शिक्षा के अभिकरण (Agencies of Education)

समाज में विभिन्न प्रकार की संस्थाओं द्वारा शिक्षा देने का कार्य किया जाता है, इन्हीं संस्थाओं को शिक्षा के साधन कहा जाता है। विद्यालय के अलावा परिवार, समुदाय, राज्य एवं धार्मिक संस्थायें आदि अनेक ऐसी संस्थायें हैं जिनका बालक के विकास पर गहरा प्रभाव पड़ता है। व्यापक अर्थ में सम्पूर्ण वातावरण व्यक्ति की शिक्षा का साधन है।

बी० डी० भाटिया ने शिक्षा के साधन का अर्थ स्पष्ट करते हुये लिखा है- “समाज में शिक्षा के कार्यों को क्रियान्वित करने के लिए अनेक विशिष्ट संस्थाओं का विकास किया गया है। इन्हीं संस्थाओं को शिक्षा के साधन कहा जाता है।”

“Society has developed a number of specialised institutions to carryout functions of education. These institutions are known as the agencies of education.”    -B. D. Bhatia

शिक्षा के अभिकरण या साधन का अर्थ
(Meaning of Agency of Education)

शिक्षा के साधनों का क्या अर्थ है? यह भी जानना आवश्यक है। साधन शब्द अंग्रेजी भाषा के ‘Agency’ शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। ‘Agency’ शब्द ‘Agent’ से बना है। एजेन्ट का अर्थ उस व्यक्ति, वस्तु या तत्त्व से है, जो कार्य करता है या अपना प्रभाव डालता है। इस दृष्टि से शिक्षा के साधन के अन्तर्गत वे सभी वस्तुएँ, स्थान तथा तत्त्व आ जाते हैं जो बालक को किसी भी प्रकार से शिक्षा प्रदान करते हैं या बालक उनसे प्रभावित होकर कुछ सीखता है।

शिक्षा के उद्देश्य की प्राप्ति इन्हीं साधनों के माध्यम से होती है। शिक्षा के इन साधनों का बालक पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव पड़ता रहता है और वह सदा सीखता रहता है। जी० थॉमसन का विचार है- “व्यापक अर्थ में सम्पूर्ण वातावरण व्यक्ति की शिक्षा का साधन है, किन्तु इस वातावरण में कुछ तत्त्वों का विशेष महत्व है। जैसे- घर, विद्यालय, चर्च, प्रेस, व्यवसाय, सार्वजनिक जीवन, मनोरंजन तथा कोई प्रिय कार्य। “

इस प्रकार हम देखते हैं कि व्यापक अर्थ में जिस प्रकार शिक्षा आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है उसी प्रकार शिक्षा के अभिकरण या साधन भी व्यापक तथा जीवन के सभी क्षेत्रों से सम्बन्धित है।

शिक्षाशास्त्रियों ने अलग-अलग तरीकों से अभिकरणों का वर्गीकरण किया है।

शिक्षा के अभिकरण का वर्गीकरण
(Classification of Agencies of Education)

शिक्षा के साधनों को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जाता है-

  1. औपचारिक अभिकरण (Formal Agencies)
  2. अनौपचारिक अभिकरण (Informal Agencies)
  3. निरौपचारिक अभिकरण (Non-formal Agencies)

औपचारिक अभिकरण (Formal Agencies)

इन साधनों द्वारा शिक्षा का कार्य एक निश्चित योजना के अनुसार होता है। शिक्षा-सम्बन्धी सभी कार्यक्रम जैसे- स्थान, व्यक्ति, उद्देश्य, पाठ्यक्रम, विधि, नियम, व्यवस्था आदि की योजना पहले से निश्चित की जाती है। ब्राउन (Brown) महोदय ने अपनी पाठ्य-पुस्तक ‘शैक्षिक समाजशास्त्र’ में इन साधनों का स्पष्टीकरण इस प्रकार किया है-

शिक्षा के औपचारिक अभिकरण

  1. पाठशाला (School)
  2. पुस्तकालय तथा वाचनालय (Library and Reading Room)
  3. संग्रहालय (Museum)
  4. कला-कक्ष (Art Galleries)
  5. व्यायामशाला (Gymnasium)

पाठशाला (School)- शिक्षा के सविधिक साधनों में पाठशाला सबसे प्रमुख साधन है। यहाँ शिक्षा सम्बन्धी सभी कार्यक्रम पूर्व निश्चित योजना के अनुसार सम्पादित किये जाते हैं और शिक्षा नियमित रूप से दी जाती है।

पुस्तकालय तथा वाचनालय (Library and Reading Room)- पुस्तकालय तथा वाचनालय की व्यवस्था करना शिक्षा के लिए अत्यन्त आवश्यक है। यहाँ पाठ्य विषय सम्बन्धी पुस्तकों के अतिरिक्त अनेक प्रकार की पत्र-पत्रिकायें पढ़ने का अवसर मिलता है और इनसे लाभ उठाते हुये विद्यार्थी अपना ज्ञान-वर्द्धन करते हैं।

संग्रहालय (Museum) – संग्रहालय में ऐतिहासिक लेखों, भौगोलिक तथ्यों, कला-कृतियों, जीव-जन्तुओं आदि का संग्रह किया जाता है। इन सब वस्तुओं को दिखाने से बालक का ज्ञानात्मक तथा सामाजिक विकास होता है।

कला-कक्ष (Art Galleries) – इन कला-कक्षों में कलात्मक चित्रों को सजाकर रखा जाता है। इन चित्रों को देखकर बालक में कलात्मक तथा सौन्दर्यानुभूति की भावना जागृत होती है और उसकी साहित्य तथा कला के प्रति रुचि बढ़ती है।

व्यायामशाला (Gymnasium) – शारीरिक विकास के लिए समाज में व्यायामशालाओं की व्यवस्था की जाती है। यहाँ शरीर को स्वस्थ तथा पुष्ट बनाने के लिए नियमित रूप से शिक्षा प्रदान की जाती है।

औपचारिक शिक्षा के अभिकरण के गुण तथा दोष

औपचारिक शिक्षा साधनों में कुछ गुण तथा दोष भी पाये जाते हैं, जो निम्न हैं-

गुण

  1. इन साधनों द्वारा शिक्षा की प्रक्रिया एक पूर्व निश्चित योजना के अनुसार दी जाती है।
  2. सविधिक शिक्षा साधनों का एक निश्चित लक्ष्य होता है।
  3. सविधिक साधनों में विद्यालय सबसे महत्वपूर्ण साधन है। यहाँ सभी कार्य एक निश्चित पाठ्यक्रम, विधि, व्यवस्था और नियम के अनुसार सम्पन्न किये जाते हैं।
  4. सविधिक साधन प्रत्यक्ष रूप से बालक के व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं। इनके द्वारा शिक्षा देने में कम समय लगता है।

जॉन डीवी ने कहा है, औपचारिक शिक्षा के बिना जटिल समाज के सारे साधनों एवं सिद्धियों को हस्तांतरित करना सम्भव नहीं है, यह एक ऐसे अनुभव की प्राप्ति का द्वार खोलता है, जिसको दालक दूसरों के साथ रहकर अनौपचारिक शिक्षा के द्वारा प्राप्त कर सकते हैं। इस कथन के अनुसार मनुष्य की शिक्षा में सविधिक साधनों का महत्वपूर्ण स्थान है।

दोष

औपचारिक शिक्षा साधनों के निम्न दोष है-

  1. इन साधनों द्वारा बालक को सीमित ज्ञान दिया जाता है।
  2. इन साधनों द्वारा प्राप्त ज्ञान से बालक का स्वाभाविक विकास नहीं हो पाता। इन साधनों में कृत्रिमता अधिक होती है क्योंकि ये अनेक बन्धनों और नियमों से बंधे होते हैं।
  3. इन साधनों द्वारा पुस्तकीय ज्ञान पर अधिक बल दिया जाता है जोकि सैद्धान्तिक अधिक होते हैं। इस प्रकार यह शिक्षा अव्यवहारिक होती है।
  4. औपचारिक शिक्षा के दोषों पर प्रकाश डालते हुये जॉन डीवी का विचार है- “औपचारिक शिक्षा बड़ी सरलता से तुच्छ, निर्जीव, अस्पष्ट और किताबी बन जाती है, कम विकसित समाजों में जो संचित ज्ञान होता है, उसे कार्य में बदला जा सकता है पर उन्नत संस्कृति में जो बातें सीखी जाती हैं, वे प्रतीकों के रूप में होती है। और उनको कार्यों में परिणित नहीं किया जा सकता है। इस बात का सदैव डर रहता है कि औपचारिक शिक्षा जीवन के अनुभव से कोई सम्बन्ध न रखकर केवल विद्यालय की विषय-सामग्री न बन जाये।”
शिक्षा के अभिकरण (Agencies of Education)
शिक्षा के अभिकरण (Agencies of Education)

अनौपचारिक अभिकरण (Informal Agencies)

शिक्षा के अनौपचारिक अभिकरण वे हैं, जिसमें कोई पूर्व योजना नहीं होती। ये अभिकरण बालक को प्रत्यक्ष और अज्ञात रूप से प्रभावित करते हैं। ये अभिकरण निम्नलिखित हैं-

  1. परिवार
  2. खेल समुदाय
  3. समाज तथा राज्य
  4. व्यावसायिक साधन
    • प्रेस,
    • आकाशवाणी (रेडियो),
    • दूरदर्शन (टेलीविजन),
    • चलचित्र,
    • नाट्यशालाएँ,
    • पत्र-पत्रिकाएँ।
  5. अव्यावसायिक साधन
    • खेल- संघ,
    • सामाजिक-सांस्कृतिक संस्थाएँ,
    • राजनीतिक संस्थाएँ,
    • प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र,
    • बालचर तथा गर्ल गाइड,
    • यात्राएँ।
  6. धार्मिक संस्थाएँ
  1. परिवार विद्धानों का विचार है कि “परिवार बालक की प्रारम्भिक पाठशाला है।” बालक के जीवन में घर का अत्यधिक महत्व है। घर में रहकर ही वह अनुकरण द्वारा बहुत कुछ सीखता है। उसके व्यक्तित्व के विकास के लिए घर सभी आवश्यक सुविधाएँ प्रदान करता है। उसका शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, भावात्मक विकास तथा अन्य आवश्यक नैतिक गुणों का जैसे- स्नेह, सहानुभूति, दया, सहिष्णुता, कर्त्तव्य परायणता आदि का विकास परिवार द्वारा ही होता है।
  2. खेल समुदाय- बालक जैसे-जैसे बड़ा होता है, समुदाय (Group) बनाकर मित्रों के साथ खेलना अधिक पसन्द करता है। इस समुदाय में उसे अपने को अभिव्यक्त करने की पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त होती है। उन पर एक-दूसरे का प्रभाव प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से भी पड़ा करता है और उनमें सामाजिक गुणों का विकास होता है।
  3. समाज तथा राज्य शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया है। बालक समाज का अंग है। अतः शिक्षा की क्रिया सामाजिक वातावरण में ही सम्भव है। राज्य समाज का एक रूप है। राज्य नागरिकों के शिक्षा की व्यवस्था तथा सहायता करता है। राज्य तथा समाज के शैक्षिक कर्त्तव्यों का विस्तृत विवेचन आगामी अध्यायों में किया गया है।
  4. व्यावसायिक साधन- ये साधन निम्नलिखित हैं-

(i) प्रेस – आधुनिक युग में प्रेस शिक्षा का महत्वपूर्ण साधन है। समाचार-पत्र, पत्रिकायें तथा पुस्तकों का मुद्रण प्रेस में होता है। पत्र-पत्रिकाओं द्वारा ज्ञान की वृद्धि होती है।

(ii) आकाशवाणी- आकाशवाणी में कार्यक्रमों द्वारा हम घर में बैठकर ही कविताओं, कहानियाँ, नाटक, वार्त्ताओं, सूचनाओं तथा संगीत को सुनकर अपना मनोरंजन करते हुये ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।

(iii) दूरदर्शन (टेलीविजन)- आधुनिक युग का नवीनतम आविष्कार टेलीविजन है। शिक्षा के श्रव्य-दृश्य साधनों (Audio-visual Aids) में टेलीविजन एक प्रमुख उल्लेखनीय वस्तु है। इसके द्वारा घर पर बैठे ही बैठे चलचित्र देखने के समान आनन्द प्राप्त किया जा सकता है। संसार में होने वाली घटनाओं को हम एक साथ देख तथा सुन सकते हैं तथा विविध प्रकार का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।

(iv) चलचित्र – चलचित्र शिक्षा का एक महत्वपूर्ण साधन है। चलचित्रों द्वारा देश के रीति-रिवाज, सभ्यता तथा संस्कृति का ज्ञान प्राप्त होता है। शिक्षाप्रद चलचित्रों द्वारा ही विशेष लाभ होता है। आजकल के अधिकांश चलचित्र व्यक्ति में असामाजिक प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन देते हैं अतः राज्य को इस ओर अधिक ध्यान देना चाहिये।

(v) नाट्यशालाएँ – नाट्यशालाओं में ऐतिहासिक, पौराणिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक नाटक देखने का अवसर मिलता है। इनके द्वारा हमें इतिहास तथा देश की सभ्यता और संस्कृति का ज्ञान प्राप्त होता है।

(vi) पत्र-पत्रिकाएँ – वर्तमान युग में पत्र-पत्रिकाएँ ज्ञान-वृद्धि के महत्वपूर्ण साधन हैं। इनके माध्यम से देश-विदेश का ज्ञान प्राप्त होता है।

  1. अव्यावसायिक अभिकरण – इन साधनों का दृष्टिकोण व्यावसायिक नहीं होता है। इनका उद्देश्य समाज की भलाई करना है।

(i) खेल संघ – शारीरिक स्वास्थ्य तथा मनोरंजन की दृष्टि से ये संघ लाभदायक हैं। इनमें अनेक प्रकार के खेलों का आयोजन होता है।

(ii) सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्थाएँ- इसके अन्तर्गत समाज कल्याण समितियाँ, आर्य समाज, ब्रम्हसमाज, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भारत सेवक समाज आदि संस्थाएँ आती हैं।

(iii) राजनीतिक संस्थाएँ- इनके अन्तर्गत राजनीतिक पार्टियाँ जैसे- भारतीय जनता पार्टी, लोकतांत्रिक कांग्रेस, कांग्रेस (इ), डी० एम० के० ए० डी०, एम० के०, अकाली दल आदि हैं। ये पार्टियाँ अपने भाषणों तथा प्रकाशनों द्वारा शिक्षा देती हैं।

(iv) प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र प्रौढ़ों को शिक्षा देने के लिए प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र, रात्रि – पाठशालायें आदि की व्यवस्था की जाती है जो कि साक्षरता के प्रचार के साथ अन्य जीवनोपयोगी बातों की शिक्षा प्रदान करते हैं ।

(v) बालचर तथा गर्ल गाइड- आजकल स्कूलों में इन संस्थाओं द्वारा बालक तथा बालिकाओं को व्यावहारिक जीवन की शिक्षा दी जाती है ।

(vi) यात्राएँ- यात्राएँ भी शिक्षा का महत्वपूर्ण साधन हैं। विद्यालयों में भी शिक्षा-सम्बन्धी यात्राओं का आयोजन किया जाता है, इनसे विद्यार्थियों को बहुत लाभ होता है।

  1. धार्मिक संस्थाएँ – मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, गिरजाघरों तथा अन्य धार्मिक संस्थाओं के माध्यम से सामान्य शिक्षा के साथ-साथ नैतिक एवं चारित्रिक मूल्यों की शिक्षा, आध्यात्मिक शिक्षा तथा धर्म-विशेष की शिक्षा प्रदान की जाती है। समय-समय पर इन संस्थाओं द्वारा आयोजित उत्सवों, सभाओं, प्रवचनों तथा उपदेशों का प्रभाव व्यक्ति पर पड़ता है। इससे उन्हें आध्यात्मिक एवं धार्मिक विषयों की जानकारी होती है। मूल्य परक शिक्षा देने में धार्मिक संस्थाओं की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। धार्मिक संस्थायें शिक्षा की अनौपचारिक संस्थायें हैं।

अनौपचारिक शिक्षा अभिकरण या साधनों के गुण तथा दोष

अनौपचारिक शिक्षा के अभिकरण या साधनों के निम्नलिखित गुण तथा दोष हैं-

गुण

  1. शिक्षा के अविधिक साधनों का सम्बन्ध शिक्षा के व्यापक रूप से है।
  2. ये साधन जीवन की सत्यता के निकट होते हैं। इसके द्वारा व्यक्ति का स्वाभाविक विकास होता है।
  3. शिक्षा आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है। अतः सम्पूर्ण विश्व ही शिक्षा प्राप्त करने का स्थान है।
  4. शिक्षा के ये साधन असीमित हैं। इनसे उपयोगी और व्यावहारिक शिक्षा की प्राप्ति होती है। ये जीवन की समस्याओं को हल करने में सहायता देते हैं।
  5. व्यक्ति इन साधनों के माध्यम से अनुभव द्वारा शिक्षा प्राप्त करता है।

जॉन डीवी ने अनौपचारिक अभिकरणों को अधिक महत्व दिया है। उनका कहना है कि- “बालक दूसरों के साथ रहकर अविधिक ढंग से शिक्षा प्राप्त करता है और साथ रहने की प्रक्रिया ही शिक्षा प्रदान करने का कार्य करती है। यह प्रक्रिया अनुभव को विस्तृत बनाती है और कल्पना को प्रेरित करती है। यह कथन और विचार में शुद्धता एवं सजीवता लाती है।” शिक्षा आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है, व्यक्ति का इन सभी अविधिक साधनों से सम्बन्ध रहता है और वह उनसे कुछ न कुछ सीखता रहता है। अतः ये सभी साधन शैक्षिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।

दोष

  1. अनौपचारिक शिक्षा में कोई पूर्व- निश्चित योजना नहीं होती ।
  2. इन साधनों द्वारा सीखने की प्रक्रिया में समय अधिक लगता है।
  3. अनौपचारिक शिक्षा के अभिकरणों द्वारा प्राप्त शिक्षा अव्यवस्थित होती है, क्योंकि ये साधन असंगठित होते हैं। इन साधनों द्वारा बालकों में ऐसे गुणों का भी विकास हो सकता है जो उनके, समाज तथा देश के लिए हानिकारक सिद्ध होते हैं।

उपर्युक्त दोनों प्रकार के शिक्षा साधनों पर विचार करने के उपरान्त हम कह सकते हैं कि शिक्षा के क्षेत्र में औपचारिक और अनौपचारिक दोनों साधनों का प्रयोग होता है, ये दोनों साधन महत्वपूर्ण हैं। शिक्षा की प्रक्रिया में दोनों साधन एक-दूसरे के पूरक हैं और दोनों घनिष्ट रूप से सम्बन्धित होते हैं। जीवन में प्रगति तथा उन्नति करने के लिए इन साधनों से सहायता लेना वांछनीय हैं।

निरौपचारिक अभिकरण (Non-formal Agencies)

वर्तमान समय में शिक्षा के अभिकरणों का एक वर्गीकरण निरौपचारिक अभिकरणों के रूप में किया जाने लगा है। सभी प्रकार की निरौपचारिक शिक्षा इन अभिकरणों के द्वारा प्रदान की जाती है। प्रौढ़ शिक्षा, सतत शिक्षा, अंशकालिक शिक्षा, पत्राचार और दूरस्थ शिक्षा के केन्द्र और संस्थायें, जनसंचार के साधन दूरदर्शन के शैक्षिक कार्यक्रम, आकाशवाणी, आडियो-वीडियो टेप, कम्प्यूटर, चलचित्र आदि निरौपचारिक अभिकरण और साधन हैं। इसे औपचारिकेत्तर शिक्षा भी कहते हैं। यद्यपि निरौपचारिक अभिकरण विशेषकर निरौपचारिक शिक्ष के लिए होते हैं, लेकिन इनका उपयोग औपचारिक और अनौपचारिक सभी प्रकार की शिक्षा देने के लिए भी होता है। इन अभिकरणों में औपचारिक और अनौपचारिक दोनों प्रकार के अभिकरणों के गुण पाये जाते हैं। निरौपचारिक अभिकरण न तो पूर्ण रूप से संगठित और नियमबद्ध होते हैं और न ही पूर्ण असंगठित और स्वतंत्र । वास्तव में ये अभिकरण अपने लचीलेपन के गुण के कारण अत्यन्त लोकप्रिय हो रहे हैं।

निरौपचारिक अभिकरणों की विशेषताएँ
(Characteristics of Non-formal Agencies)

निरौपचारिक अभिकरणों की विशेषताएँ निम्नवत हैं-

  1. निरौपचारिक अभिकरण आधुनिक दूरसंचार के साधनों द्वारा शिक्षा देने का कार्य करते हैं। सेटेलाइट दूरदर्शन, आकाशवाणी, आडियो-वीडियो टेप, कम्प्यूटर, इन्टरनेट, ई-मेल, फोन, पत्र-पत्रिकायें तथा पत्राचार आदि प्रमुख साधन हैं।
  2. निरौपचारिक अभिकरण विशेषकर निरौपचारिक शिक्षा देते हैं, परन्तु इनका उपयोग औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा देने में भी किया जाता है।
  3. ये अभिकरण न तो पूर्णतया संगठित और नियमबद्ध होते हैं, और न ही पूर्णतया असंगठित और स्वतंत्र। निरौपचारिक शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम और परीक्षा निश्चित होती है परन्तु छात्रों के प्रवेश, शिक्षण और अनुशासन आदि के नियम व्यापक, उदार और लचीले होते हैं।
  4. निरौपचारिक अभिकरण से शिक्षा प्राप्त करने में स्थान और समय का प्रतिबंध नहीं होता है। किसी भी स्थान पर, किसी भी समय ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।
  5. अधिकांश निरौपचारिक साधन निष्क्रिय होते हैं, क्योंकि ये शिक्षार्थी की प्रतिक्रिया को तुरंत नहीं ग्रहण करते हैं।
  6. निरौपचारिक शिक्षा के अभिकरण उन सभी लोगों के लिए वरदान हैं, जो किन्हीं कारणों से शिक्षा वंचित रह गये हैं। निरक्षर प्रौढ़, विद्यालयों में प्रवेश न पा सकने वाले छात्र, नौकरी पेशा लोग, से महिलायें आदिवासी, पहाड़ी व अन्य दुर्गम स्थानों पर निवास करने वाले ये सभी लोग अपने घर पर ही इच्छानुसार इससे ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।
  7. वर्तमान युग में शिक्षा की बदली हुई माँग की पूर्ति विशेष निरोपचारिक शिक्षा के अभिकरणों द्वारा हो सकती है। ये साधन त्वरित गति से कम लागत में लाखों लोगों को शिक्षित कर सकते हैं।

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