उत्तम शिक्षण की विशेषताएँ (Characteristics of Good Teaching)

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उत्तम शिक्षण की विशेषताएँ (Characteristics of Good Teaching)

उत्तम शिक्षण की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

अच्छे शिक्षण में अधिगम सम्बन्धी कौशल पाया जाता है

अच्छे शिक्षण का प्रयास होता है कि छात्रों द्वारा सीखने का कार्य अर्थपूर्ण हो। इस विषय में डॉ. सीताराम जायसवाल लिखते हैं-“अच्छे अध्यापन (शिक्षण) का यह प्रथम सिद्धान्त इस बात की ओर संकेत करता है कि शिक्षण मात्र सूचना, जानकारी अथवा ज्ञान प्रदान करना नहीं है वरन् इसका सम्बन्ध अधिगम अथवा सीखने से भी है। वही शिक्षक अच्छा शिक्षण कर सकता है जो कि शिक्षण के लक्ष्य को सामने रखकर शिक्षण कार्य करता है। फिर उन साधनों को काम में लाता है जोकि सीखने और शिक्षण कार्य के आपसी सम्बन्ध को स्पष्ट करते हैं। इस प्रक्रिया में उन वस्तुओं की ओर ध्यान दिया जाता है जिनमें कि छात्रों की रुचि होती है।” संक्षेप में एक उत्तम शिक्षण में अधिगम के प्रमुख सिद्धान्तों को प्रभावशाली ढंग से प्रयोग किया जाता है।

उत्तम शिक्षण सीखने में उचित मार्ग-प्रदर्शन करता है

अच्छे और प्रभावशाली शिक्षण बालकों को यथासम्भव अधिक से अधिक ज्ञान ही नहीं प्रदान करता तथा उनकी अनुचित दूषित मनोवृत्तियों का शमन ही नहीं करता वरन् वह बालकों के मार्ग का उचित पथ-प्रदर्शन करता है जिस पर चलकर वे अपने व्यक्तित्व और चरित्र का विकास अत्यन्त स्वाभाविक ढंग से कर लेते हैं। अन्य शब्दों में अच्छा शिक्षण वह है जो बालकों को ऐसे मार्ग की ओर अग्रसर करे, जिस पर वे स्वयं चलकर ज्ञानार्जन कर सकें और अपने व्यक्तित्व तथा चरित्र का समुचित विकास कर सकें। इस प्रकार अच्छा शिक्षण बालकों के सम्मुख अनुसंधान करने, तर्क करने, निर्णय करने तथा स्वानुभवों द्वारा ज्ञान प्राप्त करने के अवसर प्रस्तुत करता है।

उत्तम शिक्षण दयापूर्ण एवं सहानुभूतिमूलक होता है

उत्तम शिक्षण के लिए आवश्यक है कि अध्यापक समस्त छात्रों के प्रति समान रूप से सदैव सहानुभूतिपूर्ण हो। वास्तव में अच्छा और प्रभावशाली शिक्षण वही अध्यापक कर सकता है जो अपनी कक्षा में सहृदयता व सहानुभूति से प्रभावित वातावरण तैयार करता है। जो अध्यापक कक्षा में सदा आतंक और भय के माध्यम से छात्रों को आतंकित करने का प्रयास करता रहता है, वह कभी भी अच्छा और प्रभावशाली शिक्षण नहीं कर सकता।

योकम तथा सिम्पसन के अनुसार, “अध्यापक उस समय ही उत्तम शिक्षण कर सकता है जबकि वह बालकों की रुचि के अनुसार शिक्षण कार्य करता है और उनकी प्रत्येक समस्या का हल सहानुभूतिपूर्ण ढंग से करता है।”

अच्छा शिक्षण उचित प्रकार से नियोजित होता है

वही अध्यापक उत्तम शिक्षण कर सकता है जो पहले से इसके लिए तैयार होता है। अन्य शब्दों में अच्छे शिक्षण की एक सुनियोजित योजना होती है और यही शिक्षण आरम्भ करने से पूर्व बना ली जाती है। अध्यापक इस विषय में पूरी-पूरी जानकारी प्राप्त कर लेता है कि उसे छात्रों को शिक्षण प्रदान करते समय कौन-कौनसी विधियों, उपकरणों तथा साधनों का प्रयोग करना पड़ेगा। साथ ही अध्यापक का कर्त्तव्य है कि वह इस बात की भी जानकारी रखे कि शिक्षण करते समय उसके सम्मुख कौन-कौनसी कठिनाइयाँ या समस्याएँ आ सकती हैं।

उत्तम शिक्षण में सहयोग की भावना निहित होती है

सफल शिक्षण के लिए अध्यापक तथा छात्र के मध्य सहयोग की भावना रहना अति आवश्यक है। जब तक अध्यापक और छात्र के मध्य सहयोग की भावना नहीं होगी तब तक शिक्षण से वांछित लाभ नहीं उठाया जा सकता। अत: यह आवश्यक है कि अध्यापक छात्रों से अधिक से अधिक सहयोग प्राप्त करे। उसे स्वयं बोलने के अतिरिक्त छात्रों को भी बोलने के अवसर देने चाहिए। किसी प्रश्न का हल यदि छात्रों के सहयोग से किया जाये तो और भी उत्तम है।

उत्तम शिक्षण की विशेषताएँ (Characteristics of Good Teaching)
उत्तम शिक्षण की विशेषताएँ (Characteristics of Good Teaching)

उत्तम शिक्षण, सुझावात्मक होता है

योकम व सिम्पसन के अनुसार,”अच्छा शिक्षण आदेश के बजाय सुझाव के आधार पर अग्रसरित होता है।” इस प्रकार उत्तम शिक्षण का आधार सुझाव होता है,न कि आदेश । अध्यापक का कर्त्तव्य है कि वह कक्षा के वातावरण को दमनात्मक अनुशासन पर आधारित करने के स्थान पर निर्देशात्मक बनाये। उसे यथासम्भव छात्रों को सुझाव ही देने चाहिए।

उत्तम शिक्षण प्रजातान्त्रिक होता है

शिक्षण को सफल और आकर्षक बनाने के लिए उसके स्वरूप को प्रजातान्त्रिक भावनाओं पर आधारित किया जाय। डॉ. सीताराम जायसवाल के शब्दों में,”अच्छे शिक्षण के इस सिद्धान्त के अनुसार यह आवश्यक है कि शिक्षक कक्षा में ऐसा पर्यावरण (वातावरण) बनाये जिससे कि सभी छात्र अपने को समान रूप से शिक्षण प्राप्त करने के योग्य समझें। जिस कक्षा में जनतान्त्रिक वातावरण होता है, उसमें शिक्षण कार्य सम्बन्धी व्यवस्था करते समय शिक्षक विद्यार्थी की राय लेता है और उसकी इच्छाएँ जानता है। इस जानकारी के बाद ही वह शिक्षण-कार्य की व्यवस्था करता है। कक्षा का जनतान्त्रिक वातावरण छात्रों के सर्वांगीण विकास में सहायक होता है क्योंकि जनतान्त्रिक वातावरण में किसी छात्र पर किसी प्रकार का दबाव नहीं डाला जा सकता।”

उत्तम शिक्षण प्रेरणादायक होता है

अच्छे शिक्षण की अन्य विशेषता उसका प्रेरणादायक होना है। शिक्षण जितना ही प्रेरणादायक होगा, उतना ही वह सफल कहा जायेगा। एक योग्य अध्यापक अपने व्यक्तित्व और कार्यों से छात्रों को प्रेरित करता है परन्तु वह बालकों को उस समय ही प्रेरित कर सकता है जबकि वह शिक्षण-कला में निपुण हो। दूसरे वह कक्षा के वातावरण को भी ऐसा बना सके जिससे बालकों को पढ़ने की उत्तेजना प्राप्त हो सके।

उत्तम शिक्षण में बालक के पूर्व अनुभवों को ध्यान में रखा जाता है

मनोवैज्ञानिक दृष्टि से बालकों को जो ज्ञान पूर्व अनुभव के आधार पर प्रदान किया जाता है, उसे वे सरलता से समझ जाते हैं। अत: अध्यापक का कर्त्तव्य है कि वह बालकों के पूर्व अनुभव को पृष्ठभूमि बनाते हुए नवीन ज्ञान को सिखाये । अन्य शब्दों में, शिक्षण का मुख्य आधार बालक के पूर्व अनुभवों का पुनर्सगठन माना जाये । शिक्षण का प्रमुख सूत्र ‘ज्ञात से अज्ञात की ओर बढ़ो’ इसी तथ्य पर आधारित है।

उत्तम शिक्षण में अध्यापक अपने पूर्व अनुभवों से लाभ उठाता है

सफल शिक्षण उस समय ही माना जायेगा जबकि अध्यापक अपने पूर्व अनुभवों से लाभ उठाकर छात्रों को ज्ञान प्रदान करता है। छात्रों को शिक्षण प्रदान करते समय अध्यापक विभिन्न शिक्षण-विधियों का प्रयोग करता है और अनेक नवीन बातों को अनुभव करता है। शिक्षण करते समय वह अपनी पिछले त्रुटियों को सुधारता भी जाता है । इस प्रक्रिया को अपनाने से उसका शिक्षण प्रभावशाली, आकर्षक तथा प्रेरणादायक हो जाता है। वास्तव में अध्यापक के उसी शिक्षण को उत्तम कहा जाता है जिसमें वह सदा पूर्व अशैक्षिक अनुभवों के आधार पर अपनी शिक्षण विधि में सुधार करता है।

उत्तम शिक्षण प्रगतिशील होता है

प्रगतिशील शिक्षण व्यक्ति और समाज दोनों की प्रगति में सहायक होता है। इस सिद्धान्त के अनुसार ज्ञानार्जन की प्रक्रिया गत्यात्मक है। उत्तम शिक्षण में छात्र को यह अनुभव होता रहता है कि उसके सोचने, विचारने और कार्य करने की क्षमता में प्रगति हो रही है। अन्य शब्दों में, शिक्षण उस समय ही सफल माना जायेगा, जब बालक की मनोवृत्तियों, विचारों, रुचियों, कुशलताओं, योग्यताओं, ज्ञान के अर्जन आदि के विकास में उचित सामाजिक लक्ष्यों की ओर प्रगति होती है। बालक के विकास के साथ-साथ शिक्षण-विधियों में भी निरन्तर प्रगति होती रहनी चाहिए।

उत्तम शिक्षण कठिनाइयों का निदान करता है

अच्छे शिक्षण की अन्य विशेषता यह है कि इसमें बालकों की शारीरिक व मानसिक कठिनाइयों की ओर अध्यापक का ध्यान जाता है। अध्यापक शिक्षण करते समय सावधानीपूर्वक देखता है कि बालक किसी बात को सीखने में रुचि क्यों नहीं लेता ? वह किसी बात को बहुत देर में क्यों सीखता है ? वह सीखते समय अनेक त्रुटियाँ क्यों करता है ? आदि-आदि। इस प्रकार की कठिनाइयों के कारणों का पता लगाकर अध्यापक उनका निदान करने का प्रयास करता है।

उत्तम शिक्षण उपचारात्मक होता है

अच्छे शिक्षण में कठिनाइयों का निदान करने के साथ-साथ उनके उपचार की भी व्यवस्था होती है। कुछ सामान्य कठिनाइयों को तो अध्यापक सामान्य ढंग से ही हल कर सकता है परन्तु कुछ विशेष कठिनाइयों को प्रत्येक अध्यापक सामान्य ढंग से हल नहीं कर सकता। अत: अध्यापक का कर्त्तव्य है कि वह विभिन्न मनोवैज्ञामिक परीक्षणों का प्रयोग करके बालकों के मनोवैज्ञानिक विकास एवं प्रगति का समय-समय पर अध्ययन करे और फिर उनकी कठिनाइयों के उपचार की ओर ध्यान दे। आज शिक्षण-कला और मापन-विधियाँ पर्याप्त प्रगति कर चुकी हैं अत: बालकों की समस्त कठिनाइयों का प्रभावशाली ढंग से उपचार किया जा सकता है।

उत्तम शिक्षण आत्मविश्वास उत्पन्न करता है

जो शिक्षण बालक में आत्मविश्वास की भावना भरता है वही सफल माना जाता है। आत्मविश्वास की भावना उत्पन्न हो जाने पर बालक में स्वतन्त्र चिन्तन करने और अपनी बुद्धि का प्रयोग करके अपनी समस्याओं का हल करने की क्षमता उत्पन्न होती है। बालक चाहे जितना ज्ञानार्जन कर ले परन्तु आत्मविश्वास के अभाव में बह उसका प्रयोग अपने व्यावहारिक जीवन में नहीं कर पायेगा।

उत्तम शिक्षण में ज्ञान का मूल्यांकन ठीक-ठीक किया जाता है

परसेल का कथन है, “शिक्षण में सफलता की अन्तिम कसौटी परिणाम है।” सफल शिक्षण उसी समय माना जायेगा जबकि उसके परिणाम भी वांछित होंगे। अध्यापक का कर्तव्य है कि वह शिक्षण के साथ-साथ छात्रों का भी मूल्यांकन करता जाये। परन्तु मूल्यांकन की परम्परागत विधियाँ अधिक प्रभावशाली सिद्ध नहीं हो सकती क्योंकि इनके द्वारा न तो बालकों के मानसिक विकास पर प्रभाव पड़ता है और न उनके विचारों में जागृति आती है। अतः मूल्यांकन की परम्परागत विधियों का परित्याग कर नवीन विधियों का ही प्रयोग करना उचित है।

उत्तम शिक्षण रुचियों और मूल प्रवृत्तियों का विकास करता है

अच्छी रुचियाँ तथा मूल प्रवृत्तियाँ बालक के विकास में विशेष रूप से सहायक होती हैं अत: उत्तम शिक्षण इनके विकास पर विशेष रूप से ध्यान देता है। दूषित और पशुवत् मूल प्रवृत्तियाँ शिक्षण द्वारा ही संशोधित और परिवर्तित की जा सकती हैं। अध्यापक को बालकों को ज्ञान प्रदान करने के अतिरिक्त उनमें अच्छी रुचियों का विकास करने का प्रयास करना चाहिए तथा अनुचित मूल-प्रवृत्तियों का शोधन करना चाहिए।

उत्तम शिक्षण छात्रों को बन्धनमुक्त करता है

इस विषय में डॉ. सीताराम जायसवाल लिखते हैं-“जब अच्छे शिक्षण के सन्दर्भ में इस सिद्धान्त का उल्लेख किया जाता है कि अच्छा शिक्षण विद्यार्थी को विमुक्त करता है तब इसका तात्पर्य यह है कि मन, वचन तथा कर्म से छात्र अपने को स्वतन्त्र अनुभव करता है। उसकी अभिव्यक्ति में किसी प्रकार की बाधा उपस्थित नहीं होती। दूसरे शब्दों में. वह बिना किसी भय के अपनी बात को कह सकता है उसके मन में न तो दुश्चिन्ता होती है और न कुण्ठा। अन्य शब्दों में, उत्तम शिक्षण बालक को विभिन्न प्रकार की दुश्चिन्ताओं और कुण्ठाओं से मुक्त करता है।

उत्तम शिक्षण की विशेषताएँ (Characteristics of Good Teaching) जिसकी संक्षेप में व्याख्या की जाय तो एक शिक्षक जो शिक्षण-कला में पारंगत होना चाहता है, उसे शिक्षण की उपर्युक्त विशेषताओं पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए।

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