शोध-समस्या का अन्तिम रूप से निर्णय हो जाने के पश्चात् उसके समाधान की प्रक्रिया का आरम्भ अर्थात् शोध-सामग्री का संग्रह किया जाना आरम्भ होता है, परन्तु शोध-सामग्री का संग्रह आरम्भ करने से पूर्व यह निश्चित कर लेना आवश्यक होता है कि इसके लिए किन दिशाओं में जाना होगा। इन दिशाओं की ओर संकेत करने वाले सूत्र उन परिकल्पनाओं में निहित रहते हैं, जिनका निर्माण अनुसंधानकर्ता अपने अध्ययनजनित ज्ञान, कल्पना एवं सृजनशीलता के आधार पर करता है। परिकल्पनाओं के अभाव में उसे शोध सामग्री के संग्रह हेतु इधर-उधर भटकना पड़ेगा, जिससे उसके समय एवं शक्ति का अपव्यय होगा। अतः प्रायः सभी शोधकर्ता यह स्वीकार करते हैं कि जहाँ तक सम्भव हो, अनुसंधान का आरम्भ परिकल्पना (Hypothesis) से ही किया जाना चाहिए, क्योंकि वान डलेन के शब्दों में “परिकल्पनाएँ अनुसंधान पथ में प्रकाश स्तम्भ का कार्य करती हैं”।
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परिकल्पना का अर्थ (Meaning of Hypothesis)
अनुसंधान की प्रक्रिया में समस्या के कथन के तुरंत बाद एक उपयुक्त कल्पना की रचना की आवश्यकता होती है। परिकल्पना (Hypothesis) के अभाव में वैज्ञानिक अध्ययन प्रायः संभव नहीं है। इसका कारण है यह कि समस्या का स्वरूप अधिकतर अत्यधिक विस्तृत तथा विसरित (Diffused) होता है। ऐसी स्थिति में उसके व्यापक क्षेत्र का घटाना व छोटा करना बहुत ही जरूरी होता है, जिससे अध्ययन का स्वरूप, सूक्ष्म तथा गहन हो सके। यदि परिकल्पना द्वारा ऐसा नहीं किया जाता है तो अनुसंधानकर्ता समस्या के अध्ययन के लिए इधर-उधर भटकता रहता है और इस प्रक्रिया में अनेक अनावश्यक आँकड़े इकटठे कर लेता है, क्योंकि परिकल्पना (Hypothesis) के अभाव में समस्या से संबंधित आवश्यकता तथ्यों का उसे स्पष्ट तथा विशिष्ट ज्ञान नहीं होता। वैज्ञानिक ज्ञान केवल घटनाओं का अवलोकन या तथ्यों के एकत्रित करने से ही प्राप्त नहीं होता बल्कि उसके लिए परिकल्पना या उपकल्पना या प्राकल्पना का सहारा लिया जाता है। इसी आधार पर परिकल्पना को पूर्व चिंतन या सामाजिक अनुसंधान की प्राथमिक सीढ़ी भी कहते हैं। परिकल्पना ही वह विचार है जो सामाजिक अनुसंधान को जन्म देता है।
परिकल्पना शब्द अंग्रेजी के हाइपोथेसिस (Hypothesis) शब्द का हिन्दी रूपान्तर है जो दो शब्दों से मिलकर बना है: Hypo जिसका अर्थ है- सम्भावित या जिसकी पुष्टि की जानी है तथा Thesis जिसका अर्थ है- समस्या के समाधान का कथन। इस प्रकार हाइपोथेसिस (Hypothesis) का शाब्दिक अर्थ संभावित कथन से है जो समस्या का समाधान सुझाता है।
परिकल्पना की परिभाषाएँ (Definitions of Hypothesis)
अलग-अलग विद्वानों ने परिकल्पना (Hypothesis) को परिभाषित करने के लिए अपने अलग-अलग ही विचार दिए हैं। जो निम्नलिखित हैं:
जॉन डब्ल्यू० बेस्ट के अनुसार, “परिकल्पना एक विचारयुक्त कथन है जिसका प्रतिपादन किया जाता है और अस्थायी रूप में सही मान लिया जाता है और निरीक्षण प्रदत्तों के आधार पर व्याख्या की जाती है जो आगे शोध कार्यों को निर्देशन देता है।”
“It is a shrewed guess of inference that is formulated and provisionally adopted to explain observed facts or conditions and to guide in further investigation.” -John W. Best
एफ० एन० करलिंगर के अनुसार, “परिकल्पना दो या अधिक चरों के मध्य सम्बन्धों का कथन है।”
“A hypothesis is a conjected statement of the relation between two or more variables.” –F.N.Kerlinger
जॉर्ज जी० मुले के अनुसार “परिकल्पना एक अवधारणा या तर्क वाक्य है जिसकी स्थिरता की परीक्षा उसकी अनुरूपता, उपयोग, अनुभवजन्य प्रमाण तथा पूर्व ज्ञान के आधार पर करती है।”
“Hypothesis is an assumption or proposition whose tenability is to be tested on the basis of the compatibility of its implications with empirical evidence and with previous kowledge.” –George G. Mouley
एडवर्ड्स के अनुसार-“परिकल्पना दो या दो से अधिक चरों के सम्भाव्य सम्बन्ध के विषय मे कथन होता है, यह एक प्रश्न का ऐसा प्रयोग सम्बन्धी उत्तर होता है कि जिससे चरों के सम्बन्ध में उत्तर होता है कि जिससे चरोंके सम्बन्ध का पता लगता है।”
“A hypothesis is a statement of the possible nature of the relationship between two or more variables. It is a tentative answer to the question of what the relationship is.” –A.L. Edward
जेम्स ई० ग्रीटन के अनुसार- “परिकल्पना सम्भावित माना हुआ समस्या का हल होता है जिसकी व्याख्या उस परिस्थिति से निरीक्षण के आधार पर की जा सकती है।”
“Hypothesis is a tentative supposition or provisional guess which seems and explains the situation under observation.” – J.E. Greeton
गुड तथा हैट के अनुसार, “एक परिकल्पना वह बात कहती है जिसे हम आगे सोचते हैं। परिकल्पना सदैव आगे को देखती है। यह एक साध्य होती है जिसकी वैधता हेतु परीक्षण किया जाता है। यह सत्य सिद्ध हो सकती है और नहीं भी हो सकती है।”
“A hypothesis states what we are looking forward. A hypothesis looks forward. It is a proposition which can be put to a test to determine its validity. It may prove to be correct or incorrect.” –Goode and Hatt
टाउनसैण्ड के अनुसार-“परिकल्पना को एक समस्या का संभावित उत्तर के रूप में परिभाषित किया जाता है।”
“A hypothesis is defined as a suggested answer to a problem. – J.C.Townsand
गुड तथा स्केट्स के अनुसार परिकल्पना एक सुविचरित अनुमान या निष्कर्ष होता है जिसे अवलोकित तथ्यों या दशाओं को स्पष्ट करने के लिए एवं अन्वेषण को निर्देशित करने के लिए बनाया जाता है तथा अन्तरिम रूप से अपनाया जाता है।
A hypothesis is a shrewed guess or interence that is formulated and provisionally adopted to explain observed facts a conditions and to guide further investigation. – C.V. Good and D.E. Scates
बार तथा स्केट्स के अनुसार” परिकल्पना एक अस्थायी रूप से सत्य माना हुआ कथन है, जिसका आधार उस समय तक उस विषय अथवा घटना के बारे में ज्ञान होता है और इसे नये सत्य को खोज के लिए आधार बनाया जाता है।”
“A hypothesis is a statement temporarily accepted as true in the light of what is at the time kown about a phenomenon and it is employed as a basis for action in the search for new truth.” – Bar & Scates
डेविड आर. कुक के अनुसार कोई अनुसंधान परिकल्पना किसी सिद्धान्त अथवा पूर्व अनुसंधान पर आधारित अपेक्षित परिणामों का अभिकथन होती है।
A research hypothesis is the statement of expected outcomes that is based on theory or previous research. – David R. Cook.
लुण्डबर्ग के अनुसार “परिकल्पना एक संभावित सामान्यीकरण होता है जिसकी वैधता की जाँच की जाती है। इसकी प्राथमिक अवस्था एक काल्पनिक समाधान के रूप में होती है जो बाद में शोधकार्यों का आधार हो जाता है।”
“A hypothesis is a tentative generalization the validity of which remains to be tested. It is most elementry stage teh hypothesis may be any hunch guess, unaginative idea which becomes the bass of further investigation.” –Lundberg
आर० डी० क्रेमीकियल के अनुसार, “वैज्ञानिक, चिन्तन प्रक्रिया के निर्देशन के लिये परिकल्पनाओं का प्रयोग करता है। जब अपने अनुभवों से यह विदित होता है कि एक तथ्य अन्य तथ्यों के साथ निरन्तर दिखलाई देता है तब हम यह निष्कर्ष निकालते हैं कि वे परस्पर सम्बन्धित हैं और हम इस सम्बन्ध के बारे में एक परिकल्पना का प्रतिपादन करते हैं।”
“Scientists employ hypothesis in guiding the thinking process. When our experience tells us that a given phenomenon follows regularly upon the appearance of certain other phenomena, we conclude that the former is connected with the latter by some sort of relationship and we form an hypothesis concerning this relationship.” –R. D. Kramykial
एफ० जे० मैकगुएन के अनुसार- “दो या दो से अधिक परिवर्तियों के बीच तथ्य युक्त सम्बन्धों के – परीक्षण युक्त कथन को परिकल्पना कहते हैं।”
“A hypothesis is a testable statement of a potential relationship between two or more variables.” – F.J. Mc Guigan
ब्राउन तथा घिशैली के अनसार “परिकल्पना तथ्यात्मक तथा संपत्यात्मक तत्त्वों तथा उनके सम्बन्धों के विषय में एक ऐसा प्रस्ताव होता है कि जिसका उद्देश्य सात तथ्यों तथा अनुभवों से परे के साथ तथा जानकारी में वृद्धि करना होता है।”
“A hypothesis is a propositions about factual and conceptual elements and their relationship that project beyond known facts and experiments for the purpose of farthering understanding.” – Brown and Ghisselly
डी. बी. वान डलेन के शब्दों में परिकल्पनाएँ संस्तुत समस्या समाधान होते हैं जिन्हें सामान्यीकरणों प्रतिज्ञप्तियों के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है।
Hypothesis are suggested problem solutions which are expressed as generalizations or propositions. – D.B. Van Dalen
ब्रूस डब्ल्यू. टकमैन के अनुसार, “परिकल्पना की परिभाषा अपेक्षित घटना के रूप में की जा सकती है जो चरों के माने हुए सम्बन्ध का सामान्यीकरण होता है।”
“A hypothesis then could be defined as an expectation about events based on generalization of the assumed relationship between variables” – Bruce W. Tuckman
चैपलिन के अनुसार अनुसंधान की परिकल्पना एक अभिधारणा होती है जो अन्तरिम स्पष्टीकरण का कार्य करती है।
Hypothesis is an assumption which serves as a tentative explanation. –Chaplin
एम. वर्मा ने अनुसंधान परिकल्पना के अर्थ को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि कोई सिद्धान्त जब औपचारिक व स्पष्टता में किसी परीक्षणीय प्रतिज्ञप्ति के रूप में अभिकथित करके आनुभाविक या प्रयोगात्मक रूप से सत्यापित किया जाता है, तब परिकल्पना कहा जाता है।
Theory when stated as a testable proposition formally and clearly and subjected to empirical or experimental verification is known as hypothesis. – M. Verma
रैबर तथा रैबर के शब्दों में परिकल्पना कोई कथन, प्रतिज्ञप्ति या अभिधारणा है जो किन्हीं तथ्यों के अन्तरिम स्पष्टीकरण का कार्य करती है।
Hypothesis is any statement, proposition or assumption that serves as tentative explanation. – Reber and Reber
वेल्सटर डिक्शनरी के अनुसार “एक प्रस्ताव अवस्था, या सिद्धांत जिसकी कल्पना कदाचित् बिना विश्वास के की गई है, जिससे कि उसके तार्किक परिणामों को जाना जा सके और इस प्रकार ज्ञात या ज्ञातव्य तथ्यों से सम्बन्ध स्थापित किया जा सके। परिकल्पना कहलाता है।”
“A hypothesis is a proposition condition or principle which is assumed, perhaps without berief in oder to drow out, its logical consequences and by this method to test its accord with facts which are known or may be determined.” – Welster’s dictionary
कुछ विशेषज्ञों ने परिकल्पना (Hypothesis) को गणितीय आधार पर प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। इस सन्दर्भ में मनोवैज्ञानिक अनुसंधान विशेषज्ञ जॉन गाटलुनी (John Gatluny) का विचार है कि सभी शोध कार्यों में निम्न तीन तत्त्व विद्यमान होते हैं-
- इकाई (Unit)- जिसके सम्बन्ध में सूचना ग्रहण की जाती है।
- चर (Variable) – जिसके विषय में सूचना ली जा रही है।
- मूल्य (Value) – किसी इकाई में प्राप्त किसी चर के गुण अथवा परिणाम।
अतः उपरोक्त तत्त्वों, के आधार पर यह कहा जा सकता है कि “परिकल्पनाओं चल राशियों के द्वारा कुछ इकाइयों के सम्बन्ध में अनेक विशिष्ट मूल्यों से सम्बन्धित कथन है। यह स्पष्ट करती है कि इकाइयों का सम्बन्ध कितनी और चल राशियों से है।
विद्वानों के द्वारा दी गई परिकल्पना (Hypothesis) की उपरोक्त परिभाषाओं के अवलोकन से स्पष्ट हो जाता है कि परिकल्पना अनुसंधान समस्या के समाधान के बारे में एक अटकल या अनुमान प्रस्तुत करती है जिसे आनुभाविक साक्ष्यों के आधार पर परीक्षित किया जाता है। परिकल्पना को एक सम्भावित समाधान (Probable Solution), प्रस्तावित उत्तर (Proposed Answer), परिगणित अनुमान (Calculated Guess) या घोषणात्मक प्रतिज्ञप्ति (Declarative Proposition) के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
परिकल्पना के गुण (Merits of Hypothesis)
विभिन्न विद्वानों का कहना है कि किसी भी अध्ययन को व्यवस्थित ढंग से तथा वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन करते हुए परिकल्पना का प्रयोग करना आवश्यक होता है। परिकल्पना का मुख्य लाभ एवं कार्य निम्नलिखित हैं :
बरदत एवं घिसौली ने परिकल्पना के निम्नलिखित कार्य बताए हैं:
- यह एक व्याख्या के रूप में समस्याओं का समाधान करती है।
- यह अनुसंधान के लिए एक प्रेरक का काम करती है।
- यह अध्ययन पद्धति के विकास में सहायता करती है।
- यह औद्योगिक विधियों के मूल्यांकन की कसौरी के रूप में होती है।
- यह एक संगठनात्मक शक्ति के रूप कार्य करती है।
- यह समस्या के क्षेत्र को सीमाबद्ध करती है और इससे तर्क शक्ति व आँकड़ों के संग्रह में सहायता प्राप्त होती हैं।
- चरों में विशिष्ट संबंधों की जानकारी प्राप्त होती है।
- सिद्धान्तों की रचना में सहायक होती है।
- इनसे वैज्ञानिक निष्कर्षों एवं तथ्यों की जानकारी मिलती है।
वानडालेन ने परिकल्पना के निम्नलिखित कार्य बताए हैं :
- परिकल्पना द्वारा वैज्ञानिक शोध कार्य किया जा सकता है। यह समस्या का समाधान प्रस्तुत करती है।
- यह समस्या का सीमांकन करती है। शोधकर्ता समस्या के तथ्यात्मक एवं संप्रत्यात्मक तत्त्वों को गहन रूप में समझ सकता है।
- यह शोधकर्ता को निर्देशन देती है एवं कार्य की रूपरेखा प्रस्तुत करती है।
- परिकल्पना तथ्यों की सार्थकता का निर्धारण करती है एवं शोधकर्ता को रचनात्मक कार्यों के लिए प्रोत्साहित करती है।
- परिकल्पना शोध कार्य की दिशा, प्रदत्तों के संकलन में सहायता एवं उपकरण, परीक्षण एवं प्रविधियों के प्रयोग में सहायक होती है।
- परिकल्पना निष्कर्षों को आधार प्रदान करती है।
- शोध परिकल्पनाओं के नए अनुसंधान को प्रोत्साहन मिलता है।
अनुसंधान में परिकल्पना का महत्व (Importance of Hypothesis in Research)
आधुनिक विज्ञानों में परिकल्पनाओं को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है, क्योंकि इसके बिना विज्ञान का अस्तित्व ही संदेह के घेरे में आ जाता है। जहोदा और कुक (Jahoda and Cook) के शब्दों में, “प्राकल्पनाओं का निर्माण तथा प्रामाणिकता वैज्ञानिक अध्ययन का उद्देश्य है।” इससे स्पष्ट है कि परिकल्पना अनुसंधानकर्ता और वैज्ञानिकों को पथभ्रष्ट होने से बचाने के लिए “प्रकाश-स्तंभ” के समान है। परिकल्पना (Hypothesis) का महत्व निम्नलिखित कारणों से स्वयं ही स्पष्ट हो जाएगा :
अनुसंधानकर्ता का मार्गदर्शन (Guide of Researcher) – अनुसंधानकर्ता अपनी अध्ययन वस्तु के संबंध में जो पूर्वज्ञान प्राप्त करता है। वही उसकी परिकल्पना का आधार होता है। उस कल्पना के पूर्वज्ञान के आधार पर अनुसंधानकर्ता को यह जानकारी रहती है कि उसे क्या करना है और किस क्षेत्र में किस सत्य की खोज करनी है। इस प्रकार ‘उपकल्पना’ एक अनुसंधानकर्ता के लिए मार्गदर्शन का कार्य करती है।
अध्ययन में निश्चितता (Definiteness in the Study)- परिकल्पना के द्वारा अध्ययन की सीमा लगभग सुनिश्चित हो जाती है। इसके बन जाने पर अध्ययनकर्ता को यह ज्ञान हो जाता है कि उसे क्या अध्ययन करना है, कितना अध्ययन करना है और कौन से तथ्यों का संकलन करना है। परिकल्पना से यह भी ज्ञात हो जाता है कि अनुसंधान की दिशा क्या है। इससे अनुसंधानकर्ता व्यर्थ के आँकड़े, तथ्यों आदि को एकत्र करने से बच जाता है। इसीलिए कहते हैं कि परिकल्पना धन और समय की बचत करने का एक साधन भी है।
अध्ययन वस्तु की स्पष्टता (Clarity of Research Matter) – परिकल्पना के द्वारा ही अनुसंधानकर्ता अपनी अध्ययन वस्तु का ज्ञान प्राप्त करता है। इसी के द्वारा अध्ययन वस्तु के संबंध में स्पष्ट विचारों को जानने में अनुसंधानकर्ता को सहायता मिलती है, उपकल्पना के द्वारा ही उसे पता चलता है कि उनकी अध्ययन-वस्तु क्या है और उसको क्या करना है और किस क्षेत्र में किस प्रकार से कार्य करना है।
अनुसंधान के क्षेत्र का निर्धारण (Restriction deciding Area of Research)- एक समय में एक अनुसंधानकर्ता विषय से संबंधित सभी पहुलओं का अध्ययन नहीं कर सकता। अतः उसे एक परिकल्पना निर्धारित करनी पड़ती है। परिकल्पना ही अनुसंधानकर्ता के अध्ययन-क्षेत्र की सीमा तय करती है। परिकल्पना की सहायता से वह अध्ययन वस्तु के विशेष क्षेत्र का अध्ययन करता है और ऐसा करके वह उस विशेष क्षेत्र का संपूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लेता है। इस प्रकार परिकल्पना अनुसंधानकर्ता का क्षेत्र सीमित करके उन्हीं बातों पर ध्यान केन्द्रित करती है जो कि शोधकर्ता में पूर्ण सफलता के लिए जरूरी है।
संबंधित तथ्यों के संकलन में सहायक (Helpful in the Collection of Data) – परिकल्पना का निर्माण हो जाने के बाद हम तथ्यों का संकलन मनमाने ढंग से नहीं करते, बल्कि उन्हीं तथ्यों का संकलन करते हैं जो हमारी अध्ययन वस्तु के लिए उपयोगी होते हैं और अनुपयोगी तथ्यों के संकलन में समय बर्बाद होने से बच जाता है। इस प्रकार परिकल्पना हमें संबंधित तथ्यों के संकलन में सहायता प्रदान करती है और इधर-उधर भटकने से बच जाते हैं। पी.वी. यंग के शब्दों में, “परिकल्पना के प्रयोग से उन तथ्यों की अंधी खोज में अंधाधुंध संकलन पर नियंत्रण होता है जो बाद में अध्ययन किए जाने वाली समस्या के लिए अप्रासंगिक हो।”
सत्य की खोज में सहायक (Helpful in Search of Truth) – परिकल्पना अनुसंधानकर्ता को सत्य की खोज करने में सहायता प्रदान करती है। परिकल्पना के निर्माण के बाद अनुसंधानकर्ता परीक्षण द्वारा संबंधित के संबंध में सत्य व असत्य का ज्ञान प्रदान करता है। परिकल्पना (Hypothesis) की सत्यता प्रमाणित हो जाना ही निष्कर्ष की प्राप्ति होता है। असत्य होने पर परिकल्पना को रद्द कर दिया जाता है। इस प्रकार परिकल्पना एक अनुसंधानकर्ता को सत्य की खोज करने में सहयोग देती है। इसके महत्व के बारे में गुड एवं हाट ने लिखा है, “बिना परिकल्पना के अनुसंधान एक अनिर्दिष्ट विचारहीन भटकने के समान है। उसके परिणामों को स्पष्ट अर्थ वाले तथ्यों में नहीं रखा जा सकता है। परिकल्पना सिद्धान्त और ऐसी खोज के बीच में आवश्यक कड़ी है जो अधिक ज्ञान प्राप्त करने में सहायक होती है।”
उपर्युक्त विवरण के बाद हम कह सकते हैं कि परिकल्पना ही सामाजिक अनुसंधान का आधार है, क्योंकि सामाजिक अनुसंधान का आरंभ और अंत इसी से होता है।
परिकल्पना के दोष या सीमाएँ (Demerits or Limitations of Hypothesis)
परिकल्पनाओं का महत्व और उनकी उपयोगिता सर्वविदित है। इसके बिना किसी विज्ञान की कल्पना नहीं की जा सकती। इतना सब होते हुए भी उपयोगिता और सार्थकता की अपनी सीमाएँ हैं, जिनका उल्लंघन करके उनका उपयोग लाभप्रद न होकर परिकल्पना हानिकारक भी हो सकती है।
कभी-कभी अनुसंधानकर्ता परिकल्पना में प्राप्त तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर अपने लाभ के अनुसार संकलित करता है। यह प्रवृत्ति घातक होती है और परिकल्पना के प्रयोग का दोष कहीं जाती है। यदि दोषपूर्ण ढंग से परिकल्पना का प्रयोग किया जाएगा तो उससे परे अनुसंधान का उद्देश्य ही चौपट हो जाता है। इसी के संबंध में विद्वानों के विचार इस प्रकार हैं:
वैस्टावे के अनुसार, “परिकल्पनाएँ वे लोरिया हैं जो गाना गाकर सुला देती हैं।” (“Hypothesis are the cradle songs which bull the unway to sleep.”-Westaway)
विवासी के अनुसार, “जागृत रहो, आँखें खोलकर वास्तविक तथ्यों को उनके वास्तविक रूप में देखो और उन्हीं के आधार पर परिकल्पनाओं की जाँच करो।”
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि परिकल्पनाओं के अन्दर अपनी ओर से कोई परिवर्तन नहीं करना चाहिए और इसका प्रयोग सावधानीपूर्वक करना चाहिए, अन्यथा वह लाभदायक होने की अपेक्षा हानिकारक भी हो सकती है।
परिकल्पनाओं की कुछ सीमाएँ हैं जो निम्नलिखित हैं-
- अनुसंधानकर्ता परिकल्पना को ही अंतिम पथ प्रदर्शक मानकर तथ्यों को एकत्रित करने लगता है। अनुसंधान की यह प्रवृत्ति वैज्ञानिक विरोधी है।
- कई बार अनुसंधानकर्ता अपनी नासमझी या अनुभव की कमी के कारण ऐसे तथ्यों को इकट्ठा करने लगता है, जो अंत में शोध कार्य के लिए लाभप्रद नहीं रहते।
- वास्तविक तथ्यों के आधार पर परिकल्पना को प्रस्तुत न करके अनुसंधानकर्ता तथ्यों को अपने हिसाब से परिवर्तित करके प्रस्तुत करता है तो उससे परिकल्पना के प्रयोग से शोधकार्य का उद्देश्य चौपट हो सकता है।
- अध्ययनकर्ता अपनी रुचि के अनुकूल ही अपना दृष्टिकोण भी बना लेता है जो इसके अध्ययन को अवश्य ही प्रभावित करता है। इसी कारण परिकल्पना में हमेशा तटस्थता तथा वैषयिकता (Objectivity) हमेशा नहीं रह पाती।
- वेस्टोन (Weston) के अनुसार, “अनुसंधानकर्ता की परिकल्पना में ही नहीं खो जाना चाहिए, बल्कि अपने लक्ष्य के प्रति सर्तक रहना चाहिए।”
परिकल्पनाओं के स्रोत (Sources of Hypothesis)
परिकल्पना के अनुसंधानकर्ता के विचारों का फल है इसलिए यह कहा जा सकता है कि परिकल्पना का स्रोत खुद अनुसंधानकर्ता होता है परन्तु कुछ शिक्षाशास्त्रियों का कहना है कि परिकल्पना को स्रोतों में अनुसंधानकर्ता के अध्ययन को प्रभावित करने वाली सामग्री व उसके सांस्कृतिक और सामाजिक पर्यावरण को सम्मिलित किया जाना चाहिए।
गुड व हाट (Goode & Hatt) ने अपनी कृति Methods in Social Research में उपकल्पनाओं के चार मुख्य स्रोत बताये है जो निम्नलिखित हैं-
- वैज्ञानिक विचारधाराएँ (Scientific thoughts)
- सामान्य सांस्कृतिक तत्व (General Cultural Element)
- सादृश्य/उपमा (Analogy)
- व्यक्तिगत अनुभव (Personal Experience)
(1) वैज्ञानिक विचारधाराएँ (Scientific thoughts): गुडे व हाट (Goode & Hatt) का कहना है कि वैज्ञानिक सिद्धांतों और विचारधाराओं के आधार पर ही अनुसंधानकर्ता व वैज्ञानिक अपनी उपकल्पनाओं का निर्माण करता है। जिस प्रकार एक वैज्ञानिक सिद्धांतों के आधार पर सत्य की खोज करता है उसी प्रकार एक अनुसंधानकर्ता भी सिद्धांतों को आधार मानकर विभिन्न सामाजिक समस्याओं का अध्ययन करता है यदि सिद्धांत में यह वर्णन किया गया है कि “परिवारिक विघटन के कारण बच्चे बाल अपराधी बनते हैं” तो इसी सिद्धांत के आधार पर अनुसंधानकर्ता कह सकता है कि यदि किसी राज्य में परिवारिक विघटन बढ़ेगा तो उस राज्य में बाल अपराधी भी बढ़ेंगे। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सिद्धांत ही उपकल्पना को जन्म देते हैं।
(2) सामान्य सांस्कृतिक तत्त्व (General Cultural Element): परम्पराएँ, लोकविश्वास, प्रथाएँ, लोकरीतियाँ हमारी परिकल्पना के मुख्य सांस्कृतिक स्रोत हैं यदि हमारे समाज पर भौतिक संस्कृति का बोल बाला है तो हमारी परिकल्पना में भी इसका प्रभाव स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। यदि हमारी संस्कृति अध्यात्मिकवाद से प्रभावित है तो हमारी परिकल्पना में भी अध्यात्मिकवाद का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देगा। सामान्य सांस्कृतिक तत्त्वों के प्रभाव के कारण ही पाश्चात्य जगत के अनुसंधानकर्ताओं की उपकल्पनाओं में भौतिकवाद और भारतीय अनुसंधाकर्ताओं की उपकल्पनाओं में अध्यात्मिकवाद का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है
(3) सादृश्य या उपमा (Analogy): “उपमा परिकल्पनाओं के निर्माण तथा घटना में किसी काम चलाऊ नियम की खोज में अत्यन्त उपयोगी पथ प्रदर्शक है” कभी-कभी दो तथ्यों के बीच की समानता के कारण नई परिकल्पनाओं का जन्म होता है जब हम वस्तुओं की प्रकृति देखकर उसी प्रकृति को अन्य वस्तुओं व प्राणियों पर लागू करते हैं तो हम उसे उपभा या सादृश्य कहते हैं। इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। समाज की ‘इकोलाजिकल थियरी’ का मूल आधार वनस्पतिशास्त्र है। इसमें यह बात देखी गयी है कि बहुत से पौधे एक ही विशेष स्थान पर उगते हैं इसलिए इस आधार पर कल्पना की गयी कि मानव समाज में भी इस प्रकार को भौगोलिक केन्द्रीयकरण के लक्षण, पाये जाते हैं।
(4) व्यक्तिगत अनुभव (Personal Experience)- हर व्यक्ति के व्यक्तिगत अनुभव भी परिकल्पना के निर्माण में सहायक होते हैं। प्रायः तथ्य तो रहते ही हैं परन्तु उन्हें एक विशेष दृष्टिकोण से ही देखकर वैज्ञानिक या अनुसंधानकर्ता नयी परिकल्पना को जन्म देता है। उदाहरण के लिए न्यूटन से पहले पेड़ से सेब गिरना किसने नहीं देखा था, परन्तु उसके आधार पर गुरुत्वाकर्षण की कल्पना केवल उसी का काम था।
परिकल्पना के निर्माण में कठिनाइयाँ (Problems in Formulation of Hypothesis)
परिकल्पनाओं के निर्माण में निम्नलिखित कठिनाइयों के सामना करना पड़ता हैं-
(1) सामाजिक घटनाओं की प्रकृति से संबंधित कठिनाई (Problem Related to the Nature of Social Phenomena)- सामाजिक घटनाओं की प्रकृति अधिकतर जटिल होती है। इसीलिए इनके बारे में भविष्यवाणी करना अत्यंत कठिन कार्य है।
(2) सामाजिक परिवर्तन के कारण समस्या (Problem due to Social Change)- सामाजिक जीवन स्थिर न होकर गतिशील होता है अर्थात् समाज में सामाजिक परिवर्तन होते रहते हैं। परिवर्तन के बाद किसी भी सामाजिक घटना के बारे में पूर्वानुमान गलत सिद्ध हो जाता है।
(3) सांस्कृतिक एकीकरण (Cultural Integration)- प्रत्येक समाज की संस्कृति भिन्न-भिन्न होती है। अनुसंधानकर्ता सांस्कृतिक विशेषताओं को ध्यान में रखकर परिकल्पना का निर्माण करता है। संचार तथा यातायात की सुविधा के कारण एक समाज दूसरे समाज के सम्पर्क में आता रहता है और उनकी संस्कृति प्रभावित होती जाती है। इस सांस्कृतिक अस्थिरता के कारण परिकल्पनाओं के निर्माण में कठिनाइयाँ पैदा होती हैं।
(4) तत्कालीन सिद्धान्त (Present Theories)- कई प्रकार की उपकल्पनाओं के निर्माण प्रचलित सिद्धान्तों के आंधार पर किए गए हैं, लेकिन सिद्धान्तों की व्यावहारिकता का ज्ञान न होने के कारण कभी-कभी परिकल्पनाओं को छोड़ना पड़ता है।
(5) अनुसंधानकर्ता में कुशलता का अभाव (Lack of Skills in Researcher) – व्यावहारिक परिकल्पनाओं के निर्माण में यह सबसे बड़ी कठिनाई है कि कई बार हर तरह की सुविधाएँ उपलब्ध होने पर भी अनुसंधानकर्ता की अकुशलता के कारण वह अच्छी परिकल्पना का निर्माण नहीं कर सकता है। व्यावहारिक एवं शुद्ध परिकल्पना के निर्माण में तो अनुसंधानकर्ता की कुशलता का होना आवश्यक है।
(6) नई अनुसंधान प्रणालियों का ज्ञान न होना (No Knowledge of New Research Technique)-आज के आधुनिक अनुसंधानकर्ता को नई प्रणालियों का ज्ञान नाममात्र का ही है। इसके कारण न तो वे अपनी पुरानी परिकल्पनाओं के नियम बना पा रहे हैं और न ही उसकी नई के प्रति आस्था है। ऐसी स्थिति में उन्हें परिकल्पना के निर्माण तथा उसकी उपयोगिता में कठिनाई आती है।
(7) पक्षपात की भावना (Feeling of Biasedness) – सामाजिक अनुसंधानकर्ता स्वयं एक समाज एवं समुदाय का सदस्य होता है तथा अपनी संस्कृति तथा समुदाय के प्रति उसकी निष्ठा स्वाभाविक ही होती है। यह निष्ठा किसी सामाजिक विषय में बारे में सही एवं निष्पक्ष परिकल्पना के निर्माण में बाधक बनती है।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि परिकल्पना एक ऐसी अनुसंधान योजना है जिसके अंतर्गत अनुसंधान संबंधी सभी कार्य वैज्ञानिक ढंग से किए जाते हैं। लेकिन इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि परिकल्पना कितनी सरल और समस्या से संबंधित है तथा ये तथ्यों को एकत्रित करने में तथा उनकी जाँच करने में कितनी व्यावहारिक है।