आदर्शवाद और प्रकृतिवाद दो विपरीत दर्शन हैं जिनका शिक्षा पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। दोनों सम्प्रदायों ने दर्शन एवं शिक्षा के क्षेत्र में इतना प्रभाव डाला है कि इनको मिलाकर प्रयोजनवाद (Pragmatism) का विकास हुआ। शिक्षा में आदर्शवाद और प्रकृतिवाद की तुलना निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से करेंगे जिससे दोनों सम्प्रदायों के दृष्टिकोण और सिद्धांत स्पष्ट हो सके-
क्रम संख्या | आदर्शवाद (Idealism) | प्रकृतिवाद (Naturalism) |
01 | आदर्शवाद विचारों को महत्त्व देता है। | प्रकृतिवाद पदार्थ को प्रमुख मानता है। |
02 | आदर्शवाद के अनुसार विचार ही जगत के निर्माण का कारण है। संसार विचारों की प्रतिच्छाया मात्र है। पदार्थों का अपना अस्तित्व नहीं है। | प्रकृतिवाद के अनुसार संसार भौतिक पदार्थों एवं गतियों से बना है। इन तत्त्वों का अस्तित्व वास्तविक है। |
03 | आदर्शवाद संसार के प्रत्येक कार्य में एक उद्देश्य देखता है। प्रत्येक वस्तु में एक पूर्व स्थापित समरसता (Pre-established Harmony) है। | प्रकृतिवाद संसार को एक मशीन की भाँति मानता है और उसका कोई उद्देश्य नहीं है। वह अपने नियमों के कारण अपने आप चलती है। |
04 | आदर्शवाद व्यक्ति को जगत की सर्वोच्च रचना एवं कृति मानता है जिसमें आध्यात्मिकता है। व्यक्ति परम आध्यात्मिक का एक अंश है (A finite part of the Infinite or absolute spirit)। | प्रकृतिवाद की दृष्टि में व्यक्ति केवल एक पशु है और उसका जैविक विकास (Biological growth) होता है। मनुष्य में केवल पाशविकता है। नैतिकता, आदर्श, आध्यात्मिकता आदि के प्रति प्रकृतिवाद का ध्यान नहीं है। |
05 | आदर्शवाद परम आत्मा (Absolute Soul or Self) को मानता है और उसे सत्यं शिवं सुन्दरं का पूर्ण रूप मानता है। | प्रकृतिवाद परम आत्मा के अस्तित्व को नहीं मानता, जो कुछ इन्द्रिय अनुभव के द्वारा प्राप्त हो सकता है वही अस्तित्व रखता है। |
06 | आदर्शवाद शाश्वत सत्य, मूल्य एवं आदर्श को मानता है (Eternal truth, Value and Ideal)। | प्रकृतिवाद के अनुसार ये सब कुछ नहीं है, प्रकृति (Nature) ही सब कुछ है। |
07 | मूल प्रवृत्तियों को आदर्शवादी उच्च स्थान नहीं देते हैं। उनको बाधक समझ कर उन्हें दमन के लिए भी कहते हैं, परन्तु उनका शोधन होना चाहिए। | प्रकृतिवाद प्रकृतिगत मूलप्रवृत्तियों, भावों आदि को उच्च स्थान देता है और इन्हें जीवन के लिए प्रेरक शक्ति मानता है। मूल प्रवृत्तियाँ शुद्ध एवम् उत्तम भी कही गई हैं। |
08 | आदर्शवाद के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य व्यक्तित्व का पूर्ण विकास, (आत्मानुभूति एवं आत्मप्रकाशन) सत्य, शिव, सुन्दर की चरम प्राप्ति, आध्यात्मिक एवम् नैतिक विकास तथा ‘मुक्ति’ भी माना गया है। | प्रकृतिवाद के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य, जीवन की तैयारी, मूल शक्तियों का विकास, वातावरण से अनुकूलन की क्षमता उत्पन्न करना, व्यक्तित्व का स्वाभविक विकास (आत्मप्रकाशन) है। |
09 | उद्देश्यों की प्राप्ति में शिक्षक की सहायता अनिवार्य है। शिक्षक सच्चा मार्ग प्रदर्शन करता है। अतः उसे अधिक महत्त्व दिया जाता है। | शिक्षा के उद्देश्य की प्राप्ति में बालक स्वयं अपनी शक्तियों के सहारे प्रयत्नशील होता है। शिक्षक का स्थान गौण है। |
10 | शिक्षण विधि में आदर्शवादी वाद-विवाद, व्याख्यान एवं प्रश्नोत्तर विधि का प्रयोग करते हैं। केवल एक ही विशेष विधि का प्रयोग सम्भव है। अन्तर्दृष्टि (Insight) को भी शिक्षण में उचित स्थान दिया जाता है। निगमन पद्धति का अनुसरण आदर्शवादी करते हैं। | प्रकृतिवाद शिक्षार्थी को आत्मानुभव तथा प्रत्यक्ष निरीक्षण के सहारे ज्ञान देने को कहता है। प्रकृति की वस्तुएँ एवम् समाज के प्रत्यक्ष सम्पर्क से बालक सीखता है। आदर्शवादी निर्देशन के स्थान पर प्रकृतिवादी निषेधात्मक शिक्षण को महत्त्व देता है। आगमन पद्धति तथा विश्लेषण पद्धति को अपनाते हैं। |
11 | आदर्शवादी विद्यालय को विशेष प्रकार का स्थल मानता है जहाँ बालक की देखभाल होती है और शिक्षक माली के रूप में उनकी सुरक्षा का ध्यान रखकर उन्हें सँवारता है। विद्यालय में ही अध्यापक की उपस्थिति एवं मार्ग प्रदर्शन से सत्य ज्ञान की प्राप्ति सम्भव होती है। | सम्पूर्ण प्रकृति ही शिक्षा का स्थल है और उसकी प्रत्येक वस्तु शिक्षक का कार्य करती है। अतएव शिक्षा को अत्यन्त विशद रूप में प्रकृतिवादी लेते हैं। शिक्षक की आवश्यकता नहीं भी पड़ती। प्राकृतिक वातावरण की महत्ता पर अत्यधिक बल दिया जाता है । |
12 | पाठ्यक्रम का आधार शाश्वत मूल्य एवं आदर्श होते हैं। पाठ्यक्रम का निर्धारण चतुर शिक्षक एवं विशेषज्ञों. द्वारा होता है। पाठ्यक्रम की आवश्यकता भी बहुत है। विशेषज्ञ एवं वरिष्ठ लोग जो उपयुक्त समझते हैं उसे पाठ्यक्रम में रखते हैं। साहित्य, कला, संगीत, दर्शन, धर्मशास्त्र, गणित आदि को प्रमुख विषय माना जाता है। | प्रकृतिवादी पाठ्यक्रम को बालक की प्रकृति, रुचि और नैसर्गिक शक्तियों के अनुसार बनाते हैं । वास्तव में पाठ्यक्रम का कोई बन्धन इसमें नहीं होता । आवश्यकता एवं सामर्थ्य के अनुसार अध्ययन भी होता है। विज्ञान, टेकनिकल विषय तथा जीवनोपयोगी कौशलों को विशेष महत्त्व दिया जाता है। |
13 | आदर्शवाद आंतरिक एवं आत्म-अनुशासन के विकास पर बल देता है। मानसिक एवं शारीरिक नियंत्रण पर आदर्शवाद अधिक ध्यान देता है। कक्षा में भी शिष्ट व्यवहार के लिए आदर्शवाद बालकों से अपेक्षा रखता है। अनुशासन के लिए दण्ड का भी समर्थन आदर्शवाद में किया जाता है। | प्रकृतिवाद स्वतंत्रता का पोषक है, अतः नियंत्रणहीनता की ओर संकेत करता है। पाठ्यक्रम; पाठशाला एवं समय-सारिणी सभी प्रकार के बंधन से बालकों को मुक्त रखता है तथा प्राकृतिक परिणामों (Natural consequence) के आधार पर अनुशासन एवं आत्म नियंत्रण की भावना लाने पर जोर देता है। |
14 | लिंगीय विभेद (Sex Difference) को आदर्शवादी मानते हैं और इसी कारण वे सहशिक्षा के पक्षपाती नहीं हैं। बालक एवं बालिका के अलग-अलग विद्यालय आदर्शवादी दृष्टिकोण के कारण ही हैं। आदर्श तथा रूढ़ि के विरुद्ध यह सहशिक्षा है। | प्रकृतिवादी सहशिक्षा के पक्ष में हैं। बालक- बालिका को एक साथ में कोई क्षति नहीं है और दोष का परिमार्जन प्राकृतिक परिणामों के आधार पर हो जायेगा। इससे स्वाभाविक विकास होता है, एक-दूसरे को समझते हैं। |
15 | आदर्शवाद के अनुसार एक ही मापदण्ड माना गया है। जिसके द्वारा सभी प्रकार के बालकों को मापा जाता है। यही कारण है कि वैयक्तिक विभिन्नता की ओर आदर्शवादी शिक्षा योजना में ध्यान नहीं रखा गया। | प्रकृतिवाद के प्रभावस्वरूप वैयक्तिक विभिन्नता (Individual difference) का शिक्षा के क्षेत्र में पता लगाया गया और तदनुरूप शिक्षा व्यवस्था भी की गई। इससे अलग-अलग मापदण्ड भी हो गए। |
16 | आदर्शवाद के अनुसार शिक्षा केवल कुछ ही चुने लोगों के लिए (For the chosen few) होती है, सार्वजनिक शिक्षा की ओर ध्यान नहीं दिया जाता। (No attention towards mass-education )। | प्रकृतिवादी विचारधारा के फलस्वरूप शिक्षा सबके लिए होनी चाहिए। जनतंत्रीय भावना के बढ़ने से जन-शिक्षा तथा पिछड़ी जातियों की शिक्षा का जोर इसी दर्शन के कारण हुआ है। |
17 | शिक्षा के क्षेत्र में सह-पाठ्यक्रमीय क्रियाओं (Co- curricular activities) को आदर्शवाद ने ऊँचा स्थान नहीं दिया। इससे शिक्षा केवल सैद्धान्तिक ही बनी रही (Education remained theoretical only)। | प्रकृतिवाद ने सह-पाठ्यक्रमीय क्रियाओं को अन्य विषयों के समान ही उपयोगी माना और ऊँचा स्थान दिया। यही कारण है कि आज स्कूलों में खेलकूद, व्यायाम, सैनिक शिक्षा, भाषण, अभिनय, इत्यादि सभी को महत्त्व एवं बल दिया जाता है। |
18 | शिक्षा के क्षेत्र में श्रव्य दृश्य उपकरणों का प्रयोग आदर्शवादी शिक्षक नहीं करते रहे। फलस्वरूप शिक्षक में सूक्ष्मता एवं अमूर्तता (Abstractness) आती गई और शिक्षण ‘कलम और भाषण’ (Chalk and talk) के द्वारा सम्पन्न होने लगा। | शिक्षा के क्षेत्र में श्रव्य दृश्य उपकरणों (Audio- visual Aids) के प्रयोग से ज्ञानार्जन को सरल बनाने का श्रेय प्रकृतिवाद को ही देना चाहिए। इन आधुनिकतम साधनों के प्रयोग से शिक्षा के क्षेत्र में अत्यधिक उन्नति हुई है। |

संक्षेप में-
शिक्षा में आदर्शवाद
1. ज्ञान की प्रकृति : आदर्शवाद मानता है कि ज्ञान अमूर्त, सार्वभौमिक और शाश्वत है। यह दुनिया को समझने में विचारों, मूल्यों और सिद्धांतों के महत्व पर जोर देता है।
2. मन पर ध्यान : आदर्शवाद व्यक्ति के मन और बुद्धि के विकास पर बहुत जोर देता है। इसका मानना है कि शिक्षा का उद्देश्य तर्कसंगतता, आलोचनात्मक सोच और बौद्धिक विकास को विकसित करना होना चाहिए।
3. शिक्षक केन्द्रित : आदर्शवाद में शिक्षक शिक्षा में केंद्रीय भूमिका निभाता है। उन्हें ज्ञान और ज्ञान के स्रोत के रूप में देखा जाता है, और वे छात्रों को समझने की खोज में मार्गदर्शन करते हैं।
4. विषय-केंद्रित पाठ्यक्रम : आदर्शवाद में पाठ्यक्रम आमतौर पर साहित्य, दर्शन और कला के महान कार्यों के आसपास संरचित होता है। यह छात्रों की बौद्धिक क्षमताओं को विकसित करने के लिए गणित, दर्शन और इतिहास जैसे विषयों पर जोर देता है।
5. अनुशासन और नैतिकता पर जोर : आदर्शवाद शिक्षा को चरित्र और नैतिक मूल्यों के विकास के साधन के रूप में देखता है। इसका उद्देश्य छात्रों में ईमानदारी, सत्यनिष्ठा और जिम्मेदारी जैसे गुण पैदा करना है।
शिक्षा में प्रकृतिवाद
1. ज्ञान के स्रोत के रूप में प्रकृति : प्रकृतिवाद ज्ञान को प्राकृतिक दुनिया और अनुभवजन्य अनुभवों से प्राप्त होने के रूप में देखता है। यह संवेदी धारणा और वैज्ञानिक जांच के महत्व पर जोर देता है।
2. इंद्रियों पर ध्यान देना : प्रकृतिवाद इंद्रियों के विकास और प्राकृतिक दुनिया के प्रत्यक्ष अवलोकन पर बहुत जोर देता है। इसका मानना है कि शिक्षा प्रत्यक्ष अनुभवों और व्यावहारिक गतिविधियों पर आधारित होनी चाहिए।
3. छात्र-केंद्रित : प्रकृतिवाद में, छात्र सीखने की प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाता है। शिक्षक एक सूत्रधार के रूप में कार्य करता है, छात्रों को अपने ज्ञान का पता लगाने और खोजने के लिए मार्गदर्शन करता है।
4. जीवन-केंद्रित पाठ्यक्रम : प्रकृतिवाद में पाठ्यक्रम अक्सर वास्तविक जीवन के अनुभवों और व्यावहारिक कौशल के आसपास केंद्रित होता है। इसमें कक्षा के बाहर जीवन के लिए छात्रों को तैयार करने के लिए जीव विज्ञान, पर्यावरण विज्ञान और व्यावसायिक प्रशिक्षण जैसे विषय शामिल हैं।
5. व्यक्तित्व और स्वतंत्रता पर जोर : प्रकृतिवाद छात्रों के व्यक्तित्व को महत्व देता है और उन्हें अपनी अनूठी रुचियों और प्रतिभाओं को व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित करता है। यह विचार, रचनात्मकता और आत्म-अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बढ़ावा देता है।
आदर्शवाद मन के विकास और अमूर्त ज्ञान की खोज पर ध्यान केंद्रित करता है जबकि प्रकृतिवाद प्रत्यक्ष अनुभवों और ज्ञान के व्यावहारिक अनुप्रयोग पर जोर देता है। आदर्शवाद शिक्षक को शिक्षा के केंद्र में रखता है, जबकि प्रकृतिवाद छात्र को अधिक स्वायत्तता देता है। दोनों दर्शनों की अपनी ताकत और कमजोरियां हैं और समय के साथ विभिन्न शैक्षिक दृष्टिकोणों को प्रभावित किया है। आदर्शवाद और प्रकृतिवाद के बीच का चुनाव अंततः छात्रों के शैक्षिक लक्ष्यों, संदर्भ और व्यक्तिगत आवश्यकताओं पर निर्भर करता है।
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