शैक्षिक अनुसंधान का स्वरूप एवं विषय क्षेत्र

शैक्षिक अनुसंधान का स्वरूप एवं विषय क्षेत्र
(Nature and Scope of Educational Research)

जॉर्ज जी मॉर्टे  ने शिक्षा की एक वैज्ञानिक पद्धति से व्याख्या की है और शैक्षिक अनुसंधान को विशेष महत्व दिया है। उन्होंने शिक्षा को वैज्ञानिक स्वरूप देने के लिए इसकी समस्याओं, आधुनिकीकरण या संवर्धन के लिए नियोजित अनुसंधान करने को कहा है। शैक्षणिक व्यवस्था के विस्तार का उद्देश्य छात्रों को बेहतर शिक्षा देना है।

इसलिए बेहतर शिक्षा का विकास शिक्षा की पद्धतियों को व्यवस्थागत स्वरूप देने, शिक्षण पद्धति को विकसित करने, प्रशासन, निरीक्षण से सुनिश्चित होता है। अनुसंधान मानव क्रियाओं का महत्वपूर्ण अंग है।

किसी भी विशेष अनुसंधान से हम जीवन के किसी क्षेत्र विशेष में प्रगति कर सकते हैं। मानव में स्थायी विकास की सभ्यता के विकास के साथ ही जिज्ञासा की प्रवृत्ति में उत्तरोत्तर वृद्धि प्राप्त होती है। मानव का प्रथम प्रयास प्रकृति के रहस्यों को ज्ञात करने का था, जिसमें काफी अधिक सफल नहीं हो सके। किंतु इन रहस्यों के स्थायी पहचान पर मानव ने ध्यान देना शुरू कर दिया।

आग और हथियारों की खोज से मनुष्य ने शक्ति अर्जित करने में सफलता हासिल की। इसी क्रम में हमें बोली का विकास और रहस्यों को समझने के लिए शिक्षा का विकास मिलता है। प्रकृति के रहस्यों को लेकर अपने अनुसंधान को मानव ने शिक्षा के माध्यम से ही आने वाली पीढ़ी को सौंपा।

वर्तमान समय में अनुसंधान और नई खोजों से हमने शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक विस्तार कर लिया है और यह प्रक्रिया सतत जारी है। लगातार नई अवधारणा, नए रास्तों की तलाश से हमारा जीवन सुगम हुआ है और शिक्षा के क्षेत्र में एक क्रांति आई है। वास्तव में अनुसंधान के तीन महत्वपूर्ण कारक हैं-

1. अनुसंधान को पूछताछ की प्रवृत्ति कहा जा सकता है। इसमें किसी विषय के सभी आयामों को सैद्धान्तिक रूप नहीं दिया जाता है बल्कि आवश्यक तथ्यों को ज्ञात करने की कोशिश की जाती है।
2. व्यवस्थागत व शोधार्थ क्रियाकलाप का अनुसंधान एक वैज्ञानिक पद्धति है। जैसे कि हम वैज्ञानिक पद्धति में उपकरणों व चरणबद्ध तकनीकों का प्रयोग कर किसी निष्कर्ष पर पहुंचते हैं, उसी प्रकार अनुसंधान से हम शिक्षा के नए आयाम की तलाश करते हैं ।
3. अनुसंधान आवश्यक रूप से मस्तिष्क की एक विशेष अवस्था है, जो परिवर्तन के प्रति मित्रवत व आग्राही विचार रखता है। परंपरागत पद्धतियों में बदलाव लाने, उनमें एक नए प्रकार का रास्ता तलाश करने, नए तथ्यों की खोज करने में शोधकर्ता की अत्यंत दिलचस्पी होती है।

शैक्षिक अनुसंधान का स्वरूप एवं विषय क्षेत्र
शैक्षिक अनुसंधान का स्वरूप एवं विषय क्षेत्र

अनुसंधान को निम्नलिखित भागों में बांटा गया है-

आधारभूत अनुसंधान (Fundamental or Basic Research)

आधारभूत अनुसंधान से हमें किसी भी विषय में गहन विश्लेषण के बाद सामान्यीकरण करने और अनुसंधान की विभिन्न पद्धतियों से प्राप्त प्रदत्तों से प्राप्त करते हैं। यथा- नमूना एकत्र करना, प्राथमिक प्रदत्तों का विश्लेषण करना। सामान्य रूप से हम कह सकते हैं कि अनुसंधान की इस पद्धति में हम व्यवस्थित कार्य से खोज की तरफ अग्रसर होते हैं जो हमें एक व्यवस्थित निकाय विकसित करने में सहायक होता है और इससे हम वैज्ञानिक ज्ञान प्राप्त करते हैं।

व्यवहृत या अनुप्रयुक्त अनुसंधान (Applied Research)

आधारभूत अनुसंधान में जहाँ हम सिद्धांतों को प्राप्त करते हैं, वही हम क्रियात्मक अनुसंधान में प्राप्त सिद्धांतों के प्रयोग की संभावना ज्ञात करते हैं। कार्यरूप में शोधकर्ता क्षेत्र अध्ययन के दौरान नियमों का आकलन करता है और उन्हें व्यवहारिक रूप देकर किसी समस्या का हल प्राप्त करने में प्रयुक्त करता है। इसे किसी त्वरित समस्या को हल करने के लिए भी प्रयोग में लाया जाता है।

क्रियात्मक अनुसंधान (Action Research)

यह किसी सिद्धान्त की स्थापना के लिए नहीं  किया जाता है, बल्कि त्वरित समस्या के निवारण के लिए प्रयोग में लाया जाता है। त्वरित निवारण अनुसंधान में पूर्व के प्रयोग, स्थापित मानदंड, प्रदत्त महत्वपूर्ण फीडबैक का कार्य करते हैं । इसी तरह शैक्षिक अनुसंधान को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-

(i) ऐतिहासिक अनुसंधान (Historical Research)
(ii) वस्तुनिष्ठ अनुसंधान (Descriptive Research)
(iii) प्रायोगिक अनुसंधान (Experimental Research)

ऐतिहासिक अनुसंधान में भूतकाल की व्याख्या की जाती है। इसमें प्राचीन अनुभवों का गहन विवेचन, विश्लेषण कर निष्कर्ष तक पहुंचने की कोशिश की जाती है और समस्याओं के सामान्यीकरण से हल निकाला जाता है। यह अनुसंधान पद्धति बहुत हद तक भूत और वर्तमान को समझने के साथ-साथ भविष्य का अनुमान लगाने में मददगार साबित होता है।

जबकि वस्तुनिष्ठ अनुसंधान में हमें किसी समस्या का भूत ज्ञात होता है। विभिन्न आंकड़ों की विवेचना, विश्लेषण और निष्कर्षों से हम नए अनुसंधान की तरफ बढ़ते हैं।

वही प्रायोगिक अथवा प्रयोगात्मक अनुसंधान में किसी विशेष वैरिएबल को नियंत्रित कर निष्कर्षों का अध्ययन करते हैं। अनुसंधान की इस पद्धति में वैरिएबल के संबंधों पर ध्यान दिया जाता है।

एल. वी. रेडमन (L.V.Redman) ने “Encyclopedia of Social Science” में परिभाषा इस प्रकार दी है,” अनुसंधान नवीन ज्ञान प्राप्त करने के लिए एक व्यवस्थित प्रयास है।”

पी. एम. कुक (P.M. Cook) के अनुसार, “किसी समस्या के संदर्भ में ईमानदारी, विस्तार तथा बुद्धिमानी से तथ्यों, उनके अर्थ तथा उपयोगिता की खोज करना ही अनुसंधान है।”

एम. एम. ट्रेवर्स (M.M. Traverse) के अनुसार, “शैक्षिक अनुसंधान वह प्रक्रिया है, जो शैक्षिक परिस्थितियों में एक व्यवहार संबंधी विज्ञान के विकास की ओर अग्रसर होती है।”

सी. सी. क्रोफोर्ड (C.C. Crowford) के अनुसार, “ अनुसंधान किसी समस्या के अच्छे हेतु क्रमबद्ध तथा विशुद्ध चिन्तन एवं विशिष्ट उपकरणों के प्रयोग की एक विधि है।”

डॉ. एम. वर्मा के अनुसार, “अनुसंधान एक बौद्धिक प्रक्रिया है, जो नए ज्ञान को प्रकाश में लाती है अथवा पुरानी त्रुटियों एवं भ्रान्तधारणाओं का परिमार्जन करती है, तथा व्यवस्थित रूप से वर्तमान ज्ञान-कोष में वृद्धि करती है।”

पारस नाथ राय व चाँद भटनागर के अनुसार, “अनुसंधान का मुख्य उद्देश्य वैज्ञानिक विधियों द्वारा विशिष्ट प्रश्नों का उत्तर अथवा विशिष्ट समस्याओं का समाधान प्राप्त करना है। इस उत्तर की प्राप्ति के लिए विशेष विधियों का विकास किया जाता है जिनसे इस बात की सम्भावना बढ़ जाती है कि प्राप्त जानकारी न केवल पूछे गए प्रश्नों से सम्बन्धित है अपितु वह विश्वसनीय भी है। वैज्ञानिक अनुसंधान की एक अन्य विशेषता यह है कि वह सदा ही किसी प्रश्न या समस्या के रूप में उत्पन्न होता है।”

अनुसंधान एक उद्देश्यपूर्ण बौद्धिक क्रिया है। इसमें किसी सैद्धान्तिक या व्यवहारिक समस्या के समाधान का प्रयास होता है और अनुसंधान की समस्या सीमांकित (Delimited) होती है। इसके अंतर्गत किसी नए सत्य की खोज, पुराने सत्यों का नए ढंग से प्रस्तुतीकरण अथवा प्रदत्तों में व्याप्त नए सम्बन्धों का स्पष्टीकरण होता है।

यह प्रक्रिया वैज्ञानिक होती है, इसमें प्रदत्तों (Dates) प्राप्त करने हेतु, विश्वसनीय (Reliable) तथा वैध (Valid) तथा वस्तुनिष्ठ वैज्ञानिक उपकरणों (Tools) का प्रयोग होता है। इसमें प्राकल्पनाओं (Hypothesis) का निर्माण और उनका वैज्ञानिक ढंग से परीक्षण होता है । प्रदत्तों के विश्लेषण (Analysis) हेतु सांख्यिकीय, (Statistical) विधियों का प्रयोग होता है। साथ में प्राप्त निष्कर्ष पूर्ण रूप से प्रदत्तों के विश्लेषण पर ही आधारित होते हैं। सम्पूर्ण प्रक्रिया का वास्तविक प्रतिवेदन (Repent) प्रस्तुत किया जाता है जिससे अन्य लोग भी उसकी परीक्षा एवं सत्यापन कर सकें ।

डॉ. बी. बी. पाण्डेय ने कहा है, अनुसंधान प्रक्रिया के द्वारा प्रदत्तों के विश्लेषण के आधार पर किसी समस्या का विश्वसनीय समाधान ज्ञात किया जाता है।……इसमें नवीन तथ्यों की खोज की जाती है एवं नवीन सत्यों या तथ्यों का प्रतिपादन किया जाता है तथा साथ ही साथ प्राचीन तथ्यों तथा प्रत्ययों का नवीन अर्थामत या व्याख्या (New interpretation) भी किया जाता है।”

अनुसंधान के अंतर्गत किसी तथ्य को बार-बार सम्बन्धित प्रदत्तों के आधार पर देखने या खोजने का प्रयास किया जाता है एवं निष्कर्ष निकाला जाता है। मूल रूप से अनुसंधान का अर्थ (Enquiry) से सम्बन्धित रहा है किन्तु धीरे-धीरे निरन्तर इसका संशोधन और विकास होता गया है ।

डॉ. पारसनाथ राय के अनुसार यह शिक्षा से स्वस्थ दर्शन पर आधारित है। यह सूझ तथा कल्पना पर आधारित है। इसमें अंतर-वैज्ञानिक (Inter-disciplinary) पद्धति का प्रयोग होता है। इसमें प्रायः निगमनात्मक तर्क पद्धति का प्रयोग होता है। यह शिक्षा-क्षेत्रों में सुधार करता है तथा उसके विकास की समस्याओं का समाधान करता है। शैक्षिक अनुसंधान में उतनी सीमा तक शुद्धता नहीं होती जितनी प्राकृतिक विज्ञानों में होती है। यह केवल विशेषज्ञों द्वारा ही नहीं किया जाता अपितु शिक्षक, प्रधानाचार्य, निरीक्षक, प्रशासक आदि के द्वारा किया जाता है।

शैक्षिक अनुसंधान के क्षेत्र (Scope of Education Research)

शैक्षिक अनुसंधान के क्षेत्र शिक्षा-दर्शन, शैक्षिक उद्देश्यों का निर्धारण, उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु नियोजन, व्यवस्थापन, संचालन, समायोजन, व्यवस्था, शिक्षण-विधि, अधिगम व उसे प्रभावित करने वाले तत्त्व, प्रशासन, पर्यवेक्षण, मूल्यांकन आदि। इनके अतिरिक्त शिक्षक संबंध, पाठ्यक्रम, पाठ्यपुस्तक, सहायक-सामग्री आदि।

अनुसंधान की आवश्यकता (Need and Significance)

शैक्षिक अनुसंधान शैक्षिक समस्याओं के समाधान में इस प्रकार सहायक है :
1. ज्ञान के विकास में सहायकगुड व स्केट्स (Good & Scates) का मत है, “विज्ञान का कार्य बुद्धि का विकास करना है तथा अनुसंधान का कार्य विज्ञान का विकास करना है।”
2. अनुसंधान उद्देश्य प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन है-शैक्षिक अनुसंधान एक उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है जो शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति में अत्यन्त सहायक है ।
3. समाज-परिवर्तन की मन्द गति को तीव्र बनाने में सहायक है-अनुसंधान द्वारा नवीन आविष्कारों से समाज परिवर्तन की प्रक्रिया में शिक्षा सहायक होती है ।
4. राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय भावना के विकास में सहायक-शैक्षिक अनुसंधान के अंर्तगत लोकहितकारी भावनाओं का समन्वय होता है जिससे वह राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव के विकास में सहायक होता है।
5. शैक्षिक अनुसंधान व उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु सरल उपाय बतलाता है-अतः इसकी आवश्यकता एवं महत्व बना रहता है।
6. अनुसंधान सुधार प्रक्रिया में सहायक होता है क्योंकि वह वैज्ञानिक होने के कारण रूढ़िगत विचारों व व्यवहारों में सुधार लाता है ।
7. यह सत्य-ज्ञान की खोज की उत्सुकता शान्त करता है-विज्ञान सम्मत होने का कारण शैक्षिक अनुसंधान सत्य की खोज में सहायक होता है।
8. प्रशासनिक क्षेत्र में सहायक-प्रशासन की अनेक समस्याओं के समाधान द्वारा उसे प्रभावी बनाता है ।
9. अध्यापक के लिए अपरिहार्य-क्योंकि अध्यापन में आ रही अनेक कठिनाइयाँ व समस्याएं क्रियात्मक अनुसंधान द्वारा हल हो जाती है। अतः यह शिक्षक के लिए अत्यन्त आवश्यक और महत्त्वपूर्ण है।
10. विभिन्न विज्ञानों की प्रगति में सहायक-अनुसंधान भौतिक एवं सामाजिक सभी विज्ञानों की प्रगति में सहायक होता है।
11. व्यवहारिक समस्याओं का मूल स्रोत-शिक्षा क्षेत्र की व्यावहारिक समस्याओं का “क्रिया अनुसंधान” (Action research) जैसी अनुसंधान विधियों द्वारा समाधान मिलता है।
12. पूर्वग्रहों का निदान व निवारण-शैक्षिक अनुसंधान द्वारा शिक्षा क्षेत्र में व्याप्त अनेक हानिकारक पूर्वग्रहों व मान्यताओं का पता लगाकर उन्हें किया जा सकता है ।

डॉ. बी. बी. पाण्डेय ने अपनी पुस्तक “शैक्षिक और सामाजिक अनुसंधान एवं सर्वेक्षण” में कहा है, “मानव-जाति की अधिकतम उन्नति एवं विकास के क्रियान्वयन में अनुसंधान का बहुत ही महत्त्वपूर्ण योगदान है। इसीलिए अनुसंधान की ख्याति दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।”

शैक्षिक अनुसंधान का उद्देश्य

शैक्षिक समस्याओं का वैज्ञानिक विधि से निदान व समाधान करना है । डब्ल्यू. एस. मुनरो (W.S. Munroe) ने शैक्षिक अनुसंधान की परिभाषा देते हुए उसके उद्देश्य को इस प्रकार व्यक्त किया है- “अनुसंधान उन समस्याओं के अध्ययन की एक विधि है, जिसका अपूर्ण अथवा पूर्ण समाधान तथ्यों के आधार पर ढूँढना है। अनुसंधान के लिए तथ्य, लोगों के मतों के कथन, ऐतिहासिक तथ्य, लेख अथवा अभिलेख, परखों (Tests) से प्राप्त कर, प्रश्नावाली के उत्तर अथवा प्रयोगों से प्राप्त सामग्री से हो सकता है।”

वैज्ञानिक खोज और सिद्धान्त का विकास (Scientific Research and Principle of Development)

पारसनाथ राय एवं सी. भटनागर ने अपनी पुस्तक “अनुसंधान परिचय” में कहा है- “मनुष्य जैसे-जैसे प्रगति के पथ पर बढ़ता गया, उसने ज्ञान प्राप्त करने की नवीन विधियाँ खोजी……जिनमें केवल वैज्ञानिक विधि (Scientific Method) ही ज्ञान प्राप्त करने की प्रामाणिक विधि मानी जाती है।”

वैज्ञानिक खोज या अनुसंधान के अंतर्गत चरों तथा घटनाओं के पारस्परिक सम्बन्धों का वैज्ञानिक विधि के अनुसार अन्वेषण तथा विश्लेषण किया जाता है। यह सांख्यिकी विधि के आधार पर किया जाता है। अन्वेषण द्वारा प्राप्त व विश्वसनीयता की जाँच की जाती है। अत: अनुसंधान ज्ञान को विस्तृत, विशुद्ध, संगठित तथा क्रमबद्ध बनाता है। अनुसंधान द्वारा वैज्ञानिक ज्ञान की प्राप्ति की जाती है।

अनुसंधान की नई प्रवृतियाँ हैं- वस्तुनिष्ठता (Objectivity), निश्चयात्मकता (Definiteness), सत्यनीयता (Verifi-ability), सामान्यता (Generality), अर्थात् सिद्धान्त निर्माण, भविष्य-कथन की क्षमता, आत्म संशोधनीयता, (Self-correction), परिकल्पना (Hypothesis), का प्रयोग मात्रात्मक अनुमान (Qualitative estimate)।

अनुसंधान के प्रकार (Types of Research)

मूलभूत अनुसंधान (Fundamental or Basic Research)

मूलभूत अनुसंधान में अनुसंधानकर्त्ता प्राकृतिक परिदृश्य (Phenomenon) को अपने अध्ययन के निष्कर्षों से सम्बन्धित करता है। इस प्रकार के अनुसंधान का उद्देश्य तथ्यों का एकत्रीकरण है क्योंकि ये तथ्य हमारे ज्ञान में वृद्धि करते हैं।

अनुप्रयुक्त अनुसंधान (Applied Research)

इस प्रकार के अनुसंधान द्वारा किसी विशेष समस्या का समाधान किया जाता है। इसमें विज्ञान के कुछ विशेष नियमों का किसी विशेष प्रकरण पर प्रभाव जाना जाता है। यदि अनुसंधानकर्त्ता किसी समस्या का समाधान करें तो यह अनुसंधान व्यहृत या अनुप्रयुक्त अनुसंधान कहलाता है

क्रियात्मक अनुसंधान (Action Research)

सामाजिक विज्ञानों में क्रियात्मक समस्याओं (Practical problems) पर किए गए अनुसंधान नए सिद्धान्तों तथा नियमों के बुलाने में सहायक होते हैं।

2 thoughts on “शैक्षिक अनुसंधान का स्वरूप एवं विषय क्षेत्र”

Leave a Comment