मापन क्या है? मापन की विशेषताएँ तथा मापन के स्तर।

मापन का अर्थ (Meaning of Measurement)

आज मापन शब्द सर्वत्र प्रचलित है। हर दिन प्रत्येक व्यक्ति शिक्षित हो या अशिक्षित; किसी न किसी प्रकार का मापन करता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है; जो मापन करने योग्य वस्तु की संख्यात्मक मात्रा दर्शाती है। ठोस पदार्थ का किलोग्राम में मापन किया जाता है, द्रव पदार्थ का लीटर में मापन किया जाता है तथा लंबाई का मापन मीटर में किया जाता है।

इससे यह स्पष्ट होता है कि मापन एक बहु परिचित शब्द है तथा वह दैनिक जीवन के व्यवहार में अत्यंत उपयोगी अवधारणा है। अर्थात् मापन एक व्यवहारोपयोगी तथा बौद्धिक प्रक्रिया है। मापन की अवधारणा का संबंध केवल मूर्त वस्तु से ही नहीं, बल्कि अमूर्त अवधारणाओं से भी है।

उदाहरण के लिए वर्तमान युग में बुद्धि का मापन, मानसिकता का मापन, अभियोग्यता, अभिरुचि तथा विभिन्न प्रकार की क्षमताओं का मापन करने का कौशल भी मनुष्य ने प्राप्त किया है।

आज मनोविज्ञान एवं शिक्षाशास्त्र में मापन शब्द का उपयोग अत्यंत सामान्य रूप से किया जाता है।

मापन क्या है ?

महेश भार्गव के अनुसार, मापन वह प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत निरीक्षणों, वस्तुओं या घटनाओं को किसी सार्थक या एक जैसे ढंग से नियमानुसार कुछ प्रतीक या अंक प्रदान किए जाते हैं।

रेमर्स, गेज एवं रूमेल के अनुसार, मापन से तात्पर्य ऐसे निरीक्षणों से है जिन्हें परिमाणात्मक रूप से अभिव्यक्त किया जा सकता हो और जिनसे ‘कितना कुछ’ इस प्रश्न का उत्तर प्राप्त हो।

कैम्पबेल के अनुसार, नियमों के अनुसार वस्तुओं एवं घटनाओं को प्रतीकों में व्यक्त करने की प्रक्रिया मापन कहलाती है।

मापन किसी कक्षा में कमजोर तथा होशियार विद्यार्थियों को पहचानने में सहायक होता है। यह विद्यालय में परीक्षार्थियों को अंक देने में, उनके वर्गीकरण तथा उन्नति में, अध्यापक की शिक्षण योग्यता का निर्णय करने में या शिक्षा पर होने वाले व्यय को निश्चित करने में सहायक हो सकता है।

यह किसी शैक्षणिक अधिकारी के पर्यवेक्षण में चलने वाले कार्यक्रम की प्रगति का निरीक्षण या मूल्यांकन करने में भी उपयोगी है। यदि परीक्षण का निर्माण करने में शैक्षणिक उद्देश्यों को ध्यान में रखा गया है तो ये पाठ्यक्रम के विकास में भी उपयोगी सिद्ध होते हैं।

मापन की विशेषताएँ ( Characteristics of Measurement)

मापन की विभिन्न विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

मानव तथा गैर-मानव प्राणियों के विभिन्न पक्षों की मात्रा तय करने के लिए मापन विभिन्न संख्या सूचक शब्द प्रदान करता है।

यह वस्तुओं, लक्षणों, गुणों, विशेषताओं और व्यवहारों का संख्यावाचक विवरण होता है।

मापन अपने आप में अंतिम नहीं होता किंतु यह निश्चित रूप से किसी व्यक्ति को शिक्षा तथा अन्य क्षेत्रों में योग्यताओं के मूल्यांकन का साधन होता है।

मापन तथा मूल्यांकन का स्वरूप संबंधित विद्यार्थियों के विभिन्न गुणों तथा लक्षणों के लिए अलग-अलग होता है।

मापन के स्तर ( Levels of Measurement)

जब भी हम किसी भी चीज को मापते हैं तब हम उसे संख्यासूचक मूल्य प्रदान करते हैं। इस संख्यासूचक मूल्य को ही मापन के पैमाने के रूप में जाना जाता है। “एक पैमाना एक व्यवस्था होती है या फिर मापे जाने वाली विशेषताओं को अंक या मूल्य प्रदान करने की योजना होती है” (सैटलर, 1992)।

इसके अंतर्गत व्यक्तियों, घटनाओं, वस्तुओं, गुणों अथवा विशेषताओं को संख्यात्मक या परिमाणात्मक रूप प्रदान किया जाता है। व्यावहारिक रूप से मापन की मुख्यतः चार विधियाँ प्रचलित है। मुख्यतः मापन के निम्न चार स्तर या मापनी होती है-

नाम सम्बन्धी अथवा शाब्दिक मापनी (Nominal Scale)

यह मापन की सबसे निम्न श्रेणी की मापनी है। इसमें वस्तुओं, घटनाओं अथवा विशेषताओं को उनके किन्हीं निश्चित गुणों के आधार पर अलग-अलग समूहों में रखा जाता है। उस समूह की पहचान के लिए उसे कोई संख्या चिह्न अथवा नाम दिया जाता है। इस समूह की एक विशेषता होती है कि उस समूह के सभी व्यक्ति या तत्त्व आपस में तो समान होते हैं, परंतु किसी दूसरे समूह से बिल्कुल भिन्न होते हैं।

उदाहरण के लिए मतदाताओं को स्त्री या पुरुष वर्गों में विभाजित करना, विभिन्न देशों की क्रिकेट या फुटबॉल आदि खेलों की टीमों को अलग-अलग रंग की वेशभूषा, पहचान चिह्न तथा क्रमांक देना, डाक वितरण हेतु अलग-अलग पिनकोड क्रमांक देना, विभिन्न स्तर के छात्र-छात्राओं को अलग-अलग श्रेणियों में विभाजित करना आदि। इस स्तर के मापन के लिए प्रश्नावली तथा निरीक्षण प्रविधि का प्रयोग किया जाता है।

क्रमसूचक या क्रमिक मापनी (Ordinal Scale)

मापन की शाब्दिक मापनी की अपेक्षा क्रमिक मापनी अधिक परिशुद्ध मापनी है। इसमें घटनाओं एवं वस्तुओं का वर्गीकरण अपेक्षाकृत अधिक स्पष्ट होता है।

इस मापनी या स्तर में घटनाओं, व्यक्तियों अथवा विशेषताओं को किसी गुण या समानता के आधार पर बढ़ते हुए क्रम में या घटते हुए क्रम में व्यवस्थित करके उन्हें श्रेणी प्रदान की जाती है। इस मापनी को क्रम निर्धारण मापनी भी कहते हैं, क्योंकि इसमें किसी घटना अथवा शोध गुण को विभिन्न श्रेणियों में क्रमिक आधार पर प्रस्तुत किया जाता है। इसकी सहायता से विभिन्न इकाइयों का वर्गीकरण तथा तुलनात्मक अध्ययन आसानी से किया जा सकता है।

उदाहरण के लिए परीक्षा में प्राप्तांकों के आधार पर प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ आदि क्रम प्रदान करना। इसी प्रकार सुंदरता के आधार पर विभिन्न क्रम प्रदान करना जैसे-बहुत अधिक सुंदर, अधिक सुंदर, सुंदर, कम सुंदर आदि

अंतराल मापनी (Interval Scale)

यह मापनी या स्तर क्रमिक मापनी की अपेक्षा अधिक शुद्ध विकसित तथा विस्तृत सूचनाएँ प्रदान करता है, क्योंकि यह मापनी विभिन्न इकाइयों के मध्य अंतर को भी स्पष्ट करती है। यह स्तर एक प्रकार से गुणात्मक आँकड़ों (Qualitative data) को परिमाणात्मक आँकड़ों (Quantitative data) में प्रस्तुत करता है। फारेनहाइट तथा सेंटीग्रेड थर्मामीटर इस मापनी के उपयुक्त तथा प्रचलित उदाहरण हैं। थर्मामीटर में तापक्रम 980 से 1080 तक अंकित होता है उसमें जितना अंतर 990 तथा 1000 के बीच होता है उतना ही अंतर 1040 तथा 1050 के मध्य रहता है।

अनुपात मापनी (Ratio Scale)

यह सबसे अधिक प्रचलित तथा लोकप्रिय मापनी है, क्योंकि इसके द्वारा मापन अत्यधिक यथार्थ तथा शुद्ध रहता है। मापन का यह वस्तुनिष्ठ, विश्वसनीय तथा वैज्ञानिक निरपेक्ष शून्य बिंदु है। इस शून्य बिंदु का संबंध किसी घटना, शोध गुण अथवा विशेषता की शून्य मात्रा से होता है। अनुपात मापनी (स्तर) में निरपेक्ष शून्य बिंदु, मापनी का प्रारंभिक बिंदु माना जाता है। इसी के द्वारा हम दो स्थानों या विशेषताओं के मध्य दूरी का अनुपात लगा पाते हैं तथा कह सकते हैं कि स्थान की तुलना में स्थान कितना अधिक पास या दूर है।

शिक्षण-अधिगम में मापन की प्रक्रिया

इस प्रक्रिया में व्यक्ति के व्यक्तित्व से संबंधित कुछ गुणों एवं उपलब्धियों का मापन अंकात्मक रूप से करते हैं। गुणों और योग्यताओं का मापन एक निश्चित समय सीमा में अच्छी प्रकार पूरा नहीं किया जा सकता। इसलिए किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व के कुछ गुणों को ले लिया जाता है, जिसे हम कन्स्ट्रक्ट (construct) कहते हैं। इन्हीं कन्स्ट्रक्ट को अध्ययन का आधार बनाते हैं जो प्रत्यक्ष रूप से वर्तमान जीवन से जुड़ा होता है। मापन क्रिया के तीन पहलू या तत्व होते हैं-

शील गुण का चुनाव करना तथा उसे परिभाषित करना (Selecting and defining the trait)

व्यक्ति का व्यक्तित्व बहुत से गुणों का समावेश होता है। जिस प्रकार सागर की सभी लहरों को गिनना कठिन होता है, उसी प्रकार व्यक्ति के असंख्य गुणों का अध्ययन करना बहुत कठिन कार्य होता है। इसलिए व्यक्ति के कुछ गुणों का चयन कर लिया जाता है और उसे परिभाषित कर लिया जाता है। भौतिक गुणों की तुलना में मानसिक गुणों को परिभाषित करना बहुत कठिन है। मापन प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए शील गुणों को निश्चित शब्दों में परिभाषित कर दिया जाता है। उसकी फिर स्पष्ट व्याख्या कर दी जाती है।

संक्रियाओं एवं व्यवहारों को निश्चित करना (Determining set of operations)

मापन क्रिया का दूसरा पहलू उन संक्रिया विन्यासों को सुनिश्चित करना है, जिसके द्वारा मनोवैज्ञानिक या मापनकर्ता ने उसके शील गुणों की व्याख्या की है। शील गुण की परिभाषा और उसमें प्रयोग संक्रियाओं के बीच आपस में संबंध स्थापित किया जाता है। अर्थात् किसी कन्स्ट्रक्ट को परिभाषित करने से पूर्व हम उसमें प्रयोग होने वाली संक्रियाओं को जोड़ देते हैं। मापन प्रक्रिया के अंतर्गत हमारा दूसरा कार्य यह है कि निर्धारित शील गुण की व्यवहारगत परिभाषा देते हुए उसमें प्रयोग होने वाले संक्रिया विन्यास को निर्धारित किया जाए।

शील गुणों को मात्रांकित करना (Quantifying the trait)

यह मापन प्रक्रिया के तीसरे पहलू में उपर्युक्त व्यवहारों को सुनकर अंकात्मक रूप प्रदान करना है। मापन हमें दो चीजें बताता है : कितने? (How many) तथा कितना (How much) : गणित का एक प्रश्न पत्र एक विद्यार्थी को बहुत सरल लगता है तथा दूसरा विद्यार्थी को बहुत कठिन लगता है। हम इन दोनों विद्यार्थियों के बुद्धि-स्तर की समानता और उनके दृष्टिकोण के बारे में नहीं बता सकते। ऐसे हालात में मापनकर्ता  को इन मानसिक योग्यताओं को ऐसी स्पष्टता देनी होती है, जिससे वे इसके बारे में उचित मात्रा में बता सकें।

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