शिक्षण सूत्र (Maxims of Teaching) एवं शिक्षण के सिद्धांत (Teaching Principles)

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शिक्षण सूत्र
(Maxims of Teaching)

शिक्षण के क्षेत्र में विभिन्न शोधों के आधार पर समय-समय पर अनुभवी शिक्षकों, मनोवैज्ञानिकों तथा शिक्षाशास्त्रियों ने अपने-अपने अनुभवों को सूत्र रूप में प्रस्तुत किया है। इन्ही सूत्र रूप में दिए गए अनुभवों को शिक्षण-सूत्र कहा गया। इनका प्रयोग करके शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया अधिक प्रभावशाली तथा वैज्ञानिक बन जाती है। शिक्षण सूत्र को निम्न श्रेणियों में विभाजित किया गया है:

शिक्षण सूत्र (Maxims of Teaching)

सरल से जटिल की ओर (From Simple to Complex)

पाठ्य सामग्री को संगठित करते एवं कक्षा अनुदेश के समय शिक्षक को चाहिए कि वह सरल प्रत्यय विद्यार्थियों को पहले बताएं, फिर क्रमानुसार जटिलतर प्रत्ययों को, ताकि उनकी रुचि बनी रहे। शिक्षक आस-पास के उदाहरण से विषय को प्रारम्भ कर सकता है।

ज्ञात से अज्ञात की ओर (From Known to Unknown)

छात्रों को पहले वो बातें बतानी चाहिए, जिनका छात्रों को पूर्व ज्ञान है। फिर उसे आधार बना कर उनका संबंध नवीन ज्ञान से करना चाहिए। इस लिए शिक्षक पहले पढ़ाए हुए विषय-वस्तु को कक्षा में संक्षिप्त रूप से बता सकता है, या कुछ उदाहरण देता है।

मूर्त से अमूर्त की ओर (From Concrete to Abstract)

शिक्षण के प्रारम्भ में छात्रों को पहले सरल तथा मूर्त पदार्थों के विषय में ज्ञान देना चाहिए, बाद में उन्हें अमूर्त या सूक्ष्म तथ्यों के विषय में जानकारी देनी चाहिए। प्रतिमान या चार्ट के सहारे किसी वस्तु का वर्णन करना सरल होता है।

अनिश्चित से निश्चित की ओर (From Indefinite to Definite)

शिक्षण के प्रारम्भ में छात्रों के विचारों में अस्पष्टता होती है, धीरे-धीरे उनमें परिपक्वता आती है। शिक्षक का कार्य उनकी शंकाओं का निवारण करना होता है।

विशेष से सामान्य की ओर (From Particular to General)

पहले छात्रों के सामने विशिष्ट उदाहरण प्रस्तुत किए जाएँ और बाद में उन्हीं उदाहरणों (या दृष्टांतो) के माध्यम से सामान्य सिद्धांत (general principles) स्थापित किए जा सकते हैं। इसको आगमनात्मक तर्क (inductive reasoning) भी कहा जा सकता है।

मनोवैज्ञानिक से तार्किक की ओर (From Psychological to Logical)

पहले वह पढ़ाया जाए जो छात्रों की योग्यता एवं रुचि के
अनुकूल हो,  तत्पश्चात्  विषय-सामग्री के तार्किक क्रम पर ध्यान दिया जाए।

विश्लेषण से संश्लेषण की ओर (From Analysis to Synthesis)

विश्लेषण व संश्लेषण दोनों एक-दूसरे के पूरक होते हैं, ये दोनों ही छात्रों को स्पष्ट एवं निश्चित तथा सुव्यवस्थित ज्ञान देने में सहायक है। एक अच्छा शिक्षक पहले छात्रों को किसी विषय-वस्तु के विभिन्न पहलुओं से अवगत करवाता है, जिसे विश्लेषण कहा जाता है, फिर संश्लेषण के द्वारा उस ज्ञान को व्यवस्थित करके स्थायित्व प्रदान करता है।

पूर्ण से अंश की ओर (From Whole to Parts)

गेस्टाल्ट (Gestalt) या समष्टि मनोवैज्ञानिकों के अनुसार पहले पूर्ण का संज्ञान होता है और बाद में उसके अंशों का। पहले हम वृक्ष को देखते हैं और फिर उसकी तना, शाखायें, पत्ते, इत्यादि। कहने का भाव यह है कि शिक्षण में पहले विषय-वस्तु को पूर्ण रूप से छात्रों के सामने रखा जाए और फिर धीरे-धीरे उसके विभिन्न भागों के विषय में ज्ञान दिया जाए, तो शिक्षण ज्यादा प्रभावशाली सिद्ध होगा।

प्रकृति का अनुसरण (Follow the Nature)

छात्रों को उनकी प्रकृति के अनुसार शिक्षा दी जाए, जहाँ तक संभव हो शिक्षा प्राकृतिक वातावरण में हो। यह सिद्धांत भाषाओं की शिक्षा प्रदान करने में और भी ज्यादा अनुकरणीय हो जाता है।

इंद्रियों का प्रशिक्षण (Training of Senses)

मांटेसरी ओर फ्रोबेल इस सिद्धांत के मुख्य प्रतिपादक हैं, हमारी पाँच इंद्रियाँ- आँख, कान, नाक, जिह्वा और त्वचा को ‘ज्ञान के प्रवेशमार्ग’ (doors to knowledge) भी बताया गया है। शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में इनमें से सबका अधिकतम उपयोग करना चाहिए। श्रव्य-दृश्य उपकरणों का उपयोग इसी उद्देश्य से किया जाता है।

शिक्षण के सिद्धांत
(Teaching Principles)

शिक्षण विधियाँ दो प्रकार के सिद्धांतों पर आधारित होती हैं-

(1) सामान्य सिद्धांत और 
(2) मनोवैज्ञानिक सिद्धांत।

सामान्य सिद्धांत (General Principles)

सामान्य सिद्धांत को निम्न श्रेणियों में विभाजित किया गया है:

प्रेरणा का सिद्धांत (Principle of Motivation)

यह छात्रों के बीच नई बातें जानने की जिज्ञासा पैदा करता है।

गतिविधि का सिद्धांत (Principle of Activity)

फ्रॉबेल की किंडरगार्टेन की अवधारणा (Froebel’s Kindergarten concept) इसी पर आधारित है। यह शारीरिक और मानसिक दोनों गतिविधियों को शामिल करता है।

रुचि का सिद्धांत (Principle of Interest)

शिक्षार्थी के समुदाय बीच वास्तविक रुचि पैदा करके शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया की प्रभावशीलता को बढ़ाया जा सकता है।

जीवन के साथ जोड़ने का सिद्धांत (Principle of Linking with Life)

जीवन एक निरंतर अनुभव है और शिक्षण अधिक स्थाई रूप से जीवन के साथ जुड़ा हुआ है।

निश्चित उद्देश्य का सिद्धांत (Principle of Definite Aim)

यह सिद्धांत शिक्षण संसाधनों के अनुकूलतम उपयोग और सीखने पर अधिक ध्यान केंद्रित करने के लिए महत्त्वपूर्ण है।

व्यक्तिगत मतभेदों को पहचानने का सिद्धांत (Principle of Recognising Individual Differences)

हर छात्र ज्ञान, मनोदृष्टि, योग्यता, क्षमता और सामाजिक-आर्थिक परिप्रेक्ष्य (background) के मामले में भिन्न होता है। शिक्षण पद्धति को ऐसे तैयार किया जाना चाहिए कि सभी छात्र जीवन में समान अवसर का लाभ उठा सकें।

चयन का सिद्धांत (Principle of Selection)

ज्ञान का क्षेत्र दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है। शिक्षक शिक्षार्थी को उद्देश्यों के अद्यतन (updated) और अधिक प्रासंगिक सामग्री को लेने में सक्षम होना चाहिए।

योजना का सिद्धांत (Principle of Planning)

हर शिक्षक के निश्चित समयबद्ध (time-bound) उद्देश्य होते हैं और इसलिए शिक्षण संसाधनों का उपयोग अनुकूलतम बनाने के लिए व्यवस्थित होना चाहिए।

विभाजन का सिद्धांत (Principle of Division)

अधिगम को सरल बनाने हेतु विषय को इकाइयों में विभाजित किया जाना चाहिए और इकाइयों के बीच में यथासम्भव स्थापित भी किया जाना चाहिए।

संशोधन का सिद्धांत (Principle of Refinement)

शिक्षण को अधिक स्थायी बनाने के लिए अर्जित (acquired) ज्ञान को तुरंत और बार-बार संशोधित किया जाना चाहिए।

सृजन और पुनरसृजन का सिद्धांत (Principle of Creation and Recreation)

यह सिद्धांत कक्षा के वातावरण को हास्यपूर्ण (humorous) और रचनात्मक बनाने के लिए अति आवश्यक है।

लोकतांत्रिक व्यवहार का सिद्धांत (Principle of Democracy)

यह सिद्धांत छात्रों को विभिन्न गतिविधियों की योजना बनाने और उनके क्रियान्वयन पर बल देता है। यह शिक्षार्थियों के आत्मविश्वास और आत्म-सम्मान को विकसित करने में सहायता करता है।

मनोवैज्ञानिक सिद्धांत
(Psychological Principles)

मनोवैज्ञानिक सिद्धांत को निम्न श्रेणियों में विभाजित किया गया है:

प्रेरणा और रुचि का सिद्धांत (Principle of Motivation and Interest)

शिक्षक को यह समझना चाहिए कि हर छात्र का एक अलग मनोवैज्ञानिक सत्व होता है और एक छात्र को उसकी प्रेरणा और जरूरतों की पहचान करवाकर प्रेरित किया जा सकता है।

मनोरंजन का सिद्धांत (Principle of Entertainment)

मनोरंजन लम्बी अवधि तक चलने वाली कक्षाओं की थकान मिटाता है, एकरसता (monotony) को तोड़ता है। यह छात्रों को पुन: सीखने के लिए ऊर्जा प्रदान करता है।

पुनरावृत्ति और अभ्यास का सिद्धांत (Principle of Repetition and Exercise)

यह सिद्धांत विशेष रूप से छोटे बच्चों के संदर्भ में सत्य है।

रचनात्मकता और आत्म अभिव्यक्ति को प्रोत्साहित करने का सिद्धांत (Principle of Creativity and Self-expression)

यह सिद्धांत विशेष रूप से गणित और भाषाओं को सीखने के विषय में लागू होता है।

सहानुभूति और सहयोग का सिद्धांत (Principle of Sympathy and Cooperation)

यह सिद्धांत छात्रों को प्रेरित करने के लिए आवश्यक है।

प्रबलन का सिद्धांत (Principle of Reinforcement)

छात्रों को वांछित व्यवहार के लिए पुरस्कृत किया जाना चाहिए ।

इंद्रियों को प्रशिक्षण प्रदान करने का सिद्धांत (Training of Senses)

शिक्षण में मल्टीमीडिया का उपयोग स्थाई अधिगम (stable learning) के प्रयोजन से किया जाता है।

उपचारात्मक शिक्षण का सिद्धांत (Principle of Remedial Teaching)

यह सिद्धांत शिक्षक द्वारा अपनी त्रुटियों की पहचान करने और समस्या के उचित समाधान का सुझाव देने संबंधी है।

इन्हें भी पढ़ें –

शिक्षा और दर्शन में सम्बन्ध (Relationship between Education and Philosophy)
मनोविज्ञान (Psychology) क्या है? इसके प्रमुख सम्प्रदाय
पाठ्यक्रम की विशेषताएँ
पाश्चात्य दर्शन की विचारधाराएँ (Schools of Western Philosophy)
शिक्षा की प्रकृति (Nature of Education)
शिक्षा, शिक्षण एवं सीखना (Education, Teaching and Learning)
पाठ्यक्रम की आवश्यकता (Need of Curriculum)
पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धान्त (Principles of Curriculum Construction)
शिक्षा का आधार (Foundation of Education)
शिक्षा के सम्बन्ध में कुछ भ्रामक धारणाएँ (Misconceptions about Education)
शैक्षिक अनुसंधान का स्वरूप एवं विषय क्षेत्र
भविष्य शिक्षा (Futuristic Education)
उत्तम शिक्षण की विशेषताएँ (Characteristics of Good Teaching)
शिक्षा के प्रकार (Types of Education)
Information and Communication Technology (ICT)
मापन क्या है? मापन की विशेषताएँ तथा मापन के स्तर
मूल्यांकन का अर्थ, विशेषताएँ एवं विभिन्न उद्देश्य
भाषा अधिगम (Language Learning)
प्रकृतिवाद का अर्थ, स्वरूप एवं मूल सिद्धान्त
शोध अभिकल्प (Research Design)
शोध अभिकल्प के चरण (Steps of Research Design)

2 thoughts on “शिक्षण सूत्र (Maxims of Teaching) एवं शिक्षण के सिद्धांत (Teaching Principles)”

  1. जिन प्रदेशों में हिंदी द्वितीय भाषा के रूप में पढ़ाई जाती है वहां शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया में अध्यापक को किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है

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    • निम्नलिखित चुनौतियों का सामना करना पड़ता है-
      •बच्चों में उत्साह बनाये रखने में।
      •बच्चों को अपनी बोध क्षमता के प्रयोग का अवसर प्रदान करने एवं इसे विकसित करने में।
      •सिखाए गए शब्दों, वाक्य रचनाओं के पुनः अभ्यास का पर्याप्त मौका प्रदान करने में।
      •भाषा प्रयोग संबंधी अपेक्षाओं को विशिष्ट उद्देश्यों के आधार पर निर्धारित करने में।
      •वास्तविक परिस्थितियों में भाषा के प्रयोग के लिए अवसर प्रदान करने में।

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