भविष्य शिक्षा (Futuristic Education) के स्वरूप को समझने के लिए ‘शिक्षा’ के स्वरूप को समझना अनिवार्य है। शिक्षा विकासात्मक प्रक्रिया है अतः शिक्षा का प्रमुख कार्य बालक को एक बेहतर कल के लिए तैयार करना है। शिक्षा का उद्देश्य ही बालक या समाज के भविष्य का निर्माण करना है। मैक्समुलर (Max Mullar) के दृष्टिकोण से शिक्षा विकासमान प्रतिक्षण परिणामी विश्व के लिए व्यक्तियों के निर्माण करने के उत्तरदायित्व को वहन करती है।
यूनेस्को (UNESCO) ने भी “लर्निग टू बी’ (Learning to be) को शिक्षा का आधार स्तम्भ कहा है। अर्थात शिक्षा का कार्य व्यक्ति और समाज को बनाना है। यदि शिक्षा का कार्य व्यक्ति को बनाना है तो यह निर्माण की प्रक्रिया बिना दृष्टि (vision) के सम्भव नहीं हो सकती है। इस प्रकार ‘भविष्य बोध’ या ‘दृष्टि’ शिक्षा का अंतर्निहित भाव है और शिक्षा को भविष्योन्मुख (Futuristic) बनाता है। भविष्य की कल्पना के आधार पर ही शिक्षा के उद्देश्य और विधियां निश्चित की जाती हैं अतः शिक्षा का स्वरुप ही भविष्य मूलक (Future oriented) है।
शिक्षा, समाज को गम्भीरता से सोचने के लिए विवश करता है कि वर्तमान शिक्षा का स्वरूप कैसा हो? इसी दृष्टिकोण से डॉ0 सतीश चंद्र सेठ के विचारों को भी उद्धरित करना समीचीन है, “वह शिक्षा ही क्या है जो भारत की युवापीढ़ी को एक नए वांछनीय भविष्य की कल्पना करने और प्राप्त करने के लिए उपयुक्त प्रशिक्षण प्रदान नहीं करती।”
अर्थात सभी दृष्टिकोणों से शिक्षा को भविष्य से अलग नहीं किया जा सकता।
यदि हम भविष्य विज्ञान का इतिहास उठाकर देखें तो यही परिलक्षित होता है कि भविष्य विज्ञान के अंतर्गत ही शिक्षा से जुड़ी समस्याओं का अध्ययन होता रहा है। जर्नल आफ टीचर एजुकेशन (Journal of Teacher Education) में ऐसे अध्ययनों का उल्लेख मिलता है जिनसे भविष्य विज्ञान की विषय वस्तु भी स्पष्ट होती है।
बर्डिन (Burdin) ने भविष्य के संदर्भ में अनुदेशात्मक नियोजन (instructional planning) पर विचार दिए हैं। मेकडिनियल (Mc Daniel) ने पाठ्यक्रम की समस्याओं का अध्ययन किया है। डाउ (Dow) ने फ्यूचर स्कूल (Future school) की आवश्यक्ता और परम्परागत स्कूलों की स्थिति एवं अंतरिम व्यवस्था पर विशद विवेचना प्रस्तुत की है। कापलान (Koplan) ने अध्यापक प्रशिक्षण के पाठ्यक्रम में ‘भविष्य विज्ञान’ को स्थान देने का सुझाव दिया है। इस प्रकार भविष्य विज्ञान ही शिक्षा से सम्बन्धित समस्याओं का वस्तुनिष्ठ और वैज्ञानिक अध्ययन करता रहा है।
पिछले दशकों में ‘भविष्य शिक्षा’ (Futuristic Education) भविष्य विज्ञान (Futurology) की परिधि से निकलकर स्वयमेव विकसित अनुशासन का स्वरूप लेने का प्रयास करती रही है। सन् 1979 से ही पाठ्यक्रम परीक्षा प्रणाली, शैक्षिक प्रशासन शिक्षण व्यवसाय वैज्ञानिक और तकनीकी शिक्षा के विषय में पूर्वानुमान और पूर्वकथन के प्रयास होते रहे हैं। पूर्वानुमान का निर्धारित समय सन् 1990 से सन् 2000 तक का रहा है।
भविष्य कथन के लिए डेल्फी तकनीकी (Delphi Technique) का प्रचलन रहा है। कही-कही डाक्यूमेन्टरी स्टडी (Documentary study) और एक्सपैक्टेशन सर्वे (Expectation survey) के प्रयोग भी होते रहे हैं। लेकिन प्रायः अध्ययनों का आधार पाश्चात्य धरातल ही रहा है। जहां तक भारतवर्ष में ‘भविष्य शिक्षा’ के सुव्यवस्थित प्रारम्भ का प्रश्न है “डा0 सतीश चन्द्र सेठ” भविष्य शिक्षा के जनक माने जाते हैं। जैसा कि भविष्य विज्ञान का इतिहास दर्शाता है भारतवर्ष में भविष्य शिक्षा की आयु करीब दो दशक की है और इसका उत्तरोत्तर विकास भी हो रहा है।
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भविष्य शिक्षा का अर्थ (Meaning of Futuristic Education)
भविष्य अध्ययन से सम्बन्धित साहित्य का सर्वेक्षण करने पर भविष्य शिक्षा का अर्थ स्पष्ट हो जाता है। राबर्ट जुंक (Robert Junk) भविष्य विज्ञान को “नियोजन का विज्ञान” (science of planning) ही मानते है क्योंकि नियोजन की प्रक्रिया में भी भविष्य के सम्बन्ध में विचार किया जाता हैं भविष्य विज्ञान और नियोजन दोनों में ही फलानुमान (Prognosis) और निदान (Diagnosis) निहित है लेकिन नियोजन का क्षेत्र भविष्य विज्ञान से थोड़ा अधिक विस्तृत है। नियोजन में फलानुमान और निदान के आधार पर विकास की दिशा को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक सुझाव भी दिए जाते है।
इस प्रकार जुंक के दृष्टिकोणों से यही निहितार्थ निकलता है कि, “भविष्य शिक्षा” भविष्यमूलक शैक्षिक नियोजन की प्रक्रिया है।
भविष्य मूलक शैक्षिक नियोजन की प्रक्रिया में फलानुमान और निदान करने के लिए भविष्य की परिकल्पना, पूर्वानुमान और पूर्वकथन के साथ-साथ वर्तमान स्थिति का विश्लेषण सम्मिलित है। अतः “भविष्य शिक्षा” से हमारा तात्पर्य वह शिक्षा है जो वर्तमान समाज के तीव्रगामी परिवर्तनों का बोध (understanding) और गतिशील तथा जटिल भावी सामाजिक जीवन का उचित प्रत्यक्षीकरण कराने में समर्थ हो।
दूसरे शब्दों में,
“भविष्य शिक्षा” वह शिक्षा है जो सामाजिक भविष्य के विभिन्न निर्धारक क्षेत्रों के विषय में भविष्य कथन करती है और भविष्य में होने वाली पूर्वानुमानित जटिलताओं के संदर्भ में वांछनीय लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए उपयुक्त साधन और विधियां प्रदान करती है।”
इस प्रकार भविष्य शिक्षा भविष्य की चुनौतियों का समाधान प्रस्तुत करती है भविष्य शिक्षा का सम्बन्ध भविष्य की प्राविधिक आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक परिस्थितियों की जानकारी प्राप्त करने तथा वर्तमान परिस्थितियों के आधार पर भविष्य के ग्रहण किए गए संकेतों (signals) की वैज्ञानिक विवेचना एवं विश्लेषण करना है।
सही अर्थों में भविष्य शिक्षा का स्वरूप अंतर्विषयी है क्योंकि इसका विषय क्षेत्र ही समग्र (holistic)है।
भविष्य विज्ञान पर आधारित होने के कारण भविष्य शिक्षा एक अंतर्विषयी अनुशासन और प्रवृत्ति के रूप में विकसित हो रही है।
भविष्य शिक्षा की आवश्यकता (Need for Futuristic Education)
यह स्पष्ट है कि शिक्षा विकासात्मक प्रक्रिया है। शिक्षा का कार्य मनुष्य का निर्माण और विकास करना है। इस प्रक्रिया में वर्तमान ज्ञान (existing knowledge) पुराने और अनुपयोगी ज्ञान और अनुभव बहुत सहायक नहीं हो सकते। आज हमारी युवा पीढ़ी शिक्षा प्राप्ति की लम्बी अवधि और अनुभवों से गुजरने के पश्चात डिग्री और प्रमाण पत्र तो प्राप्त कर लेती है लेकिन अन्त में यही अनुभव करती है कि वर्षों के शैक्षिक अनुभव और ज्ञान निरर्थक और अप्रासंगिक सिद्ध हो रहे हैं।
हमारी शिक्षा में अनुभव और ज्ञान प्रदान करते समय भविष्य के जटिल समाज की आवश्यकता, नयी पीढ़ी और समाज की अपेक्षाओं को ध्यान में नहीं रखा गया है ऐसी स्थिति में भारत में शिक्षा के मानव संसाधन विकास उपागम (Human resource Devlopment Approach) को कैसे स्वीकार किया जा सकता है, जबकि हमारी शिक्षा में भविष्य दृष्टि है ही नहीं।
डॉ0 सतीश चन्द्र सेठ एक सार्थक प्रश्न उठाते हैं,
क्या हमारे शैक्षिक कार्यक्रम हमारे विद्यार्थियों और बुद्धिजीवियों को प्रेरित करते हैं कि : “वे भविष्य को गहरायी से खोज सकें, प्रौद्योगिकी के निहितार्थों को समझ सकें, वे सीख सके कि दूरदर्शिता और पूर्वानुमान पर आधारित प्रबन्धन के द्वारा समाज की पुनः रूप रेखा कैसे बनाई जा सकती है। प्रत्युत्तर में तो यही कहा जा सकता है कि हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली भविष्य शिक्षा की आवश्यकता को अपरिहार्य रूप से इंगित करती है। हमारे देश में यदि शिक्षा के प्रत्येक स्तर पर शैक्षिक योजनाओं को भविष्योन्मुख बनाया जाता है, तात्पर्य यह है कि शैक्षिक नियोजन करते समय यदि जटिल सामाजिक सम्बन्धों, नई पीढ़ी की आवश्यकताओं, भविष्य में रोजगार के अवसर तथा मूल्य व्यवस्था को ध्यान में रखा जाता है तो यह शिक्षा देश के भावी कर्णधारों के निर्माण में सकारात्मक भूमिका निभा सकती है।
जनतांत्रिक राष्ट्र भारत वर्ष में सहभागिता युक्त जनतंत्र समाजवाद, धर्मनिरपेक्षवाद, मानवतावाद आदि मूल्यों की रक्षा के लिए ‘भविष्य शिक्षा’ एक अनिवार्य नैतिक आवश्यकता मानी जा सकती है।
भविष्य शिक्षा के उद्देश्य (Objectives of Futuristic Education)
भविष्य शिक्षा को सुव्यवस्थित रूप प्रदान करने के लिए विभिन्न शोधों के निष्कर्षों के आधार पर भविष्य शिक्षा के उद्दश्यों को ज्ञान, बोध, व्यवहार, दृष्टिकोण आदि वर्गों के अंतर्गत चिन्हित किया गया है जैसे:-
1. ज्ञान (Knowledge)
(i) भविष्य अध्ययन या भविष्य शिक्षा का ज्ञान, अर्थ, परिभाषाओं और विशेषताओं से परिचित कराना।
(ii) भविष्य अध्ययन के विभिन्न क्षेत्रों का ज्ञान प्रदान करना।
(iii) भविष्य अध्ययन की विभिन्न संख्यात्मक व गुणात्मक विधियों का ज्ञान प्रदान करना।
2. बोध (Understanding)
(i) विभिन्न क्षेत्रों में जैसे कि पर्यावरण, जनसंख्या, भौतिक और मानवीय संसाधन, शिक्षा, ऊर्जा, स्वास्थ्य, भोजन, अर्थ व्यवस्था मनोविज्ञान, संचार, परिवहन, सूचना प्रौद्योगिकी, खनिज संसाधन अंतरिक्ष अध्ययन आदि के संदर्भ में भविष्य अध्ययन की आवश्यक्ता और साथ को समझने की क्षमता प्रदान करना।
(ii) भविष्य के गहन और सूक्ष्म अध्ययन या परीक्षण (future scanning) की विभिन्न विधियों (विधियों के अर्थ और सीमांकन) का बोध कराना।
3. व्यवहार (Application)
(i) भविष्य अध्ययन से सम्बन्धित अभ्यासों के माध्यम से विद्यार्थियों में विस्तृत चिंतन (divergent thinking) की क्षमता उत्पन्न करना।
(ii) भविष्य अध्ययन की विभिन्न विधियों के माध्यम से भविष्य सम्बन्धी अभ्यासों (futuristic exercise) के लिए अनुभव प्रदान करना।
(iii) भविष्य कथन या भविष्य वाणी के आधार पर सम्भावित योजनाओं (prospective planning) के लिए आवश्यक कुशलता का विकास करना।
4. दृष्टिकोण और चेतना (Attitude and Awareness)
(i) भविष्योन्मुख विचारों, चिंतन और अभ्यासों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोणों का विकास करना।
(ii) केवल भविष्य ही नहीं, बल्कि वांछित भविष्य के प्रति चेतना उत्पन्न करना।
भविष्य शिक्षा के कार्य (Functions of Futuristic Education)
निर्धारित उद्देश्यों के आधार पर ‘भविष्य शिक्षा’ निम्नलिखित कार्य करती है-
1. भविष्य में आने वाले परिवर्तनों के प्रति एक चेतना प्रदान करती है।
2. भविष्य में तकनीकी विकास के फलस्वरूप सामाजिक परिवर्तन के स्वरूप को समझने की क्षमता प्रदान करती है।
3 भविष्य के समाज (future society) के आर्थिक राजनैतिक भौगोलिक, जैविक, धार्मिक, वाणिज्य-व्यापार, प्रौद्योगिक, शैक्षिक तथा मानवीय पक्षों के लिए यह प्रत्यावर्तित दृश्य (alternative scene) प्रस्तुत करती है।
4.समाज के वांछित भविष्य (prefered future) के लिए यह संदर्भित नियोजन (pcripective planning) की भूमिका स्पष्ट करती है।
5. भविष्य शिक्षा दीर्घ कालीन योजनाओं का मार्ग प्रशस्त करती है।
6. यह शिक्षा के भविष्योन्मुख स्वरूप को अधिक स्पष्ट और चिन्हित (identify) करती है।
7. यह शिक्षा के संदर्भ में प्रौद्योगिक विकास से सम्बन्धित भविष्यवाणी और मूल्यांकन करती है।
8. यह भविष्योन्मुख पाठ्यक्रम की योजना तैयार करती है।
9. भविष्य शिक्षा के लिए उपयुक्त सामग्री प्रस्तुत करती है।
10. भविष्य शिक्षा ज्ञान के सभी विषय क्षेत्रों के परिवर्तित स्वरूप का प्रयोग सामाजिक और मानवीय विकास के लिए करती है।
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