निर्देशन सेवाओं में परामर्श (Counselling) सेवाएँ सबसे अधिक महत्वपूर्ण एवं प्राचीन सेवाएँ हैं। जहाँ कहीं भी शिक्षक और छात्र में सम्बन्ध स्थापित होता है वहीं कुछ समस्याएँ एवं उनका समाधान भी उपस्थित हो जाता है। ये प्रश्न तथा उनके समाधान विशेष रूप से छात्र के भावी व्यवसाय चयन से सम्बन्ध रखते हैं। कहीं-कहीं तो यह भी ध्यान रखा गया है कि छात्रों को शिक्षक जीवनपर्यन्त सुझाव प्रस्तुत करते रहते हैं परन्तु किशोरावस्था (Adolescence) में भावी जीवन को व्यवस्थित करने सम्बन्धी सुझाव अत्यन्त महत्वपूर्ण होते हैं। इस प्रकार प्रत्येक अध्यापक अपने छात्रों को कुछ न कुछ सुझाव या परामर्श देते रहने के कारण परामर्शदाता (Counsellor) कहलाता है। वर्तमान समाज आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक एवं नैतिक रूप से अत्यन्त जटिल एवं क्लिष्ट हो गया है, इस कारण अध्यापक उचित रूप से परामर्श नहीं दे पाता है। इसके लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित परामर्शदाता की आवश्यकता पड़ती है, क्योंकि क्लिष्ट और जटिल समाज में परामर्श के क्षेत्र, रूप, आकार एवं अर्थ सभी बदल गए हैं। परामर्श किस प्रकार दिया जाए, इससे पूर्व यह अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है कि परामर्श का अर्थ इस युग में क्या है ?
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परामर्श का अर्थ एवं परिभाषाएँ
(Meaning and Definitions of Counselling)
परामर्श का अर्थ (Meaning of Counselling)
‘परामर्श’ एक प्राचीन शब्द है, फलतः इसकी अनेक परिभाषाएँ दी गयी हैं। बेबस्टर शब्दकोश के अनुसार, “परामर्श का अर्थ पूछताछ, पारस्परिक तर्क-वितर्क या विचारों का पारस्परिक विनिमय है।” परन्तु निर्देशन में इतने से ही कार्य नहीं चलता है क्योंकि इसमें परामर्श एक तकनीकी रूप में प्रयोग किया गया है। शाब्दिक अर्थ से हमारा काम पूरा नहीं होता है।
संवेगात्मक या व्यक्तित्व सम्बन्धी समस्याओं को सुलझाने के लिए प्रायः परामर्श प्रदान करने की आवश्यकता पड़ती है। यह व्यक्ति से घनिष्ठ व्यक्तिगत सम्बन्ध स्थापित करते हुए प्रदान किया जाता है। इसके लिए परामर्शदाता सुझाव (Suggestion), युक्तिपूर्ण तर्क (Rational Persuation) इत्यादि द्वारा व्यक्ति को उसकी समस्या के सम्बन्ध में अन्तर्दृष्टि (Insight) प्रदान करता है जिसे प्राप्त कर व्यक्ति स्वयं अपनी समस्या सुलझाने में समर्थ हो जाता है। परामर्श का उद्देश्य आत्म-परिचय या आत्म-बोध (Self-realisation) है। इसके द्वारा प्रार्थी को यह बोध कराया जाता है कि वह क्या कर सकता है? उसे अपने गुणों के विकासार्थ क्या करना चाहिए? उसे अपनी समस्याओं पर किस प्रकार ध्यान देना चाहिए? बहुत से विद्वानों ने परामर्श को बातचीत करना, विचार-विमर्श (Conference) एवं एक मित्रतापूर्वक वार्तालाप करना बताया है। इस प्रकार के विचार-विनिमय का प्रमुख उद्देश्य व्यक्ति को उचित निर्णय लेने में सहायता प्रदान करना है। यह विचार-विनिमय स्नेहयुक्त स्थितियाँ निर्माण करके किया जाता है। विचार-विनिमय करने वाले व्यक्ति एक-दूसरे पर अपने विचार लादने की चेष्टा नहीं करते हैं। विचार-विनिमय का प्रमुख उद्देश्य व्यक्तियों की योग्यताओं को ज्ञात करना तथा विकसित करना होता है। आर्बकल (Arbuckel) ने परामर्श प्रक्रिया के अर्थ का विश्लेषण करते हुए उसमें निम्न बिन्दुओं का उल्लेख किया है-
(1) परामर्श प्रक्रिया में दो व्यक्ति सम्भावित रहते हैं।
(2) परामर्श प्रक्रिया का उद्देश्य छात्र को अपनी समस्याएँ स्वतन्त्र रूप से समाधान करने योग्य बनाना है।
(3) परामर्श एक प्रशिक्षित व्यक्ति का व्यावसायिक कार्य है।
परामर्श की परिभाषाएँ (Definitions of Counselling)
कार्ल रोजर्स (Carl Rogers) – “एक निर्धारित रूप से संरचित स्वीकृत सम्बन्ध है जो परामर्श प्रार्थी को पर्याप्त मात्रा में स्वयं को समझने में सहायता देता है, जिससे वह अपने नवीन ज्ञान के परिप्रेक्ष्य में ठीक कदम ले सके।”
a definitely structured permissive relationship which allows the client to gain an understanding to himself to a degree which enables him to take positive steps in the light of his new orientation.” –Carl Rogers
हम्फ्री (Humphrys) एवं ट्रेक्सलर (Traxler) – “परामर्श व्यक्तियों की समस्या समाधान हेतु विद्यालय या अन्य संस्थानों के संसाधनों का प्रयोग है।”
“Counselling is the application of the personal resources of the school or other institutions of the solution of the problems of the individuals.” –Humphrys and Traxler
इरिकसन (Erickson) “एक परामर्श साक्षात्कार व्यक्ति से व्यक्ति का सम्बन्ध है जिसमें एक व्यक्ति अपनी समस्याओं तथा आवश्यकताओं के साथ दूसरे व्यक्ति के पास सहायतार्थ जाता है।”
A counselling interview is a person to person relationship in which one individual with problem and needs turns to another person for assistance. –Erickson
रोलोमे (Rollomay) – “परामर्शदाता के कार्य हैं-परामर्श प्रार्थी को सामाजिक दायित्वों को सहर्ष स्वीकार करने में सहायता करना, उनको साहस देना जिससे उनमें हीनभावना का उदय न हो तथा सामाजिक एवं कार्यात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति में उसकी सहायता करना।”
“His function is to assist the counsellee to a cheerful acceptance of his social responsibility to give him courage which will release him from the compulsion of his inferiority feelings, and to help him to direct his striving towards socially constructive ends.” –Rollomay
स्ट्रैंग (Strang) – “परामर्श प्रक्रिया एक सम्मिलित प्रयास (Joint Quest) है। छात्र को जिम्मेदारी अपने आपको समझने की चेष्टा करना तथा उस मार्ग का पता लगाना है जिस पर उसे आना है, तथा जैसे ही समस्या उत्पन्न हो उसके समाधान हेतु आत्मविश्वास जगाना है। इस प्रक्रिया में परामर्शदाता का उत्तरदायित्व छात्र को आवश्यकतानुसार सहायता प्रदान करना है।”
“Counselling process is a ‘Joint quest’. The student’s responsibility is to try and understand himself and the direction in which he should go and to gain self confidence in handling problems as they arise. The counsellor’s responsibility is to assist in this process whenever the subject needs and is ready for help.” – Ruth Strang
आर्थर जे. जोन्स (Arthur J. Jones) – परामर्श दो व्यक्तियों के बीच में व्यक्तिगत तथा गत्यात्मक सम्बन्ध है, जिनमें से एक (परामर्शदाता) वयोवृद्ध, अनुभवी तथा अधिक बुद्धिमान होता है तथा दूसरा (जिसे परामर्श देना है) अवस्था, अनुभव तथा बुद्धि में अपेक्षाकृत कम होता है, दोनों के परस्पर विचार-विनिमय द्वारा समस्या को भली-भाँति समझने का प्रयत्न किया जाता है और जिस व्यक्ति की समस्या होती है उसे स्वतः सुलझाने में सहायता प्रदान की जाती है।”
“Counselling is a personal and dynamic relationship between two individuals, one of whom is elder, experienced and wiser than the other who together approach a more or less defined problem of the younger or less experienced or less wise, with mutual consideration for each other to the one who has the problem may be more clearly defined and that the one who has the problem may be helped to a self determined solution of it.” –Arthur J. Jones
निर्देशन और परामर्श में अन्तर
(Difference between Guidance and Counselling)
कभी-कभी निर्देशन एवं परामर्श को समान मान लिया जाता है किन्तु वास्तव में दोनों एक न होकर अलग-अलग अवधारणाएँ हैं। निर्देशन व्यक्ति में इस प्रकार की योग्यता का विकास करता है कि वह स्वयं अपने निर्णय लेने में समर्थ हो जाता है जबकि परामर्श एक संयुक्त प्रयत्न है, जिसमें परामर्शक (Counsellor) तथा परामर्श प्रार्थी (Counsellor Client) किसी समस्या का समाधान ढूँढ़ते हैं। परन्तु मूल रूप में परामर्श प्रार्थी केन्द्रित (Clint centred) होता है।
परामर्श के तत्व या विशेषताएँ
(Elements or Characteristics of Counselling)
(I) विलियम कोटल (William Cottle) के अनुसार
विलियम कोटल (William Cottle) ने परामर्श में पाँच तत्व बताए हैं। ये पाँच तत्व निम्नांकित हैं-
(1) दो व्यक्तियों में पारस्परिक सम्बन्ध आवश्यक है।
(2) परामर्शदाता और परामर्श प्रार्थी के मध्य विचार-विमर्श के अनेक साधन हो सकते हैं।
(3) प्रत्येक परामर्शदाता अपना काम पूर्ण ज्ञान से करता है।
(4) परामर्श प्रार्थी की भावनाओं के अनुसार परामर्श का स्वरूप परिवर्तित होता है।
(5) प्रत्येक परामर्श साक्षात्कार निर्मित होता है।
(II) फ्रायडियन अवधारणाओं (Freudian Concepts) के अनुसार
एक विद्वान ने परामर्श के तत्वों का उल्लेख फ्रायडियन अवधारणाओं (Freudian Concepts) के आधार पर किया है। इस लेखक के मतानुसार परामर्श में निम्न सात तत्व होते हैं-
(1) संघर्षमय अवस्था का आभास (Recognition of a state conflict)
(2) अचेतन की स्वीकृति (Acknowledgement of the unconscious)
(3) दमन की भूमिका (The role of repression)
(4) परलम्बता एवं हस्तान्तरण (Dependence and unconscious)
(5) अन्तर्दृष्टि की उपलब्धि (The acquiring of insight)
(6) उचित संवेगात्मक अनुभवों पर बल (Emphasis on corrective emotional experience)
(7) स्वीकारात्मक अभिवृत्ति (Accepting attitude)
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