शिक्षा के सम्बन्ध में कुछ भ्रामक धारणाएँ (Misconceptions about Education)

शिक्षा के विषय में अनेक प्रकार की भ्रामक धारणाएँ फैली हुई हैं। प्रायः शिक्षा को अध्यापन, प्रशिक्षण, साक्षरता, सूचना आदि का पर्याय समझा जाता है। किन्तु ध्यानपूर्वक विचार करने पर इन सब विचारों में पर्याप्त अन्तर पाया जाता है। इस आर्टिकल में साक्षरता और शिक्षा के सम्बन्धों के बारे में तथा उपर्युक्त तथ्यों में अन्तर का अध्ययन करेंगे।

शिक्षा और प्रशिक्षण (Education and Training)

कुछ लोगों के अनुसार शिक्षा और प्रशिक्षण में कोई अन्तर नहीं है। ये लोग दोनों का एक ही अर्थ निकालते हैं। किन्तु शिक्षा और प्रशिक्षण एक ही नहीं है। जो ऐसा सोचते हैं वे भूल करते हैं। प्रशिक्षण और शिक्षा में निम्नलिखित अंतर है-

(i) प्रशिक्षण का सम्बन्ध अधिकतर पशुओं से होता है-सरकस के हाथी, घोड़ा, शेर, चीता, भालू आदि प्रशिक्षित किये जाते हैं। जबकि शिक्षा का सम्बन्ध मानव से होता है।

(ii) अर्थ की दृष्टि से भी प्रशिक्षण एक सीमित शब्द है और शिक्षा का अर्थ व्यापक है। प्रशिक्षण का सम्बन्ध शरीर से होता है और शिक्षा का सम्बन्ध शरीर, मन और आत्मा तीनों से होता है। शिक्षा द्वारा मानव की आत्मा, मन और शरीर तीनों का प्रशिक्षण साथ-साथ होता है और मनुष्य प्रत्येक कार्य को सही ढंग से करना सीख जाता है। शिक्षा शब्द की व्यापकता को ध्यान में रखते हुए आजकल ‘टीचर्स ट्रेनिंग’ को शिक्षकों की शिक्षा कहा जाने लगा है।

शिक्षा और अध्यापन (शिक्षण) (Education and Teaching)

शिक्षा को प्रायः लोग अध्यापन (शिक्षण) समझ लेते हैं, जबकि दोनों में काफी अन्तर है। शिक्षा और अध्यापन में निम्नलिखित अन्तर है-

(i) शिक्षा व्यापक है और अध्यापन सीमित है। शिक्षा में अध्यापन शामिल है किन्तु केवल अध्यापन शिक्षा नहीं है। अध्यापन शिक्षा का एक महत्वपूर्ण अंग है। पढ़ाना और शिक्षा देना अलग-अलग बातें हैं।

(ii) अध्यापन एक कला है। अध्यापन की प्रक्रिया शिक्षा का कला पक्ष है और शिक्षा विज्ञान और कला दोनों है।

(iii) अध्यापन में शिक्षक कक्षा में बालकों को कुछ विषयों को पढ़ाता है जबकि शिक्षा का उद्देश्य बालक के व्यक्तित्व का सर्वाङ्गीण विकास करना होता है।

(iv) अध्यापन एकांगी होता है जबकि शिक्षा का सम्बन्ध बालक के समग्र विकास से होता है।

शिक्षा के सम्बन्ध में कुछ भ्रामक धारणाएँ (Misconceptions about Education )
शिक्षा के सम्बन्ध में कुछ भ्रामक धारणाएँ (Misconceptions about Education )

शिक्षा और साक्षरता (Education and Literacy)

शिक्षा वह सतत् सकारात्मक सामाजिक प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य व्यक्ति के व्यक्तित्व का समग्र विकास करना होता है। शिक्षा और साक्षरता में आधारभूत अन्तर है। साक्षरता से तात्पर्य होता है साक्षर होना अर्थात् अक्षर-ज्ञान होना। अंग्रेजी भाषा में साक्षरता के लिए “लिटरेसी‘ (Literacy) शब्द का प्रयोग किया जाता है। लिटरेसी शब्द से तात्पर्य है लिखना, पढ़ना तथा गणित का सामान्य ज्ञान-3R’s (Reading, Writing and Arithmatic) लिया जाता है। इसे संक्षेप में “थ्री आर्स” कहा गया है। इसे हम थोड़ा विस्तार से कहें तो कह सकते हैं कि साक्षरता का तात्पर्य है पढ़ना, लिखना और गणित का ज्ञान । दूसरे शब्दों में साक्षरता से तात्पर्य है कि व्यक्ति को अपनी मातृभाषा का प्रारम्भिक ज्ञान होना चाहिए, व्यक्ति में उस भाषा में अपने विचारों को व्यक्त करने की क्षमता होनी चाहिए तथा अंकों का जोड़, घटाना और गुणा का प्रारम्भिक ज्ञान होना चाहिए।

यूनेस्को (Unesco) के अनुसार, “साक्षरता स्त्रियों अथवा पुरुषों को सहायता पहुँचाती है ताकि वे सम्पन्न तथा पूर्ण जीवन के लिए बदले हुए वातावरण से समायोजन प्राप्त करके, जीवन व्यतीत कर सकें। साक्षरता उनमें अपनी संस्कृति के सबसे उत्तम तत्वों को विकसित करने में भी सहायक होती है। साक्षरता द्वारा व्यक्ति अपनी सामाजिक तथा आर्थिक प्रगति कर सकता है जो उसे आधुनिक संसार में अपना स्थान ग्रहण करने योग्य बनाती है और शान्तिपूर्वक मिल-जुल कर रहने की प्रेरणा देती है।”

राष्ट्र में साक्षरता अपने व्यापक उद्देश्य की प्राप्ति कर सके, उसके लिए उसके अन्तर्गत अक्षर-ज्ञान के अतिरिक्त कुछ अन्य तत्वों का भी समावेश होना चाहिए। हुमायूँ कबीर के अनुसार, “साक्षरता केवल निरक्षर व्यक्तियों को अक्षर-ज्ञान से ही सन्तुष्ट नहीं हो जाती अपितु उसका उद्देश्य जन-साधारण में शिक्षित मस्तिष्क का विकास करना होता है। के० जी० सैयदेन के अनुसार, ‘साक्षरता में राजनीति की शिक्षा, नागरिकता की शिक्षा तथा नैतिकता की शिक्षा को सम्मिलित किया जा सकता है।”

साक्षरता और शिक्षा में अन्तर

साक्षरता और शिक्षा में अन्तर के मुख्य बिन्दुओं को हम निम्नलिखित रूप में रख सकते हैं-
(1) शिक्षा का क्षेत्र व्यापक है, जबकि साक्षरता का क्षेत्र सीमित है।
(2) शिक्षा व्यक्ति के समग्र व्यक्तित्व के विकास को दृष्टि-पथ में रखकर चलती है, जबकि साक्षरता का उद्देश्य व्यक्ति को मात्र साक्षर बनाना होता है।
(3) शिक्षा व्यक्ति के मस्तिष्क (Head), हृदय (Heart) तथा हाथ (Hand)- 3H के सम्यक् विकास पर जोर देती है जबकि साक्षरता पढ़ना (Reading), लिखना (Writing) तथा गणित-ज्ञान (Arithmatic)-3RS’ पर केन्द्रित रहती हैं।
(4) शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति में अन्तस्थ समस्त प्राकृतिक क्षमताओं का विकास करना होता है जबकि साक्षरता का उद्देश्य दैनिक जीवन में आवश्यक अपेक्षित ज्ञान प्राप्त करना होता है।
(5) शिक्षा मानवीय गुणों के विकास की सतत प्रक्रिया है जबकि साक्षरता व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त करने की निश्चित समय में सम्पन्न हो जाने वाली प्रक्रिया है।
(6) शिक्षा प्राप्त करने वाले साधन और माध्यम व्यापक और सुविशद होते हैं जबकि साक्षरता प्राप्त करने वाले साधन और माध्यम सीमित होते हैं। दूसरे शब्दों में शिक्षा, घर, समुदाय, समाज, विद्यालय आदि अनेक माध्यमों से प्राप्त की जाती है जबकि साक्षरता का माध्यम विद्यालय होता है।
(7) शिक्षा, जड़, चेतन सभी प्रकार के उपादानों या साधनों से प्राप्त की जाती है, जबकि साक्षरता व्यक्ति विशेष से प्राप्त की जाती है।
(8) शिक्षा मानवीय सद्गुणों के विकास की प्रक्रिया है, जबकि साक्षरता जीविकोपार्जन के लिए आवश्यक गुण या कौशल के विकास की प्रक्रिया है।

साक्षरता और शिक्षा में सम्बन्ध

यह सत्य है कि साक्षरता तथा शिक्षा में स्पष्ट अन्तर के होते हुए भी इसके बीच अटूट सम्बन्ध है। वास्तव में दोनों का एक लक्ष्य है और वह है मानव-जीवन को अधिक-से-अधिक सभ्य एवं सुसंस्कृत बनाना। इस लक्ष्य तक पहुँचने की सीढ़ी का पहला सोपान ‘साक्षरता’ है और दूसरा सोपान ‘शिक्षा’ है। ये दोनों सोपान एक-दूसरे के सहायक एवं परिपूरक हैं तथा मानव-जीवन की पूर्णता के क्रमिक व अनिवार्य साधन है। साक्षरता के माध्यम से व्यक्ति दैनिक जीवन को सुचारु एवं सुव्यवस्थित बनाता है और शिक्षा उसके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करती है।

शिक्षा और सूचनाओं का संग्रह

बहुत से लोग समझते हैं कि शिक्षा सूचनाओं का संग्रह है किन्तु ऐसा नहीं है। पाकिस्तान, बांगलादेश और श्रीलंका हमारे पड़ोसी देश हैं। यह जानकारी सूचना है-शिक्षा नहीं है। भूगोल, इतिहास और नागरिकशास्त्र में हम इस प्रकार की सूचनाओं को प्राप्त करते हैं। डॉ० राजेन्द्र प्रसाद स्वतन्त्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे। हुमायूँ बाबर का पुत्र था। ये सब सूचनाएँ हैं-शिक्षा नहीं। सूचनाएँ शिक्षा प्राप्ति में सहायता करती हैं।

शिक्षा और उपाधियाँ

उपाधियाँ हासिल करना ही शिक्षा नहीं है। वह केवल हमें यह बताती हैं कि फलाँ आदमी ने एक निश्चित स्तर तक का पाठ्यक्रम पूरा कर लिया है और उसमें उसकी एक निश्चित उपलब्धि है। उपाधि हासिल कर लेने से यह पता नहीं चलता कि उपाधिकारी किस सीमा तक शिक्षित है। आजकल शिक्षा का उद्देश्य केवल उच्च कोटि की उपाधि प्राप्त करना है। इसीलिए वर्तमान समय में शिक्षा प्राप्ति के बजाय बी० ए०, एम० ए० की उपाधि प्राप्त करने पर अधिक जोर दिया जाता है। शिक्षा उपाधि की प्राप्ति से कहीं अधिक उत्कृष्ट और परिष्कृत है।

शिक्षा और विद्यालयीय शिक्षा (स्कूलिंग)

विद्यालयीय शिक्षा का अर्थ है-विद्यालय में प्राप्त होनेवाली शिक्षा। विद्यालयीय शिक्षा क्या केवल कक्षा की पढ़ाई तक ही सीमित है? नहीं ऐसा नहीं है। विद्यालयीय शिक्षा में पाठ्य-विषयों के अतिरिक्त पाठ्य सहगामी क्रियाएँ भी शामिल हैं। फिर भी विद्यालयीय शिक्षा और शिक्षा एक नहीं है। दोनों को एक समझने की भूल नहीं करनी चाहिए। दोनों में निम्नलिखित अन्तर हैं-
(1) विद्यालयीय शिक्षा एक निर्धारित समय के लिए होती है जबकि शिक्षा जीवन भर चलती है।
(2) निश्चित अवधि में, निश्चित पाठ्यक्रम, निश्चित विधियों, निश्चित व्यक्तियों द्वारा छात्रों को दी जानेवाली शिक्षा विद्यालयीय शिक्षा है। जबकि शिक्षा विद्यालयों के अलावा अन्य साधनों से भी दी जाती है, जैसे-घर, समाज, मित्र-मण्डली, यात्रा, सत्संग आदि। आकाशवाणी, टेलीविजन आदि भी शिक्षा प्राप्ति के साधन हैं।

इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि शिक्षा साक्षरता, अनुदेश, विद्यालयीय शिक्षा, प्रशिक्षण, सूचनाओं का संग्रह तथा उपाधि प्राप्ति आदि मिथ्या धारणाओं का पर्याय नहीं है बल्कि इनसे श्रेयस्कर तथा व्यापक है।

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