दोस्तों पाठ्यक्रम एक ऐसा शब्द है जिसका अर्थ सामान्यतया पाठ्यवस्तु से लगाया जाता था परन्तु आधुनिक समय में यह बहुत व्यापक हो गया है। इसलिए पाठ्यक्रम की विशेषताएँ भी व्यापक हो चुकी हैं। इस आर्टिकल में हम यह अध्ययन करेंगे कि पाठ्यक्रम की विशेषताएँ क्या हैं? विस्तृत वर्णन निम्नलिखित है-
पाठ्यक्रम की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

Table of Contents
पाठ्यक्रम विद्यालय क्रियाकलापों का सम्पूर्ण कार्यक्रम है (Curriculum is the Entire Programme of School’s Work)
विद्यालय में शिक्षण कार्य के आलावा भी बहुत से क्रियाकलाप होते हैं। पाठ्यक्रम बालकों को पढ़ाये जाने वाले कुछ विषयों को ही नहीं, बल्कि विद्यालय में किये जाने वाले सभी क्रियाकलापों को भी अपने में सम्मिलित करता है। बालकों के व्यक्तित्व पर पड़ने वाले प्रभाव पाठ्यक्रम में सम्मिलित होते हैं।
अधिकारियों द्वारा निर्धारित सभी विषय विभिन्न क्रियाएँ, जैसे—खेल, भाषण प्रतियोगिताएँ, वाद-विवाद, कविता पाठ आदि प्रतियोगिताएँ पाठ्यक्रम की सीमा में आती हैं। अब उन क्रियाकलापों के विस्तृत रूप के विषय में चर्चा करते हैं जो कि विद्यालयों में चलते हैं।
प्रातः की प्रार्थना से आरम्भ होकर कुछ विद्यार्थियों द्वारा दिये गये विचार अथवा पढ़े गये संक्षिप्त समाचार सामूहिक, शारीरिक व्यायाम, पुस्तकालय में अध्ययन करना, आन्तरिक और बाह्य खेल, पिकनिक, छुट्टियों में भ्रमण आदि ये सभी पाठ्यक्रम के तत्व है˙।
संक्षेप में कहा जा सकता है कि जो भी क्रियाकलाप कक्षा के भीतर या बाहर, विद्यालय के भीतर या बाहर, जिनका प्रभाव बालक के व्यक्तित्व पर पड़ता है, वह सभी पाठ्यक्रम के अन्तर्गत आते है˙। इसलिए पाठ्यक्रम विद्यालय का सम्पूर्ण कार्यक्रम है, केवल शैक्षिक पहलू नहीं।
पाठ्यक्रम गतिशील है (Curriculum is Dynamic)
एक उत्तम पाठ्यक्रम गतिशील होता है। इसमें सदैव निर्माण होता रहता है। शिक्षक, संचालक एवं बालक पाठ्यक्रम निर्माण की अवस्था में लगे रहते है˙। समय के साथ बालकों की आवश्यकताओं में भी परिवर्तन होता है।
विभिन्न क्रियाओं की आवश्यकता जरूरतों के अनुसार अनुसार होती है। अतः इन आवश्यकताओं के अनुसार पाठ्यक्रम में परिवर्तन की माँग की जाती है। ऐसी कोई अवस्था नहीं है जब पाठ्यक्रम गतिहीन हो जाये। जीवन के साथ-साथ इसकी गतिशीलता बनाये रखनी पड़ती है।
पाठ्यक्रम अनुभवों का संग्रह है (Curriculum is the Collection of Experiences)
पाठ्यक्रम का तात्पर्य मात्र विषयों का संग्रह अथवा कुछ विषयों का मिश्रण ही नहीं है, वरन् वह अपरिपक्व तथा अनुभवहीन बालकों के लिए पूर्ण परिपक्व तथा अनुभवी जनों द्वारा प्रस्तुत अनुभवों का संग्रह है।
विद्वान शिक्षकों द्वारा जो अनुभवों का संग्रह विद्यार्थियों को प्रदान किया जाता है। इसके उपरान्त बालक अपने विद्यालय में अपने शिक्षकों के अनुभवों का समय-समय पर लाभ प्राप्त करता रहता है।
निःसन्देह शिक्षकों के अनुभव बालकों को उनके ज्ञान में वृद्धि के साथ-साथ विभिन्न परिस्थितियों में बालकों का उचित मार्गदर्शन भी करते है ।
पाठ्यक्रम उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक (Helpful of Achievements of Curriculum Objectives)
दर्शनशास्त्र शिक्षा के उद्देश्यों का निर्धारण करता है। समय एवं परिस्थिति के अनुसार जीवन-दर्शन और आदर्श परिवर्तित होते रहते हैं। इसी कारण से शिक्षा के उद्देश्य भी बदलते रहते हैं। पाठ्यक्रम बालकों को उनके वांछित उद्देश्यों की प्राप्ति में सहयोग करता है। पाठ्यक्रम का शिक्षा के उद्देश्यों के अनुसार निर्माण करना होगा। पाठ्यक्रम बालक के उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक है।
पाठ्यक्रम शैक्षिक प्रवृत्ति को प्रभावित करता है (Curriculum Reflect Education Trends)
विद्यालय के पाठ्यक्रम पर केवल एक दृष्टि हमें इस शिक्षा प्रणाली के सम्पूर्ण मानचित्र के विषय में जानकारी प्रदान करती है जिसके अनुसार विद्यालय चल रहा होता है। शिक्षा प्रणाली के पीछे के उद्देश्य पाठ्यक्रम द्वारा प्रदान किये गये अनुभवों की सहायता से प्राप्त होते हैं।
विशेष रूप से एक विद्यालय में जो विषय पढ़ाये जाते हैं। प्रत्येक विषय की विस्तृत पाठ्यचर्या, शिक्षण का स्तर, अधिगम इन सभी के विषय में पाठ्यक्रम में विचार किया जाता है।
पाठ्यक्रम जीवन-दर्शन को चित्रित करता है (Curriculum Depicts Philosophy of Life)
जीवन आदर्श और जीवन-दर्शन समय के साथ बदलते रहते हैं। जीवन का दर्शन ही शिक्षा के उद्देश्य बनाता है। विद्यालय में समस्त शैक्षिक क्रियाकलाप विशेष रूप से जीवन के उच्च आदर्शी˙ पर प्रकाश डालते हैं ।
पाठ्यक्रम जीवन्त जीवन प्रक्रिया है (Curriculum as a Process of Living)
प्रत्येक पाठ्यक्रम के दो आवश्यक तत्व हैं- विषयवस्तु तथा संरचना । विषयवस्तु अधिगम अनुभवों का योग है। संरचना एक रूप है या अधिगम अनुभवों का प्रबन्धन कह सकते हैं।
पाठ्यक्रम में ये दोनों तत्व अत्यन्त महत्वपूर्ण है। पाठ्यक्रम एक जीवन्त प्रक्रिया है। यह स्थिर दृष्टिकोण से गतिशील दृष्टिकोण की ओर अग्रसर होती है। जीवन में यह व्यक्ति और उसके वातावरण के मध्य बढ़ती हुई पारस्परिक क्रिया है।
पाठ्यक्रम व्यक्ति तथा उसके वातावरण दोनों के साथ सम्बन्धित है, परन्तु व्यक्ति तथा उसका वातावरण समय के साथ-साथ परिवर्तित होते रहते है˙। विकास तथा अभिवृद्धि के लिए विभिन्न प्रकार के पाठ्यक्रम की आवश्यकता है इसलिए पाठ्यक्रम को गतिशील बनाये रखना है।
निर्देशन पाठ्यक्रम का महत्वपूर्ण अंग है (Guidance an Important Part of Curriculum)
पाठ्यक्रम को केवल बालक की समस्याओं का समाधान करने में सहयोग नहीं करना चाहिए, बल्कि बालक को समय-समय पर उचित निर्देशन भी प्रदान करना चाहिए। शिक्षा प्राप्त करने में उसे उचित विषय चयन एवं व्यावसायिक जानकारी भी प्रदान करनी चाहिए।
समाज तथा विद्यालय पाठ्यक्रम का अंग (Society and School Part of Curriculum)
समाज तथा परिवार भी पाठ्यक्रम का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण अंग है। पाठ्यक्रम का निर्माण समाज व परिवार की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किया जाता है। विद्यालय का उद्देश्य शिक्षा की सन्तुष्टि का निर्णय करता है।
पाठ्यक्रम का निर्माण समाज और परिवार को आधार बनाकर ही किया जाता है। इसीलिए परिवार और समाज पाठ्यक्रम का एक महत्वपूर्ण अंग है।
पाठ्यक्रम में संशोधन निरन्तर क्रिया है (Curriculum Revision a Continuous Process)
परिवर्तन संसार का शाश्वत नियम है। जब समाज में परिवर्तन होता है तब व्यक्ति की इच्छाएँ एवं आवश्यकताएँ बदलती है˙ और जब इच्छाएँ एवं आवश्यकताएँ बदलती हैं तब व्यक्ति के उद्देश्य बदलते हैं।
जब जीवन के उद्देश्य बदलते हैं तब उन्हें प्राप्त करने के लिए पाठ्यक्रम बदलता है। शिक्षा का अपना कोई उद्देश्य नहीं होता है। उद्देश्य तो व्यक्तियों और समाज के होते हैं।
शिक्षा के उद्देश्य उन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति के लिए निर्धारित किये जाते है˙, जैसे—प्राचीन काल में व्यक्तियों का मुख्य उद्देश्य ज्ञान-प्राप्ति हुआ करता था तब शिक्षा भी मुख्य उद्देश्य ज्ञान-प्राप्ति ही था।
शिक्षा का आशय पढ़ने और पढ़ाने तथा ज्ञान-प्राप्ति तक ही सीमित था, किन्तु वर्तमान में व्यक्तियों एवं समाज का मुख्य उद्देश्य आर्थिक वृद्धि हो गया है। तब शिक्षा के उद्देश्य और उसका पाठ्यक्रम भी उसी प्रकार का बनाया जा रहा है, जिसके माध्यम से व्यक्ति अपनी व अपने समाज का आर्थिक विकास कर सके। शिक्षा की यह प्रमुख विशेषता है कि वह अपने समाज के व्यक्तियों को आर्थिक रूप से शक्तिशाली बना सके।
उपर्युक्त विशेषताओं द्वारा पाठ्यक्रम अपना अस्तित्व बनाये हुए है। समय के साथ इसके स्वरूप में भी परिवर्तन होता जा रहा है और इसके वर्चस्व में वृद्धि होती जा रही है।
दोस्तों आज आपने अध्ययन किया कि पाठ्यक्रम की विशेषताएँ क्या है? अगर आपको हमारा यह आर्टिकल ज्ञानवर्द्धक एवं लाभदायक लगा हो तो इस Teaching World शैक्षिक ब्लॉग को सब्सक्राइब करें और इसे अपने दोस्तों के साथ भी अवश्य साझा/शेयर करें।
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