शिक्षा जीवन-पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है, जिसके द्वारा व्यक्ति के व्यवहार में निरन्तर परिवर्तन एवं परिमार्जन होता है। व्यक्ति के व्यवहार में यह परिवर्तन अनेक माध्यमों से होते हैं, किन्तु मुख्य रूप से इन माध्यमों को दो रूपों में वर्गीकृत किया जा सकता है-औपचारिक एव अनौपचारिक। औपचारिक रूप के अर्न्तगत वे माध्यम आते हैं जिनका नियोजन कुछ निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए व्यवस्थित ढंग से संस्थापित संस्थाओं में किया जाता है। इस प्रकार की सस्थाओं को विद्यालय कहा जाता है, किन्तु व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन की प्रक्रिया विद्यालय एवं विद्यालयी जीवन में ही पूर्ण नहीं हो पाती है, बल्कि यह विद्यालय से बाहर तथा जीवन भर चलती रहती है। अतः व्यक्ति के व्यवहार में होने वाले अनेक परिवर्तन विद्यालय की सीमा से बाहर की परिस्थितियों के परिणामस्वरूप होते हैं। चूँकि ऐसी परिस्थितियाँ सुनियोजित ढंग से प्रस्तुत नहीं की जाती है, अतः ये अनौपचारिक माध्यम के अन्तर्गत आती हैं। विद्यालय में विद्यार्थियों को जो कुछ भी कक्षा एवं कक्षा के बाहर प्रदान किया जाता है, उसका एक निश्चित उद्देश्य होता है एवं उसे किसी विशेष माध्यम से ही पूरा किया जाता है। हमारी कुछ संकल्पनाएँ होती हैं कि एक विशेष कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद विद्यार्थी के व्यवहार में अमुक परिवर्तन आ जायेगा, परन्तु यह परिवर्तन किस प्रकार लाया जायेगा? किसके द्वारा लाया जायेगा? और कितना लाया जायेगा? आदि ऐसे अनेक प्रश्न है, जिनका समाधान पाठ्यक्रम जैसे साधन से प्राप्त होता है। अतः पाठ्यक्रम का सम्बन्ध शिक्षा के औपचारिक माध्यम से है।
पाठ्यक्रम उन सभी क्रियाकलापों का एक समूह है जिन्हें अध्यापकगण तथा छात्र एक साथ मिलकर शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आयोजित करते हैं। आधुनिक शिक्षा व्यवस्था में पाठ्यक्रम को अत्यधिक विशिष्ट महत्व प्राप्त है। पाठ्यक्रम के आधार पर ही शिक्षा संस्थाओं में शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का समुचित ढंग से आयोजन करना सम्भव हो पाता है। पाठ्यक्रम का निर्माण मुख्य रूप से शिक्षा के उद्देश्यों पर आधारित होता है। इसीलिए किसी भी स्तर की शिक्षा के पाठ्यक्रम का उस स्तर के लिए निर्धारित उद्देश्यों के अनुरूप होना आवश्यक है।
पाठ्यक्रम का अर्थ (Meaning of Curriculum)
अध्यापक के लिए यह जानना अत्यन्त आवश्यक है कि छात्रों को कौन सी कक्षा में कितना ज्ञान देना है। यह जानकारी उसे प्रत्येक कक्षा के लिए निर्धारित पाठ्यक्रम से मिलती है। अतः यह जानना उचित होगा कि पाठ्यक्रम से क्या अभिप्राय है। पाठ्यक्रम अंग्रेजी शब्द Curriculum का हिन्दी रूपान्तर है जबकि Curriculum शब्द वस्तुतः एक लैटिन शब्द है जिसका अर्थ “दौड़ का मैदान” है। दूसरे शब्दों में Curriculum वह क्रम है जिसे किसी व्यक्ति को अपने गन्तव्य स्थान पर पहुँचने के लिए पार करना होता है। अतः पाठ्यक्रम वह साधन है, जिसके द्वारा शिक्षा व जीवन के लक्ष्यों की प्राप्ति होती है। यह अध्ययन का निश्चित एवं तर्कपूर्ण क्रम है, जिसके माध्यम से शिक्षार्थी के व्यक्तित्व का विकास होता है तथा वह नवीन ज्ञान एवं अनुभव को ग्रहण करता है।
शिक्षा के अर्थ के बारे में दो धारणाएँ है- पहला प्रचलित अथवा संकुचित अर्थ और दूसरा वास्तविक या व्यापक अर्थ। संकुचित अर्थ में शिक्षा केवल स्कूली शिक्षा या पुस्तकीय ज्ञान तक ही सीमित होती है, तद्नुसार संकुचित अर्थ में पाठ्यक्रम भी केवल विभिन्न विषयों के पुस्तकीय ज्ञान तक ही सीमित है, परन्तु विस्तृत अर्थ में पाठ्यक्रम के अन्तर्गत वह सभी अनुभव आ जाते हैं जिसे एक नई पीढ़ी अपनी पुरानी पीढ़ियों से प्राप्त करती है। साथ ही विद्यालय में रहते हुए शिक्षक के संरक्षण में विद्यार्थी जो भी क्रियाएँ करता है, वह सभी पाठ्यक्रम के अन्तर्गत आती हैं तथा इसके अतिरिक्त विभिन्न पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाएँ भी पाठ्यक्रम का अंग होती है। अतः वर्तमान समय में ‘पाठ्यक्रम’ से तात्पर्य उसके विस्तृत स्वरूप से ही है।
पाठ्यक्रम के अर्थ को और अच्छी तरह समझने के लिए हमें शिक्षा के विकास पर भी एक दृष्टि डालनी आवश्यक है। आदिकाल में शिक्षा का स्वरूप पूर्णतया अनौपचारिक होता था अर्थात् शिक्षा किसी विधि एवं क्रम से बंधी हुई नहीं थी। उस समय बालकों की शिक्षा उनके परिवार एवं समाज की जीवनचर्या के मध्य चलती रहती थी तथा बालक उसमें भागीदार बनकर प्रत्यक्ष अनुभव एवं निरीक्षण के माध्यम से तथा अपने बड़ों एवं पूर्वजों के अनुभव सुनकर शिक्षा प्राप्त करता था। किन्तु सभ्यता के विकास के साथ-साथ मानव के ज्ञान राशि के संचित कोष में निरन्तर वृद्धि होती गई तथा मनुष्य के जीवन में जटिलताएँ एवं विविधताएँ आती गई। परिणामस्वरूप व्यक्ति के पास समय और साधन का अभाव होने लगा तथा उसकी शिक्षा अपूर्ण रहने लगी।
अतः प्रत्येक विकासशील समाज ने अपने बालकों को समुचित शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से इसे विधिवत एवं क्रमबद्ध बनाने के प्रयास प्रारम्भ किये। विद्यालयों का उद्भव तथा उनकी स्थापना इन्हीं प्रयासों का परिणाम है। इस प्रकार समाज जो उपयोगी एवं महत्वपूर्ण ज्ञान अपने बालकों को समुचित ढंग से नहीं दे पा रहा था उसने उसकी जिम्मेदारी अनुभवी विद्वानों को सौंप दी। इन विद्यालयों द्वारा बालकों को जीवन के उद्देश्यों को प्राप्त करने तथा उन्हें समुचित ढंग से शिक्षा प्रदान करने हेतु जो ज्ञानराशि निश्चित एवं निर्धारित की गई तथा की जाती है उसे ही ‘पाठ्यक्रम का नाम दिया गया है।
इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि पाठ्यक्रम अध्ययन का ही एक क्रम है, जिसके अनुसार चलकर विद्यार्थी अपना विकास करता है। अतः यदि शिक्षा की तुलना दौड़ से की जाए तो पाठ्यक्रम उस दौड़ के मैदान के समान है जिसे पार करके दौड़ने वाले अपने निश्चित लक्ष्य तक पहुँच जाते हैं।
पाठ्यक्रम की परिभाषाएँ (Definitions of Curriculum)
विद्यालयों का प्रमुख कार्य बालकों को शिक्षा प्रदान करना होता है और इसको पूर्ण करने के लिए वहाँ पर जो कुछ किया जाता है उसे ‘पाठ्यक्रम’ का नाम दिया गया है। इसीलिए ‘पाठ्यक्रम’ को परिभाषित करते हुए एक विद्वान ने इसे ‘व्हाट आफ एजूकेशन‘ (What of Education) कहा है। प्रथम दृष्टि में यह परिभाषा बहुत अधिक सरल एवं स्पष्ट प्रतीत होती है, परन्तु इस ‘व्हाट’ की व्याख्या करना तथा कोई निश्चित उत्तर प्राप्त करना बहुत कठिन कार्य है। इस सम्बन्ध में अमेरिका के ‘नेशनल एजूकेशन एसोसिएशन’ ने अपनी टिप्पणी इस प्रकार की है-
“विद्यालयों का कार्य क्या है ? यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर कई बार अनेक ढंग से दिया जा चुका है फिर भी बार-बार उठाया जाता है। कारण स्पष्ट है। यह एक ऐसा शाश्वत प्रश्न है जिसका उत्तर अन्तिम रूप से कभी दिया भी नहीं जा सकता है। यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर प्रत्येक समाज एवं प्रत्येक पीढ़ी की बदलती हुई प्रकृति एवं आवश्यकताओं के अनुसार बदलता रहता है।”
पाठ्यक्रम का क्षेत्र प्रायः कक्षा में दिये गये ज्ञान तक ही सीमित रखा जाता है परंतु वास्तव में इसका क्षेत्र बहुत व्यापक होता है। पाठ्यक्रम की परिभाषाओं के सम्बन्ध में विद्वानों के द्वारा प्रस्तुत विचारों को आगे प्रस्तुत किया जा रहा है।
बबिट महोदय के अनुसार, “उच्चतर जीवन के लिए प्रतिदिन और चौबीस घण्टे की जा रही समस्त क्रियाएँ पाठ्यक्रम के अन्तर्गत आ जाती हैं।”
एक अन्य विद्वान ले के अनुसार “पाठ्यक्रम का विस्तार वहाँ तक है, जहाँ तक जीवन का।”
परन्तु इन विचारों को पाठ्यक्रम की समुचित परिभाषा मानना तर्कसंगत नहीं लगता है, क्योंकि पाठ्यक्रम का सम्बन्ध शिक्षा के औपचारिक अभिकरण विद्यालय से है तथा विद्यालय ही पाठ्यक्रम की सीमा भी है। इस दृष्टि से पाठ्यक्रम को विद्यालय के घेरे में ही परिभाषित करना उचित लगता है।
राबर्ट एम० डब्ल्यू ट्रेवर्स ने पाठ्यक्रम की गत्यात्मकता पर बल देते हुए लिखा है, “एक शताब्दी पूर्व पाठ्यक्रम की संकल्पना उस पाठ्य-सामग्री का बोध कराती थी जो छात्रों के लिए निर्धारित की जाती थी, परन्तु वर्तमान समय में पाठ्यक्रम की संकल्पना में परिवर्तन आ गया है। यद्यपि प्राचीन संकल्पना अभी भी पूर्णरूपेण लुप्त नहीं हुई है, लेकिन अब माना जाने लगा है कि पाठ्यक्रम की संकल्पना में छात्रों की ज्ञान वृद्धि के लिए नियोजित सभी स्थितियाँ, घटनाएँ तथा उन्हें उचित रूप में क्रमबद्ध करने वाले सैद्धान्तिक आधार समाहित रहते हैं।”
ब्लांडस के शिक्षा कोष के अनुसार, “पाठ्यक्रम को क्रिया एवं अनुभव के परिणाम के रूप में समझा जाना चाहिए न कि अर्जित किये जाने वाले ज्ञान और संकलित किये जाने वाले तथ्यों के रूप में। विद्यालय जीवन के अन्तर्गत विविध प्रकार के कलात्मक शारीरिक एवं बौद्धिक अनुभव तथा प्रयोग सम्मिलित रहते हैं।”
सी० वी० गुड द्वारा सम्पादित शिक्षा कोष में पाठ्यक्रम की तीन परिभाषाएँ दी गई हैं, जो इस प्रकार हैं-
(i) “अध्ययन के किसी प्रमुख क्षेत्र में उपाधि प्राप्त करने के लिए निर्धारित किये गये क्रमबद्ध विषयों अथवा व्यवस्थित विषय-समूह को पाठ्यक्रम के नाम से अभिहित किया जाता है।”
(ii) “किसी परीक्षा को उत्तीर्ण करने अथवा किसी व्यावसायिक क्षेत्र में प्रवेश के लिए किसी शिक्षालय द्वारा छात्रों के लिए प्रस्तुत विषय-सामग्री की समग्र योजना को पाठ्यक्रम कहते हैं।”
(iii) “व्यक्ति को समाज में समायोजित करने के उद्देश्य से विद्यालय के निर्देशन में निर्धारित शैक्षिक अनुभवों का समूह पाठ्यक्रम कहलाता है।”
कनिंघम के अनुसार “पाठ्यक्रम कलाकार (अध्यापक) के हाथ में वह साधन है जिससे – वह अपने स्टूडियो (स्कूल) में अपनी सामग्री (छात्रों) को अपने आदर्श (उद्देश्य) के अनुरूप ढालता है।”
The Curriculum is the tool in the hands of the artist (teacher) to mould his material (the pupil) according to his ideal (Objective) in his studio (the school). – Conningham
टी.पी. नन के अनुसार “पाठ्यक्रम को मानवीय भावना के विराट प्रदर्शन वाली उन विविध प्रकार की क्रियाओं के रूप में देखा जाना चाहिए जो विशाल जगत के लिए स्थायी रूप से अत्यन्त सार्थक है।”
The curriculum should be viewed as various forms of activities that one grand expression of human spirit and that are of the greatest and most permanent significance to the wide world. – T. P. Nunn
एक अन्य विद्वान के अनुसार “पाठ्यक्रम क्या करना है तथा क्या सीखना है की क्रमबद्ध व्यवस्था है।”
The curriculum is orderly arrangement of what is done and learnt.
प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री ब्रूबेकर के अनुसार “पाठ्यक्रम विस्तृत रूप में विस्तार से लिखे उद्देश्यों या मूल्यों से अधिक कुछ नहीं है।”
The curriculum is nothing more then aims or values written large in expanded form. –Bruebacker.
मुनरो के शब्दों में “पाठ्यक्रम में वे सभी क्रियाएँ सम्मिलित रहती है जिन्हें शिक्षा के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए स्कूल के द्वारा प्रयुक्त किया जाता है।”
“Curriculum includes all those activities which are utilized by the school to attain the aims of education”. – Munroe
डीवी के अनुसार, “सीखने का विषय या पाठ्यक्रम पदार्थों, विचारों और सिद्धान्तों का चित्रण है जो निरन्तर उद्देश्यपूर्ण क्रियान्वेषण से साधन या बाधा के रूप में आ जाते हैं।”
फ्रोबेल के अनुसार “पाठ्यक्रम को मानव जाति के सम्पूर्ण ज्ञान तथा अनुभवों को सार के रूप में समझना चाहिए।”
“Curriculum should be conceived as an epitome of the rounded whole of the knowledge and experiences of the human raci.” – Froebel
पी. सैमुएल के अनुसार “अध्यापक तथा छात्र के बीच विद्यालय में कक्षा में प्रयोगशाला में, कार्यशाला में खेल के मैदान में तथा अनौपचारिक सम्पर्कों के रूप में होने वाली बहुआयामी क्रियाओं के द्वारा छात्रों द्वारा अर्जित अनुभवों का योग ही पाठ्यक्रम है।”
“The curriculum is the sum total of the experiences of the pupil that he receives through the manifold activities that go on in the school, in the class room, in the laboratory, in the workshop, in the play ground and in the in formal contacts between the teacher and the pupil.” – P. Samuel.
हेराल्ड स्पीयर्स के शब्दों में “पाठ्यक्रम पुरानी पीढ़ी के द्वारा नई पीढ़ी के लिए नियोजित क्रियाओं तथा अनुभवों की शृंखला है जिससे वे समाज के आदर्श सदस्य बन सकें।”
The curriculum is the series of activities and experiences which older generation plan for younger generation. So that they becomes on ideal member of society. – Harold Spears
माध्यमिक शिक्षा आयोग के अनुसार, “पाठ्यक्रम का अर्थ केवल उन सैद्धान्तिक विषयों से नहीं है जो विद्यालयों में परम्परागत रूप से पढ़ाये जाते हैं, बल्कि इसमें अनुभवों की वह सम्पूर्णता भी सम्मिलित होती है, जिनको विद्यार्थी विद्यालय, कक्षा, पुस्तकालय, प्रयोगशाला, कार्यशाला, खेल के मैदान तथा शिक्षक एवं छात्रों के अनेकों अनौपचारिक सम्पर्कों से प्राप्त करता है। इस प्रकार विद्यालय का सम्पूर्ण जीवन पाठ्यक्रम हो जाता है जो छात्रों के जीवन के सभी पक्षों को प्रभावित करता है और उनके सन्तुलित व्यक्तित्व के विकास में सहायता देता है।”
“Curriculum does not mean only the academic subjects traditionally taught in the schools, but it includes totality of experiences that a pupil receives through the manifold activities that go on in the school, in the classroom, library, laboratory, work-shop, playgrounds and in the numerous informal contacts between teachers and pupils. In this sense the whole life of school becomes the curriculum which can touch the life of the students at all points and help in the evolution of the balanced personality.” –Report of Secondary Education Commission 1952-53.
बेन्ट और क्रोनेनबर्ग के अनुसार, ‘पाठ्यक्रम पाठ्य-वस्तु का सुव्यवस्थित रूप है जो बालकों की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु तैयार किया जाता है।”
“Curriculum is the systematic from of subject matter which in prepared to fulfil the needs of pupils.” –Bent and Kronenberg
होर्नी के शब्दों में, “पाठ्यक्रम वह है जो शिक्षार्थी को पढ़ाया जाता है। यह सीखने की क्रियाओं तथा शान्तिपूर्वक अध्ययन करने से कहीं अधिक है। इसमें उद्योग, व्यवसाय, ज्ञानोपार्जन, अभ्यास तथा क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं। इस प्रकार यह शिक्षार्थी के स्नायुमण्डल में होने वाले गतिवादी एवं संवेदनात्मक तत्वों को व्यक्त करता है। समाज के क्षेत्र में यह उस सबकी अभिव्यक्ति करता है जो कुछ जाति ने संसार के सम्पर्क में आने से किये हैं।”
“The curriculum is that which the pupil is taught. It involves more than the acts of learning and quiet study. It involves occupations, productions, achievements, exercise and activity. It thus is the representative of motor as well as the sensory elements in the nervous system of the student. In the side of society, it is representative of what the race has done in its contact with its world.” –Horne
उपरोक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि पाठ्यक्रम अनुभवों का एक संगठित क्रम होता है जिसके अनुसार चलकर छात्र शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करता है अर्थात् पाठ्यक्रम उन सभी क्रियाकलापों का एक औपचारिक संकलन होता है जो विषय से सम्बंधित होते हैं तथा छात्र अपने सत्र के अध्ययन में सीखते हैं। स्पष्ट है कि पाठ्यक्रम अध्यापक के शिक्षण कार्य को व्यवस्थित ढंग से करने तथा उसे छात्रों तक पहुँचाने का एक प्रमुख माध्यम है। छात्रों तथा अध्यापकों के बीच वैचारिक तादात्म्य स्थापित करने में पाठ्यक्रम एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। उचित पाठ्यक्रम के अभाव में समस्त शिक्षा प्रक्रिया अपंग हो जाती है तथा शिक्षा के निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति करना कदापि सम्भव नहीं हो पाता है। वास्तव में पाठ्यक्रम बालकों के सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक तथा निर्धारित अनुभवों का एक संकलन मात्र है।
पाठ्यक्रम से लाभ (Benefits of Curriculum)
शिक्षा प्रक्रिया को समुचित ढंग से संचालित करने की दृष्टि से पाठ्यक्रम का होना एक अपरिहार्यता है। पाठ्यक्रम शिक्षण-अधिगम को एक स्पष्ट दिशा व गति प्रदान करता है। पाठ्यक्रम के लाभों को निम्नवत लिखा जा सकता है –
1. अध्यापक को पाठ्यवस्तु एवं अध्ययन विधि का पूरा-पूरा ज्ञान प्रारम्भ से ही रहता है। उसे ज्ञात रहता है कि निश्चित समय में क्या-क्या पढ़ाना है। इसी के आधार पर वह वार्षिक कार्यक्रम (Year wise Plan) बनाता है ताकि नियत अवधि में अपने कोर्स को भली-भाँति समाप्त कर दे।
2. छात्रों को पता रहता है कि नियत अवधि में क्या-क्या पढ़ाना है? छात्र घर पर तैयारी पाठ्यक्रम के विभिन्न उपविषयों एवं अध्यायों को दृष्टिगत रखते हुए करते है।
3. परीक्षा के लिए प्रश्नपत्र बनाने के पूर्व परीक्षक को पाठ्यक्रम की जानकारी होना आवश्यक है जैसे कक्षा 8 के लिए गणित का वार्षिक प्रश्नपत्र बनाने के लिए परीक्षक को कक्षा 8 का गणित पाठ्यक्रम उपलब्ध होना आवश्यक है।
4. पाठ्यक्रम की आवश्यकता उन शिक्षाशास्त्रियों एवं लेखकों को भी होती है जो विभिन्न कक्षाओं के लिए पाठ्यपुस्तकें, सहायक पुस्तकें तैयार करते हैं।
5. पाठ्यक्रम के आधार पर ही विभिन्न माध्यमिक परिषदों तथा विश्वविद्यालयों के स्तर की तुलना की जाती है।