प्लेटो एक महान यूनानी दार्शनिक थे। उनका जन्म 427 ई. पूर्व में एथेन्स के एक कुलीन परिवार में हुआ था। वह सुकरात के शिष्य थे तथा उनके विचारों से अत्यधिक प्रेरित थे। प्लेटो ने 386 ई.पू. में अपने शिष्यों के सहयोग से एथेन्स में अकादमी खोली जिसे यूरोप का प्रथम विश्वविद्यालय होने का गौरव प्राप्त है। उन्होंने अपने जीवन के अधिकतम समय अध्ययन-अध्यापन कार्य में व्यतीत किए। प्लेटो की इस अकादमी के कारण एथेन्स यूनान का ही नहीं अपितु सम्पूर्ण यूरोप का बौद्धिक केन्द्र बन गया।
उनकी अकादमी के प्रवेश द्वार पर लिखा था-“गणित के ज्ञान के बिना यहाँ कोई प्रवेश करने का अधिकारी नहीं है।” यहाँ पर राजनीति, कानूनवेत्ता और दार्शनिक शासक बनने की भी शिक्षा दी जाती थी। 81 वर्ष की आयु में महान दार्शनिक एवं शिक्षाशास्त्री प्लेटो की मृत्यु हो गई। प्लेटो के शिक्षा सम्बन्धी विचार ‘रिपब्लिक‘ तथा ‘दि लॉज‘ कृति से प्राप्त होते हैं। प्लेटो शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति को एक आदर्श नागरिक बनाना चाहते थे। प्लेटो की अकादमी में मनोविज्ञान, दर्शनशास्त्र, संगीत, गणित तथा राजनीतिविज्ञान आदि विषयों के शिक्षण की व्यवस्था थी।
Table of Contents
प्लेटो के अनुसार शिक्षा का अभिप्राय
प्लेटो ने शिक्षा के अर्थ को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि- “मैं युवकों एवं उनसे अधिक उम्र वालों को सद्गुणों की उत्पादक उस शिक्षा के बारे में कह रहा हूँ जो उन्हें उत्साहपूर्वक नागरिकता के पूर्ण आदर्श की प्राप्ति में लगाती है तथा जो उनको उचित रूप से शासन करना तथा आज्ञा पालन करना सिखाती है। यही शिक्षा एक ऐसी शिक्षा है जिसका नाम सार्थक शिक्षा है। दूसरे प्रकार की शिक्षा, जो धन की प्राप्ति या शारीरिक शक्ति या न्याय एवं बुद्धिमत्ता-रहित चालाकी को प्रयोजन बनाती है, बीच की है और जो शिक्षा कहे जाने योग्य नहीं है। जो इसी प्रकार से शिक्षित होते हैं वे सामान्यतः अच्छे पुरुष होते हैं।”
प्लेटो के अनुसार शिक्षा सामाजिक को जड़ों से समूल नष्ट करने का प्रयास है तथा त्रुटिपूर्ण जीवन-प्रणाली को सुधारने की योजना है जिसके द्वारा जीवन के सम्पूर्ण दृष्टिकोण को ही परिवर्तित किया जा सकता है।
प्लेटो के अनुसार, “शिक्षा बौद्धिक बुराई के लिए बौद्धिक उपचार है।”
शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया है जो व्यक्तियों को समाज के प्रति कर्त्तव्यों का बोध कराती है। शिक्षा जहाँ तक वह सामाजिक है, वह सामाजिक न्याय का साधन है। वह व्यक्ति को समाज में स्थित करने का साधन है।
प्लेटो के शिक्षा सिद्धान्त की विशेषताएँ
1. प्लेटो के अनुसार आत्मा सारी शिक्षा का स्रोत है।
2. मनुष्य का सम्पूर्ण जीवन ही शिक्षा का क्षेत्र है।
3. राज्य आत्मा की उपज है तथा आत्मा के विकास में राज्य एक महत्वपूर्ण तत्व है।
4. प्रत्येक वस्तु का हेतु उसी के अन्दर निहित है।
5. सद्गुण ही ज्ञान है।
6. प्लेटो का शिक्षा सिद्धान्त राज्य के आध्यात्मिकता की दीक्षा है।
7. राज्य एक प्रशिक्षण संस्था है।
8. शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया है ।
9. शिक्षा अपने आप में एक उत्तमता है।
10. शिक्षा सामाजिक न्याय का साधन है।
11. शिक्षा न्याय का तार्किक प्रतिफल है।
12. शिक्षा पर राज्य का अधिकार है। शिक्षा राज्याश्रित तथा अनिवार्य हो।
13. शिक्षा केवल प्रशासक और संरक्षक वर्ग के लिए है। उत्पादक वर्ग के लिए प्लेटो किसी प्रकार की शिक्षा का निरूपण नहीं करते।
14. स्त्री और पुरुषों के लिए समान शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए जिससे राज्य प्रशासन में दोनों का हाथ रह सके।
प्लेटो शिक्षा को निरपेक्ष सत्य दर्शन का एक साधन मानते थे और यह सत्य ही आत्मा का दर्शन है, यह सत्य का मार्ग है। शिक्षा का मूल उद्देश्य आन्तरिक दृष्टि को प्रकाश के सम्मुख करना।
प्लेटो ने आदर्श राज्य के न्याय को एक सद्गुण बताया। आदर्श न्याय बुद्धिमत्ता, साहस एवं संयम इन तीन बातों से कार्यान्वित होता है।
राज्य से न्याय को जीवित रखने के लिए प्लेटो ने संरक्षक या न्यायाधीश, सैनिक तथा व्यावसायिक तीनों वर्गों की शिक्षा पर विशेष बल दिया है।
शिक्षा के उद्देश्य
प्लेटो के अनुसार शिक्षा के मुख्य उद्देश्य निम्नांकित हैं-
1. प्लेटो ने अपनी कृति ‘रिपब्लिक’ में स्पष्ट कहा है कि- “अज्ञानता समस्त बुराइयों की जड़ है।” वह सद्गुणों के विकास के लिए शिक्षा को आवश्यक मानता है। उनकी मान्यता थी कि प्रत्येक शिशु में विवेक निष्क्रिय रूप में विद्यमान रहता है तथा शिक्षा का कार्य उस विवेक को सक्रिय बनाना है। विवेक से ही मनुष्य अपने स्वयं के लिए तथा राष्ट्र के लिए उपयोगी हो सकता है।
2. प्लेटो की मान्यता थी कि सत्य ही शिव है और शिव ही सुन्दर है। सत्यं, शिवं एवं सुन्दरम् ऐसे शाश्वत मूल्य हैं जिन्हें प्राप्त करने का प्रयास सभी आदर्शवादी शिक्षाशास्त्री अनवरत रूप से कर रहे हैं। प्लेटो ने भी इसे शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य माना ।
3. प्लेटो की मान्यता थी कि राज्य एक पूर्ण इकाई है तथा व्यक्ति वस्तुतः राज्य के लिए है। इसलिए शिक्षा के द्वारा राज्य की एकता सुरक्षित रहनी चाहिए। शिक्षा के द्वारा विद्यार्थियों में सहयोग, सद्भावना और भ्रातृत्व की भावना का विकास होना चाहिए।
4. न्याय पर आधारित राज्य की स्थापना के लिए अच्छे नागरिकों का निर्माण आवश्यक है जो अपने कर्त्तव्यों को समझकर तद्नुसार आचरण करें। प्लेटो शिक्षा के माध्यम से नई पीढ़ी में दायित्वबोध, संयम, साहस, युद्ध-कौशल जैसे श्रेष्ठ गुणों का विकास करना चाहते थे जिससे वे एक अच्छे नागरिक का दायित्व निभाते हुए राज्य को शक्तिशाली बना सकें।
5. प्लेटो की मान्यता थी कि मानव जीवन में अकेले विरोधी तत्त्व विद्यमान रहते हैं जिनमें शिक्षा के माध्यम से संतुलन बनाए रखा जा सकता है। संतुलित व्यक्तित्व के विकास एवं उचित आचार-विचार हेतु ‘स्व’ को नियंत्रण में रखना आवश्यक है। शिक्षा के माध्यम से ही इस महत्त्वपूर्ण लक्ष्य को प्राप्त करना संभव है।
6. प्लेटो ने व्यक्ति के अन्तर्निहित गुणों के आधार पर समाज को तीन वर्गों में विभाजित किया है-
(i) संरक्षक
(ii) सैनिक
(iii) व्यवसायी अथवा उत्पादक वर्ग।
इन तीनों ही वर्गों की उनकी योग्यता एवं उत्तरदायित्व के अनुरूप अधिकाधिक विकास की जिम्मेदारी शिक्षा की ही मानी गई है। दासों की स्थिति के बारे में प्लेटो ने विचार करना उचित नहीं समझा।
इस प्रकार प्लेटो व्यक्ति और राज्य दोनों के उच्चतम विकास के लिए शिक्षा को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मानते हैं। वास्तव में शिक्षा ही है जो जैविक शिशु में मानवीय गुणों का विकास करके उसे आत्मिक बनाती है। प्लेटो की दृष्टि में शिक्षा का उद्देश्य अत्यन्त व्यापक है।
पाठ्यक्रम
प्लेटो के अनुसार विद्यार्थी जीवन के प्रथम दस वर्षों में अंकगणित, ज्योमेट्री, संगीत तथा नक्षत्र-विद्या की कुछ बातें सीखनी चाहिए।
माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों को कविता, गणित, खेल-कूद, व्यायाम, सैनिक – प्रशिक्षण, शिष्टाचार तथा धर्मशास्त्र की शिक्षा देने की बात कही है। प्लेटो ने खेल-कूद को महत्वपूर्ण मानते हुए कहा कि- “इसका उद्देश्य प्रतियोगिताएँ जीतना नहीं वरन् स्वस्थ शरीर एवं स्वस्थ मनोरंजन करना होना चाहिए। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क एवं स्वस्थ आत्मा का निवास संभव है।” प्लेटो की शिक्षा व्यवस्था में जिम्नास्टिक एवं नृत्य को भी महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है।
प्लेटो ने साहित्य विशेषकर काव्य की शिक्षा को महत्वपूर्ण माना है। काव्य बौद्धिक, संवेदनशील जीवन के लिए आवश्यक है। गणित को प्लेटो अत्यन्त महत्वपूर्ण मानते हुए उच्च स्थान दिया है। उसने इन विषयों में तर्क के प्रयोग को महत्वपूर्ण बताया है और कहा है कि सर्वोच्च प्रत्यय ईश्वर की प्राप्ति में तर्क सहायक है।
शिक्षा के स्तर
प्लेटो ने बालकों के शारीरिक एवं मानसिक विकास की अवस्था के आधार पर शिक्षा को विभिन्न स्तरों में विभाजित किया है जो निम्नांकित हैं-
1. शैशवावस्था- जन्म से लेकर तीन वर्ष तक की आयु को शैशवकाल माना जाता है। इस आयु वर्ग के बालकों को पौष्टिक भोजन मिलना चाहिए। उनका पालन-पोषण उचित ढंग से होना चाहिए। प्लेटो के आदर्श राज्य में बालक राज्य की सम्पत्ति है। अतः राज्य का कर्त्तव्य है कि बालकों की देखभाल में किसी प्रकार की ढिलाई नहीं रहे।
2. नर्सरी शिक्षा- इसके अन्तर्गत तीन से छह वर्ष की आयु के बालक आते हैं। इस काल में उन्हें प्रारम्भिक शिक्षा देनी चाहिए। कहानियों द्वारा शिक्षा दी जानी चाहिए। खेल-कूद और सामान्य मनोरंजन पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
3. प्रारम्भिक विद्यालय की शिक्षा- इस आयु वर्ग में छह से तेरह वर्ष की आयु के बालक आते हैं। वास्तविक विद्यालयी शिक्षा इसी स्तर की आयु वर्ग के बालकों से प्रारम्भ होती है। बच्चों को राज्य द्वारा संचालित शिविरों में रखा जाना चाहिए। इस आयु वर्ग के बालक-बालिकाओं की क्रियाओं को नियंत्रित कर उनमें सामंजस्य स्थापित किया जाना चाहिए। इस काल में उन्हें नृत्य-संगीत की शिक्षा देनी चाहिए। प्लेटो की मान्यता थी कि नृत्य और संगीत की शिक्षा से विद्यार्थी में सम्मान और स्वतंत्रता का भाव तो भरता ही है किन्तु इसके साथ ही स्वास्थ्य, सौन्दर्य एवं शक्ति की भी वृद्धि होती है। इस काल में गणित और धर्म की शिक्षा भी प्रारम्भ कर देनी चाहिए।
4. माध्यमिक शिक्षा- यह काल बालकों की तेरह से सोलह वर्ष की आयु का है। इस आयु वर्ग के बालकों को अक्षर ज्ञान की शिक्षा पूर्ण करके काव्य-पाठ, धार्मिक सामग्री का अध्ययन एवं गणित के सिद्धान्तों की शिक्षा भी दी जानी चाहिए।
5. व्यायाम- प्लेटो के अनुसार यह सोलह से बीस वर्ष की आयु वर्ग के युवाओं की शिक्षा का काल है। सोलह से अठारह वर्ष की आयु में युवक-युवतियों को व्यायाम, जिमनास्ट, खेल-कूद आदि की शिक्षा देकर शरीर को पुष्ट बनाया जाना चाहिए। स्वस्थ एवं शक्तिशाली शरीर भावी सैनिक शिक्षा का आधार है। अठारह से बीस वर्ष की आयु में युवकों को अस्त्र-शस्त्र प्रयोग, घुड़सवारी, सैन्य-संचालन, व्यूह-रचना आदि की शिक्षा और प्रशिक्षण दिए जाने का प्रावधान किया गया है।
6. उच्च शिक्षा- इस स्तर की शिक्षा बीस से तीस वर्ष की आयु के मध्य दी जानी चाहिए। इस शिक्षा को प्राप्त करने के लिए भावी विद्यार्थियों को अपनी योग्यता की परीक्षा देनी होगी तथा केवल योग्य एवं चयनित विद्यार्थी ही उच्च शिक्षा ग्रहण करेंगे। इस काल में विद्यार्थियों को अंकगणित, रेखागणित, संगीत, नक्षत्र विद्या आदि विषयों के अध्ययन का प्रावधान किया गया है।
7. उच्चतम शिक्षा- तीस वर्ष तक की आयु वर्ग के उच्चशिक्षा प्राप्त किए हुए विद्यार्थियों को आगे की शिक्षा के लिए पुनः परीक्षा देनी होगी और चयनित विद्यार्थियों को दर्शन का गहन अध्ययन करने की व्यवस्था की गई है। इस शिक्षा को पूरी करने के बाद वे दार्शनिक घोषित किए जाते थे। ये समाज में लौटकर अर्थात् पन्द्रह वर्षों तक संरक्षक के रूप में प्रशिक्षित होंगे तथा व्यावहारिक अनुभव प्राप्त करेंगे। राज्य का संचालन इन्हीं के द्वारा किया जाएगा।
शिक्षण विधियाँ
प्लेटो ने शिक्षण के लिए तर्कविधि को उपयुक्त माना है। उन्होंने प्रश्नोत्तर विधि का भी प्रयोग किया। इस विधि से व्याख्यान विधि तथा प्रयोगात्मक विधि का प्रचलन हुआ। उसने दर्शनशास्त्र एवं तर्कशास्त्र के लिए स्वाध्याय विधि को अपनाने पर बल दिया। प्लेटो ने शिक्षा में खेलों को अधिक महत्त्व दिया। उनकी मान्यता थी कि खेलों के माध्यम से ही छात्र का स्वभाव बनता है। साथ ही उन्होंने कहा कि शिक्षक को इन खेलों का प्रयोग बड़ी सावधानी से करना चाहिए। प्लेटो के अनुसार शिक्षक और विद्यालय प्लेटो ‘अकादमी‘ जैसी संस्थाएँ सर्वत्र स्थापित करना चाहते थे। उनकी मान्यता थी कि आत्मा के विकास के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है। उन्होंने शिक्षा के प्रसार के लिए विद्यालय को आवश्यक साधन माना है। प्लेटो ने शिक्षक को महत्वपूर्ण स्थान दिया है क्योंकि आदर्शवाद को प्रसारित करने का कार्य शिक्षक बहुत अच्छी तरह से कर सकता है।
प्लेटो का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान प्लेटो का शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान रहा है जिसे निम्नांकित रूप में वर्णित किया जा सकता है-
1. प्लेटो ने सभी के लिए शिक्षा के समान अवसर प्रदान किए।
2. उन्होंने शिक्षा का उद्देश्य बालकों के व्यक्तित्व का विकास दर्शाया है।
3. प्लेटो ने महिलाओं की शिक्षा पर बल देते हुए उसकी अनिवार्यता को स्वीकार किया है।
4. प्लेटो का दृष्टिकोण आदर्शवादी था, इसी कारण उन्होंने सत्यं, शिवं, सुन्दरम् पर विशेष बल दिया है।
5. अनुशासन की स्थापना के लिए प्लेटो ने नैतिक गुणों के विकास को आवश्यक माना है ।
6. प्लेटो ने आयु एवं स्तर के अनुरूप पाठ्यक्रम का निर्धारण किया है।
7. प्लेटो ने औद्योगिक शिक्षा की उन्नति पर विशेष ध्यान दिया है।
8. प्लेटो ने प्रश्नोत्तर विधि का शिक्षण में प्रयोग किया। इसके अतिरिक्त व्याख्यान विधि, प्रयोगात्मक विधि तथा स्वाध्याय विधि का भी प्रचार किया।
9. आधुनिक विचारकों एवं राजनीतिज्ञों की आधुनिकतम धारणाएँ-ज्ञान की एकता, कानून का शासन, लिंगभेद और समानता आदि उसके द्वारा विकसित की जा चुकी थीं।
संक्षेप में प्लेटो राजनीतिशास्त्र और शिक्षा के क्षेत्र में आदर्शवाद का जनक माना जा सकता है।