श्रव्य-दृश्य सामग्री (Audio-Visual Aids)

पाठ को रोचक एवं सुबोध बनाने के लिए यह आवश्यक है कि छात्रों की शिक्षा का सम्बन्ध उनकी अधिकाधिक ज्ञानेन्द्रियों के साथ हो। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए आजकल शिक्षण में सहायक सामग्री का प्रयोग प्रचुर मात्रा में किया जा रहा है। इससे सैद्धान्तिक, मौखिक एवं नीरस पाठों को सहायक उपकरणों के प्रयोग से अधिक स्वाभाविक, मनोरंजक तथा उपयोगी बनाया जा सकता है। वास्तव में यह सच है कि सहायक सामग्री का उद्देश्य श्रवण एवं दृष्टि की ज्ञानेन्द्रियों को सक्रिय बनाकर ज्ञान ग्रहण करने के मार्ग खोल देता है। यद्यपि अध्यापक स्वयं भी एक श्रेष्ठ दृश्य-सामग्री है क्योंकि वह विषय को सरल बनाता है, भली-भाँति समझाने का प्रयत्न करता है, फिर भी वह स्वयं में पूर्ण नहीं है। अतः सहायक सामग्री का प्रयोग उसके लिए वांछनीय नहीं वरन् अनिवार्य भी है। श्रव्य-दृश्य सामग्री, “वे साधन हैं, जिन्हें हम आँखों से देख सकते हैं, कानों से उनसे सम्बन्धित ध्वनि सुन सकते हैं। वे प्रक्रियायें जिनमें दृश्य तथा श्रव्य इन्द्रियाँ सक्रिय होकर भाग लेती हैं, श्रव्य-दृश्य साधन कहलाती हैं।

श्रव्य-दृश्य सामग्री की परिभाषाएँ
(Definitions of Audio-Visual Aids)

श्रव्य-दृश्य सामग्री की परिभाषा विभिन्न विद्वानों ने निम्न प्रकार से की है-

(1) “श्रव्य-दृश्य सामग्री वह सामग्री है जो कक्षा में या अन्य शिक्षण परिस्थितियों में लिखित या बोली गयी पाठ्य सामग्री के समझने में सहायता प्रदान करती है।” -डैण्ट

(2) “कोई भी ऐसी सामग्री जिसके माध्यम से शिक्षण प्रक्रिया को उद्दीपित किया जा सके अथवा श्रवणेन्द्रिय संवेदनाओं के द्वारा आगे बढ़ाया जा सके, श्रव्य-दृश्य सामग्री कहलाती है।” –कार्टर ए० गुड

(3) “श्रव्य-दृश्य सामग्री के अन्तर्गत उन सभी साधनों को सम्मिलित किया जाता है जिनकी सहायता से छात्रों की पाठ में रुचि बनी रहती है तथा वे उसे सरलतापूर्वक समझते हुए अधिगम के उद्देश्य को प्राप्त कर लेते हैं।” -एलविन स्ट्रौंग

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि श्रव्य-दृश्य सामग्री वह सामग्री, उपकरण तथा युक्तियाँ हैं जिनके प्रयोग करने से विभिन्न शिक्षण परिस्थितियों में छात्रों और समूहों के मध्य प्रभावशाली ढंग से ज्ञान का संचार होता है। श्रव्य-दृश्य सामग्री का अर्थ निम्नांकित चित्र से और अधिक स्पष्ट हो जाता है-

वास्तव में “श्रव्य-दृश्य सामग्री वह अधिगम अनुभव हैं जो शिक्षण प्रक्रिया को उद्दीपित करते हैं, छात्रों को नवीन ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित करते हैं तथा शिक्षण सामग्री को अधिक स्पष्ट करते हुए, उसे छात्रों के लिए सरल, सहज तथा बोधगम्य बनाते हैं।” श्रव्य-दृश्य सामग्री शिक्षा के विभिन्न प्रकरणों को रोचक, स्पष्ट तथा सजीव बनाती है। इसमें “ज्ञानेन्द्रियाँ प्रभावित होकर पढ़ाये गये पाठ को स्थायी बनाने में सहायता प्रदान करती हैं। श्रव्य-दृश्य सामग्री के प्रयोग से शिक्षण आनन्ददायक हो जाता है और छात्रों के मन पर स्थायी प्रभाव छोड़ जाता है।

श्रव्य-दृश्य सामग्री (Audio-Visual Aids)

श्रव्य-दृश्य सामग्री के उद्देश्य
(Objectives of Audio-Visual Aids)

शिक्षा में श्रव्य-दृश्य सामग्री का उपयोग विशेष रूप निम्नांकित उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु किया जाता है-
(1) बालकों में पाठ के प्रति रुचि पैदा करना तथा विकसित करना।
(2) बालकों में तथ्यात्मक सूचनाओं को रोचक ढंग से प्रदान करना।
(3) सीखने में रुकने की गति (Retention) में सुधार करना ।
(4) छात्रों को अधिक क्रियाशील बनाना।
(5) पढ़ने में अधिक रुचि बढ़ाना।
(6) अभिरुचियों पर आशानुकूल प्रभाव डालना।
(7) तीव्र एवं मन्द बुद्धि बालकों को योग्यतानुसार शिक्षा देना।
(8) पाठ्य-सामग्री को स्पष्ट, सरल तथा बोधगम्य बनाना।
(9) बालक का अवधान पाठ की ओर केन्द्रित करना।
(10) बालकों की निरीक्षण शक्ति का विकास करना।
(11) अमूर्त पदार्थों को मूर्त रूप देना।
(12) बालकों को मानसिक रूप से नये ज्ञान की प्राप्ति हेतु तैयार करना और प्रेरणा देना।

श्रव्य-दृश्य सामग्री की आवश्यकता तथा महत्व
(Need And Importance of Audio-Visual Aids)

शिक्षा में ज्ञानेन्द्रियों पर आधारित ज्ञान ज्यादा स्थायी माना गया है। श्रव्य-दृश्य सामग्री में भी ज्ञानेन्द्रियों द्वारा शिक्षा पर विशेष बल दिया जाता है। छात्रों में नवीन वस्तुओं के विषय में आकर्षण होता है। नवीन वस्तुओं के बारे में जानने की स्वाभाविक जिज्ञासा होती है।

श्रव्य-दृश्य सामग्री में नवीनता का प्रत्यय निहित रहता है, फलस्वरूप छात्र सरलता से नया ज्ञान प्राप्त करने में समर्थ होते हैं, श्रव्य-दृश्य सामग्री छात्रों के ध्यान को केन्द्रित करती हैं तथा पाठ में रुचि उत्पन्न करती हैं जिससे वे प्रेरित होकर नया ज्ञान प्राप्त करने के लिए लालायित हो जाते हैं।शिक्षा में छात्रों को सक्रिय रहकर ज्ञान प्राप्त करना होता है।

श्रव्य-दृश्य सामग्री छात्रों की मानसिक भावना, संवेगात्मक सन्तुष्टि तथा मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए उन्हें शिक्षा प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रेरित करती है।

छात्रों को ज्ञान, सरल, सहज तथा बोधगम्य तभी महसूस होता है जब उनकी व्यक्तिगत विभिन्नताओं पर ध्यान देते हुए शिक्षा दी जाये। श्रव्य-दृश्य सामग्री बालकों को उनकी रुचि, योग्यताओं तथा क्षमताओं तथा रुझानों के अनुरूप शिक्षा प्रदान करने में सहायक सिद्ध होती है। ऐसे विषय तथा विचार जो मौखिक रूप से व्यक्त नहीं किये जा सकते, उनके लिए अव्य-दृश्य सामग्री अत्यन्त उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुई हैं। इनकी सहायता से अनुदेशन तथा शिक्षण अधिक प्रभावशाली होता है।

मैकोन तथा राव ने श्रव्य दृश्य सामग्री के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा है, “शिक्षक श्रव्य-दृश्य सामग्री (उपकरणों) के द्वारा छात्रों की एक से अधिक इन्द्रियों को प्रभावित करके पाठ्य-वस्तु को सरल, रुचिकर तथा प्रभावशाली बनाते हैं।”

फ्रांसिल डब्ल्यू० नायल के अनुसार, “किसी भी शैक्षणिक प्रोग्राम का आधार अच्छा अनुदेशन है तथा श्रव्य-दृश्य प्रशिक्षण साधन इस आधार के आवश्यक अंग हैं।”

एडगर ब्रूस वैसले ने श्रव्य-दृश्य सामग्री के महत्त्व को स्वीकार करते हुए लिखा है-“श्रव्य-दृश्य साधन अनुभव प्रदान करते हैं। उनके प्रयोग से वस्तुओं तथा शब्दों का सम्बन्ध सरलता से जुड़ जाता है। बालकों के समय की बचत होती है, जहाँ बालकों का मनोरंजन होता है वहाँ बालकों की कल्पना शक्ति तथा निरीक्षण शक्ति का भी विकास होता है।”
डॉ० के० पी० पाण्डेय ने श्रव्य-दृश्य सामग्री की आवश्यकता एवं महत्त्व का विवेचन करते हुए निम्नांकित विचार बिन्दु प्रस्तुत किये हैं-
(1) श्रव्य-दृश्य सामग्री द्वारा अधिगम की प्रक्रिया में ध्यान तथा अभिप्रेरणा बनाये रखने में मदद मिलती है।
(2) श्रव्य-दृश्य सामग्री के उपयोग करने से विषय-वस्तु का स्वरूप जटिल की अपेक्षा सरल बन जाता है।
(3) यह सामग्री छात्रों को विषय-वस्तु को समझाने में मदद देती है।
(4) शिक्षण अधिगम व्यवस्था को कुशल, प्रभावी व आकर्षक बनाने में समर्थ है।
(5) कक्षा शिक्षण में एक विशेष स्तर तक संवाद बनाये रखने में तथा उसमें गतिशीलता कायम रखने में यह समर्थ होती है।
(6) व्यक्तिगत विभिन्नताओं पर यह ध्यान देती है।
(7) शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया को वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक आधार प्रदान करते हुए अधिगम संसाधनों का विस्तार करती है।
(8) शिक्षण परिस्थितियों को मूर्त एवं जीवन्त बनाने की श्रव्य-दृश्य सामग्री की अद्भुत क्षमता होती है, जिससे अन्तरण अधिक प्रभावशाली एवं सरल हो जाता है।

श्रव्य-दृश्य सामग्री की विशेषताएँ
(Characteristics of Audio-Visual Aids)

शिक्षा में उपयोगी श्रव्य-दृश्य सामग्री को निम्नांकित विशेषताओं के कारण आधुनिक युग में ज्यादा महत्त्व दिया जाने लगा है-

(1) श्रव्य-दृश्य सामग्री स्थायी रूप से सीखने एवं समझने में सहायक है।
(2) मौखिक बात को कम करती है।
(3) यह अनुभवों के द्वारा ज्ञान प्रदान करती है।
(4) यह नैरेशन (Narration) के द्वारा शिक्षा देती है।
(5) यह समय की बचत तथा रुचि में वृद्धि करती है।
(6) यह विचारों में प्रवाहात्मकता प्रदान करती है।
(7) प्राध्यापक को उपयोगी एवं अच्छे शिक्षण में सहायता करती है।
(8) भाषा सम्बन्धी कठिनाइयों को दूर करती है।
(9) विभिन्न प्रकार की विधाओं का प्रयोग करती है।
(10) छात्र अधिक सक्रिय रहते हैं और पाठ को सरलता से याद कर सकते हैं।
(11) वैज्ञानिक प्रवृत्ति का विकास होता है।
(12) छात्र स्वयं कार्य करने पर अपने को अधिक योग्य एवं साधन सम्पन्न तथा आत्मनिर्भर लगते हैं।
(13) विभिन्न विषयों के अन्वेषण के प्रति उत्सुकता जाग्रत होती है।
(14) वस्तुओं को प्रत्यक्ष रूप से देखने का अवसर मिलता है।
(15) प्राकृतिक एवं कृत्रिम वस्तुओं का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिए अच्छे अवसर मिलते हैं।
(16) छात्रों को उपकरण प्रयोग करने की विधि का ज्ञान होता है।
(17) सहायक सामग्री सूक्ष्म बातों को सरलता से समझा देती है और छात्रों की कल्पना एवं विचार शक्ति का विकास करती है।
(18) इससे छात्रों की ज्ञानेन्द्रियों को प्रेरणा मिलती है और छात्रों को निश्चित ज्ञान प्राप्त होता है।
(19) पाठ में अधिक रोचकता आती है।
(20) यह हमारी ज्ञानेन्द्रियों को उद्दीपित करके शिक्षण एवं अधिगम प्रक्रिया को सुगम बनाती है।

श्रव्य-दृश्य सामग्री की शिक्षण प्रक्रिया में भूमिका
(Role of Audio-Visual Aids in Teaching Process)

श्रव्य-दृश्य सामग्री शिक्षक को प्रभावशाली बनाने में मदद करती है। यह शिक्षण को अधिक रोचक बनाती है तथा छात्रों के समक्ष प्रभावशाली प्रस्तुतीकरण प्रस्तुत करती है। यह शिक्षक, छात्र तथा विषय सामग्री के मध्य अन्तःप्रक्रिया को तीव्रतम गति पर लाकर छात्रों को शिक्षान्मुखी तथा जिज्ञासु बना देती है।

एक अच्छे शिक्षक के लिए विषय पर आधिपत्य तथा छात्रों की प्रकृति की उत्तम जानकारी के साथ-साथ श्रव्य-दृश्य सामग्री का भी अच्छा ज्ञान होना चाहिए तभी उसका शिक्षण स्पष्ट, सरल तथा प्रभावशाली होगा। शिक्षक को सम्बन्धित श्रव्य-दृश्य सामग्री की आवश्यकता, विभिन्न प्रकार की सामग्री तथा उसकी उचित उपयोग-प्रक्रिया एवं सावधानियों के विषय में समुचित ज्ञान होना चाहिए।

श्रव्य-दृश्य सामग्री अमूर्त चिन्तन को मूर्त चिन्तन में परिवर्तित करके दुरूह विषय सामग्री को सरल तथा सुगम बनाती है। यह छात्रों के मस्तिष्क पर स्थायी ‘चिन्ह’ उत्पन्न करके अधिगम को स्थायी बनाती है। श्रव्य-दृश्य सामग्री छात्रों में अधिगम के प्रति प्रेरणा उत्पन्न करती है, वे शिक्षण प्रक्रिया में पूरी तरह से खो जाते हैं और अपने प्रत्ययों को ज्यादा स्पष्ट रूप से समझने में छात्रों को समर्थ बनाती है।

यदि हमें विज्ञान में ‘हृदय’ पढ़ाना है तो हम कितना भी स्पष्ट वर्णन करें। हम उतने सफल नहीं हो सकेंगे, जितना हृदय का एक ‘मॉडल’ दिखाकर अथवा हृदय पर एक फिल्म दिखाकर छात्रों को स्पष्ट कर सकेंगे। छात्रों की कल्पना शक्ति के विकास के लिए श्रव्य-दृश्य सामग्री अपनी अद्भुत भूमिका का निर्वाह करती है। साथ ही शिक्षण-प्रक्रिया में धारावाहिता, विचारों की तारतम्यता तथा प्रकरण अवबोध में निरन्तरता बनाये रखती है।

श्रव्य-दृश्य सामग्री के आवश्यक गुण
(Essential Qualities of Audio-Visual Aids)

एक अच्छी श्रव्य-दृश्य सामग्री में निम्नांकित गुण होना आवश्यक हैं-

परिशुद्धता (Accuracy)

सम्बन्धित विषय प्रकरण को स्पष्ट करने के लिए सही श्रव्य-दृश्य सामग्री का चयन किया जाना चाहिए। कॉमर्स पढ़ाने के लिए विज्ञान के मॉडल लेकर पढ़ाना उचित नही
है, भले ही उनमें कितनी भी साम्यता क्यों न हो जो विषय पढ़ायें उसी का मॉडल प्रयोग करना चाहिए।

सम्बन्धता (Relevancy)

मानव ‘हृदय’ पढ़ाने के लिए मानव के हृदय का ही प्रयोग करना चाहिए। सभी हृदयों को एक-सा समझकर यदि मेंढक के हृदय का मॉडल दिखाकर छात्रों को समझाया जाता है तो यह गलत होगा। अतः श्रव्य-दृश्य सामग्री में सम्बन्धता का गुण अवश्य होना चाहिए।

यथार्थता (Realism)

श्रव्य-दृश्य सामग्री जिस प्रक्रिया, विषय-वस्तु अथवा प्रत्यय की स्पष्ट करने के लिए प्रयोग की जा रही है वह उस प्रक्रिया विषय-वस्तु या प्रत्यय का 100 प्रतिशत प्रतिनिधित्व यथार्थ रूप होना चाहिए यदि यह यथार्थता नहीं है तो यह सामग्री उपयुक्त नहीं है।

रोचकता (Interesting)

एक उत्तम श्रव्य-दृश्य सामग्री में छात्रों की रुचि जाग्रत करने की क्षमता होनी चाहिए। यदि यह शिक्षण में रोचकता नहीं ला पाती तो. शिक्षण सामग्री की उपयुक्तता संदिग्ध हो जाती है।

अनुकूलता (Adoptability)

एक अच्छी श्रव्य-दृश्य सामग्री में अनुकूलता का गुण होना चाहिए। यदि सामग्री विषय तथा प्रकरण के अनुकूल नहीं है और न ही अनुकूल बनाई जा सकती है तो ऐसी सामग्री का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।

कम से कम समय लेने वाली (Less Time Consuming)

एक अच्छी शिक्षण सहायक सामग्री कक्षा शिक्षण प्रक्रिया का कम समय लेने वाली होनी चाहिए। कहा भी गया है, “Don’t teach aids, Teach the Subject with aids.” सामग्री के विवेचन की अपेक्षा विषय-वस्तु के विवेचन पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

कम कीमती सामग्री (Less Costly Aid)

यथासम्भव जिस श्रव्य-दृश्य सामग्री का प्रयोग किया जाये उसकी कीमत कम से कम होनी चाहिए। यदि इसकी कीमत ज्यादा है तथा विद्यालय या शिक्षक इसे नहीं खरीद सकता तो यह व्यर्थ है। प्रयास किया जाना चाहिए कि ज्यादा से ज्यादा Improvised Teaching Aids का प्रयोग किया जाये। बहुत कम खर्च में छात्रों व शिक्षकों द्वारा सामग्री स्वयं भी बनाई जा सकती हो।

सामग्री की उपलब्धता (Availability of Aids)

एक अच्छी शिक्षण सामग्री शिक्षक के लिए उपलब्ध होनी चाहिए। यदि सामग्री में सभी अच्छे गुण हैं परन्तु वह उपलब्ध नहीं है तो शिक्षक के लिए बेकार है।

श्रव्य-दृश्य सामग्री का चयन करते समय ध्यान देने योग्य बिन्दु
(Precautions to be taken while selecting Aids)

श्रव्य-दृश्य सामग्री-

(1) छात्रों के अनुभव, समझ, आयु, आवश्यकता, प्रकरण तथा विषय-वस्तु की प्रकृति के अनुरूप होनी चाहिए।
(2) अध्ययन के प्रकरण से सम्बन्धित होनी चाहिए।
(3) प्रकरण का शुद्ध स्वरूप प्रस्तुत करने वाली होनी चाहिए।
(4) कक्षा के अधिगम लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायक होनी चाहिए।
(5) छात्रों के परिवेश के अनुसार होनी चाहिए ताकि उसके माध्यम से प्रकरण के समस्त बिन्दुओं का ज्ञान प्राप्त हो सके।
(6) एक वस्तु को समझाने के लिए अनावश्यक रूप से ज्यादा सामग्री का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।
(7) चयन के समय केवल ऐसी सामग्री का चयन किया जाना चाहिए जो छात्रों में रुचि जगा सके,उन्हें जिज्ञासु बना सके और उन्हें प्रेरणा दे सके।
(8) जितनी देर आवश्यक है, उतनी ही देर तक प्रयोग की जानी चाहिए। अनावश्यक रूप से पूर्ण कालांश अवधि के लिए सामग्री का प्रदर्शन उचित नहीं है।
(9) जो सरल, सुगम तथा उपयुक्त हो उसी का चयन किया जाना चाहिए।
(10) चयन के समय इस बात का ध्यान भी रखना चाहिए कि चयनित सामग्री शिक्षणात्मक मूल्यों से युक्त होनी चाहिए।
(11) जो सामग्री प्रयोग की जा रही है, सही हालत में होनी चाहिए।
(12) उपयोग से पूर्व शिक्षक को एक बार उस सामग्री को उपयुक्त कृत्रिम वातावरण में प्रयोग करके देख लेना चाहिए। यदि शिक्षक सरलतापूर्वक प्रभावशाली ढंग से यह सामग्री प्रयोग कर सकता है तभी उसका चयन किया जाना चाहिए अन्यथा नहीं।
(13) सामग्री के चयन के पश्चात् सामग्री के प्रभावशाली उपयोग से सम्बन्धित सभी निर्देशों तथा सावधानियों को ध्यानपूर्वक पढ़ना चाहिए तथा सामग्री का उपयोग करना चाहिए।

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