बाल विकास (Child Development) एवं बाल विकास के क्षेत्र

‘बाल विकास’ से तात्पर्य बालकों के सर्वांगीण विकास से है। इसका अध्ययन करने के लिये ‘विकासात्मक मनोविज्ञान’ की एक अलग शाखा बनाई गयी जो बालकों के व्यवहारों का अध्ययन गर्भावस्था से लेकर मृत्युपर्यन्त तक करती है। परन्तु वर्तमान समय में इसे ‘बाल विकास’ (Child Development) में परिवर्तित कर दिया गया क्योंकि बाल मनोविज्ञान में केवल बालकों के व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है जबकि बाल विकास के अन्तर्गत उन सभी तथ्यों का अध्ययन किया जाता है जो बालकों के व्यवहारों को एक निश्चित दिशा प्रदान कर विकास में सहायता प्रदान करते हैं।

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बाल विकास की परिभाषाएँ

हरलॉक’ (Hurlock) ने इस सम्बन्ध में कहा है कि “बाल मनोविज्ञान का नाम बाल विकास इसलिये बदला गया क्योंकि अब बालक के विकास के समस्त पहलुओं पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है, किसी एक पक्ष पर नहीं।”

बाल विकास के सम्बन्ध में अनेक विद्वानों ने अपने अलग-अलग मत दिये हैं-

क्रो एण्ड क्रो के अनुसार-“बाल विकास वह विज्ञान है जो बालक के व्यवहार का अध्ययन गर्भावस्था से मृत्युपर्यन्त तक करता है।”

डार्विन के अनुसार-“बाल विकास व्यवहारों का वह विज्ञान है जो बालक के व्यवहार का अध्ययन गर्भावस्था से मृत्युपर्यन्त तक करता है।”

हरलॉक के अनुसार- “बाल विकास मनोविज्ञान की वह शाखा है जो गर्भाधान से लेकर मृत्युपर्यन्त तक होने वाले मनुष्य के विकास की विभिन्न अवस्थाओं में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन करता है।”

इस प्रकार उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट होता है कि बाल विकास बाल मनोविज्ञान की ही एक शाखा है जो बालकों के विकास, व्यवहार, विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न तत्वों का अध्ययन करती है।

बाल मनोविज्ञान तथा बाल विकास में थोड़ा-सा ही अन्तर है। बाल मनोविज्ञान बालक की क्षमताओं का अध्ययन करता है जबकि बाल विकास क्षमताओं के विकास की दशा’ का अध्ययन करता है।

बाल मनोविज्ञान का उद्देश्य बाल मन तथा बाल स्वभाव को समझना होता है जैसे बालक के भीतर कौन-सी क्षमतायें विद्यमान हैं, उसके व्यवहार प्रौदों के व्यवहार से किस प्रकार भिन्न हैं, बालक की स्मरण शक्ति का विस्तार कितना है, वह किन परिस्थितियों से प्रेरणा ग्रहण करता है, उसकी कल्पनायें क्या हैं? आदि बातों को समझाना बाल मनोविज्ञान का उद्देश्य होता है। इसके विपरीत बाल विकास बालकों का अध्ययन इस दृष्टि से करता है कि उनका भूत और भविष्य वर्तमान से जुड़ा रहे और के स्वस्थ प्रौढ़ जीवन व्यतीत कर सकें।

बाल विकास (Child Development)

बाल विकास के क्षेत्र (SCOPE OF CHILD DEVELOPMENT)

इसका क्षेत्र अत्यन्त ही विस्तृत और व्यापक है। यह बालक के विकास के सभी आयामों, स्वरूपों, असामान्यताओं, शारीरिक व मानसिक परिवर्तनों तथा उनको प्रभावित करने वाले तत्वों; जैसे परिपक्वता और शिक्षण, वंशानुक्रम और वातावरण आदि सभी का अध्ययन करता है।

वर्तमान समय में यह इतना अधिक महत्वपूर्ण विषय हो गया है कि दिनोंदिन इसका विस्तार बढ़ता जा रहा है। इसके विषय क्षेत्र के अन्तर्गत निम्नलिखित बातों को सम्मिलित किया जाता है-

बाल विकास की विभिन्न अवस्थाओं का अध्ययन (Study of Various Stages of Development)

प्राणी के जीवन प्रसार में अनेकों अवस्थायें होती हैं। जैसे-गर्भकालीन अवस्था, शैशवावस्था, बचपनावस्था, बाल्यावस्था, वय:संधि और किशोरावस्था। बाल विकास केवल बाल्यावस्था का ही अध्ययन नहीं करता अपितु विकास क्रम की सभी अवस्थाओं के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक, बौद्धिक आदि सभी पहलुओं का अध्ययन करता है। विकास क्रम की प्रत्येक अवस्था अपनी एक अलग विशेषता रखती है। प्रत्येक अवस्था में पहुंचने पर बालक की शारीरिक व मानसिक क्रियाओं का स्वरूप बदल जाता है क्योंकि नित नयी परिस्थितियों के साथ समायोजन करने के लिये बालक अपने व्यवहार प्रतिमानों में परिवर्तन कर लेता है। अत: बाल विकास प्रत्येक अवस्था की विशेषताओं, क्षमताओं और व्यवहारों का अध्ययन करता है और समायोजन समस्याओं को हल करने के लिये उचित मार्ग निर्देशन करता है।

इस प्रकार बाल विकास जन्मपूर्व से लेकर जन्म के बाद की अवस्थाओं में होने वाले विकास-क्रम का विस्तारपूर्वक अध्ययन करता है।

बाल विकास के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन (Study of Various Aspects of Child Development)

बाल विकास, विकास के किसी एक ही क्षेत्र से सम्बन्धित नहीं होता है। इसके अन्तर्गत विकास के विभिन्न पहलुओं, जैसे-शारीरिक विकास, मानसिक विकास, संवेगात्मक विकास, सामाजिक विकास, क्रियात्मक विकास, भाषा विकास, नैतिक विकास, चारित्रिक विकास और व्यक्तित्व विकास सभी का विस्तारपूर्वक अध्ययन किया जाता है।

बाल विकास को प्रभावित करने वाले तत्वों का अध्ययन (Study of Various Factors Effecting Child Development)

यह उन सभी तत्वों का अध्ययन करता है जो बालक के विकास को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। बालक के विकास पर प्रमुख रूप से वंश परम्परा और वातावरण तथा परिपक्वता और शिक्षण’ का प्रभाव पड़ता है। बाल विकास की प्रक्रिया में इन तत्वों के कारण बालक का व्यक्तित्व एक विशेष रूप ग्रहण करता है। वंश परम्परा बालकों को गर्भाधान के समय ही उनके माता-पिता तथा पूर्वजों के विभिन्न, शारीरिक व मानसिक गुण, योग्यताएँ व क्षमतायें प्रदान कर देती है जिनका प्रभाव जन्म के बाद आजीवन बालक के विकास के विभिन्न पहलुओं पर पड़ता है।

जन्म के बाद जो तत्व बालक के विकास को प्रभावित करते हैं वे सभी वातावरणीय होते हैं। वातावरणीय तत्व भी प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से निरन्तर बालक के विकास को विभिन्न रूपों में प्रभावित करते रहते हैं। परिवार, पड़ौस, विद्यालय, समाज, संस्कृति तथा समाजीकरण की प्रक्रिया पर इन तत्वों का प्रभाव पड़ता रहता है।

केवल सामान्य वातावरण ही नहीं असामान्य वातावरण भी बाल विकास को प्रभावित करता है। बालकों में गलत आदतों का निर्माण, बाल अपराध की प्रवृत्ति, व्यक्तित्व विघटन तथा समायोजन की समस्यायें आदि सभी अनुपयुक्त और दूषित वातावरण के समुचित विकास के लिये दोनों का होना आवश्यक होता है। परिपक्वता और शिक्षण भी बाल विकास पर अपना अत्यधिक प्रभाव डालते हैं। परिपक्वता आन्तरिक होती है और शिक्षण बाह्य वातावरण से प्राप्त होता है। बालक के समुचित विकास के लिये दोनों का होना आवश्यक होता है। इस प्रकार बाल विकास बालकों के विकास का अध्ययन करते समय विकास को प्रभावित करने वाले सभी तत्वों का भी अध्ययन करता है।

बालकों की विभिन्न असामान्यताओं का अध्ययन (Study of Various Abnormalities of Children)

इसके अन्तर्गत केवल सामान्य बालकों के विकास का ही अध्ययन नहीं किया जाता बल्कि बालकों के जीवन विकास क्रम में होने वाली असामान्यताओं और विकृतियों का भी अध्ययन किया जाता है। बाल विकास, असन्तुलित व्यवहारों, मानसिक विकारों, बौद्धिक दुर्बलताओं तथा बाल अपराधों के कारणों को जानने का प्रयास करता है और निराकरण हेतु उपाय भी बताता है।

मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का अध्ययन (Study of Mental Hygiene)

बाल विकास केवल मानसिक दुर्बलताओं और रोगों का ही अध्ययन नहीं करता बल्कि विभिन्न मनोवैज्ञानिक तरीकों से उनके उपचार भी प्रस्तुत करता है। मनोचिकित्सा बाल मनोविज्ञान और बाल विकास की ही देन है।

बाल व्यवहारों और अन्तःक्रियाओं का अध्ययन (Study of Child Behaviours and Interactions)

मनुष्य गतिशील व सामाजिक प्राणी है। विभिन्न आयु-स्तरों पर वह अपने समायोजन के लिये अपने सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों, जैसे-परिवार के लोग, पड़ौसी, अध्यापक, खेल के साथी और समाज में सभी परिचितों के साथ अन्तः क्रियायें करता रहता है।

बाल विकास विकास की विभिन्न अवस्थाओं में होने वाली बालक की विभिन अन्तःक्रियाओं का अध्ययन कर यह जानने का प्रयास करता है कि ये क्रियायें कौन-सी हैं और इनसे बालकों के व्यवहार में क्या परिवर्तन होते हैं, ये परिवर्तन समायोजन में सहायक हैं या बाधक।

बालक के समुचित विकास तथा समायोजन के लिये ये अन्तःक्रियायें आवश्यक हैं। यदि कोई बालक निर्धारित आयु-स्तर पर यह अन्तःक्रियायें नहीं करता है तब भी बाल विकास उन कारणों को जानने का प्रयास करता है जिन्होंने अन्तःक्रियाओं में अवरोध उत्पन्न किया।

बालकों की रुचियों का अध्ययन (Study of Childhood Interests)

यह बालकों की रुचियों का अध्ययन कर उन्हें शैक्षिक और व्यावसायिक निर्देशन प्रदान करता है। रुचियाँ एक अर्जित व्यवहार है जो जन्मजात नहीं होती हैं बल्कि सीखी जाती हैं। रुचियाँ कार्य की प्रगति में प्रेरणा का कार्य करती हैं और लक्ष्य की पूर्ति को आसान बनाती हैं। यदि बालक को किसी कार्य में रुचि होती है तो वह उसे शीघ्रता से अधीक मनोयोग के साथ पूरा कर लेता है।

बालकों की विभिन्न मानसिक प्रक्रियाओं का अध्ययन (Study of Various Mental Processes of Children)

यह बालकों के बौद्धिक विकास की विभिन्न मानसिक प्रक्रियाओं; जैसे-अधिगम, कल्पना, चिन्तन, तर्क, स्मृति तथा प्रत्यक्षीकरण आदि का अध्ययन करता है। बाल विकास यह जानने का प्रयास करता है कि विभिन्न आयु स्तरों में इन मानसिक प्रक्रियायें किस रूप में पायी जाती है और इनके विकास की गति क्या होती है? इसी के आधार पर मानसिक प्रक्रियाओं का विकास किया जाता है।

बालकों की वैयक्तिक भिन्नताओं का अध्ययन (Study of Individual Differences of Children)

यद्यपि सभी आयु स्तरों पर विकास का एक निश्चित प्रतिरूप होता है लेकिन फिर भी प्रत्येक क्षेत्र में सभी बालकों का विकास समान नहीं होता है। शारीरिक विकास में कुछ बालक अधिक लम्बे, कुछ नाटे तथा कुछ सामान्य लम्बाई के होते हैं। इसी प्रकार मानसिक विकास में भी कुछ प्रतिभाशाली, कुछ सामान्य और कुछ मन्द बुद्धि होते हैं। इसी प्रकार कुछ बालक सामाजिक तथा बहिर्मुखी होते हैं जबकि कुछ अन्तर्मुखी। अतः विकास के सभी क्षेत्रों में व्यक्तिगत भिन्नता पायी जाती है। बाल विकास वैयक्तिक भिन्नताओं का अध्ययन कर उन कारणों को जानने का प्रयास करता है, जिससे सामान्य विकास प्रभावित हुआ है।

बालकों के व्यक्तित्व का मूल्यांकन (Assessment of Children Personality)

इसके अन्तर्गत बालकों की विभिन्न शारीरिक और मानसिक योग्यताओं का मापन व मूल्यांकन किया जाता है। योग्यताओं के मापन व मूल्यांकन के लिये बाल विकास के क्षेत्र में मनोवैज्ञानिकों द्वारा नित नये वैज्ञानिक तथा प्रमापीकृत परीक्षणों का निर्माण किया जाता है। ये परीक्षण विभिन्न आयु-स्तरों पर बालकों की योग्यताओं का मापन कर उनके व्यक्तित्व का मूल्यांकन करते हैं।

बालक-अभिभावक सम्बन्धों का अध्ययन (Study of Parent Child Relationship)

जन्म के पश्चात् सबसे पहले बालक को अपने माता-पिता का संरक्षण प्राप्त होता है। बालक के व्यक्तित्व निर्धारण और समुचित विकास में माता-पिता का महत्वपूर्ण योगदान होता है। जिन बालकों के सम्बन्ध अपने माता-पिता के साथ अच्छे नहीं होते हैं वे अक्सर कुसमायोजित और अपराधी प्रवृत्ति के हो जाते हैं।

बाल विकास, बालक-अभिभावक सम्बन्धों के निर्धारक तत्वों तथा समस्याओं और उनके निराकरण का अध्ययन कर माता-पिता तथा बालकों के बीच अच्छे सम्बन्ध विकसित करने का प्रयास करता है जिससे बालक परिवार, समाज व राष्ट्र के अच्छे नागरिक के रूप में विकसित हो सकें।

बाल विकास के अध्ययन का महत्व
(IMPORTANCE OF STUDY OF CHILD DEVELOPMENT)

वर्तमान समय में बाल विकास भी अन्य सामाजिक विज्ञानों की तरह एक स्वतन्त्र विज्ञान है। इसका अध्ययन सम्पूर्ण मानव विकास की इकाई माना जाता है इसलिये क्रो एण्ड क्रो ने कहा है कि “व्यक्ति तथा समाज के कल्याण के क्षेत्र में रुचि रखने वाले मनोवैज्ञानिक, शिक्षक, अभिभावक, सामाजिक कार्यकर्ता बालकों के अध्ययन को महत्व देने लगे हैं। बालक व्यक्ति का पिता है’ बालक के प्रथम छ: वर्ष महत्वपूर्ण होते हैं, आदि लोकोक्तियों ने बाल विकास के अध्ययन के महत्व को बढ़ाया ही है।

इस प्रकार बाल विकास का अध्ययन सभी के लिये उपयोगी है। बालक किसी भी समाज व राष्ट्र की आधारशिला है। उनका स्वस्थ विकास समाज व राष्ट्र की प्रगति में योगदान देता है। माता-पिता भी बाल अध्ययन के द्वारा अपने बच्चे को समाज के अच्छे नागरिक के रूप में विकसित कर सकते हैं। उसकी प्रतिभाओं को जानकर उसकी शिक्षा की उचित व्यवस्था कर सकते हैं।
बाल विकास का अध्ययन माता-पिता तथा अन्य लोगों के लिए निम्न रूपों में लाभकारी हो सकता है-

विकासात्मक क्रियाओं का ज्ञान प्राप्त होना

विकास की प्रक्रिया के दौरान प्रत्येक बालक किसी विशिष्ट आयु में कुछ विशिष्ट गुण प्रदर्शित करता है जो उससे पूर्व या बाद की अवस्थाओं में या तो होते ही नहीं है या यदि होते भी हैं तो सामान्य होते है विशिष्ट नहीं। इन्हीं विशिष्ट गुणों को विकासात्मक क्रियायें कहा जाता है। इन विकासात्मक क्रियाओं के आधार पर बालक के विकास की भविष्यवाणी की जा सकती है और विकासात्मक क्रियाओं के अनुसार उन गुणों को विकसित करने के लिये साधन व सुविधायें प्रदान की जा सकती हैं, जैसे जन्म के बाद 9-12 माह की आयु में बालक चलने की क्रियायें करने लगता है, 3-4 माह में भाषा विकास होने लगता है आदि सभी क्रियायें अवस्था विशेष की विकासात्मक क्रियायें हैं।

बाल विकास के अध्ययन से माता-पिता तथा अभिभावकों को विकासात्मक क्रियाओं के आधार पर बालकों के विकास को उचित निर्देशन देने में सहायता मिलती है। जैसे-यदि किसी बालक का भाषा विकास सही समय पर नहीं होता है तो माता-पिता उन कारणों को जानने का प्रयास करते हैं जिसे जानकर समस्या का निराकरण किया जा सके।

बाल पोषण विधियों का ज्ञान

बाल विकास के अध्ययन से माता-पिता तथा अभिभावकों को बाल पोषण विधियों का ज्ञान प्राप्त हो जाता है। प्रत्येक माता-पिता प्रथम शिशु के जन्म के समय बाल पोषण के ज्ञान से अनभिज्ञ होते हैं लेकिन बाल विकास का अध्ययन माता-पिता को मातृत्व तथा पितृत्व के दायित्व जैसे गम्भीर प्रश्नों का उत्तर हल करके बाल पोषण को सहज बनाता है।

व्यक्तिगत विभिन्नताओं की जानकारी प्राप्त होना

यद्यपि विकास का एक निश्चित प्रतिमान होता है और प्रत्येक विकासावस्था की अपनी कुछ प्रमुख विशेषतायें होती हैं फिर भी जन्म के बाद दो बालकों के विकास में समानता नहीं पायी जाती है। जैसे-एक बालक कुशाग्र बुद्धि होता है जबकि दूसरा सामान्य बुद्धि। बाल विकास के अध्ययन से व्यक्तिगत विभिन्नताओं का पता चलता है जिससे बालकों के शिक्षा निर्देशन में सहायता मिलती है।

विकास की अवस्थाओं का ज्ञान

बाल विकास का अध्ययन माता-पिता को यह जानकारी प्रदान करता है कि गर्भावस्था से लेकर बालक प्रौढ़ावस्था तक किस प्रकार विकसित होता है। जीवन की विभिन्न अवस्थाओं में विकास के विभिन्न पहलुओं (शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक) में कौन-कौन से परिवर्तन होंगे। विकास की अवस्थाओं की जानकारी प्राप्त कर माता-पिता बालकों के समुचित विकास में अपना योगदान दे सकते हैं।

बालकों के प्रशिक्षण तथा शिक्षा में उपयोगी

इसके अध्ययन से यह जानकारी मिलती है कि किस अवस्था में बालक कितनी मानसिक योग्यता रखता है। बच्चे की मानसिक योग्यता और बुद्धि के अनुसार ही उसके प्रशिक्षण तथा शिक्षा की व्यवस्था की जाती है तथा विभिन्न कक्षाओं में उसकी मानसिक योग्यतानुसार ही पाठ्यक्रम तैयार किया जाता है। स्कूलों में समय सारणी बनाते समय भी बालक की आयु, शक्ति और बौद्धिक क्षमता को ध्यान में रखा जाता है।

बालकों के व्यक्तित्व निर्माण में सहायक

इसका अध्ययन बाल विकास के विभिन्न पहलुओं कीजानकारी प्रदान करता है जिससे माता पिता, अभिभावकों तथा शिक्षकों को यह जानकारी प्राप्त होती है कि बालक के व्यक्तित्व निर्माण में कौन-से तत्व सहायक हैं और कौन-से बाधक। कौन-से तत्व व्यक्तित्व विकास के लिये परम आवश्यक हैं आदि बातें बाल विकास के अध्ययन से ही ज्ञात होती हैं जिन्हें जानकर बालकों के व्यक्तित्व विकास में सहायता प्रदान की जा सकती है। क्योंकि बालकों में अनेक क्षमतायें होती हैं। ये क्षमतायें तभी विकसित होती हैं जब उचित वातावरण द्वारा उनके विकसित होने पर अवसर प्रदान किया जाता है जैसे-जो बालक कुशाग्र बुद्धि है उसे सामान्य बालकों के साथ शिक्षित नहीं किया जा सकता।

इसी प्रकार मानसिक रूप से विकलांग बच्चों को भी सामान्य बच्चों के साथ शिक्षित नहीं किया जा सकता है। अन्य क्षेत्रों में भी बालक अलग-अलग प्रकार की रुचियाँ रखते हैं। किसी को खेल का, किसी को चित्रकारी का, किसी को नृत्य का।

बालक विकास के अध्ययन से माता-पिता बालकों की रुचियों और क्षमताओं के विषय में जानकारी प्राप्त करते हैं और बालकों की मानसिक योग्यता तथा शारीरिक क्षमताओं को उचित दिशा प्रदान कर बालकों के अच्छे व्यक्तित्व का निर्माण कर सकते हैं।

बालकों के व्यवहारों को नियन्त्रित करने में सहायक

बाल विकास का प्रमुख उद्देश्य बालकों का समुचित विकास कर उन्हें समाज व देश के अच्छे नागरिक के रूप में विकसित करना है। किसी भी बालक को समाज तभी स्वीकार करता है जबकि शारीरिक व मानसिक रूप से उसका व्यवहार सामान्य हो । बाल विकास का अध्ययन माता-पिता तथा शिक्षकों को इस बात के लिये प्रेरित करता है कि वह प्रारम्भ से ही बालकों को इस प्रकार का निर्देशन दें कि प्रत्येक क्षेत्र में उनके व्यवहार नियन्त्रित व सामान्य हों।

बाल विकास का अध्ययन बालकों की बुरी आदतों, व्यवहारों तथा रुचियों को उचित दिशा प्रदान कर बालकों के व्यवहारों को नियन्त्रित करता है जिससे वे परिवार व समाज के सुयोग्य नागरिक के रूप में विकसित हो सकें।

बालकों के स्वभाव को समझने में सहायक

विकास की विभिन्न अवस्थाओं में सभी बालकों के स्वभाव में परिवर्तन होता रहता है। कुछ बालक स्वभाव से अन्तर्मुखी होते हैं। जबकि कुछ बालक स्वभाव से बहिर्मुखी व चंचल होते हैं। बहिर्मुखी बालकों का विकास तीव्र गति से होता है कि वह अपने प्रत्येक वातावरण के साथ आसानी से समायोजन कर लेते हैं जबकि अन्तर्मुखी बालकों को यदि उचित निर्देशन प्राप्त नहीं होता है तो उनका विकास कुंठित हो जाता है क्योंकि वह अपनी आवश्यकताओं को महसूस तो करते हैं लेकिन उनका प्रकटीकरण नहीं कर पाते है। बाल विकास का अध्ययन ऐसे बालकों के स्वभाव को समझने तथा उन्हें उचित निर्देशन देकर उनके विकास में सहायता प्रदान करता है।

बालक के विकास के सम्बन्ध में पूर्वानुमान

कहावत है कि “पूत के पाँव पालने में ही दिखायी दे जाते हैं। बाल विकास का ज्ञान इस कहावत की पुष्टि करता है। बाल विकास और बाल व्यवहार के अध्ययन द्वारा बच्चे के भावी विकास के सम्बन्ध में भविष्यवाणी की जा सकती है। यदि किसी बालक का विकास आयु के विभिन्न स्तरों पर तीव्र गति से होता है तो कहा जा सकता है कि बालक प्रतिभाशाली होगा, इसी प्रकार यदि सामान्य ढंग से होता है तो बालक सामान्य होगा और विकास की मन्द गति देखकर यह पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि बालक मन्द बुद्धि होगा। इस प्रकार बालकों की लम्बाई, भार, बुद्धि, शारीरिक और मानसिक योग्यताओं, रुचियों, व्यक्तित्व तथा कार्य करने के तरीकों को देखकर उसके भावी विकास के सम्बन्ध में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।

परिवार व समाज की सुख समृद्धि में सहायक

बाल विकास का अध्ययन केवल बालकों का ही सर्वांगीण विकास नहीं करता अपितु बालकों के उचित विकास द्वारा परिवार व समाज की शांति तथा सुख समृद्धि में सहायता प्रदान करता है क्योंकि आज का बालक ही भविष्य का पिता तथा राष्ट्र निर्माता है। बालक का मन एक कच्ची मिट्टी के घड़े के समान होता है। बचपन में उसे जिस साँचे में ढाल दिया जाता है वह जीवनपर्यन्त तक उसी के अनुसार कार्य करता रहता है।

बाल विकास का अध्ययन माता-पिता तथा शिक्षकों को बाल मन की भावनाओं, योग्यताओं, रुचियों, कार्यक्षमता तथा आदतों से परिचित करता है जिन्हें जानकर वे बालक के ऐसे व्यक्तित्व का निर्माण करें जो परिवार व समाज के लिये उपयोगी हो। बाल विकास का ज्ञान बालकों के वांछित व्यवहारों को प्रस्फुटित करता है और अवांछनीय व्यवहारों को उचित मार्गदर्शन द्वारा बचपन में ही समाप्त करने का प्रयास करता है जिससे सामाजिक नियन्त्रण बना रहता है और परिवार व समाज भी सुखी व समृद्ध रह सकता है।

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