अधिगम/सीखना, जीवन पर्यन्त चलने वाली क्रिया है। व्यवहार में कोई भी अपेक्षाकृत स्थायी परिवर्तन अधिगम है। यह पहले सीखी गयी क्रिया या अनुभव का परिणाम है। अधिगम/सीखने के नियम तथा सिद्धान्तों की रचना विद्वानों ने की है जिसका वर्णन निम्नलिखित है-
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सीखने के नियमों का महत्व (Importance of Laws of Learning)
नियम प्रकृति के अटल विधान हैं। पशु-पक्षी, पौधे, पुरुष सभी प्रकृति के नियमों के अनुसार जीवन व्यतीत करते हैं। इसी प्रकार सीखने के भी कुछ नियम हैं। सीखने की प्रक्रिया इन्हीं नियमों के अनुसार चलती है। कुछ लेखकों ने इन नियमों को ‘सिद्धान्तों’ (Principles) की संज्ञा दी है। जब भी हम कुछ सीखते हैं, तब हम इनमें से कुछ नियमों का अनिवार्य रूप से अनुसरण करते हैं।
इनके महत्व का उल्लेख करते हुए रायबर्न ने लिखा है-“यदि शिक्षण विधियों में इन नियमों या सिद्धान्तों का अनुसरण किया जाता है, तो सीखने का कार्य अधिक सन्तोषजनक होता है।”
“If these laws or principles are followed in teaching methods, the learning will be more satisfactory.” -Ryburn
थार्नडाइक के सीखने के नियम (Thorndike’s Laws of Learning)
पिछले पचास वर्षों से अमेरिका के मनोवैज्ञानिक, पशुओं पर परीक्षण करके ‘सीखने’ के नियमों की खोज में लगे हुए हैं। उन्होंने सीखने के जो नियम प्रतिपादित किये हैं, उनमें सबसे अधिक मान्यता ई. एल. थार्नडाइक (E. L. Thorndike) के नियमों को दी जाती है। उसने सीखने के तीन मुख्य नियम और पाँच गौण नियम प्रतिपादित किये हैं, यथा-
(अ) मुख्य नियम (Primary Laws)
(i) तत्परता का नियम
(ii) अभ्यास का नियम । इस नियम के दो अंग हैं- उपयोग और अनुपयोग के नियम
(iii) प्रभाव या परिणाम का नियम।
(ब) गौण नियम (Secondary Laws)
(i) बहुप्रतिक्रिया का नियम
(ii) अभिवृत्ति या मनोवृत्ति का नियम
(iii) आंशिक क्रिया का नियम
(iv) आत्मीकरण का नियम
(v) सम्बन्धित परिवर्तन का नियम
इन नियमों का क्रमबद्ध विवरण निम्नलिखित है ; यथा-
सीखने के मुख्य नियम (Primary Laws of Learning)
सीखने के तीन मुख्य नियम हैं, यथा-
तत्परता का नियम (Law of Readiness)
इस नियम का अभिप्राय यह है कि यदि हम किसी कार्य को सीखने के लिये तैयार होते हैं, तो हम उसे शीघ्र ही सीख लेते हैं। तत्परता में कार्य करने की इच्छा निहित रहती है। यदि बालक में गणित के प्रश्न करने की इच्छा है, तो वह उनको करता है, अन्यथा नहीं। इतना ही नहीं, तत्परता के कारण वह उनको अधिक शीघ्रता और कुशलता से करता है। तत्परता उसके ध्यान को कार्य पर केन्द्रित करने में सहायता देती है, जिसके फलस्वरूप वह उसे सम्पन्न करने में सफल होता है।
भाटिया (Bhatia) का कथन है-“तत्परता या किसी कार्य के लिए तैयार होना, युद्ध को आधा विजय कर लेना है।”
तत्परता के नियम के अनुसार शिक्षक, सीखने की परिस्थितियाँ तैयार करता है। इन परिस्थितियों से बालक एकाकार हो जाता है तो वह सीखने के लिये तत्पर हो जाता है।
अभ्यास का नियम (Law of Exercise)
अभ्यास का नियम किसी क्रिया को बार-बार दोहराने से दृढ़ होता है।
रहीम ने कहा है-
करत करत अभ्यास ते जड़ मति होत सुजान।
रसरी आवत जात ते सिल पर पड़त निशान।
अर्थात् अभ्यास करते रहने से मूर्ख भी विद्वान् हो जाता है, ठीक वैसे ही जैसे कुएँ की जगत पर बार-बार रस्सी के आने-जाने से निशान पड़ जाते हैं।
अभ्यास के नियम के दो रूप हैं- उपयोग का नियम (Law of use) तथा अनुपयोग का नियम (Law of disuse)।
उपयोग का नियम (Law of Use)
इस नियम का तात्पर्य है-अभ्यास कुशल बनाता है (Practice makes perfect)। यदि हम किसी कार्य का अभ्यास करते रहते हैं, तो हम उसे सरलतापूर्वक करना सीख जाते हैं और उसमें कुशल हो जाते हैं। हम बिना अभ्यास किये साइकिल पर चढ़ने में या कोई खेल खेलने में कुशल नहीं हो सकते हैं।
कोलेसनिक (Kolesnik) के अनुसार, “अभ्यास का नियम किसी कार्य की पुनरावृत्ति, पुनर्विचार या अभ्यास के औचित्य को सिद्ध करता है।”
अनुपयोग का नियम (Law of Disuse)
इस नियम का अर्थ यह है कि यदि हम सीखे हुए कार्य का अभ्यास नहीं करते हैं तो हम उसको भूल जाते हैं। अभ्यास के माध्यम से ही हम उसे स्मरण रख सकते हैं। डगलस एवं हालैण्ड (Douglas & Holland) का कथन है-“जो कार्य बहुत समय तक किया या दोहराया नहीं जाता है, वह भूल जाता है। इसी को अनभ्यास का नियम कहते हैं।”
प्रभाव या सन्तोष का नियम (Law of Effect)
इस नियम के अनुसार, हम उस कार्य को सीखना चाहते हैं, जिसका परिणाम हमारे लिये हितकर होता है, या जिसमें हमें सुख और सन्तोष मिलता है। यदि हमको किसी कार्य को करने या सीखने में कष्ट होता है, तो हम उसको करते या सीखते नहीं हैं।
वाशबर्न (Washburne, Crow & Crow) के अनुसार “जब सीखने का अर्थ किसी उद्देश्य या इच्छा को सन्तुष्ट करना होता है, तब सीखने में सन्तोष का महत्वपूर्ण स्थान होता है।”
प्रभाव के नियम को सन्तोष या असन्तोष का नियम भी कहा जाता है। विद्यालयों में पुरस्कार तथा दण्ड अपनाकर सीखने की क्रिया को प्रभावशाली बनाया जाता है।

सीखने के गौण नियम (Secondary Laws of Learning)
इन नियमों के अतिरिक्त कुछ नियम गौण नियम कहलाते हैं, जो इस प्रकार हैं-
बहु-प्रतिक्रिया का नियम (Law of Multiple Response)
इस नियम का अभिप्राय यह है कि जब हम कोई नया कार्य करना सीखते हैं, तब हम उसके प्रति अनेक और विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाएँ करते हैं। दूसरे शब्दों में, हम विविध प्रकार के उपायों और विधियों का प्रयोग करके उस कार्य में सफलता प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं। कुछ समय तक प्रयत्न करने के बाद हमें उस कार्य को करने की ठीक विधिया उपाय मालूम हो जाता है। ‘प्रयत्न और भूल’ द्वारा ‘सीखने का सिद्धान्त’ इसी नियम पर आधारित है।
मनोवृत्ति का नियम (Law of Disposition)
इस नियम का तात्पर्य यह है कि जिस कार्य के प्रति हमारी जैसी अभिवृत्ति या मनोवृत्ति होती है, उसी अनुपात में हम उसको सीखते हैं। यदि हम मानसिक रूप से किसी कार्य को करने के लिये तैयार नहीं हैं, तो या तो हम उसे करने में असफल होते हैं, या अनेक त्रुटियाँ करते हैं या बहुत विलम्ब से करते हैं। यही कारण है कि शिक्षक, प्रेरणा देकर बालकों को नवीन ज्ञान को ग्रहण करने के लिये मानसिक रूप से तैयार करते हैं।
आंशिक क्रिया का नियम (Law of Partial Activity)
इस नियम का अनुसरण करके, हम जिस कार्य को करना चाहते हैं, उसे छोटे-छोटे अंगों या भागों में विभाजित कर लेते हैं। इस प्रकार का विभाजन, कार्य को सरल और सुविधाजनक बना देता है। हम उन छोटे-छोटे अंगों को शीघ्रता और सुगमता से करके सम्पूर्ण कार्य को पूरा करते हैं। इस नियम पर ‘अंश से पूर्ण की ओर’ का शिक्षण का सिद्धान्त आधारित किया जाता है। शिक्षक अपनी सम्पूर्ण विषय-सामग्री को छोटे-छोटे खण्डों में विभाजित करके छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करता है।
आत्मीकरण का नियम (Law of Assimilation)
इस नियम का अभिप्राय यह है कि हम जो भी नया ज्ञान प्राप्त करते हैं, उसका आत्मीकरण कर लेते हैं, या उसे आत्मसात् कर लेते हैं। दूसरे शब्दों में, हम नवीन ज्ञान को अपने पूर्व ज्ञान का स्थायी अंग बना लेते हैं। यही कारण है कि जब शिक्षक, बालक को कोई नई बात सिखाता है, तब उसका पहले सीखी हुई बात से सम्बन्ध स्थापित कर देता है।
सम्बन्धित परिवर्तन का नियम (Law of Associative Shifting)
इस नियम का अभिप्राय है-पहले कभी की गयी क्रिया को उसी के समान दूसरी परिस्थिति में उसी प्रकार करना। इसमें क्रिया का स्वरूप तो वही रहता है, पर परिस्थिति में परिवर्तन हो जाता है। यदि माँ का बच्चा मर जाता है, तो वह उसकी वस्तुओं को उसी प्रकार सीने से लगाती है, जिस प्रकार वह बच्चे को लगाती थी। प्रेमिका की अनुपस्थिति में प्रेमी उसके चित्र से उसी प्रकार बातें करता है, जिस प्रकार वह उससे करता था।
सीखने के अन्य महत्वपूर्ण नियम (Other Important Laws of Learning)
ये निम्न प्रकार हैं-
उद्देश्य का नियम (Law of Purpose)
इस नियम का अर्थ यह है कि यदि कोई कार्य हमारे उद्देश्य को पूरा करता है, तो हम उसे शीघ्र ही सीख लेते हैं।
रायबर्न (Ryburn) का मत है—”व्यक्ति का किसी कार्य को करने का उद्देश्य जितना अधिक प्रबल होता है, उतना ही अधिक उसमें उस कार्य को करने की तत्परता होती है।”
परिपक्वता का नियम (Law of Maturation)
इस नियम का सार यह है कि हम किसी बात को तभी सीख सकते हैं, जब हममें उसे सीखने की शारीरिक और मानसिक परिपक्वता होती है। दस वर्ष के बालक को नक्षत्र-विज्ञान की शिक्षा देना व्यर्थ है। वह इस विषय को अपनी उसी अवस्था में समझ सकता है, जब उसकी शारीरिक और मानसिक शक्तियों का आवश्यक विकास हो जाए।
निकटता का नियम (Law of Recency)
इस नियम का तात्पर्य यह है कि जो कार्य जितने निकट भूत में या कम समय पहले सीखा गया है, वह उतनी ही अधिक सरलता से फिर किया जा सकता है।
अभ्यास-वितरण का नियम (Law of Distribution of Practice)
यह नियम हमें बताता है कि किसी कार्य को लगातार सीखने के बजाए कुछ-कुछ समय के बाद थोड़ी-थोड़ी देर में सीखना अधिक अच्छा है।
डगलस एवं हालैण्ड (Douglas & Holland) के शब्दों में हम कह सकते हैं-“यदि एक व्यक्ति किसी कार्य को एक दिन में 60 या 80 मिनट तक लगातार अभ्यास न करके, 4 दिन तक रोज उसका 15 मिनट अभ्यास करे, तो वह उसे अधिक सीख सकता है।”
बहु-अधिगम का नियम (Law of Multiple Learning)
इस नियम का अर्थ स्पष्ट करते रायबर्न (Ryburn) ने लिखा है-“हम एक समय में केवल एक बात कभी नहीं सीखते हैं। हम सदैव बहुत-सी बातों को साथ-साथ सीखते हैं।”
विद्यालय में बालक न केवल पाठ में आने वाली बातों को सीखता है, वरन् शिक्षक के चरित्र से, छात्रों की संगति से और अपने वातावरण से भी बहुत-सी बातें सीखता है।
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शिक्षण सूत्र (Maxims of Teaching) एवं शिक्षण के सिद्धांत (Teaching Principles)
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शिक्षा, शिक्षण एवं सीखना (Education, Teaching and Learning)
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