क्रियात्मक अनुसंधान की आवश्यकता व महत्व (Need and importance of Action Research)

क्रियात्मक अनुसंधान वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अत्यंत आवश्यक तथा महत्वपूर्ण सिद्ध हुए हैं। प्रजातांत्रिक समाज तथा बालकेन्द्रित शिक्षा के वर्तमान सन्दर्भ में विद्यालयों की कार्यप्रणाली में कठोरता के स्थान पर नम्यता लाने का प्रयास स्वाभाविक ही है। शिक्षा संस्थाओं के प्रबन्धकगण, प्रधानाचार्यगण एवं अध्यापकगण से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने क्रियाकलापों का मूल्याकन स्वयं करें एवं तदनुसार प्राप्त प्रतिपुष्टि के आधार पर अपनी कमियों को जानें तथा अपेक्षित सुधार लाने का प्रयास अपने स्तर से करें।

इस प्रकार की शैक्षिक परिस्थितियों में क्रियात्मक अनुसंधान की आवश्यकता तथा महत्व स्वयं सिद्ध है। परस्पर सहयोग तथा सेवाभाव के उच्च आदर्श को प्राप्त करने के लिए विद्यालयों की समस्याओं तथा कार्यप्रणाली की वैज्ञानिक दृष्टि से आंकना आवश्यक है।

क्रियात्मक अनुसंधान प्रबन्धकों, प्रधानाचार्यों तथा अध्यापकों को संरचनात्मक मूल्यांकन के अवसर प्रदान करके शिक्षा को लक्ष्य सिद्धि को सहज बनाने में सहायता प्रदान करता है। विद्यालयी परिस्थितियों में पाठ्यक्रम, पाठ्यचर्या, पाठ्यपुस्तक, शिक्षण विधि, अनुशासन, विद्यालय प्रबन्धन, नैदानिक क्रियाकलाप आदि से सम्बंधित अनेकानेक समस्यायें सामने आती रहती हैं। इन समस्याओं के प्रति सजगता तथा इनके निराकरण के प्रयास में कमी होने पर शिक्षा संस्थाओं की स्थापना के उद्देश्यों को प्राप्त करना सम्भव नहीं हो सकता है।

क्रियात्मक अनुसंधान विद्यालयों की कार्यप्रणाली में परिलक्षित होने वाली विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सरल प्रभावी तथा उपयोगी समाधान प्राप्त करने की दिशा में एक सार्थक कदम कहा जा सकता है। क्रियात्मक अनुसंधान वस्तुतः नवाचारी ढंग से कल्पनाशील, सृजनशील तथा प्रभावशाली विचारों का प्रस्फुटन करके समस्याओं के ऐसे समाधान प्रस्तुत करता है जो विद्यालय की कार्यप्रणाली में अपेक्षित सुधार लाकर छात्रों के सर्वांगीण विकास का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

क्रियात्मक अनुसंधान के द्वारा विद्यालयों की कार्यशैली, क्षमता, एवं प्रबन्धन में लाए जाने वाले सुधार तथा विकास निश्चित रूप से अत्यन्त स्पष्ट, प्रभावी तथा उपयोगी होते हैं, जिन्हें इस दिशा में एक ठोस कदम कहा जा सकता है।

Table of Contents

क्रियात्मक अनुसंधान की आवश्यकता

आज की परिवर्तनशील परिस्थितियों में शिक्षा के क्षेत्रों में क्रियात्मक अनुसन्धान को प्रोत्साहन देना और प्रयोग में लाना निम्नलिखित दृष्टि से आवश्यक हो गया है।

क्रियात्मक अनुसंधान की आवश्यकता व महत्व (Need and importance of Action Research)
क्रियात्मक अनुसंधान की आवश्यकता व महत्व (Need and importance of Action Research)

पाठ्यक्रम एवं शिक्षण-पद्धति में सुधार (Reforms in Curriculum and Teaching Methods) :

शिक्षा उद्देश्यों की पूर्ति को आधार मानते हुए विद्यालयों के पाठ्यक्रम एवं शिक्षण पद्धतियों के सुधार के लिए निरन्तर कदम उठाए गए हैं। यथार्थ परिस्थितियों की धरा पर क्रियात्मक अनुसन्धान द्वारा परखे तथा अध्ययन किए गए कारकों की सहायता से पाठ्यक्रम व शिक्षा पद्धत्तियों में सुधार किया जा सकता है।

प्रजातान्त्रिक मूल्यों की सुरक्षा servation of Democratic Values) :

शिक्षा में समानता का अधिकार, सामाजिक न्याय एवं शिक्षा का अधिकार (RTE), सभी बालकों को बैद्धिक (RTID) योग्यता का अधिकार जैसे प्रजातान्त्रिक मूल्यों का संरक्षण एवं उनका क्रियात्मक रूप इस शोध प्रक्रिया से निरूपित किया जा सकता है।

विद्यालय की कार्यप्रणाली को सुदृढ़ बनाना (Strengthening the School Functioning):

विद्यालय के शिक्षक, प्रधानाचार्य तथा दूसरे कार्यकर्ताओं को इस शोध पद्धति के अन्तर्गत अपनी क्रियाओं में विकास एवं सुधार लाने का प्रावधान उपलब्ध होता है। जिसके द्वारा विद्यालय की कार्यप्रणाली में सुधार लाया जा सकता है।

परस्पर सहयोग से समस्याओं को हल करने के आधार (Use of Co-operative Means to Solve the Problems) :

क्रियात्मक अनुसन्धान में एकल अथवा सामूहिक रूप से समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। यदि शिक्षक, प्रधानाचार्य एवं परामर्शदाता एकजुट होकर किसी समस्या का हल खोजते हैं तो उनमें आपसी सहयोग तथा सहकारिता की भावना उत्पन्न होती है।

कार्यपद्धति का मूल्यांकन स्वयं करना (Self-evaluation of Working System) :

इस पद्धति से शिक्षको को अपनी कार्य-पद्धति का मूल्यांकन स्वयं करने के अवसर प्रदान होते हैं। इससे शिक्षा पद्धति में सुधार तो होता ही है शिक्षक के आत्म-संप्रत्यय में वृद्धि तथा आत्मविश्वास जैसे गुणों का विकास होता है।

अपने दायित्व का बोध (Awareness of one’s Responsibility) :

क्रियात्मक अनुसन्धान शिक्षक को अपने उत्तरदायित्व के महत्व का बोध कराता है। वह समझ सकता है कि शिक्षा से निकटतम सम्बन्ध उसी का है तथा शिक्षा की कार्यप्रणाली में सुधार के प्रयत्न भी उसे ही करने चाहिए। यह प्रजातान्त्रिक समान अवसरों के उपयोग की अपेक्षा शिक्षक के आत्मबल तथा व्यक्तित्व विकास की दृष्टि से अधिक प्रभावकारी है।

विद्यालय-समस्याओं की अनेकता (Diversity of School Problems):

विद्यालयों में पाठ्यक्रम, शिक्षण प्रणाली, अनुशासन, प्रबन्धन तथा प्रशासन, वजीफे एवं अनुदान, पुस्तकालय, पुस्तकों एवं उनका उपयोग, छात्रों की विभिन्न प्रकार की विविधताएँ तथा उनसे जुड़ी समस्याएँ आदि उनेक समस्यात्मक विषय हैं, तथा ऐसी समस्याओं में निरन्तर वृद्धि हो रही है। क्रियात्मक अनुसन्धान अभ्यासकर्ताओं (शिक्षकों) तथा अन्य कर्मियों द्वारा स्कूल की समस्याओं का सरल एवं प्रभावपूर्ण हल प्राप्त करने की दिशा में सराहनीय एवं लाभप्रद युक्ति है।

विद्यालय की क्षमता एवं सामर्थ्य में सुधार (Progress in School’s Potential):

क्रियात्मक अनुसन्धान द्वारा स्कूल की कार्यशैली में जो भी सुधार होंगे अथवा परिवर्तन लाए जाएँगे, वे पर्याप्त स्पष्ट एवं ठोस होंगे क्योंकि वे यथार्थ की पृष्ठभूमि पर किये गए अनुसन्धान के परिणामों पर आधारित होंगे। इससे स्कूलों की कार्यक्षमता बढ़ेगी तथा उनकी कार्यशैली एवं सामर्थ्य में निरन्तर वृद्धि होगी।

छात्रों के उपलब्धि स्तर में वृद्धि (To Increase the Levels of Students’ Achievement):

जब शिक्षक छात्रों के किसी विषय अथवा उसके किसी अनुभाग में निम्न स्तर उपलब्धि पर अनुसन्धान करके कारणों की जाँच करता है
तथा परिणामस्वरूप प्राप्त निष्कर्षों के अनुरूप शिक्षण विधि में सुधार करता है अथवा कारकों का निराकरण करता है तो छात्रों की उपलब्धि स्तर में वृद्धि होना निश्चित ही होता है।

शोध परिणामों के कार्यान्वयन की समस्या नहीं होती (Use of Research Findings not Problematic) :

जैसा कि प्रायः परम्परागत अध्ययनों के सन्दर्भ में होता है। क्रियात्मक अनुसन्धान के परिणामों का शिक्षक, प्रधानाचार्य तथा शिक्षार्थी पर तुरन्त प्रभाव पड़ता है, क्योंकि (i) शोध की समस्या प्रत्यक्ष रूप से उनसे संबंधित होती है, और (ii) ऐसे शोधकार्यों में अनुसन्धानकर्ता उत्पादक एवं उपभोक्ता- शिक्षक, प्रधानाचार्य, प्रबन्धक अथवा निरीक्षक दोनों स्वयं होता है।

करके सीखना अत्यन्त उपयोगी होता है (Learning by Doing is Useful) :

ऐसी मान्यता सभी शिक्षण पद्धतियाँ स्वीकार करती हैं क्योंकि कार्य करने से हमारे व्यवहार-पक्षों में प्रत्यक्ष परिवर्तन होता है तथा कर्ता को कार्य पद्धति का स्पष्ट बोध भी हो जाता है। क्रियात्मक अनुसन्धान के सन्दर्भ में भी यह सत्य है। करके सीखने का प्रभाव स्थायी होता है तभी तो इस अनुसन्धान का प्रतिफल शिक्षक एवं छात्रों के लिए अत्यन्त सकारात्मक होता है।

अन्तःवैयक्तिक समस्याओं/उलझनों में कमी (Lessening Interactive Problems):

मानवीय व्यवहार सम्बंधी सभी क्षेत्रों में प्राधिकारी एवं अधीनस्थ कार्यकर्ताओं में द्वन्द्व एवं संशय की परिस्थितियाँ बनी रहती हैं। स्कूलों में शिक्षकों द्वारा प्रधानाचार्य की निन्दा, शिक्षकों में आपसी ईर्ष्या एवं द्वेष प्रति दिन के कार्यक्रम का हिस्सा-सा बन गया है। सामूहिक रूप में क्रियात्मक अनुसन्धान करने की स्थितियाँ इन सब में कमी करने का प्रभावकारी माध्यम बन सकती हैं।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास (Development of Scientific Attitude) :

अनुसन्धान एक वैज्ञानिक पद्धति है जो शोधकर्ताओं में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास में सहायक होती है। एक ऐसी दृष्टि एवं सोच जो पक्षपात से रहित हो, रुचियों एवं स्वार्थों से प्रभावित न हो और जो वस्तुनिष्ठता को महत्व दे तथा आत्मनिष्ठता के आधार पर निर्णय न ले, ‘क्रियात्मक अनुसन्धान’ शिक्षकों, प्रधानाचार्यों एवं प्रबन्धकों में ऐसा दृष्टिकोण विकसित करने की शुरुआत कर सकता है। वैज्ञानिक आविष्कारों, प्रौद्योगिकी एवं विशेष रूप से सूचना प्रौद्योगिकी के कारण उत्पन्न हुई नई परिस्थितियों का सामना करने के लिए क्रियात्मक अनुसन्धान का अवलम्बन लेना श्रेयष्कर है।

छात्रों की बहुमुखी प्रतिभाओं के विकास (Development of Various Potentialities of Students) :

इसके लिए आवश्यक है कि उन प्रतिभाओं के विकास की कठिनाइयों को क्रियात्मक अनुसन्धान के द्वारा दूर किया जाए। उन्हें विविध शैक्षिक तथा शिक्षा सहगामी क्रियाओं में भागीदारी के लिए प्रोत्साहित किया जाए। अत: इस प्रकार सभी सम्बंधित समस्याओं का निराकरण करके विद्यालय के क्रिया-कलापों को प्रभावोत्पादक ढंग से आयोजित करने के लिए क्रियात्मक अनुसन्धान एक उपयोगी प्रणाली है।

सामाजिक परिवर्तनों की पृष्ठभूमि में विद्यालय (School Being the Base of Social Change):

विद्यालय समाज का लघु रूप है। स्कूल में पाठ्यक्रम, पठन-विषयों तथा शिक्षण विधियों तथा इनसे जुड़ी छात्रों की वैयक्तिक एवं सामूहिक समस्याओं का क्रियात्मक अनुसन्धान द्वारा समाधान खोजना तथा उन्हें क्रियान्वित करना एक तरह से बड़े पैमाने पर सामाजिक परिवर्तनों की पृष्ठभूमि तैयार करना है क्योंकि विद्यालय समाज का प्रतिबिम्बित रूप है।

राष्ट्र के हित में (Beneficial for Nation) :

किसी राष्ट्र की प्रगति उसके विभिन्न क्षेत्रों के अनुसन्धान पर निर्भर करती है। राष्ट्र की उन्नति का रहस्य उसके लोगों की चेतना, मौलिकता, वचनबद्धता तथा राष्ट्र चरित्र से जुड़ी विशेषताओं में छिपा होता है। अनुसन्धान इस बात की चेतना एवं क्रियाशीलता को उत्पन्न करने का सबल माध्यम है। एक विकासशील देश होने का दावा करने के लिए यह आवश्यक है कि जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अनुसन्धान को प्रोत्साहन दिया जाए। शिक्षा के क्षेत्र में क्रियात्मक अनुसन्धान को सर्वोच्च महत्व देना होगा ताकि समस्याओं के लिए खोजे गए समाधानों को तुरन्त प्रभाव से लागू किया जा सके, क्योंकि यह सर्वविदित है कि विद्यालयों में शैक्षिक सुधार लाने के लिए परम्परागत अनुसन्धान परिणामों को उपयुक्त प्रतिफल नहीं मिल रहा है।

अतः क्रियात्मक अनुसन्धान हमारे विद्यालयों की अपरिहार्य आवश्यकता है जो पर्यावरण सुरक्षा, निरक्षरता, सामाजिक अन्याय एवं भेदभाव की समस्याओं को निपटाने के लिए विद्यालय में, विद्यालय द्वारा, विद्यालयों की भलाई के लिए किया गया महत्वपूर्ण प्रयास है।

स्टीफन एम. कोरे के शब्दों में, “हमारे विद्यालय तब तक ऐसी गतिविधियाँ सुरक्षित नहीं रख सकते जिन्हें अपनाने तथा सुधार करने की उनसे अपेक्षा है, जब तक शिक्षक, छात्र, निरीक्षक, प्रबन्धक तथा विद्यालय के संरक्षक इस बात का सतत् मूल्यांकन नहीं करते कि वे क्या कर रहे हैं। एकल अथवा सामूहिक रूप से उन्हें अपनी रचनात्मक कल्पना एवं सृजनशीलता से उन गतिविधियों को पहचानना है जिनसे आधुनिक जीवन की आवश्यकताओं एवं मांगों को सन्तुष्ट करने की आवश्यकता है। ऐसी गतिविधियों को साहसपूर्वक परखना होगा जो बेहतर आशाएँ विकसित करती हैं तथा जिसकी उपयोगिता सिद्ध करने के लिए विधिवत् एवं व्यवस्थित रूप से प्रमाणों को एकत्रित करने की आवश्कता है।”

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