शोध अभिकल्प के चरण (Steps of Research Design)

शोध अभिकल्प के चरण
(Steps of Research Design)

शोध अभिकल्प के प्रमुख चरण निम्नांकित हैं-
1. अनुसन्धान समस्या का स्पष्ट एवं विस्तृत ज्ञान अनुसन्धानकर्ता को होना चाहिए।
2. अनुसन्धानकर्ता को अध्ययन से विशिष्ट उद्देश्यों की भी स्पष्ट जानकारी होनी चाहिए।
3. अनुसन्धानकर्ता को उन ढंगों एवं कार्यविधियों की भी स्पष्ट एवं विस्तृत जानकारी होनी चाहिए जिनका प्रयोग करते हुए अनुसन्धान के लिए आवश्यक आँकड़ों के संग्रह के मार्ग में आने वाली विभिन्न समस्याओं का समाधान प्रस्तुत किया जाएगा।
4. आँकड़ों के संग्रह के लिए विस्तृत एवं सुनियोजित योजना का उपलब्ध होना भी अत्यावश्यक है।
5. आँकड़ों के विश्लेषण के लिए भी उपयुक्त योजना का प्राप्त होना आवश्यक है।

इस प्रकार शोध अभिकल्प की रचना के निम्नांकित चरण (Steps) होते हैं जो अनुसन्धान के अनिवार्य अंग है-

1. शोध अभिकल्प में सर्वप्रथम अध्ययन समस्या (Study Problem) का प्रतिपादन किया जाना चाहिए।
2. वर्तमान में जो अनुसन्धान कार्य किया जा रहा है उसको अनुसन्धान समस्या से स्पष्ट रूप से सम्बन्धित करना शोध अभिकल्प का दूसरा मुख्य चरण है।
3. वर्तमान में हमें जो अनुसन्धान कार्य करना है उसकी सीमाओं (Boundaries) को स्पष्ट रूप से निर्धारित करना।
4. शोध अभिकल्प के चौथे चरण में शोध के विभिन्न क्षेत्रों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया जाता है।
5. शोध अभिकल्प के इस चरण में हम अनुसन्धान परिणामों के प्रयोग के विषय में निर्णय लेते हैं।
6. इसके पश्चात् हमें अवलोकन, विवरण तथा परिमापन के लिए उपयुक्त चरों का चयन करना चाहिए तथा इन्हें स्पष्ट रूप से परिभाषित करना चाहिए।
7. तदुपरान्त अध्ययन क्षेत्र (Study Area) एवं समग्र (Universe) का उचित चयन एवं इनकी परिभाषा या प्रस्तुत करनी चाहिए।
8. इसके बाद अध्ययन के प्रकार एवं विषय-क्षेत्र के विषय में विस्तृत निर्णय लेने चाहिए।
9. शोध अभिकल्प के आगामी चरण में हमें अपने अनुसन्धान के लिए उपयुक्त विधियों (Methods) एवं प्रविधियों (Techniques) का चयन करना चाहिए।
10. इसके बाद अध्ययन में निहित मान्यताओं (Assumptions) एवं उपकल्पनाओं (Hypothesis) का स्पष्ट उल्लेख करना चाहिए।
11. बाद में उपकल्पनाओं की परिचालनात्मक परिभाषा (Operational Definition) करते हुए उसे प्रस्तुत करना चाहिए कि वह परीक्षण के योग्य हो।
12. शोध अभिकल्प के आगामी चरण के रूप में हमें अनुसन्धान के दौरान प्रयुक्त किए जाने वाले प्रलेखों (Documents), प्रतिवेदन (Reports) एवं अन्य प्रपत्रों का सिंहावलोकन करना चाहिए।
13. तदुपरान्त अध्ययन के प्रभावपूर्ण उपकरणों का चयन एवं इनका निर्माण करना तथा इनका व्यवस्थित पूर्व परीक्षण (Pre-Testing) करना।
14. आँकड़ों के एकत्रीकरण का सम्पादन (Editing) किस प्रकार किया जाएगा इसकी विस्तृत व्यवस्था का उल्लेख करना।
15. आँकड़ों के सम्पादन व्यवस्था के उल्लेख के बाद उनके वर्गीकरण (Classification) हेतु उचित श्रेणियों (Categories) का चयन किया जाना एवं उनकी परिभाषा करना।
16. आँकड़ों के संकेतीकरण (Codification) के लिए समुचित व्यवस्था का विवरण तैयार करना।
17. आँकड़ों को प्रयोग योग्य बनाने हेतु सम्पूर्ण प्रक्रिया की समुचित व्यवस्था का विकास करना।
18. आँकड़ों के गुणात्मक (Qualitative) एवं संख्यात्मक (Quantitative) विश्लेषण के लिए विस्तृत रूपरेखा तैयार करना।
19. इसके पश्चात् अन्य उपलब्ध परिणामों की पृष्ठभूमि में समुचित विवेचन की कार्यविधियों का उल्लेख करना।
20. शोध अभिकल्प के इस चरण में हम अनुसन्धान प्रतिवेदन (Research Report) के प्रस्तुतीकरण के बारे में निर्णय लेते हैं।
21. शोध अभिकल्प का यह चरण सम्पूर्ण अनुसन्धान प्रक्रिया में लगने वाला समय, धन एवं मानवीय श्रम का अनुमान लगाने का है। इसी दौरान हम प्रशासकीय व्यवस्था की स्थापना एवं विकास का अनुमान भी लगाते हैं। माना
22. यदि आवश्यक हो तो पूर्व-परीक्षणों (Pre-Tests) एवं पूर्वगामी अध्ययनों (Pilot-Studies) का प्रावधान करना।
23. अनुसन्धान प्ररचना के इस चरण में हम कार्यविधियों (Procedures) से सम्बन्धित सम्पूर्ण प्रक्रिया, नियमों, उपनियमों को विस्तारपूर्वक तैयार करते हैं।
24. अनुसन्धान के इस चरण में हम कर्मचारियों, अध्ययनकर्ताओं के प्रशिक्षण के दंग एवं कार्य विधियों का उल्लेख करते हैं।
25. शोध अभिकल्प के इस अन्तिम चरण में हम यह प्रावधान करते हैं कि समस्त कर्मचारी एवं अध्ययन अनुसन्धानकर्ता एक सामंजस्य की स्थिति को बनाए रखते हुए कार्य के नियमों, कार्यविधियों का पालन करते हुए किस प्रकार सन्तोषप्रद ढंग से कार्य को पूर्ण करेंगे।

शोध अभिकल्प के उद्देश्य
(Objectives of Research Design)

सामान्यत: किसी भी अनुसन्धान में व्यावहारिक अनुसन्धान समस्या, वैज्ञानिक अथवा बौद्धिक अनुसन्धान समस्या एवं सैद्धान्तिक व्यवस्थाओं को विकसित करने की समस्याएँ हो सकती हैं। व्यावहारिक अनुसन्धान समस्याएँ, समस्याओं के समाधान एवं सामाजिक नीतियों के निर्धारण में सहायता प्रदान करती है, जबकि वैज्ञानिक एवं बौद्धिक अनुसन्धान का सम्बन्ध मौलिक वस्तुओं से होता है। इसके अलावा कुछ अनुसन्धान ऐसे होते हैं जिनका उद्देश्य केवल सैद्धान्तिक व्यवस्थाओं का विकास करना होता है, जिनके आधार पर विचारों का परीक्षण किया जाता है। सामान्यत: अनुसन्धान प्ररचना के दो प्रमुख उद्देश्य होते हैं-

1. अनुसन्धान समस्या के उत्तर प्रदान करना, एवं 
2. विविधताओं को नियन्त्रित करना।

शोध अभिकल्प स्वयं इन उद्देश्यों की पूर्ति नहीं करती वरन् ये उद्देश्य अनुसन्धानकर्ता द्वारा ही प्राप्त किए जाते हैं। अनुसन्धान प्ररचना अनुसन्धानकर्ता की इस बात में अवश्य सहायता करती है कि वह अनुसन्धान प्रश्नों के उत्तर प्राप्त कर ले तथा विविध त्रुटियों (Variance Error) का पता लगा सकें।

अनुसन्धान समस्या के उत्तर प्रदान करना

यह अनुसन्धान प्ररचना यथा सम्भव प्रामाणिकता, विषयात्मकता, यथार्थता, निश्चयात्मकता एवं बचत के साथ प्राप्त करने में सहायता पहुँचाती है। ऐसा करने के लिए अनुसन्धान प्ररचना यथासम्भव उन समस्त प्रमाणों को एकत्रित करने का प्रयास करती है, जो समस्या से सम्बन्धित हों। अनुसन्धान उपकल्पनाओं के रूप में समस्या को इस तरह प्रस्तुत किया जाता है कि इनका आनुभविक परीक्षण या जाँच सम्भव हो सके। जितनी सम्भावनाएँ परीक्षण की होती हैं, उतने ही प्रकार की अनुसन्धान प्ररचनाएँ तैयार की जा सकती हैं। इन उपकल्पनाओं के परीक्षण सम्बन्धी परिणाम इस बात पर निर्भर करते हैं कि पर्यवेक्षण करने और परिणाम निकालने के लिए किन ढंगों या प्रविधियों का प्रयोग किया जा रहा है। विश्वसनीय परिणाम प्राप्त करने के लिए चरों के मध्य पाए जाने वाले सम्बन्धों के उपयुक्त परीक्षण हेतु उपयुक्त सन्दर्भ ढाँचे (Framework) की स्थापना की जाती है।

विविधताओं को नियन्त्रित करना

शोध अभिकल्प विविधताओं को नियन्त्रित करने में भी अनुसन्धानकर्ता की सहायता करती है। अनुसन्धान के समय विविध त्रुटियों की सम्भावना बनी रहती है जिन्हें कम करने के दो प्रमुख ढंग हैं-

(क) अनुसन्धान परिस्थितियों को अधिक से अधिक नियन्त्रित करते हुए परिमापन के कारण उत्पन्न हुई त्रुटियों को यथा सम्भव कम कीजिए।
(ख) मापों की विश्वसनीयता को बढ़ाइए। वस्तुत: अनुसन्धान प्ररचना के नियन्त्रण का कार्य तकनीकी है।

इस अर्थ में अनुसन्धान प्ररचना एक नियन्त्रणकारी व्यवस्था है। इसके पीछे पाया जाने वाला प्रमुख “साँख्यिकी सिद्धान्त” (Statistical Principle) यह है कि “क्रमबद्ध विविधताओं को अधिक से अधिक बढ़ाइए, बाध्य क्रमबद्ध विविधताओं को नियन्त्रित कीजिए तथा विविध त्रुटियों को कम से कम कीजिए।”

शोध अभिकल्प के प्रथम उद्देश्य में अनुसन्धानकर्ता अपने अनुसन्धान के लिए चयनित समस्या से सम्बन्धित प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करता है और अनुसन्धान प्ररचना उसे ये उत्तर प्रामाणिक, वैषयिक एवं यथार्थ रूप में प्रस्तुत करती है। इसी प्रकार दूसरे उद्देश्य के द्वारा अनुसन्धानकर्ता अनुसन्धान के दौरान उपस्थित विविधताओं को नियन्त्रित करता है। यह नियन्त्रण भी उसे शोध अभिकल्प से प्राप्त होता है।

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