मारिया मॉन्टेसरी का शिक्षा दर्शन (Maria Montessori’s Philosophy of Education)

डॉ. मारिया मॉन्टेसरी का जन्म 1870 ई. में इटली के अन्कोना प्रदेश के शियारैवल नगर में हुआ था। 1894 ई. में मारिया मॉन्टेसरी ने रोम विश्वविद्यालय से एम.डी. की उपाधि प्राप्त की तथा उसी वर्ष इस विश्वविद्यालय के चिकित्सा विभाग में सहायक चिकित्सक का कार्यभार सँभाला। यहाँ इन्हें दिव्यांग और मन्दबुद्धि बालकों की चिकित्सा का कार्यभार सौंपा गया जिसकी वजह से इन्हें उनकी समस्याओं की जानकारी हुई। इन्होंने ऐसे बच्चों की समस्याओं का समाधान करने के लिए एक विशेष प्रकार की शिक्षा की आवश्यकता का अनुभव किया। साथ ही ऐसे बालकों के विकास में माता-पिता की भूमिका की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया। 1906 ई. में इटली की सरकार ने इन्हें बालघर की अध्यक्ष नियुक्त किया यहाँ उन्हें दिव्यांग एवं मंदबुद्धि बालकों की शिक्षा सम्बन्धी अपने विचारों को मूर्त रूप देने का अवसर मिला। मॉन्टेसरी ने बच्चों की शिक्षा सम्बन्धी अनेक ग्रन्थों की रचना की, जिनमें मॉन्टेसरी मैथड, द सीक्रेट ऑफ चाइल्डहुड, एजुकेशन फॉर ए न्यू वर्ड, द डिस्कवरी ऑफ चाइल्ड टू एजुकेट माइन्ड एवं चाइल्ड ट्रेनिंग उल्लेखनीय है। मॉन्टेसरी का 1952 ई. में देहावसान हो गया। शिक्षा के क्षेत्र में मॉन्टेसरी ने केवल दिव्यांग और मन्दबुद्धि के बालकों की शिक्षा के बारे में कार्य किया तथा शिशु शिक्षा एवं शिशु मनोविज्ञान के संदर्भ में मॉन्टेसरी प्रणाली का विकास उल्लेखनीय है संक्षेप में उनका शिक्षा दर्शन अधोलिखित है-

मारिया मॉन्टेसरी के अनुसार शिक्षा का अभिप्राय

मॉन्टेसरी की मान्यता थी कि जन्म के समय मानव शिशु शारीरिक दृष्टि से पशु शिशुओं से कम विकसित होता है किन्तु उसमें विकास की संभावनाएँ अधिक होती है। शिक्षा मनुष्य की इन जन्मजात क्षमताओं के विकास में सहयोगी होती है। मनुष्यों में परिस्थितियों के अनुरूप समायोजन करने की क्षमता विकसित की जा सकती है।

मारिया मॉन्टेसरी के अनुसार वास्तविक शिक्षा वह प्रक्रिया है जो मनुष्य की जन्मजात क्षमताओं का विकास करके उसे नई-नई परिस्थितियों में समायोजन करने के योग्य बनाती है और उसे भावी जीवन की तैयारी के लिए सक्षम बनाती है।

मारिया मॉन्टेसरी के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य

मारिया मॉन्टेसरी ने शिशु शिक्षा के निम्नांकित उद्देश्य बताए हैं-

1. शिशुओं की जन्मजात क्षमताओं के विकास में सहायता करना तथा उनकी कर्मेन्द्रियों, ज्ञानेन्द्रियों एवं बुद्धि का विकास करना।
2. शिशुओं को अपने पर्यावरण का ज्ञान कराते हुए उनमें समायोजन की क्षमता विकसित करना।
3. शिशुओं को भावी जीवन के लिए तैयार करना।
4. शिशुओं का नैतिक विकास करना तथा उन्हें सेवा भाव सिखाना।

शिक्षा की पाठ्यचर्या

मारिया मॉन्टेसरी के अनुसार शिशुओं की पाठ्यचर्या उनकी नैसर्गिक योग्यताओं, रुचि एवं आवश्यकताओं के अनुरूप होनी चाहिए। उन्हें अपने जीवन एवं पर्यावरण से सम्बन्धित वास्तविक ज्ञान एवं कौशल प्रदान किया जाना चाहिए। उन्होंने शिशु शिक्षा योजना के अन्तर्गत शिशुओं के दैनिक कार्यों, प्रकृति निरीक्षण, क्रियात्मक एवं रचनात्मक खेल, भाषा तथा गणित को ही सम्मिलित किया है।

मारिया मॉन्टेसरी का शिक्षा दर्शन (Maria Montessori's philosophy of education)
मारिया मॉन्टेसरी का शिक्षा दर्शन (Maria Montessori’s philosophy of education)

मारिया मॉन्टेसरी के अनुसार शिक्षण विधियाँ

मारिया मॉन्टेसरी ने मन्दबुद्धि एवं दिव्यांग शिशुओं के शिक्षण हेतु मॉन्टेसरी प्रणाली को उचित माना है। मॉन्टेसरी प्रणाली के सिद्धान्त एवं कार्यविधि अधोलिखित है-

1. शिशुओं की मांसपेशियों को पुष्ट किया जाना चाहिए क्योंकि हमारी सभी शारीरिक और मानसिक चेष्टाएँ हमारी मांसपेशियों पर निर्भर है। इस हेतु उन्होंने मॉन्टेसरी स्कूलों में दैनिक कार्यों के स्वयं सम्पादन, खेल-कूद और शैक्षिक उपकरणों के प्रयोग की व्यवस्था पर बल दिया है।

2. भिन्न-भिन्न ज्ञानेन्द्रियों के प्रशिक्षण हेतु भिन्न-भिन्न पदार्थों का प्रयोग किया जाए जिससे शिशु इन्हें देखकर, सूँघकर, चखकर और स्पर्श करके अपनी आँख, नाक, जिहवा और त्वचा ज्ञानेन्द्रियों को क्रियाशील कर प्रशिक्षित कर सके।

3. शिशुओं के सम्मुख ऐसा पर्यावरण उपस्थित किया जाए जिससे वे स्वयं उसे जानने की दिशा में अग्रसर हो सके जिसे आप सिखाना चाहते हैं। मॉन्टेसरी ने स्वयं से प्रेरित होकर सीखने को आत्म शिक्षा कहा है।

4. शिशुओं को अपनी योग्यता एवं क्षमता के अनुसार बढ़ने के अवसर प्रदान करने चाहिए। मॉन्टेसरी स्कूलों में यह कार्य शैक्षिक यंत्रों की सहायता से किया जाना चाहिए।

5. प्रत्येक शिशु की योग्यता और क्षमताओं में भिन्नता होती है। उनकी रुचि और आवश्यकताओं में भी भिन्नता होती है अस्तु शिशुओं को उनकी योग्यता, क्षमता, रुचि एवं आवश्यकता के अनुसार सीखने का अवसर दिया जाना चाहिए जिससे उनका वैयक्तिक विकास संभव हो सके। अध्यापिकाओं को इसमें शिशुओं की वैयक्तिक सहायता करनी चाहिए।

6. मारिया मॉन्टेसरी की मान्यता है कि प्रत्येक बालक में कुछ जानने की जिज्ञासा अकस्मात उत्पन्न होती है जिसे उसने मनोवैज्ञानिक क्षण कहा है। इन क्षणों में उन्हें वह सब सीखने और जानने के लिए पर्यावरण देना चाहिए जिससे उनकी जिज्ञासा तथा आवश्यकताओं की संतुष्टि संभव हो सके।

7. बालक स्वतंत्रता प्रेमी होते हैं। अतः उन्हें अपनी इच्छा और अपनी गति से सीखने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए। मॉन्टेसरी की मान्यता थी कि स्वतंत्र पर्यावरण में बच्चों का स्वाभाविक विकास होता है, उनमें आत्मसम्मान की भावना विकसित होती है तथा वे स्वावलम्बी बनते हैं। यदि उन पर कठोर नियंत्रण रखा जाता है तो उनके व्यक्तित्व का विकास अवरुद्ध हो जाता है। अस्तु बालकों को स्वेच्छा से कार्य करने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए।

8. यह मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि सीखने में बच्चे जितने अधिक क्रियाशील होंगे, उतनी ही तीव्रगति से सीखेंगे। बच्चों को खेल-खेल में सिखाना सबसे उपयुक्त शिक्षण पद्धति है।

9. मारिया मॉन्टेसरी की मान्यता थी कि अनुशासन एक आन्तरिक प्रेरक है जिसे किसी बाहरी दबाव से नहीं अपितु बाह्य प्रेरणा से विकसित किया जा सकता है। बालकों में वास्तविक अनुशासन विकसित करने के लिए सामाजिक पर्यावरण और सामाजिक कार्यों का सर्वाधिक महत्व है। बालक अनुकरण से नहीं अपितु अपने तर्क को अपनाता है अतः उन्होंने तार्किक अनुशासन के सिद्धान्त को अपनाने पर बल दिया है।

मॉन्टेसरी प्रणाली में उपयोग किए जाने वाले उपकरण

1. घरेलू उपकरण- मंजन, तेल, साबुन, झाड़न, तौलिया, कंघा, शीशा, जूते की पॉलिश-ब्रश, सुई-धागा, कैंची, खाना बनाने की सामग्री, बर्तन और बर्तन साफ करने का पाउडर।

2. शैक्षिक उपकरण- श्यामपट्ट, चॉक, डस्टर आदि।

3. शैक्षिक यंत्र – मारिया मॉन्टेसरी की मान्यता थी कि शैक्षिक यंत्र ऐसे हो जिनमें बच्चे रुचि लें, उससे उनकी कर्मेन्द्रियाँ मजबूत हों और उनकी ज्ञानेन्द्रियाँ प्रशिक्षित हो सके। ऐसे यंत्रों में बेलन, छोटे-बड़े आकार के घन, छोटे-बड़े आयताकार ठोस लकड़ी का तख्ता जिस पर भिन्न-भिन्न प्रकार के छेद हो, चिकनी – खुरदरी सतह वाले ठोस, विभिन्न रंगों की लकड़ी की टिकियाएँ, भिन्न-भिन्न प्रकार के ठोस, विभिन्न प्रकार की ध्वनि देने वाली घंटियाँ, भिन्न–भिन्न स्वाद वाले खाद्य पदार्थ- नमक, मिर्च, खटाई, मिठाई आदि, भिन्न-भिन्न प्रकार के सुगन्धित पदार्थ, लकड़ी या कार्डबोर्ड से बने अक्षर, विभिन्न प्रकार के चित्र, अंकों के कार्ड, गिनती के लिए छोटे-छोटे लकड़ी के टुकड़े, ड्राईंग बुक, रंगीन पेन्सिलें आदि।

इन उपकरणों को प्रयुक्त करने का मुख्य उद्देश्य कर्मेन्द्रियों एवं ज्ञानेन्द्रियों को प्रशिक्षित करना, भाषा और गणित का ज्ञान कराना है। विद्यालयों में बच्चों के लिए खेल का सामान भी होना चाहिए। मनोरंजन के लिए गाने-बजाने के साधन भी होने चाहिए।

मॉन्टेसरी पद्धति में शिक्षण-व्यवस्था

1. कर्मेन्द्रियों की शिक्षा – शिशुओं की कर्मेन्द्रियों को सुदृढ़ करने के लिए बच्चों को सफाई करने, फर्नीचर सजाने, जूतों की पॉलिश करने, हाथ-मुँह धोने, स्नान करने, कपड़े पहनने, बाल बनाने, खाना परोसने, खाना खाने, बर्तन साफ करने का अवसर दिया जाता है। साथ ही बागवानी, खेल-कूद और व्यायाम में भाग लेने का अवसर दिया जाता है। इन क्रियाओं से मांसपेशियाँ मजबूत होती है तथा कर्मेन्द्रियाँ सुदृढ़ होती हैं।

2. ज्ञानेन्द्रियों द्वारा शिक्षा- मारिया मॉन्टेसरी ने भिन्न-भिन्न ज्ञानेन्द्रियों के प्रशिक्षण के लिए भिन्न-भिन्न शिक्षा – उपकरणों का निर्माण किया, यथा – चक्षुन्द्रिय, श्रवणेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, स्वादेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय के लिए भिन्न-भिन्न उपकरण बनाकर ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से बालकों की शिक्षा देने का उपबन्ध किया। इन शैक्षिक यंत्रों के प्रयोग में बालकों को अपनी कर्मेन्द्रियों का भी प्रयोग करना होता है।

3. भाषा एवं गणित की शिक्षा- मॉन्टेसरी पद्धति में बालकों को सर्वप्रथम लिखना सिखाया जाता है जिसके लिए लकड़ी या गत्ते के बने अक्षरों, अंकों का प्रयोग किया जाता है। ऐसा करते समय वे शिक्षिकाओं के साथ उच्चारण भी करते हैं जिससे वे उच्चारण करना भी सीख जाते है। बालक व्यावहारिक क्रियाओं में भाग लेते हुए भाषा व गणित व्यावहारिक रूप से सीख जाते हैं।

मारिया मॉन्टेसरी के शिक्षा-दर्शन सम्बन्धी अन्य विचार

1. मॉन्टेसरी की मान्यता थी कि शिशुओं को स्कूलों में ऐसा पर्यावरण दिया जाए कि वे कुछ भी करने के लिए पूर्ण स्वतंत्र हों। इससे वे वास्तविक अनुशासन की ओर प्रवृत्त होंगे। इस प्रकार के अनुशासन को उन्होंने तार्किक अनुशासन की संज्ञा दी है।

2. मारिया मॉन्टेसरी के शिक्षकों को अत्यन्त संवेदनशील, मातृतुल्य व्यवहार करने वाला होना चाहिए। इस हेतु वे महिला शिक्षिकाओं की नियुक्ति के पक्ष में थीं क्योंकि वे शिशुओं की समस्याओं को अपेक्षाकृत अधिक अच्छा समझती हैं। शिक्षिकाओं को चाहिए कि वे बालकों को स्वाभाविक रूप से सीखने में सहायता करें, उनके कार्य में बाधा न डालें, उपयुक्त परिस्थितियों का सृजन करने में सहयोग करें तथा निर्देशक के रूप में कार्य करें।

3. बालकों को अपने विकास के लिए पूर्ण एवं स्वतंत्र अवसर देना चाहिए। बालकों की शिक्षा की सम्पूर्ण योजनाएँ उनकी नैसर्गिक योग्यताओं, रुचियों एवं आवश्यकताओं के अनुरूप होनी चाहिए।

4. विद्यालय बालगृह जैसे होने चाहिए। स्कूल में एक बड़ा कक्ष तथा अन्य छोटे-छोटे कक्ष होने चाहिए। स्कूलों में निर्धारित साज-सज्जा जिनमें घरेलू उपकरण, शैक्षिक उपकरण एवं शैक्षिक यंत्र सम्मिलित हैं, अवश्य होने चाहिए। कक्षा-कक्षों में ताजी हवा और सूर्य के प्रकाश की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।

5. मारिया मॉन्टेसरी ने केवल दिव्यांग एवं मन्दबुद्धि के बालकों की शिक्षा के संदर्भ में ही अपनी शिक्षण व्यवस्था की बात कही है, ये लड़के-लड़कियाँ दोनों हो सकते हैं।

6. मारिया मॉन्टेसरी ने शिक्षा का उद्देश्य वास्तविक जीवन की तैयारी माना है। जिससे यह प्रतिध्वनित होता है कि वे बालकों को व्यावसायिक शिक्षा देने की पक्षधर थीं।

7. उन्होंने बालकों को नैतिक शिक्षा देने का समर्थन किया है।

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