब्रेडी तथा रॉबिनसन (Taba, Brady and Robinson) ने क्रियात्मक अनुसन्धान के आन्दोलन तथा इस विधा को अधिक प्रयोग करने पर बल दिया। उन्होंने समस्या समाधान विधि (Problem-solving Method) को अधिक महत्व दिया जो अपनी भावना, उद्देश्य एवं कार्यात्मकता में क्रियात्मक अनुसन्धान के अति निकट हैं।
इनके अलावा स्मिथ एवं रॉल्फ टाईलर के शोध भी क्रियात्मक अनुसन्धान पद्धति की श्रेणी में ही रखे जा सकते हैं।
क्रियात्मक अनुसन्धान का उद्गम बहुत ही जटिल सामाजिक, वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक परिवर्तनों के सन्दर्भ में शिक्षा में अत्यन्त महत्पूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति तथा शिक्षा से जुड़े सभी पक्षों में सुधार हेतु हुआ है। इसका भविष्य सूझबूझ से परिपूर्ण, ओजपूर्ण, सक्षम शिक्षकों, प्रबन्धकों तथा देश के भावी कर्णधारों के हाथों में सुरक्षित है, ऐसी अपेक्षा है।
क्रियात्मक अनुसन्धान का अर्थ (Meaning of Action Research)
क्रियात्मक अनुसन्धान दिन-प्रतिदिन की स्वाभाविक परिस्थितियों की समस्याओं को पहचानने, अध्ययन करने एवं समाधान खोजने की ओर प्रवृत्त होता है। औपचारिकताओं तथा जटिलताओं पर कम जोर देने एवं कम समय, कम धन व कम श्रम से समस्या का समाधान सम्भव हो पाने के कारण यह विधि अत्यन्त लोकप्रिय होती जा रही है। यद्यपि इस विधि का लक्ष्य परिणामों का तात्कालिक अनुप्रयोग है, परन्तु यह प्रयुक्तात्मक अनुसंधान से कुछ भिन्न है।
वस्तुतः मौलिक अनुसंधान सिद्धान्तों व प्रक्रियाओं का प्रतिपादन करते हैं तथा प्रयुक्तात्मक अनुसंधान सिद्धान्तों व अन्य परिणामों का सामान्य अनुप्रयोग पर बल देते हैं। इसके विपरीत क्रियात्मक अनुसंधान का कार्यक्षेत्र अपेक्षाकृत अत्यन्त सीमित होता है। इसका लक्ष्य किसी परिस्थिति विशेष में महसूस की जा रही समस्याओं का समाधान तार्किक आधार पर खोजना होता है जिसे अभ्यासकर्ता प्रायः सहयोगात्मक रूप से सम्पन्न करते हैं एवं परिणामों का मूल्यांकन करके सभी लाभान्वित होते हैं।
प्रो. स्टीफन एम. कोरे के अनुसार, “अभ्यासकर्ता द्वारा अपने निर्णयों व क्रियाओं का निर्देशन, संशोधन व मूल्यांकन की दृष्टि से अपनी समस्याओं का वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन करने के लिए प्रयुक्त की जाने वाली प्रक्रिया को अनेक व्यक्ति क्रियात्मक अनुसंधान कहते हैं।”
“The process by which practitioners attempt to study their problems scientifically in order to guide, correct and evaluate their decisions and actions is what a number of people have called action research.” – Stephen M. Corey
मैक ग्रेथटी के अनुसार, “दिये गये प्रयासों का अध्ययन करने व उनमें रचनात्मक परिवर्तन लाने के उद्देश्य से व्यक्ति या समूह द्वारा परिवर्तन व सुधार से सम्बन्धित की गई व्यवस्थित अन्वेषणात्मक क्रिया ही क्रियात्मक अनुसंधान है।”
Action research is an organised investigation activity aimed toward the study and constructive change of given endeavour by individual or group concerned with change and improvement.-M. C. Grathty
जॉन डब्ल्यू. बेस्ट तथा जेम्स वी. काह्न के शब्दों में “क्रियात्मक अनुसंधान तात्कालिक अनुप्रयोग पर केन्द्रित रहता है, न कि सिद्धान्त के विकास पर या अनुप्रयोग के सामान्यीकरण पर। यह स्थानीय परिस्थिति में यहाँ व अभी मौजूद समस्या पर जोर देता है। इसके परिणामों का मूल्यांकन सार्वभौमिक वैधता के रूप में न करके स्थानीय उपयोगिता की दृष्टि से किया जाता है।”
Action research is focused on the immediate application, not as the development of the theory or on generalization of application. It has placed its emphasis on a problem here and now in a local setting. Its findings are to evaluated in terms of local applicability, not in terms of universal validity. -John W. Best and James V. Kahn
क्रियात्मक अनुसन्धान की उपरोक्त प्रस्तुत परिभाषाओं के अवलोकन से स्पष्ट हो जाता है कि शिक्षा के क्षेत्र में क्रियात्मक अनुसन्धान बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
क्रियात्मक अनुसन्धान की विशेषताएँ (Characteristics of Action Research)
1. क्रियात्मक अनुसन्धान परिस्थितिगत शोध है, क्योंकि इसके तहतकिसी विशिष्ट सन्दर्भ में समस्या का निदान एवं समाधान प्राप्त करने की कोशिश की जाती है। दूसरे शब्दों में, यह मौके पर किया गया वह अध्ययन है जिसका प्रयोग किसी तात्कालिक परिस्थिति में मूर्त समस्या के सम्बन्ध में किया जाता है।
2. क्रियात्मक अनुसन्धान का सन्दर्भ सर्वथा अनौपचारिक एव नमनीय होता है। यह यथार्थ के अविरत परिप्रेक्ष्य से जुड़े रहने के कारण अत्यन्त गतिशील सन्दर्भो में सम्पन्न होता है।
3. किसी दी हुई परिस्थिति में कार्यों एवं निर्णयों की गुणवत्ता को सुधारना ही क्रियात्मक अनुसन्धान का लक्ष्य होता है जिससे वह परिस्थिति बेहतर एवं उपयोगी सिद्ध हो सके।
4. क्रियात्मक अनुसन्धान के तहत समस्या का चयन यथार्थ के अत्यन्त मूर्त स्तर से होता है, अतः इसका स्वरूप उतना ही स्पष्ट एवं मूर्त रहता है जितना कि स्थानीय परिस्थिति का।
5. क्रियात्मक अनुसन्धान में शोध परिकल्पना प्रस्तावित कार्य तथा उसके प्रत्याशित परिणाम के रूप में निर्मित की जाती है। अत: इसे क्रियात्मक-परिकल्पना की संज्ञा दी जाती है तथा इसका स्वरूप आमतौर से एक सोपाधिक (सशर्त) प्रतिज्ञप्ति अर्थात् ‘ऐसा किया जाएगा तो यह होगा’ के रूप में प्रायः देखा जा सकता है।
6. क्रियात्मक अनुसन्धान का अभिकल्प (रूपरेखा) अनुकूली स्वरूप रखता है जिससे इसके कार्यान्वयन में लचीलापन एवं परिवर्तन सम्भव होता है। चूँकि इस प्रकार के शोध का सन्दर्भ गतिशील होता है, इसकी रूपरेखा को व्यावहारिक रूप में कार्यान्वित करते समय कठोरता नही बरती जा सकती।
7. क्रियात्मक अनुसन्धान का उद्देश्य ‘सामान्यीकरण’ निर्मित करना नही होता है। इसके तहत यदि किसी प्रकार के सामान्यीकरण की गुंजाइश रहती भी है तो वह भावी परिस्थितियों से सन्दर्भित होने के कारण ‘उदग्र सामान्यीकरण’ (Vertical Generalization) के नाम से पुकारा जा सकता है, जबकि मौलिक तथा व्यवहृत अनुसन्धान-स्वरूपों में यह ‘क्षैतिज /अनुप्रस्थ सामान्यीकरण’ (Horizontal Generalization) कहलाता है।
8. आमतौर से क्रियात्मक अनुसन्धान को पूरा करने में अभ्यासकर्ता या उनकी टीम एकजुट होकर सहयोगात्मक रीति से कार्य करती है। इसीलिए इसे सहभागिता पर आधारित शोध कहा जाता है। इस प्रकार की टीम के अन्तर्गत प्रत्येक सदस्य प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भाग लेते हुए क्रियात्मक अनुसन्धान की योजना का कार्यान्वयन करता है। यहाँ ध्यान रखना होगा कि प्रत्येक क्रियात्मक अनुसन्धान में यह टीम आवश्यक नहीं होती है।
9. क्रियात्मक अनुसन्धान आत्म-मूल्यांकन परक (Self-evaluative) होता है। इसका तात्पर्य यह है कि इसके कार्यान्वयन की अवधि में परिवर्तनों एवं उनके प्रभावों का सतत् आकलन अभ्यासकर्ता-शोधकर्मी के स्तर पर किया जाता है जिससे परिस्थिति में अपेक्षित सुधार लाया जा सके।
10. क्रियात्मक अनुसन्धान के परिणामों को औपचारिक ढंग से न विज्ञापित कर अत्यन्त सहज एवं निरौपचारिक रूप में अपनी व्यावसायिक जिम्मेवारियों का निर्वाह करते हुए दूसरों को सम्प्रेषित किया जाता है। यह सम्प्रेषण मौखिक रूप में भी सम्भव है।
11. क्रियात्मक अनुसन्धान का उपयोग अत्यन्त तात्कालिक एवं प्रत्यक्ष रूप से उपस्थित परिस्थितियों में होता है। इसका दोहरा उद्देश्य इस अर्थ में रहता है कि एक ओर इसके माध्यम से परिस्थिति में सुधार या उसे बेहतर करना अभीष्ट होता है, तो दूसरी ओर अभ्यासकर्ता की व्यावसायिक कुशलता में अभिवृद्धि लाना तथा व्यावसायिक परिस्थितियों से जुड़े गोचरों के बारे में उसके प्रकार्यात्मक संज्ञान को बढ़ाना भी महत्वपूर्ण मुद्दा रहता है।
NCERT (Handbook on Action Research for Primary Teachers, 2003) ने क्रियात्मक अनुसन्धान की व्यवहृत अनुसन्धान से भिन्नता स्पष्ट करते हुए, क्रियात्मक अनुसन्धान की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया है :
1. क्रियात्मक अनुसन्धान का उद्गम क्षेत्र के अभ्यासकर्ताओं (शिक्षकों) की वर्तमान परिस्थिति से असन्तुष्टि तथा इसमें विकास की आवश्यकता की अनुभूति से होता है। अनुभव की गई असन्तुष्टि का कारण तत्कालीन स्थिति का सामान्य शिक्षा प्रतिमान से अन्तराल, विचलन होना अथवा उसमें कमियाँ होना हो सकता है। जैसे : एक शिक्षक को अपने छात्रों की गणित उपलब्धि से असन्तुष्टि हो सकती है।
2. क्रियात्मक अनुसन्धान के निहितार्थ वस्तुओं के करने के तरीकों तथा माध्यमों में परिवर्तन में होते हैं। क्षेत्र के कर्मियों को वर्तमान परिस्थिति से सम्बन्धित उद्देश्यों का स्पष्ट ज्ञान होता है।
3. क्रियात्मक अनुसन्धान एक लघुमाप हस्तक्षेप (Small-scale Intervention) है। इसकी एक विशेषता अभ्यासकर्ता का अपनी कार्यपद्धति में परिवर्तन लाना होता है। इसका प्रभाव दूसरों पर हो भी सकता है और नहीं भी। इस शोध में दिए गए सन्दर्भ में केवल अभ्यासकर्ता द्वारा अनुसन्धान किया जाता है। क्रियात्मक अनुसन्धान में शिक्षक का उद्देश्य छात्रों में वर्तनी सम्बन्धी त्रुटियों को कम करना हो सकता है।
4. इस शोध का सम्बन्ध यथार्थ स्थितियों की समस्याओं से होता है, जिन्हें हल करने के प्रयत्न किए जाते हैं। इस शोध के क्रियात्मक होने के अर्थ तभी सत्य होते हैं जब समस्या का समाधान ढूँढ़ लिया जाता है।
5. क्रियात्मक अनुसन्धान शिक्षक अथवा अभ्यासकर्मी को पाठ्यक्रम एवं शिक्षाशास्त्र के महत्वपूर्ण पक्षों पर समीक्षात्मक चिन्तन करने तथा उनमें अपेक्षित सुधार लाने के लिए प्रेरित करता है।
6. क्रियात्मक अनुसन्धान शिक्षक को अपने छात्रों का अवलोकन करने, उनेक साथ अन्तःक्रिया करने, उन्हें समझने तथा उनसे सम्बन्धित प्रदत्तों का संकलन करने में सहायता करता है।
7. क्रियात्मक अनुसन्धान शिक्षकों द्वारा एकल अथवा समूह में किया जा सकता है। एकल अध्ययन में शिक्षक कक्ष की शिक्षण-अधिगम समस्याओं को हल करता है। शोध की सामूहिक स्थिति में शिक्षक विद्यालय एवं शिक्षण सम्बन्धी, अपने अथवा पास के विद्यालय की समस्या का सहयोगात्मक रूप से समाधान ढूँढ़ सकते हैं।
8. क्रियात्मक अनुसन्धान में मात्रात्मक एवं गुणात्मक दोनों प्रकार की विधियों का अनुप्रयोग किया जा सकता है।
9. क्रियात्मक अनुसन्धान की एक प्रमुख विशेषता इसकी परिस्थितिजनित (Contextual) प्रकृति होना है। अभिप्राय यह है कि एक विद्यालय का शिक्षक शिक्षण में इसकी जिस कठिनाई का सामना करता है, सम्भवत: दूसरे स्कूल के शिक्षक को उस समस्या से जूझना न पड़े।
इन विशेषताओं से स्पष्ट होता है कि क्रियात्मक अनुसन्धान का सम्बन्ध विषय के व्यावहारिक क्षेत्र से अधिक होता है जहाँ कर्मियों को अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन करना होता है तथा पैदा होने वाली समस्याओं को हल करना होता है। अपने कार्यक्षेत्र की क्रियाओं पर कर्मी का नियन्त्रण होता है। इसलिए उनके सन्दर्भ में कठिनाइयों के समाधान की प्रक्रिया इस अनुसन्धान की एक प्रमुख विशेषता बन जाती है।
क्रियात्मक अनुसन्धान का उद्देश्य (Objectives of Action Research)
क्रियात्मक अनुसन्धान का उद्देश्य सिद्धान्त निरूपण या सिद्धान्त परीक्षण न होकर किसी परिस्थिति विशेष में पायी जाने वाली समस्याओं का समाधान प्राप्त करना है। इसका गन्तव्य परिस्थिति में सुधार लाना है न कि सामान्यीकरण करना। शिक्षा शिक्षण तथा अधिगम के सन्दर्भो में क्रियात्मक अनुसन्धान के अधोलिखित पाँच लक्ष्यों का उल्लेख किया गया है जो भारतीय सन्दर्भ में भी प्रासंगिक हैं-
1. यह खास परिस्थितियों में पहचानी गई समस्याओं या दी हुई परिस्थितियों को कुछ खास रूप में सुधारने का तरीका है।
2. यह सेवारत शिक्षकों के प्रशिक्षण का तरीका है जिसमें शिक्षक को नई विधियों एवं कुशलताओं में दीक्षित किया जाता है, उसकी विश्लेषणात्मक क्षमताओं को तीव्र बनाया जाता है तथा आत्म-अभिज्ञता (Self-awareness) के स्तर को समुन्नत किया जाता है।
3. यह प्रचलित परम्परागत व्यवस्थाओं के अन्तर्गत शिक्षण एवं अधिगम की परिस्थितियों में अतिरिक्त या नव-प्रवर्तनात्मक उपागमों (Innovatory Approaches) का सन्निवेश करने का तरीका है, क्योंकि ये व्यवस्थाएँ प्राय: परिवर्तन तथा नवप्रवर्तन (Innovation) के प्रति प्रतिरोध खड़ा करती हैं।
4. यह अभ्यासकर्ता शिक्षक एवं एकेडेमिक शोधकर्ता के मध्य आमतौर से पाई जाने वाली स्वल्प-सम्प्रेषण (Poor Communication) तथा परम्परागत अनुसन्धान द्वारा स्पष्ट विहितीकरण या निर्देश न दे पाने की स्थिति को सुधारने का तरीका है।
5. इसके तहत वास्तविक रूप में वैज्ञानिक शोध की कठोरता का भी आत्मनिष्ठ एवं प्रभाववादी उपागम द्वारा कक्षा शिक्षण की समस्या का समाधान प्राप्त करने की तुलना में अपेक्षाकृत वरीय (अधिमान्य) विकल्प प्रदान करने का तरीका कहा जा सकता है।
क्रियात्मक अनुसन्धान के उदाहरण
शिक्षा के औपचारिक तथा निरौपचारिक सन्दर्भो में विद्यालय, महाविद्यालय या विश्वविद्यालय किसी भी स्तर पर क्रियात्मक अनुसन्धान की विधि अपनाए जाने के अनेक दृष्टान्त प्रस्तुत किए जा सकते हैं। ऐसे शोधों में शिक्षक, प्रधानाचार्य या शैक्षिक प्रशासक व्यक्तिगत या सामूहिक रूप में एक टीम की तरह अनुसन्धानकर्ता की भूमिका अदा कर सकते हैं। कोहेन तथा मैनियन द्वारा इंगित आगे दिए गए उदाहरण क्रियात्मक अनुसन्धान (Action Research) के सन्दर्भों को उजागर तो करते हैं, किन्तु इन्हें ऐसे दृष्टान्तों की पूर्ण सूची के रूप में सर्वथा नहीं लेना चाहिए। जैसा कि पहले बताया जा चुका है, क्रियात्मक अनुसन्धान एक प्रकार का हस्तक्षेप (Intervention) है जो-
1. कार्य की प्रेरक-शक्ति के रूप में कार्यशील होता है। इसका उद्देश्य अन्य विकल्पों की तुलना में किसी काम को अत्यधिक कुशलता एवं शीघ्रतापूर्वक सम्पन्न कराना है।
2. व्यक्तिगत कार्यशीलता, मानवीय सम्बन्धों एवं नैतिकता की ओर प्रवृत्त होता है तथा इस प्रकार कार्यकर्ताओं की कार्य-कुशलता, उनकी अभिप्रेरणाओं, सम्बन्धों तथा कल्याण से सम्बन्धित होता है।
3. कार्य-विश्लेषण पर बल देता है तथा इसका उद्देश्य व्यावसायिक प्रकार्यता एवं कार्य-कुशलता में सुधार लाना है।
4. संगठनात्मक परिवर्तन से सम्बन्धित होता है-जहाँ तक इसके जरिए व्यापार एवं उद्योग में उन्नत प्रकार्यता प्राप्त होती है।
5. सामान्यतः सामाजिक प्रशासन के क्षेत्र में नियोजन एवं नीति-निर्धारण से सम्बन्धित है।
6. नव-प्रवर्तन (Innovation) एवं परिवर्तन तथा चल रही व्यवस्था में इन्हें कैसे लागू किया जा सकता है, से सम्बद्ध है।
7. किसी भी सन्दर्भ में जहाँ किसी समस्या-विशेष के समाधान की आवश्यकता हो, समस्या के हल प्राप्त करने पर बल देता है।
8. सैद्धान्तिक ज्ञान के विकास हेतु अवसर प्रदान करता है। यहाँ विधि के शोध-अंश पर अधिक जोर होता है।
शिक्षा में इसका प्रयोग कक्षा शिक्षण की परिस्थितियों में छात्रों की रुचि, अवधान, सहभागिता एवं अनुदेशनात्मक कठिनाइयों, पाठ्यक्रम, पाठ्यपुस्तकों तथा अन्य अनुदेशनात्मक संसाधनों के अनुप्रयोग से सम्बन्धित मुद्दों, दत्त कार्यों की गुणवत्ता, विद्यालय एवं कक्षा-गृहों में उपलब्ध वातावरण में सुधार की अपेक्षा, टीम-भावना तथा अन्य प्रबन्ध एवं प्रशासनिक मामलों से सम्बन्धित निर्णयों एवं उनके प्रभावी कार्यान्वयन के तरीकों का पता लगाने की दृष्टि से किया जाता है।
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