इस आर्टिकल में हम शिक्षक के लिये शिक्षा मनोविज्ञान की आवश्यकता (Need of Educational Psychology for a Teacher) का अध्ययन करेंगे।
मनोविज्ञान के सिद्धान्त तथा व्यवहारों का ज्ञान शिक्षक के लिये अत्यन्त उपयोगी है। इस प्रकार के ज्ञान से वह शिक्षक अपने शिक्षण को पर्याप्त मात्रा में सुधार सकता है तथा अपने शिक्षण को प्रभावपूर्ण बना सकता है। संसार के सभी शिक्षाशास्त्री इस बात पर विशेष बल देते हैं कि अध्यापक को अपने शिष्यों के प्राकृतिक गुणों एवं शक्तियों को भली-भाँति समझ लेना चाहिए।
थॉमस फुलर ने एक अच्छे अध्यापक का वर्णन करते हुए लिखा है कि, “एक अच्छा अध्यापक वह है जो अपने शिष्यों के स्वभाव का अध्ययन उतनी ही होशियारी से करता है, जितनी होशियारी से वह पुस्तकें पढ़ता है।”
सर जॉन एडम्स शिक्षा की व्याख्या करते हुए प्रायः इस वाक्य को दोहरते थे – “The master taught John Latin.” इस वाक्य में शिक्षण प्रक्रिया से सम्बन्धित सभी प्रमुख कारण उपस्थित हैं। गुरु या अध्यापक शिक्षा का एक ध्रुव है। शिष्य या जॉन दूसरा ध्रुव है। विषय-वस्तु या लैटिन गुरु का वह ज्ञान है, जिसे वह किसी प्रकार शिष्य तक स्थानान्तरित करना चाहता है। पढ़ाना वह शैक्षिक कार्य है जो गुरु और शिष्य को सम्बन्धित करता है। सर जॉन एडम्स ने इस बात पर अधिक महत्व दिया कि गुरु को लैटिन (विषय-वस्तु) और जॉन (शिष्य) दोनों का अच्छा ज्ञान होना चाहिए तभी वह शिक्षण कार्य ढंग से कर सकता है। जॉन या शिष्य के बारे में जानकारी प्राप्त करना ही शिक्षा मनोविज्ञान है।
शिक्षा मनोविज्ञान के ज्ञान के द्वारा शिक्षक अपने व्यवहार, स्वभाव, बुद्धि-स्तर, अभियोग्यता, अभिरुचि तथा निष्पत्ति आदि का ज्ञान प्राप्त कर सकता है। इस प्रकार के ज्ञान के द्वारा वह अपने में आवश्यक सुधार ला सकता है।
एलिस क्रो के शब्दों में, “शिक्षकों को अपने शिक्षण में उन मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का प्रयोग करने के लिए तैयार रहना चाहिए, जो सफल शिक्षण एवं फलोत्पादक अधिगम के लिये अनिवार्य हैं।”

शिक्षक के लिये शिक्षा मनोविज्ञान की आवश्यकता (Need of Educational Psychology for a Teacher)
शिक्षक के लिये शिक्षा मनोविज्ञान की आवश्यकता को निम्न बिन्दुओं द्वारा और अधिक स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) छात्रों का ज्ञान प्राप्त करने हेतु—सफल शिक्षक बनने के लिये यह आवश्यक है कि शिक्षक अपने छात्रों से सम्बन्धित आवश्यक सूचनाओं से अवगत हो। शिक्षक एक ऐसे उत्पादन में व्यस्त रहता है जहाँ उसे जीवित कच्चा माल प्राप्त होता है तथा उसे जीवित तैयार माल उत्पादित करना पड़ता है। अतः इस उत्पादन प्रक्रिया में अपने जीवित कच्चे माल का ध्यानपूर्वक अध्ययन करना पड़ता है। इस प्रकार के अध्ययन के अभाव में वह कभी भी अच्छा माल उत्पादित नहीं कर सकता है।
दूसरे शब्दों में जब तक मिस्त्री को भवन की नींव का पता नहीं होगा तब तक भवन खड़ा नहीं किया जा सकता है। बालकों को समुचित शिक्षा प्रदान करने के लिये आवश्यक है कि शिक्षक छात्रों के व्यवहार, उनके पूर्व ज्ञान, मनोशारीरिक स्तर, उनकी धारणाओं, योग्यताओं, अभिवृत्तियों, रुचियों, व्यक्तित्व क्षमताओं, तथा अन्य योग्यताओं एवं न्यूनताओं का पता लगाये। यह कार्य शिक्षा मनोविज्ञान के ज्ञान से ही सम्भव है। शिक्षा मनोविज्ञान के ज्ञान के द्वारा ही वह बालकों की मूलप्रवृत्तियों का शोधन (Sublimation) तथा मार्गान्तीकरण कर सकता है।
(2) पाठ्यक्रम निर्माण करने हेतु सफल शिक्षा के लिये पाठ्यक्रम का निर्धारण करना भी आवश्यक होता है। इस कार्य के लिये शिक्षा मनोविज्ञान का ज्ञान नितान्त आवश्यक है। बिना शिक्षा मनोविज्ञान के ज्ञान के समुचित पाठ्यक्रम का निर्माण नहीं किया जा सकता है। जब तक मनोवैज्ञानिक आधारों पर पाठ्यक्रमों का निर्माण नहीं होगा तब तक पूर्व निर्धारित उद्देश्य तथा मूल्यों की प्राप्ति सम्भव नहीं है। स्किनर के शब्दों में, “उपयोगी पाठ्यक्रम बालकों के विकास, व्यक्तिगत भिन्नताओं, प्रेरणा, मूल्यों एवं सीखने के सिद्धान्तों के अनुसार मनोविज्ञान पर आधारित होना चाहिए।”
(3) शिक्षण पद्धतियों के ज्ञान हेतु विषय-वस्तु को शिक्षक छात्रों के सम्मुख तब तक सफलतापूर्वक प्रस्तुत नहीं कर सकता है जब तक कि उसको विभिन्न शिक्षण पद्धतियों के ज्ञान के साथ यह भी ज्ञात न हो कि कौन शिक्षण-पद्धति किस प्रकार के छात्रों के लिये तथा किस विषय के किस पाठ के लिये अधिक उपयुक्त है।
शिक्षा मनोविज्ञान के ज्ञान से शिक्षक यह जान लेता है कि किन परिस्थितियों में किन छात्रों के साथ तथा किन विषयों के अध्ययन हेतु कौन-सी शिक्षण-पद्धति उपयुक्त है। शिक्षा मनोविज्ञान के ज्ञान के द्वारा शिक्षक विभिन्न शिक्षण-पद्धतियों का न केवल सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक ज्ञान ही प्राप्त करता है वरन् उनमें सुधार हेतु प्रयास भी करता है तथा शिक्षा मनोविज्ञान के ज्ञान के आधार पर प्रचलित शिक्षा-पद्धतियों में शिक्षक अपने छात्रों के मनोशारीरिक स्तर तथा व्यक्तिगत विभिन्नताओं के अनुसार सुधार कर लेता है।
(4) मूल्यांकन तथा परीक्षण हेतु—शिक्षक का कार्य पढ़ाने तक ही सीमित नहीं रहता अपितु उसके लिये यह जानना भी अत्यन्त आवश्यक है कि छात्रों ने किसी विषय-वस्तु को किसी निश्चित समय में कितना सीखा है। इस जानकारी के लिये शिक्षक छात्रों का परीक्षण लेता है तथा मूल्यांकन करता है। परीक्षण के लिये शिक्षक को कई प्रकार के परीक्षण भी तैयार करने पड़ते हैं। यह कार्य शिक्षा मनोविज्ञान के ज्ञान के अभाव में असम्भव है। शिक्षा मनोविज्ञान का ज्ञान शिक्षक को परीक्षण निर्मित कर उनसे बालकों का शुद्ध तथा सही मूल्यांकन करना सिखाता है।
(5) छात्रों के निर्देशन हेतु—शिक्षक का कार्य न केवल शिक्षा प्रदान करना होता है बल्कि छात्रों को समुचित निर्देशन देना भी होता है। यह कार्य भी शिक्षा मनोविज्ञान के ज्ञान की सहायता से ही किया जा सकता है। सफल निर्देशन के लिये शिक्षक को छात्र तथा अन्य तथ्यों की पूरी-पूरी जानकारी करनी पड़ती है। शिक्षक के पास छात्र से सम्बन्धित सभी मनो-शारीरिक सूचनाएँ नहीं होंगी तो वह उन्हें उचित शिक्षा प्रदान नहीं कर सकता।
(6) प्रयोग एवं अनुसन्धान हेतु—अपने शिक्षण को प्रभावी बनाने के लिये छात्रों की समस्याओं को सुलझाने के लिये तथा छात्रों में व्यवहारगत परिवर्तन लाने के लिये शिक्षक को समय-समय पर अनेक प्रयोग एवं अनुसन्धान करने पड़ते हैं। शिक्षा मनोविज्ञान की सहायता से शिक्षक प्रयोग करने की विधि तथा अनुसन्धान करने की प्रणालियों से अवगत होता है।
(7) सामाजिकता के विकास हेतु— शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया है। समाज शिक्षा से कुछ कल्याणकारी आशाएँ करता है। शिक्षा शिक्षक के द्वारा इन्हें पूरा करती है। अतः शिक्षक को कुछ सामाजिक भावना भी बालक में विकसित करनी चाहिए। इस प्रकार की भावना का विकास करने के लिये शिक्षा मनोविज्ञान का ज्ञान परमावश्यक है। विद्यालय में किस प्रकार सामाजिक वातावरण निर्मित किया जाये तथा छात्रों में किस प्रकार से समूह भावना का विकास किया जाये, आदि समस्याओं का समाधान मनोविज्ञान के अध्ययन के द्वारा ही सम्भव है।
(8) अनुशासन स्थापित करने हेतु- आजकल शिक्षक के सम्मुख सबसे बड़ी समस्या रहती हैं कि कक्षा-कक्ष में अनुशासन कैसे बनाये रखा जाये। आज के युग में अनुशासहीनता की समस्या बहुत कुछ मनोवैज्ञानिक समस्या है जिसका समाधान केवल मनोवैज्ञानिक पद्धतियों द्वारा ही सम्भव है। शिक्षा मनोविज्ञान के ज्ञान के द्वारा शिक्षक छात्रों की मनोभावनाओं, उनकी शैक्षिक आवश्यकताओं तथा आकांक्षाओं को समझ सकता है और फिर उनकी सन्तुष्टि के लिये प्रयास कर सकता है
(9) विशिष्ट छात्रों की समस्या के समाधान हेतु- एक कक्षा में अनेक प्रकार के छात्र पढ़ते हैं जिनमें अधिकतर सामान्य छात्र होते हैं तो कुछ-न-कुछ असामान्य भी। ऐसे छात्र कक्षा में किसी न किसी प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न करते रहते हैं।
इन छात्रों में किशोरापराधी, असमायोजित, कुसमायोजित, विकलांग, अनुशासनहीन, पलायन करने वाले, आदि छात्र होते हैं। इन सभी प्रकार के छात्रों को सुधारने की समस्या अध्यापक के सम्मुख रहती है। शिक्षा मनोविज्ञान की सहायता से ही वह बालक के समस्यामूलक व्यवहारों का विश्लेषण कर उनके कारणों को जान सकता है तथा समस्यागत व्यवहारों का समाधान कर उन्हें समाज का उपयोगी सदस्य बना सकता है।
(10) मानव सम्बन्धों में सुधार हेतु- विद्यालय में रहते हुए शिक्षक को विभिन्न व्यक्तियों से सम्बन्ध स्थापित करने पड़ते हैं। उसे अपने अधिकारियों, सहकर्मियों, छात्रों तथा अभिभावकों आदि से सम्बन्ध स्थापित करने पड़ते हैं। बालक की शिक्षा पर शिक्षक तथा छात्र के मध्य सम्बन्धों का गहरा प्रभाव पड़ता है। शिक्षा मनोविज्ञान के ज्ञान के द्वारा ही शिक्षक विभिन्न व्यक्तियों के सम्बन्धों में सुधार कर सकता है क्योंकि इन्हीं सम्बन्धों पर ही विद्यालय का शैक्षिक वातावरण निर्भर करता।
(11) व्यवसाय की तैयारी हेतु- शिक्षा मनोविज्ञान के द्वारा शिक्षक को जो ज्ञान प्राप्त होता है उसके आधार पर उसे अपने व्यवसाय अर्थात् शिक्षण की तैयारी में अत्यधिक सहायता मिलती है। इस सन्दर्भ में स्किनर ने लिखा है, “शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापकों की तैयारी की आधारशिला है।”
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि शिक्षा मनोविज्ञान का ज्ञान शिक्षक के लिये नितान्त आवश्यक है। इसके ज्ञान के द्वारा वह न केवल अपने शिक्षण को ही प्रभावी बना सकता है अपितु वह छात्र, विद्यालय तथा सभाज तीनों का कल्याण करते हुए अपने व्यवसाय में पर्याप्त सफलता प्राप्त कर सकता है।
इस सन्दर्भ में यदि यह कहा जाये कि बिना शिक्षा मनोविज्ञान के ज्ञान के शिक्षक अपने कर्त्तव्यों एवं दायित्वों की पूर्ति कर ही नहीं सकता तो अनुचित न होगा। इसीलिये शिक्षा एवं शिक्षण-प्रशिक्षण के पाठ्यक्रम में शिक्षा मनोविज्ञान को एक अनिवार्य प्रश्न पत्र के रूप में स्थान दिया गया है। अनेक विद्वानों ने शिक्षक के लिये शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययन को आवश्यक बताया है। कुप्पूस्वामी के शब्दों में, “मनोविज्ञान शिक्षक को अनेक धारणाएँ एवं सिद्धान्त प्रदान करके उसकी उन्नति में योग देता है।”