यथार्थवाद शब्द यथा + अर्थ + वाद से मिलकर बना है अर्थात् जो वस्तु जैसे है उसको उसी रूप में स्वीकार करना अथवा उसके वास्तविक रूप में स्वीकार करना ही यथार्थवाद होता है।
यथार्थवाद इस भौतिक सत्ता को अर्थात् वस्तु जगत की सत्ता को स्वीकार करता है।
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यथार्थवाद (Realism)
यथार्थवाद अंग्रेजी के Realism शब्द का हिंदी रूपांतर है जो दो शब्दों Real + ism से मिलकर बना है। यहां पर Real शब्द ग्रीक भाषा के Res से बना है जिसका अर्थ होता है वस्तु और ism का अर्थ है वाद।
यह दर्शन इंद्रिय गोचर जगत की वास्तविकता में विश्वास करता है।
यथार्थवाद की परम्परा का प्रतिपादन प्लेटो के शिष्य अरस्तू से माना जाता है और इसी कारण से दर्शन में विज्ञान और अध्यात्म दोनों को स्वीकार किया जाता है।
यथार्थवादी दर्शन तत्व मीमांसीय दृष्टिकोण से निम्नलिखित तथ्यों को स्वीकार करता है-
तत्व मीमांसा
यथार्थवाद के अनुसार यह संपूर्ण ब्रह्मांड विभिन्न वस्तुओं से निर्मित है।
इस दर्शन के अनुसार वस्तु भी अंतिम रूप से सत्य है और उसी के आधार पर यह संसार प्रकट होता है।
यह विचारवादी दर्शन को निरपेक्ष रूप में स्वीकार करते हैं।
ज्ञान मीमांसा
यथार्थवाद के अनुसार यह संपूर्ण वस्तु जगत इंद्रिय गोचर प्रत्यक्ष है अर्थात् पांच कर्मेंद्रियों तथा एक उभयेन्द्रीय मन के द्वारा इस संपूर्ण संसार की सत्ता को स्वीकार किया जाता है। यथार्थवाद के अनुसार सच्चा ज्ञान वही है जो इंद्रियों के माध्यम से प्राप्त हो।
आचार मीमांसा
यथार्थवादियों के अनुसार मानव का विकास करना रक्षा करना और उसके जीवन को सुखी बनाना यथार्थवाद का लक्ष्य है।
यथार्थवाद मानव की क्रियाशीलता पर सबसे अधिक बल देता है।
यथार्थवादी दार्शनिकों में अरस्तू, मिल्टन, लॉक, रैपले, कामेनियस, स्पेंसर इत्यादि प्रमुख दार्शनिक हैं।
यथार्थवादी शिक्षा इस माध्यम पर इस वस्तु जगत को स्वीकार करते हुए किसी भी प्रकार से मानव को सुखी बनाना चाहती है।
इन्द्रियों के माध्यम से शारीरिक शक्तियों का विकास करना और इन्द्रियों का ज्ञान प्राप्त करना इस दर्शन का प्रमुख लक्ष्य है।
यथार्थवादी शिक्षा के उद्देश्य
यथार्थवादी शिक्षा के निम्न उद्देश्य हैं-
- स्पष्ट ज्ञान तथा कला का प्रतिपादन
- मानसिक शक्तियों का विकास
- वास्तविक जीवन की तैयारी
- सामाजिक एवं व्यावसायिक प्रगति
- धार्मिक एवं नैतिक विकास
पाठ्यक्रम
यथार्थवादी दर्शन अपने पाठ्यक्रम में ऐसे विधियों को सम्मिलित करता है जो भूत और भविष्य पर विचार करके वर्तमान की ओर ध्यान देते हैं।
इसी कारण यथार्थवादी विषयों में मनुष्य के जीवन से संबंधित विषय सम्मिलित किए जाते हैं जिसकी कुछ न कुछ उपयोगिता अवश्य होती है।
यथार्थवादी दर्शन पहला दर्शन है जहां पर व्यावसायिक शिक्षा, व्यायाम शिक्षा तथा कृषि शिक्षा को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
इस दर्शन में कृषि विज्ञान तथा व्यावसायिक शिक्षा को मुख्य स्थान तथा संगीत, साहित्य, कला इत्यादि को गौड़ स्थान प्राप्त है।
यह पाठ्यक्रम में स्वांत: सुखाय को स्वीकार नहीं करते बल्कि ज्ञान के लिए इसे अस्वीकार करते हुए ज्ञान व्यवहार की बात करते हैं।
शिक्षण विधियाँ
यथार्थवादी दर्शन वस्तुओं पर अधिक बल देता है जिस कारण यह वस्तुओं के माध्यम से ही शिक्षा का समर्थन करते हैं।
शब्दों के माध्यम से बालक को ज्ञान देना कठिन है जबकि स्थूल वस्तुओं में प्रत्यक्षीकरण सरलता से हो जाता है।
यथार्थवादी इंद्रियों को ज्ञान का द्वार मानते हैं इसलिए ज्ञानेंद्रीय प्रशिक्षण विधि को ही स्वीकार करते हैं।
यथार्थवाद शिक्षण विधियों में शिक्षण सूत्र को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
कामेनियस के अनुसार शिक्षा मातृभाषा के माध्यम से तथा ज्ञानेंद्रियों के द्वारा दी जानी चाहिए।
मूर्त से अमूर्त की ओर बढ़ते हुए ज्ञान को रटाया नहीं जाना चाहिए।
शिक्षक
यथार्थवाद में शिक्षक को उतना महत्वपूर्ण नहीं स्वीकार किया गया जितना कि आदर्शवाद में।
यथार्थवाद के अनुसार शिक्षक को इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि उसे बालक को किस समय तक कितना एवं किस प्रकार का ज्ञान देना है इसके लिए उन्होंने शिक्षकों के प्रशिक्षण की बात की है।
यथार्थवाद शिक्षक को कम से कम दो विषयों में दक्ष मानता है।
शिक्षार्थी
यथार्थवादी परंपरा के अनुसार बालक का मस्तिष्क कोरे कागज के समान होता है जिसे जैसा पर्यावरण मिलेगा उसी प्रकार का हो जाएगा।
शिक्षार्थियों को उसकी आवश्यकता एवं रूचि के अनुसार सुखी बनाने हेतु शिक्षा दी जानी चाहिए।
विद्यालय
यथार्थवादी शिक्षण पद्धति के अनुसार विद्यालय समाज की एक ऐसी संस्था है जहां बालक का निर्माण करके उसे सुखी बनाया जाता है।
विद्यालय में प्रशिक्षित शिक्षकों के माध्यम से बालकों में यथार्थ दृष्टिकोण का विकास करना होता है।
विद्यालय वह स्थान है जिसकी कक्षा में बालकों को उचित अवसर प्रदान किए जाते हैं।
अनुशासन
यथार्थवादी दर्शन अनुशासन को वस्तुनिष्ठता के आधार पर स्वीकार करता है अर्थात् बालक को वातावरण से समायोजन करने के लिए अनुशासन आवश्यक है।
यथार्थवादी दर्शन बालकों के अनुशासन द्वारा ऐसा वातावरण निर्मित करना चाहते हैं जहां बालक कठिनाइयों से भागे नहीं और नियमों का पालन करे।
Note:
- यथार्थवादी दर्शन सह-शिक्षा और व्यवसायिक शिक्षा का समर्थक है।
- इस दर्शन में सर्वप्रथम यौन शिक्षा का प्रारंभ किया गया।
- यह दर्शन सबसे पहली बार अलग-अलग विषयों के लिए अलग-अलग विद्यालयों को मानने वाला दर्शन है।
- यह दर्शन जन शिक्षा और प्रौढ़ शिक्षा का भी समर्थक है।
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