शैक्षिक अनुसंधान (Educational Research)

मनोविज्ञान से सम्बन्धित नवीन खोजों तथा वर्तमान समय में होने वाले तीव्र सामाजिक परिवर्तनों के कारण शिक्षा जगत के अन्तर्गत अनेक ऐसे नये विवाद-विषय (Issues) उत्पन्न हुए हैं कि जिनके समाधान हेतु निरन्तर अनुसंधान की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त इन विभिन्न प्रकार के विवाद विषयों के अतिरिक्त आधुनिक समय में होने वाले तीव्र सामाजिक परिवर्तनों तथा तकनीकी परिवर्तनों के कारण शिक्षा से सम्बन्धित उपयुक्त उद्देश्यों को स्पष्ट करना, शिक्षा से सम्बन्धित प्रकृति एवं स्वरूप को परिवर्तित सामाजिक दर्शन की पृष्ठभूमि में निरन्तर रूप से समायोजित करना, विस्फोटक रूप से बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण स्कूलों से सम्बन्धित आवश्यकताओं को सम्भालना, देश के बच्चों को व्यावसायिक मार्गदर्शन प्रदान करना तथा उन्हें वर्तमान तकनीकी एवं औद्योगिक आवश्यकताओं के अनुसार शिक्षा प्रदान करना आदि वर्तमान शिक्षा जगत से सम्बन्धित कुछ अन्य ऐसी प्रमुख समस्याएँ हैं, जिन पर निरंतर अनुसंधान एवं शैक्षिक अनुसंधान (Educational Research) की नितान्त आवश्यकता है।

इसके अतिरिक्त बालक के व्यक्तित्व के समुचित रूप में विकास, पाठ्यक्रम, परीक्षा तथा मूल्यांकन, शिक्षण पद्धति, अध्यापक-विद्यार्थी सम्बन्ध तथा अनुशासन आदि से सम्बन्धित अनेकों ऐसे विषय हैं, जो कि शिक्षा शास्त्रियों तथा अध्यापकों के निरन्तर चिन्तन के विषय बने रहते हैं तथा जिनसे सम्बन्धित उपयुक्त हल तथा उपायों को जानने की अत्यन्त आवश्यकता है अर्थात् जिनके सम्बन्ध में गहन अनुसंधान करने की नितान्त आवश्यकता है, ताकि इन विभिन्न प्रकार की समस्याओं की प्रकृति एवं स्वरूप का उचित रूप में अध्ययन संभव हो सके तथा साथ ही उनके समाधान हेतु उपयुक्त साधन इकट्ठे हो सकें।

अतः उपरोक्त सभी प्रकार की शैक्षिक समस्याओं तथा बालकों के व्यवहार सम्बन्धी विभिन्न प्रकार की समस्याओं का जब वैज्ञानिक पद्धति के आधार संकलित तथा एकत्रित किये गये तथ्यों का विश्लेषण किया जाये तो इस प्रक्रिया को ही सरल अर्थ में ‘शैक्षिक अनुसंधान’ कहते हैं। शैक्षिक अनुसंधान के द्वारा शिक्षा के प्रत्येक पक्ष से सम्बन्धित मौलिक प्रश्नों का उत्तर दिया जा सकता है तथा शिक्षा के क्षेत्र से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार की समस्याओं का समाधान उचित रूप में किया जा सकता है। इसके परिणामस्वरूप नवीन ज्ञान में बढ़ोतरी की जा सकती है। शैक्षिक अनुसंधान तथा अन्य प्रकार के सामाजिक अनुसंधानों में पर्याप्त भिन्नता होती है। एक ओर जहाँ सामाजिक विषयों से सम्बन्धित अनुसंधानों के अन्तर्गत केवल नवीन ज्ञान की वृद्धि या बढ़ोतरी को ही महत्व प्रदान किया जाता है, जबकि दूसरी ओर शैक्षिक अनुसंधान के अन्तर्गत नवीन ज्ञान में बढ़ोतरी होने के साथ-साथ उस ज्ञान की उपयोगिता का होना भी आवश्यक होता है अर्थात् शैक्षिक अनुसंधान के अन्तर्गत उसकी व्यावहारिक उपयोगिता या महत्व का होना भी अत्यन्त आवश्यक होता है।

शैक्षिक अनुसंधान का अर्थ
(Meaning of Educational Research)

शिक्षा एक गतिशील प्रक्रिया (Dynamic Process) है जिसका प्रमुख उद्देश्य बालक में अन्तर्निहित शक्तियों का सर्वांगीण विकास करना है। इस प्रक्रिया को गतिशील बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि शिक्षा के क्षेत्र में पाई जाने वाली रूढ़ियों एवं परम्पराओं को समाप्त किया जाए और शैक्षिक सिद्धान्तों एवं विधियों का प्रतिपादन किया जाए। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए किए जाने वाले अनुसंधान को शैक्षिक अनुसंधान कहते हैं।

सरल शब्दों में शिक्षा के क्षेत्र से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार की समस्याओं के समाधान में जब वैज्ञानिक खोज का उपयोग किया जाता है तो उसे शैक्षिक अनुसंधान कहते है।

मुनरो के अनुसार- “शैक्षिक अनुसंधान का अन्तिम लक्षण सिद्धान्तों का प्रतिपादन करना तथा शिक्षा के क्षेत्र में नवीन प्रक्रियाओं का विकास करना है।”

एफ०एल० व्हिटनी ने शैक्षिक अनुसंधान को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि, “शैक्षिक अनुसंधान का उद्देश्य शिक्षा की समस्याओं का समाधान करके उसमें योगदान करना है, जिसमें वैज्ञानिक विधि, दार्शनिक विधि तथा चिन्तन का प्रयोग किया जाता है। वैज्ञानिक स्तर पर विशिष्ट अनुभवों का मूल्यांकन और व्यवस्था की जाती है। इसके अन्तर्गत परिकल्पनाओं का प्रतिपादन किया जाता है। इसकी पुष्टि से सिद्धान्तों का प्रतिपादन होता है। उसमें निगमन चिन्तन किया जाता है। दार्शनिक शोध विधि में व्यापक समीकरण किये जाते हैं जिससे सत्य एवं मूल्यों का प्रतिस्थापन किया जाता है।”

टैवर्स के अनुसार- “शैक्षिक अनुसंधान वह प्रक्रिया है, जो शैक्षिक परिस्थितियों में व्यवहार के विज्ञान को विकसित करने की ओर निर्देशित होती है। इस तरह के विज्ञानक अनुसंधान अन्तिम लक्ष्य ऐसा ज्ञान प्रदान करना है जो अध्यापक के लिये सर्वाधिक प्रभावकारी पद्धतियों के माध्यम से अपने उद्देश्यों की प्रगति करने में सहायक सिद्ध हो सके।”

बेस्ट के अनुसार- “इसके अन्तर्गत अन्वेषण की अधिक क्रमबद्ध संरचना निहित होती है, जिसकी परिणति कुछ प्रकार की क्रिया- विधियों के औपचारिक लेखों एवं परिषयों या निष्कर्षों के एक प्रतिवेदन के रूप में होती है।”

शैक्षिक अनुसंधान की उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि शैक्षिक अनुसंधान के अन्तर्गत शैक्षिक समस्याओं के समाधान या इनके विस्तृत अध्ययन के लिये वैज्ञानिक विधि या उसके सिद्धान्तों का उपयोग किया जाता है। अन्य शब्दों में शैक्षिक अनुसंधान का अन्तिम लक्ष्य शिक्षा से सम्बन्धित सिद्धान्तों का प्रतिपादन करना तथा साथ ही शैक्षिक प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाना होता है।

दूसरे शब्दों में अमुक शैक्षिक समस्या को किस प्रकार सुलझाना चाहिए। अमुक शैक्षिक परिस्थिति में क्या करना चाहिए? कौन-सी पद्धति अधिक प्रभावशाली सिद्ध होगी? किस मार्ग से चलने पर मितव्ययता होगी? आदि बातों के सम्बन्ध में शैक्षिक अनुसंधान द्वारा जानकारी प्राप्त होती है। इस प्रकार शैक्षिक अनुसंधान या शिक्षा के अनुसंधान का तात्पर्य उन क्रियाओं या वैज्ञानिक प्रयत्नों से है जिनके द्वारा शैक्षिक समस्याओं को सुलझाने के लिए नवीन तथ्यों एवं सत्यों की खोज करते हैं और इन तथ्यों एवं सत्यों के आधार पर नवीन शैक्षिक सिद्धान्तों एवं विधियों का प्रतिपादन करते हैं।

शैक्षिक अनुसंधान की विशेषताएँ
(Characteristics of Educational Research)

शैक्षिक अनुसंधान की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

  1. शैक्षिक अनुसंधान के अन्तर्गत प्रायोगिक पद्धति का उपयोग कम किया जाता है तथा इसमें घटना-स्थलों (Field Studies) की प्रधानता अधिक होती है।
  2. शैक्षिक अनुसंधान अधिकतर व्यक्तिनिष्ठ (Subjective) होते हैं तथा सामाजिक तथ्यों पर आधारित होते हैं। सामाजिक तथा व्यावहारिक तथ्यों का अप्रत्यक्ष रूप से मापन किया जाता है।
  3. शैक्षिक उन्नति तथा प्रगति हेतु शिक्षा में होने वाले अनुसंधानों में अन्तर विज्ञानीय उपागम (Inter disciplinary) Approach) का व्यापक रूप से उपयोग एक प्रकार से अनिवार्य है, क्योंकि इसकी सभी प्रकार की समस्याओं का अध्ययन केवल शैक्षिक अध्ययन पद्धति के आधार पर ही संभव है।
  4. शैक्षिक अनुसंधान का आधार कार्य-कारण सम्बन्ध (Cause and Effect) है तथा इसे यांत्रिक (Mechanical) नाम दिया जा सकता है।
  5. शैक्षिक अनुसंधान के द्वारा प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर शैक्षिक-प्रक्रिया को प्रभावशाली तथा उत्तम बनाया जा सकता है।
  6. इस प्रकार के अनुसंधान में अनुसंधान कार्य का मुख्य आधार शिक्षा-दर्शन होता है तथा शिक्षा की वैज्ञानिक प्रक्रिया भी दर्शन पर आधारित होती है।
  7. शैक्षिक अनुसंधान के अन्तर्गत शिक्षा के विकास के क्रमिक स्वरूप की जानकारी प्राप्त करने के लिये तथा वर्तमान शैक्षिक समस्याओं के स्वरूप का आँकन (evaluation) करने के लिये वर्णनात्मक अनुसंधान ऐतिहासिक अनुसंधान तथा विषय-वस्तु विश्लेषण (Content analysis) आदि का विशेष महत्व है।
  8. शैक्षिक अनुसंधान से सम्बन्धित परिणामों की सत्यता प्राकृतिक विज्ञानों से सम्बन्धित अनुसंधा न परिणामों की अपेक्षाकृत कम होती है।
  9. सामान्यतः इस प्रकार के अनुसंधान अल्पव्ययी होते हैं तथा ये अनुसंधान केवल विशेषज्ञों के द्वारा ही नहीं किये जाते बल्कि अध्यापक, प्राचार्य, शिक्षा-छात्र, निरीक्षक, तथा प्रशासक आदि के द्वारा भी किये जाते हैं।
  10. शैक्षिक अनुसंधान में विधि-अनुस्थापित (Method oriented) अनुसंधान का क्षेत्र कम ही है। इस प्रकार के अनुसंधान में समस्या-अनुस्थापित (problem-oriented) अनुसंधान की अधिक आवश्यकता है।
  11. ऐसे अनुसंधानों मुख्यतः सम्बन्ध सामान्यतः अध्यापन, अनुशासन, अध्ययन विधियों, व्यवस्थापन, संचालन तथा नियोजन की समस्याओं से अधिक होता है। अतः इसके अन्तर्गत क्रियात्मक अनुसंधान तथा प्रेरणात्मक अनुसंधान पर अधिक जोर दिया जाता है।
  12. शैक्षिक अनुसंधान, में उस सीमा तक शुद्धता नहीं होती जितनी कि प्राकृतिक विज्ञानों सम्बन्धी विज्ञानों में होती है।
  13. शैक्षिक अनुसंधान अन्तर्दृष्टि या सूझ (insight) तथा कल्पना पर आधारित होता है।
  14. ऐसे अनुसंधानों में अधिकतर निगमनात्मक तर्क-पद्धति का सहारा लिया जाता है।
  15. शैक्षिक अनुसंधान में केवल विशेषज्ञ ही नहीं बल्कि प्रधानाचार्य, शिक्षक तथा प्रशासक सभी भाग ले सकते हैं।
  16. शैक्षिक अनुसंधान सामाजिक हालत में भी व्यक्ति निष्ठता पर आधारित होता है।

शैक्षिक अनुसंधान की आवश्यकता
(Need of Educational Research)

शिक्षा में अनुसंधान की आवश्यकता – अनुसंधान का तात्पर्य किसी नवीन वस्तु अथवा ज्ञान का कुछ नवीन सिद्धान्तों के आधार पर अन्वेषण करना है। इसका उद्देश्य सरल और सुव्यवस्थित विधियों द्वारा किसी क्षेत्र की प्रमुख समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करना है। इस दृष्टि से अनुसंधान एक सोद्देश्य एवं सविचार प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य मानव-समाज के ज्ञान को विकसित और परिमार्जित कर उपयोगी बनाना है। इसके महत्व के बारे में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग का मत है कि अनुसंधान के बिना अध्ययन मृतप्रायः हो जाएगा। अतः ज्ञान के विकास के हेतु अनुसंधान अत्यावश्यक है, और यह ज्ञान का विकास जीवन के विकास के लिए अत्यावश्यक है।

अनुसंधान और शिक्षा – शिक्षा भी एक सोद्देश्य, सविचार प्रक्रिया है जिसके द्वारा जीवन के विभिन्न पहलुओं का पोषण होता है। जॉन डीवी  (John Dewey) ने इसे प्रगतिशील प्रक्रिया (Progressive Process) कहा है। प्रगति के अभाव में शिक्षा अपने कर्त्तव्य से विमुख हो जाएगी और इसकी सुस्थिर नींव पर निर्मित मानव सभ्यता एवं संस्कृति का विशाल भवन निष्प्राण हो जाएगा। अतः शिक्षा के अन्तर्गत प्रगति, परिमार्जन एवं विकास हेतु अनुसंधान की आवश्यकता निर्विवाद है।

अनुसंधान तथा शिक्षा सम्बन्धी समस्याएँ – आज शिक्षा का उद्देश्य मानव का सर्वांगीण विकास कर उसे समाज, राष्ट्र और विश्व की प्रगति में सहायक कुशल नागरिक बनाना है। जनतन्त्रीय शिक्षा व्यवस्था द्वारा व्यक्ति के व्यक्तिगत समादर, अवसर की समानता, स्वतन्त्रता तथा बन्धुत्व की उदात्त भावनाओं की स्थापना का उद्देश्य हम स्वीकार कर चुके हैं। परन्तु सर्वत्र भावात्मक एकता (Emotional Integration) में बाधक तत्व- वर्ग-भेद, धार्मिक असहिष्णुता, जातिवाद, सम्प्रदायवाद, आर्थिक शोषण आदि इस आदर्श की प्राप्ति में बाधक हो रहे हैं तथा लोगों को निराश कर रहे हैं। शिक्षण प्रक्रिया की समस्याएँ और भी दुरूह और असाध्य दिखायी पड़ रही हैं। सर्वत्र बाल-केन्द्रित शिक्षा, व्यक्तिगत शिक्षा, समाज शिक्षा, प्रौढ़ अनिवार्य शिक्षा के नारे तो बुलन्द हो रहे हैं परन्तु समुचित योजना, कुशल मार्ग-दर्शन एवं सफल साधन के अभाव में कोई भी प्रगति दिखायीं नहीं पड़ रही है। छात्रों में अनुशासनहीनता बढ़ती जा रही है, समाज में शिक्षकों की प्रतिष्ठा गिर रही है, विद्यालयों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, परन्तु गुणात्मक सफलता उतनी ही दूर भागती जा रही है। पाठ्यक्रम में पुस्तकीय ज्ञान ठूँस-ठूँस कर भरा गया है जो व्यावहारिकता से कोषों दूर है। यद्यपि शिक्षण विधियों की भरमार लग गयी है परन्तु अध्यापक इन पर ध्यान भी नहीं दे रहे हैं। प्रशासकीय अधिकारी कार्यालय के कागजों में इस प्रकार उलझे हुए हैं कि शिक्षा की समस्याओं एवं उनके समाधान की बात सोचना उनके वश की बात नहीं है। ऐसे समय में सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक अनुसंधान (Theoretical or Behavioural Research) ही हमारी सहायता कर सकता है तथा इन समस्याओं का समुचित विश्लेषण, वैज्ञानिक अध्ययन एवं सुविचारित समाधान प्रस्तुत कर सकता है। इस दृष्टि से शिक्षा के क्षेत्र में अनुसंधान आज अपरिहार्य हो गया है।

(1) ज्ञान के विकास में सहायक (Helpful in the Development of Knowledge) – अनुसंधान ज्ञान के किसी एक सूक्ष्म अंग का विस्तृत, सम्पूर्ण एवं नवीन चित्र प्रस्तुत करता है। इसके द्वारा ज्ञान-कोष में वृद्धि एवं विकास होता है। गुड तथा स्केट का कहना है कि विज्ञान का कार्य बुद्धि का विकास करना है तथा अनुसंधान का कार्य विज्ञान का विकास करना है। अतः यदि हम बुद्धिमत्ता का विकास चाहते हैं तो अनुसंधान करना ही होगा।

(2) अनुसंधान उद्देश्य-प्राप्ति हेतु सर्वोत्तम-साधन प्रदान करता है – यह एक उद्देश्यपूर्ण क्रिया है। इसकी समूची क्रिया उसी निश्चित उद्देश्य की प्राप्ति की ओर अग्रसर रहती है। इसके अन्तर्गत बातों के लिए स्थान नहीं है। उदाहरणार्थ, यदि हमें धर्म निरपेक्ष नागरिक उत्पन्न करना है तो हमें अपनी शिक्षा व्यवस्था को भी धर्म निरपेक्ष बनाना होगा। इसके लिए सुव्यवस्थित कार्यक्रम का निर्माण करना होगा। इसी प्रकार, अन्य समस्याओं के समाधान हेतु मार्गदर्शन करना होगा।

(3) मानव समाज के मन्द गति धरिवर्तन में नवीन ज्ञान एवं गति प्रदान करने वाला – मानव समाज परम्पराओं तथा रूढ़ियों की लीक सदियों तक पीटता रहता है। उसके प्रवाह की गति को मोड़ना सरल नहीं है। रेल के आविष्कार के पूर्व मानव ने अपनी उसी स्थिति से समायोजन कर रखा था। किन्तु रेल के आविष्कार के बाद समाज में एक बड़ा परिवर्तन दिखाई पड़ा। इसी प्रकार अनुन्धान मानव-जीवन को गति देने एवं दिशा-परिवर्तन में अत्यन्त सहायक होता है।

(4) राष्ट्रीयता एवं अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना के विकास में सहायक (Helpful in the Development of the Feeling of Nationality and Internationality) – राष्ट्रीयता की भावना के विकास में शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। किन्तु शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य केवल यहीं तक सीमित नहीं है कि हमारा देश अन्य सभी देशों से श्रेष्ठ है अपितु उनमें वसुधैव कुटुम्बकम् के भाव भी विकसित करना है। इसकी पूर्ति जागरूक प्रयास पर ही निर्भर है। अनुसंधान के अन्तर्गत लोक हितकारी भावनाओं का समन्वय होता है, इसी कारण अनुसंधान से राष्ट्रीयता की भावना को भी आघात नहीं पहुँचता तथा अन्तर्राष्ट्रीयता की कोमल पुष्पलतिका भी पुष्पित होती रहती है। इसी प्रकार, विभिन्न अनुसन्धानों के माध्यम से अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना का विकास भी किया जा सकता है।

(5) जीवन के उद्देश्यों की प्राप्ति के सरल उपाय देता है- उद्देश्यों की पूर्ति हेतु सरल साधनों को प्राप्त करना मानव स्वभाव है। इस मार्ग में अनुसंधान मनोविज्ञान तथा शिक्षा एवं समाज विज्ञान सभी क्षेत्रों में सहायक होता है।

(6) सुधार में सहायक (Helpful in Reformation)- अनुसंधान रूढ़िगत विचारों एवं व्यवहारों में सुधार का मार्ग प्रस्तुत करता है, क्योंकि इसका पथ वैज्ञानिक होता है जिसमें इस प्रकार की भ्रान्तियों एवं अपुष्ट धारणाओं के लिए स्थान नहीं होता।

(7) सत्य-ज्ञान के खोज की जिज्ञासा शान्त करना है- अनुसंधानकर्ता सदैव सत्य-ज्ञान की खोज में व्यस्त रहता है। अतः अनुसंधान उसकी उत्सुकता को शान्त तथा सत्य की खोज की जिज्ञासा को सन्तुष्ट करता है।

(8) प्रशासनिक क्षेत्र में सफलता प्रदान करना (Giving Success in Administrations) – अनुसंधान अनेक प्रशासनिक गुत्थियों को सुलझाकर स्वस्थ प्रशासनिक व्यवस्था के सफल संचालन में सहायक होता है।

(9) अध्यापक के लिए प्राण (Life for Teacher) अध्यापक के लिए तो यह प्राण ही है। अनुसंधान उनकी सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक समस्याओं की समाधान कर प्रगति का पथ प्रशस्त करता है।

दूसरे शब्दों में-

  1. शिक्षा एक उद्देश्यपूर्ण तथा सविचार प्रक्रिया है जिसके द्वारा मानव जीवन से सम्बन्धित विभिन्न क्षेत्रों का पोषण होता है। जॉन डीवी का भी मानना है कि शिक्षा एक प्रगतिशील प्रक्रिया है। प्रगति के अभाव में शिक्षा अपने कर्तव्य को पूर्ण रूप से नहीं निभा सकती है। अतः शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति, परिमार्जन तथा विकास के लिये अनुसंधान की नितांत आवश्यकता है।
  2. वर्तमान समय में हो रहे तीव्र वैज्ञानिक, तकनीकी तथा प्रौद्योगिकी विकास के कारण समाज में व्यापक परिवर्तन आया है। ऐसी स्थिति में शिक्षा को ऐसी भूमिका निभानी चाहिये ताकि परिवर्तित वातावरण के साथ सरलता से समायोजन स्थापित किया जा सके। इस कार्य हेतु शिक्षण-विधियों, शैक्षिक पाठ्यक्रमों, पुस्तकों, अध्यापकों की कार्यशैली, परीक्षाओं के मूल्यांकन आदि में पर्याप्त सुधार लाने की आवश्यकता है। अतः शैक्षिक अनुसंधान (Educational Research) इस कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
  3. विभिन्न प्रकार के विषयों जैसे- समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, इतिहास, अर्थशास्त्र तथा दर्शनशास्त्र आदि में शिक्षा की जड़ें बहुत गहरी हैं। अतः विभिन्न प्रकार के प्रवल सिद्धांतों को सिद्ध करने के लिये शिक्षा के विभिन्न पक्षों पर सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, ऐतिहासिक आर्थिक तथा दार्शनिक प्रभाव को जानने के लिये वैज्ञानिक विधि पर आधारित विभिन्न प्रकार की प्रश्नावलियों तथा मनौवैज्ञानिक परिक्षणों के माध्यम से शैक्षिक अनुसंधान करने की नितांत आवश्यकता है।
  4. शिक्षा में अनुसंधान की आवश्यकता के सम्बन्ध में डा. के.पी. पाण्डेय ( K.P. Pandey) ने कहा है “शिक्षा एक अनुशासन है और हमारी समाजीकरण प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण कारक तत्त्व भी। अनुशासन के रूप में इसके सम्बन्धित ज्ञानकोष में विस्तार एवं सर्वर्द्धन लाना परम आवश्यक है। यह लक्ष्य अनुसंधान के माध्यम से ही प्राप्त हो सकता है। इसके लिए मौलिक अनुसंधान का सहारा लेना पड़ता है।”
  5. शिक्षा के क्षेत्र में अनुशासन, अध्यापन, शिक्षण-विधियों, व्यवस्थापन व नियोजन से सम्बन्धित समस्याओं को दूर करने के लिये भी शैक्षिक अनुसंधान की काफी आवश्यकता है।
  6. शिक्षा को प्रजातांत्रिक स्वरूप प्रदान कर देने के संकल्पों से शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक विस्तार हुआ। जिसके कारण आपसी मतभेद, अनुशासन, विस्तार, भवन आदि से सम्बन्धित अनेक समस्याओं को उत्पन्न किया। अतः इन समस्याओं को हल करने के लिये शिक्षा के क्षेत्र में पर्याप्त अनुसंधान किये जाने की आवश्यकता है ताकि हमारी भावी पीढ़ियाँ अज्ञानता, परम्परा तथा पक्षपातपूर्ण निर्णयों के कारण उत्पन्न होने वाली गलतियों के कुप्रभावों से बच सकें तथा शिक्षा का प्रजातांत्रिक स्वरूप बरकरार रह सके।
  7. शिक्षा सम्बन्धी नवीन नीतियों तथा अभ्यासों को देश में लागू करने से पूर्व आवश्यक है कि शोध द्वारा उसके समस्त पक्षों पर विचार कर लिया जाये। नई शिक्षा नीति 1986 के सन्दर्भ में आधुनिक भारत में शोध की आवश्यकता बहुत अधिक है।
  8. शैक्षिक अनुसंधान उद्देश्य प्राप्ति हेतु सर्वोत्तम साधन प्राप्त करता है। सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक दशाएँ परिवर्तनशील होती हैं। अतएव तदनुसार शिक्षा सिद्धांतों एवं अभ्यासों में संशोधन की आवश्यकता होती है। यह कार्य शोध द्वारा ही किया जा सकता है।
  9. शिक्षा के क्षेत्र में निरन्तर परिवर्तित विचारधारा के कारण भी शिक्षा के क्षेत्र में विस्तृत तथा वैज्ञानिक अनुसंधान कार्य किये जाने की नितांत आवश्यकता है।
  10. शिक्षा के क्षेत्र में मौलिक तथा क्रियात्मक दोनों ही प्रकार के अनुसंधान कार्यों हेतु भी शैक्षिक अनुसंधान (Educational Research) महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
शैक्षिक अनुसंधान (Educational Research)
शैक्षिक अनुसंधान (Educational Research)

शैक्षिक अनुसंधान के उद्देश्य (Objectives of Educational Research)

शैक्षिक अनुसंधान की समस्याओं में विविधता अधिक है इसलिये इसके प्रमुख चार उ‌द्देश्य होते हैं-

(1) सैद्धांतिक उद्देश्य, (2) तथ्यात्मक उद्देश्य, (3) सत्यात्मक उद्देश्य तथा (4) व्यावहारिक उ‌द्देश्य।

इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-

  • सैद्धांतिक उ‌द्देश्य (Theoretical Objective)- शिक्षा अनुसंधान में वैज्ञानिक शोध कार्यों द्वारा नये सिद्धान्तों तथा नये नियमों का प्रतिपादन किया जाता है। इस प्रकार के शोध कार्य व्याख्यात्मक होते हैं। इनके अन्तर्गत चरों के सह-सम्बन्धी की व्याख्या की जाती है। इस प्रकार के शोधकार्यों से प्राथमिक रूप से नवीन ज्ञान की वृद्धि की जाती है, जिनका उपयोग शिक्षा की प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाने में किया जाता है।
  • तथ्यात्मक उद्देश्य (Factual Objective) – शिक्षा के अन्तर्गत ऐतिहासिक शोध कार्यों द्वारा नये तथ्यों की खोज की जाती है। इनके आधार पर वर्तमान को समझने में सहायता मिलती है। इन उद्देश्यों की प्रकृति वर्णनात्मक होती है, क्योंकि तथ्यों को खोज करके, उनका अथवा घटनाओं का वर्णन किया जाता है। नवीन तथ्यों की खोज शिक्षा-प्रक्रिया के विकास तथा सुधार में सहायक होती है।
  • सत्यात्मक उ‌द्देश्य (Establishment of Truth Objective)- दार्शनिक ‘शोध’ कार्यों द्वारा नवीन सत्यों का प्रतिस्थापन किया जाता है। इनकी प्राप्ति अन्तिम प्रश्नों के उत्तरों से की जाती है। दार्शनिक शोध कार्यों द्वारा शिक्षा के उ‌द्देश्यों, सिद्धांतों तथा शिक्षण विधियों तथा पाठ्यक्रम की रचना की जाती है। शिक्षा की प्रक्रिया के अनुभवों का चिन्तन बौद्धिक स्तर पर किया जाता है जिससे नवीन सत्यों तथा मूल्यों का प्रतिस्थापन किया जाता है।
  • व्यावहारिक उद्देश्य (Applicational Objective)- शैक्षिक अनुसंधान के निष्कर्षों का व्यावहारिक प्रयोग होना चाहिये, परन्तु कुछ शोध कार्यों में केवल उपयोगिता को ही महत्व दिया जाता है, ज्ञान के क्षेत्र में योगदान नहीं होता है। इन्हें विकासात्मक अनुसंधान भी कहते हैं। क्रियात्मक अनुसंधान से शिक्षा की प्रक्रिया में सुधार तथा विकास किया जाता है अर्थात् इनका उ‌द्देश्य व्यावहारिक होता है। स्थानीय समस्या के समाधान से भी इस उद्देश्य की प्राप्ति की जाती है।

शैक्षिक अनुसंधान के कार्य (Functions of Educational Research)

शैक्षिक अनुसंधान (Educational Research) के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-

  1. शैक्षिक अनुसंधान का प्रमुख कार्य शिक्षा की प्रक्रिया में सुधार तथा विकास करना है। यह कार्य ज्ञान के प्रसार द्वारा किया जाता है।
  2. शिक्षा की प्रक्रिया के विकास के लिये आन्तरिक प्रयास नवीन ज्ञान में वृद्धि करना तथा वर्तमान ज्ञान में सुधार लाना है। शैक्षिक विकास का सम्बन्ध शिक्षा के विभिन्न पक्षों से होता है-
    1. शिक्षा के विशिष्ट क्षेत्र में ज्ञान में वृद्धि करना, उसमें सुधार करना तथा प्रसार करना है।
    2. शिक्षा की समस्याओं का समाधान करना, छात्रों के अधिगम में विकास करना, शिक्षण की प्रभावशाली प्रविधियों का विकास करना।
    3. शिक्षा प्रशासन तथा शिक्षा-प्रणाली में अनुसंधान प्रक्रिया द्वारा सुधार तथा विकास करना है।

शैक्षिक अनुसंधान (Educational Research) प्रक्रिया द्वारा शिक्षा-प्रणाली को उन्नतशील बनाया जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में शैक्षिक प्रक्रिया के विकास हेतु नवीन प्रविधियों के प्रयोग में शैक्षिक अनुसंधान सहायक होता है।

शैक्षिक अनुसंधान का क्षेत्र
(Scope of Educational Research)

शैक्षिक अनुसंधान के क्षेत्र में शिक्षा-दर्शन, शिक्षा के उद्देश्यों का निर्धारण, इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए नियोजन, व्यवस्थापन संचालन समायोजन, धन-व्यवस्था, शिक्षण-विधि, सीखना और उसे प्रभावित करने वाले तत्व, प्रशासन, पर्यवेक्षण, मूल्यांकन आदि सभी आते हैं। पिछले कुछ वर्षों में मापन एवं मूल्यांकन के क्षेत्र में पर्याप्त खोज की गयी है तथा उसके आधार पर शिक्षा के क्षेत्र में पर्याप्त प्रगति हुई है। सीखने की नयी-नयी विधियों का आविष्कार, सीखने को प्रभावित करने वाले विभिन्न तत्वों की तुलनात्मक महत्ता, छात्रों तथा शिक्षकों के पारस्परिक सम्बन्ध, उनमें अन्तःक्रिया, पाठ्यक्रम, पाठ्य-पुस्तक, सहायक सामग्री और उसका उपयोग, आदि सभी क्षेत्रों में अनुसंधान हो रहे हैं तथा अभी बहुत कुछ और करना है।

डॉ. बुच द्वारा प्रकाशित ‘सर्वे ऑफ एजूकेशन रिसर्चेज इन इण्डिया’ में शैक्षिक अनुसंधान के निम्नलिखित क्षेत्र दिए गये हैं-

(1) शिक्षा दर्शन
(2) शिक्षा का इतिहास
(3) शैक्षिक समाजशास्त्र
(4) सीखने एवं प्रेरणा का मनोविज्ञान
(5) परामर्श एवं निर्देशन
(6) परख एवं मापन
(7) पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियाँ एवं पाठ्य-पुस्तकें
(8) प्रोग्राम द्वारा सीखना
(9) शैक्षिक उपलब्धि के सहचर
(10) मूल्यांकन
(11) अध्ययन और अध्यापक का व्यवहार
(12) शिक्षक शिक्षा
(13) शैक्षिक प्रशासन
(14) शैक्षिक प्रशासनिक वातावरण एवं छात्रों की उपलब्धि पर उसका प्रभाव
(15) वातावरण एवं शिक्षण से सन्तुष्टि
(16) शैक्षिक अर्थशास्त्र
(17) सामाजिक शिक्षा एवं प्रौढ़ शिक्षा
(18) शैक्षिक सर्वेक्षण
(19) तुलनात्मक शिक्षा
(20) शैक्षिक तकनीकी
(21) उच्च शिक्षा
(22) अनौपचारिक शिक्षा
(23) जनसंख्या शिक्षा

इन सभी क्षेत्रों के कुछ पक्षों को लेकर अनुसंधान कार्य हुए हैं और हो रहे हैं। इनमें अधिकांश सर्वेक्षण प्रकार के या सह-सम्बन्धात्मक ही हैं। वास्तव में इनकी उपयोगिता भी कम नहीं है किन्तु प्रयोगात्मक अनुसंधान और भारत के विद्यालयों की परिस्थितियों को ध्यान में रख कर किए गए सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक अनुसंधान का नितान्त अभाव है। इसी प्रकार की स्थिति मनोविज्ञान के क्षेत्र में भी दिखायी पड़ती है।

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