शिक्षा दर्शन का स्वरूप एवं क्षेत्र (Nature and Scope of Educational Philosophy)

शिक्षा दर्शन न तो शिक्षाशास्त्र ही है और न ही दर्शन बल्कि यह दोनों के अंग के रूप में और साथ ही स्वतन्त्र रूप में एक ऐसा नवनिर्मित शास्त्र व विज्ञान है जिसके अन्तर्गत विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं, शिक्षाशास्त्रियों एवं दार्शनिकों के विचारों के आधार पर देश एवं काल की परिस्थितियों का तार्किक, व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध अध्ययन कर व्यक्ति एवं समाज को समुन्नत बनाने के लिए उनका अधिकाधिक व्यावहारिक एवं उपयोगी स्वरूप निर्धारित करने का निरन्तर प्रयास किया जाता है। इस प्रकार शिक्षा दर्शन एक गतिशील एवं व्यापक विज्ञान है और इसीलिए इसके स्वरूप के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों का पृथक्-पृथक् विचार है।

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शिक्षा दर्शन का स्वरूप
(Nature of Educational Philosophy)

उपर्युक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हम यहाँ पर शिक्षा दर्शन के स्वरूप पर विचार करें तो हमें शिक्षा दर्शन के स्वरूप के अन्तर्गत निम्नलिखित तत्व प्राप्त होते हैं।

शिक्षा दर्शन शिक्षा के अंग के रूप में
(Educational Philosophy as the Part of Education)

कुछ विद्वानों के अनुसार शिक्षा दर्शन, दर्शन का अंग न होकर शिक्षा का ही अभिन्न अंग है। अपने मत की पुष्टि में उन्होंने कहा है कि शिक्षा विज्ञान स्वयं एक व्यापक विज्ञान है। इस विज्ञान का कार्य केवल पूर्व-निर्धारित शिक्षा के विभिन्न अंगों को समझकर उन्हें क्रियान्वित रूप प्रदान करना ही नहीं है बल्कि उनमें देश एवं काल की परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं के अनुसार परिवर्तन एवं परिवर्द्धन करना भी है। शिक्षा विज्ञान के इस दायित्व को पूरा करने के लिए उसे अन्य विषय की आवश्यकता अनुभव हुई और वह विषय है—’शिक्षा दर्शन।

शिक्षा दर्शन, दर्शन के अंग व शाखा के रूप में
(Educational Philosophy as the Part or Branch of Philosophy)

अधिकांश प्राचीन एवं आधुनिक शिक्षाशास्त्री एवं शिक्षा-दार्शनिक शिक्षा दर्शन को दर्शन के एक अंग व शाखा के रूप में मानते हैं। अपने मत की पुष्टि में उनका विचार यह है कि दर्शन जीवन के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करता है। शिक्षा भी जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू है। अतः शिक्षा सम्बन्धी विभिन्न विषयों का दार्शनिक दृष्टिकोण से दर्शन की जो शाखा अध्ययन करती है उस शाखा को ही शिक्षा दर्शन कहते हैं। इस प्रकार उनके अनुसार शिक्षा दर्शन एक पृथक् विषय न होकर दर्शन की ही एक शाखा है। शिक्षा दर्शन अर्थात् शिक्षा के नाम से भी यही बात स्पष्ट होती है।

शिक्षा दर्शन दार्शनिक सिद्धान्तों का शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोग करने के साधन के रूप में
(Educational Philosophy as the Means to Introduce the Philosophical Principles in the Field of Education)

कुछ विचारक यद्यपि शिक्षा दर्शन के उपर्युक्त दो स्वरूपों को अस्वीकार नहीं करते किन्तु वे शिक्षा दर्शन को एक साधन के रूप में मानते हैं। उनका विचार है कि दर्शन जीवन के भौतिक सिद्धान्तों, आदर्शों एवं मूल्यों को प्रतिपादित करता है। चूंकि शिक्षा का सम्बन्ध जीवन से है अतः शिक्षा के क्षेत्र में दार्शनिक सिद्धान्तों, मूल्यों एवं आदर्शों को व्यवहत किए जाने की अति आवश्यकता है। इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए अर्थात् दार्शनिक सिद्धान्तों को शिक्षा के क्षेत्र में व्यवहृत करने के लिए साधन के रूप में एक नये शास्त्र की आवश्यकता अनुभव की गई और यह शास्त्र है-शिक्षा दर्शन जो दर्शन एवं शिक्षा दोनों से सम्बन्धित होने के कारण दार्शनिक सिद्धान्तों को शिक्षा के क्षेत्र में बहुत उपयुक्त रूप से व्यवहत करने में सफल सिद्ध होता है।

शिक्षा दर्शन एक स्वतन्त्र एवं नव-निर्मित विषय के रूप में
(Educational Philosophy as Independent and New-created Subject)

अधिकांश आधुनिक विचारक शिक्षा दर्शन के उपर्युक्त वर्णित किसी भी स्वरूप से सहमत नहीं हैं बल्कि वे शिक्षा दर्शन को एक स्वतन्त्र एवं नव-निर्मित विषय व शास्त्र के रूप में देखते हैं। ड्यूवी एवं उनके समर्थक इसी विचारधारा के विचारक हैं। ड्यूवी महोदय शिक्षा-दर्शन को एक स्वतन्त्र शास्त्र मानते हुए आदर्शवादियों के इस मत का विरोध करते हैं कि, “शिक्षा-दर्शन, पूर्व-निर्मित दार्शनिक सिद्धान्तों को शिक्षा के क्षेत्र में व्यवहृत करने का साधन है, उनके अनुसार शिक्षा-दर्शन में बाहर से साधन बनाकर लागू नहीं किए जा सकते हैं बल्कि इसमें तो तत्कालीन सामाजिक जीवन की कठिनाइयों के प्रति उचित दृष्टिकोण बनाने की समस्या का स्पष्टीकरण होता है। अतः शिक्षा दर्शन को बाह्य सिद्धान्तों का व्यवहृत रूप नहीं समझना चाहिए। उनके अनुसार दर्शन तो स्वयं ही शिक्षा का सिद्धान्तीकरण है।”

शिक्षा दर्शन का स्वरूप एवं क्षेत्र (Nature and Scope of Educational Philosophy)
शिक्षा दर्शन का स्वरूप एवं क्षेत्र (Nature and Scope of Educational Philosophy)

शिक्षा दर्शन का विषय-क्षेत्र
(Scope of Educational Philosophy)

शिक्षा दर्शन के अर्थ, उद्देश्य तथा आवश्यकता से अवगत होने के बाद हमारे समक्ष यह प्रश्न उठता है कि शिक्षा दर्शन के अन्तर्गत किन-किन बातों का अध्ययन किया जाता है। सामान्य रूप से शिक्षा दर्शन के अन्तर्गत निम्नलिखित विषयों व सामग्री का अध्ययन किया जाता है-

शिक्षा एवं दर्शन की प्रकृति व स्वरूप का अध्ययन
(Study of the Nature of Education and Philosophy)

शिक्षा दर्शन के अन्तर्गत शिक्षा एवं दर्शन दोनों की प्रकृति व स्वरूप का अध्ययन किया जाता है क्योंकि जब तक हम दोनों के स्वरूप से अवगत न होंगे तब तक हम शिक्षा दर्शन के स्वरूप को भी अच्छी तरह नहीं समझ सकते। जिस प्रकार शिक्षा एवं दर्शन दोनों का सम्बन्ध आत्मा एवं मूल्यों से है, उसी प्रकार दर्शन शिक्षा का मार्ग-प्रदर्शन करता है और शिक्षा दार्शनिक विचारों को व्यावहारिक रूप प्रदान करने में सहायता देती है, किस प्रकार दर्शन जीवन में शिक्षा के महत्व की खोज करता है, किस प्रकार दार्शनिक शिक्षा की भूमिका प्रदर्शित करते हैं, किस प्रकार शिक्षा एवं दर्शन एक दूसरे को प्रभावित करते हैं? आदि प्रश्नों के उत्तर हमें शिक्षा एवं दर्शन के स्वरूप व प्रकृति के समझने से प्राप्त होते हैं। शिक्षा दर्शन शिक्षा एवं दर्शन के स्वरूप एवं प्रकृति का अध्ययन कर इन तमाम प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास करती है।

दर्शन एवं शिक्षा के सम्बन्ध का अध्ययन
(Study of Relation between Philosophy and Education)

शिक्षा दर्शन के अन्तर्गत हम शिक्षा एवं दर्शन के स्वरूप का ही नहीं बल्कि दोनों के बीच पाए जाने वाले सम्बन्धों का भी अध्ययन करते हैं। चूंकि शिक्षा एवं दर्शन में अति विस्तृत तथा घनिष्ठ सम्बन्ध होता है अतः हम दोनों के बीच में पाए जाने वाले सम्बन्ध का विभिन्न रूपों में अध्ययन करते हैं जैसे किस प्रकार शैक्षिक सिद्धान्त दार्शनिक विचारों के व्यावहारिक प्रयोग हैं, किस प्रकार शिक्षा एवं दर्शन एक सिक्के के दो महत्वपूर्ण पहलू हैं, किस प्रकार शिक्षा एवं दर्शन में अन्योन्याश्रितता का सम्बन्ध पाया जाता है, किस प्रकार दर्शन एवं शिक्षा एक दूसरे के स्वरूप को प्रभावित करते हैं आदि।

शिक्षा के सन्दर्भ में विभिन्न दार्शनिक सम्प्रदायों का अध्ययन
(Study of Various Philosophical Schools in Reference to Education)

शिक्षा दर्शन के अन्तर्गत विभिन्न दार्शनिक सम्प्रदायों का शिक्षा के सन्दर्भ में अध्ययन किया जाता है। दूसरे शब्दों में शिक्षा दर्शन के अन्तर्गत सभी दार्शनिक विचारधाराओं की सभी बातों का अध्ययन नहीं किया जाता है बल्कि इसके अन्तर्गत केवल उन दार्शनिक विचारधाराओं की उन बातों का अध्ययन किया जाता है जिन्होंने शिक्षा और उसके विभिन्न अंगों को प्रभावित किया है। ये दार्शनिक विचारधाराएँ अधोलिखित हैं-
(i) ‘आदर्शवाद’ (Idealism),
(ii) ‘प्रकृतिवाद’ (Naturalism),
(iii) ‘प्रयोजनवाद’ (Pragmatism),
(iv) ‘यथार्थवाद’ (Realism)।

दर्शन के सन्दर्भ में शिक्षा के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन
(Study of Various Aspects of Education in Reference to Philosophy)

शिक्षा दर्शन के अन्तर्गत जिस प्रकार शिक्षा के सन्दर्भ में विभिन्न दार्शनिक सम्प्रदायों का अध्ययन किया जाता है उसी प्रकार विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं के सन्दर्भ में शिशु के विभिन्न अंगों व पहलुओं का अध्ययन किया जाता है। वास्तव में शिक्षा दर्शन की यहीं मुख्य विषय-सामग्री है। इसमें हम इस बात का अध्ययन करते हैं कि किस दार्शनिक विचारधारा ने शिक्षा के विभिन्न अंगों व पहलुओं के सम्बन्ध में क्या-क्या विचार प्रस्तुत किए और किस प्रकार इन विचारों से इन अंगों को पूर्णता प्राप्त हुई। शिक्षा के विभिन्न अंग कौन-कौन से हैं यह प्रश्न तो मुख्यतया शिक्षाशास्त्र का है किन्तु इन पहलुओं का क्या रूप होना चाहिए यह कार्य शिक्षा दर्शन का है जो कि वह दर्शन के द्वारा करता है। शिक्षा के विभिन्न अंग या पहलू इस प्रकार हैं-

(i) ‘शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषा’ (Meaning and Definition of Education),
(ii) ‘शिक्षा के उद्देश्य’ (Aims of Education),
(iii) पाठ्यक्रम’ (Curriculum),
(iv) ‘शिक्षण-पद्धति’ (Method of Teaching),
(v) ‘शिक्षक’ (Teacher),
(vi) ‘विद्यार्थी’ (Student),
(vii) ‘विद्यालय’ (School),
(viii) ‘अनुशासन’ (Discipline)

शिक्षा की विभिन्न समस्याओं का अध्ययन
(Study of Various Problems of Education)

शिक्षा दर्शन के क्षेत्र के अन्तर्गत शिक्षा की विभिन्न समस्याओं का भी अध्ययन किया जाता है। व्यक्ति एवं समाज को प्रगति के पथ पर अग्रसर करने के लिए शिक्षा को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन समस्याओं का वास्तविक स्वरूप क्या है, इनकी उत्पत्ति किन-किन तत्वों से हुई, इनका समाधान करने के लिए किन-किन उपायों को अपनाया जाए? आदि बातों का शिक्षा दर्शन के अन्तर्गत विस्तृत अध्ययन किया जाता है। शिक्षा की जिन मुख्य समस्याओं की शिक्षा दर्शन के अन्तर्गत चर्चा की जाती है वे अधोलिखित हैं-

(i) ‘स्वतन्त्रता एवं अनुशासन’ (Freedom and Discipline),
(ii) ‘धर्म एवं शिक्षा’ (Religion and Education),
(iii) ‘शैक्षिक आदर्श एवं मूल्य’ (Educational Ideals and Values),
(iv) ‘लोकतन्त्र एवं शिक्षा’ (Democracy and Education),
(v) ‘व्यावसायिक एवं प्राविधिक शिक्षा’ (Professional and Technical Education),
(vi) ‘स्त्री शिक्षा’ (Women Education),
(vii) ‘राष्ट्रीय एकता एवं शिक्षा’ (National Integration and Education),
(viii) ‘अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना एवं शिक्षा’ (International Understanding and Education)

विभिन्न शिक्षाशास्त्रियों के दार्शनिक एवं शैक्षिक विचारों का अध्ययन
(Study of Philosophical and Educational Views of Various Educationists)

शिक्षा दर्शन के क्षेत्र के अन्तर्गत हम सुप्रसिद्ध शिक्षाशास्त्रियों के दार्शनिक एवं शैक्षिक विचारों का भी अध्ययन करते हैं। यद्यपि समस्त शिक्षाशास्त्री उपर्युक्त वर्णित किसी न किसी दार्शनिक सम्प्रदाय से सम्बन्धित हैं और इन सम्प्रदायों का अध्ययन करने में उनके विचारों का भी अध्ययन होता रहता है। किन्तु फिर भी हम उनके विचारों एवं योगदानों को विस्तारपूर्वक समझने के लिए उनके जीवन दर्शन एवं शिक्षा दर्शन का व्यक्तिगत रूप से अध्ययन करते हैं। भारतीय विश्वविद्यालयों के शिक्षाशास्त्र एवं प्रशिक्षण संस्थाओं के पाठ्यक्रम के अन्तर्गत प्रायः हम जिन-जिन पाश्चात्य एवं भारतीय शिक्षाशास्त्रियों के दार्शनिक एवं शैक्षिक विचारों का अध्ययन करते हैं उनके नाम अधोलिखित हैं-

(अ) पाश्चात्य शिक्षाशास्त्री (Western Educationists)
(1) सुकरात (Socrates),
(2) प्लेटो (Plato),
(3) अरस्तू (Aristotle),
(4) हरबर्ट स्पेन्सर (Herbert Spencer),
(5) हरबार्ट (Herbart),
(6) फ्रोबेल (Froebel),
(7) मॉरिया मान्टेसरी (Maria Montessori),
(8) पेस्टालॉजी (Pestalozzi),
(9) टी. पी. नन (T. P. Nunn),
(10) लॉक (Locke),
(11) रूसो (Rousseau),
(12) जॉन ड्यूवी (John Dewey),
(13) कॉमेनियस (Comenius) आदि।

(ब) भारतीय शिक्षाशास्त्री (Indian Educationists)
(1) रवीन्द्र नाथ टैगोर (Ravindra Nath Tagore),
(2) महात्मा गाँधी (Mahatma Gandhi),
(3) महायोगी श्री अरबिन्द (Mahayogi Shri Aurobindo),
(4) स्वामी विवेकानन्द (Swami Vivekanand),
(5) महर्षि दयानन्द सरस्वती (Maharshi Dayanand Saraswati),
(6) पंडित मदन मोहन मालवीय (Pandit Madan Mohan Malviya),
(7) श्रीमती एनी बीसेन्ट (Smt. Annie Besant) आदि।

राष्ट्र की शिक्षा नीति एवं शिक्षा-योजना का अध्ययन
(Study of Policy of Education and Scheme of Education of Nation)

शिक्षा दर्शन के अन्तर्गत राष्ट्र की शिक्षा नीति एवं शिक्षा योजना का आलोचनात्मक अध्ययन किया जाता है क्योंकि इस प्रकार के अध्ययन से कई लाभ होते हैं—
प्रथम लाभ तो यह है कि इससे राष्ट्र की वर्तमान शिक्षा नीति एवं शिक्षा योजना के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान हो जाता है।
द्वितीय इस प्रकार के अध्ययन से इसमें जो कमियाँ होती हैं उनका निराकरण करने के लिए आवश्यक सुझाव दिए जा सकते हैं।
तृतीय भावी शिक्षा नीति एवं शिक्षा योजना के निर्माण में मार्ग-प्रदर्शन प्राप्त हो जाता है।
चतुर्थ इस प्रकार के अध्ययन से शिक्षा-प्रसार के कार्यक्रम में सहायता प्राप्त होती है।

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