शिक्षण प्रतिमान (Teaching Models)

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शिक्षण प्रतिमान का अर्थ एवं महत्व (Meaning and importance of Teaching Models )

शिक्षण का उद्देश्य अधिगम स्तर को उन्नत करना है। शिक्षा मनोविज्ञान के विकास के उपरान्त इसके लिए अनेक अधिगम सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया। तदनुसार छात्रों को पाठ्यवस्तु का ज्ञान उपलब्ध कराया जाने लगा परन्तु ये अधिगम सिद्धान्त कक्षा-शिक्षण की व्यावहारिक समस्याओं के निदान खोजने में असफल रहे। अतः अब कक्षा-शिक्षण की व्यावहारिक समस्याओं के निदान के लिए अधिगम के स्थान पर शिक्षण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है और अधिगम-सिद्धान्तों के स्थान पर शिक्षण सिद्धान्तों के विकास हेतु मनोवैज्ञानिक एवं शिक्षाविद् प्रयासरत हैं। इसके लिए नये-नये शिक्षण प्रतिमानों (Teaching Models) को प्रस्तुत किया गया है। जिस प्रकार एक वास्तुकार /इन्जीनियर किसी बाँध, पुल/भवन आदि को एक योजना प्रारूप के अनुरूप बनाता है, उसी प्रकार शिक्षक भी अपने शिक्षण को प्रभावपूर्ण बनाने के लिए शिक्षण प्रतिमानों का प्रयोग करता है। शिक्षण प्रतिमान (Teaching Models) के अर्थ को समझने के लिए सर्वप्रथम प्रतिमान के अर्थ को समझना आवश्यक है। प्रतिमान शब्द अंग्रेजी के Model शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। इसे प्रतिमूर्ति भी कहा जाता है।

शिक्षा-शब्दकोश में प्रतिमान को इस प्रकार स्पष्ट किया गया है, “प्रतिमान एक वस्तु अथवा सिद्धान्त अथवा विचार का आलेखीय अथवा त्रिविमितीय पैमाने पर प्रदर्शन है।

इस प्रकार प्रतिमान शब्द किसी वस्तु/व्यक्ति/भवन/सिद्धान्त/विचार आदि के लघु रूप/ प्रतिमूर्ति के लिए प्रयोग किया जाता है ताकि कोई भी व्यक्ति प्रतिमान का अवलोकन करके उसके यथार्थ रूप की कल्पना कर सके अथवा समझ सके। जब किसी बृहत् प्रोजेक्ट अथवा बाँध अथवा भवन आदि का निर्माण कराना होता है तो सर्वप्रथम उसकी रूपरेखा/प्रारूप (Design) तैयार करायी जाती है। तत्पश्चात् एक निश्चित माप एवं अनुपात में उसका प्रतिमान (Model) तैयार कराया जाता है, उसकी सम्यक् जाँचोपरान्त वास्तविक कार्य सम्पन्न कराया जाता है। यदि प्रतिमान में कोई विसंगति दृष्टिगोचर होती है तो उसको संशोधित करके पुनः प्रतिमान बनाया जाता है।

इसी सम्प्रत्य के दृष्टिगत शिक्षण के क्षेत्र में शैक्षणिक व्यवस्था के सफल संचालन के लिए किसी सिद्धान्त/विचार का शिक्षण प्रारूप (Teaching Design or Paradigm) बनाने का प्रयास किया जाता है, जिनके अनुसार शिक्षण कार्य को प्रभावपूर्ण एवं सुव्यवस्थित ढंग से सम्पादित किया जा सके। इन्हें ही शिक्षण प्रतिमान (Teaching Models) कहा गया है।

शिक्षण प्रतिमान को परिभाषित करते हुए ब्रूस. आर. जॉयस (Bruce R. Joyce) ने लिखा है, “शिक्षण प्रतिमान उचित अनुदेशन प्रारूप हैं। वे उल्लेखित करने की प्रक्रिया और विशिष्ट वातावरणीय परिस्थितियों को उत्पन्न करने का वर्णन करते हैं, जो इस प्रकार की पारस्परिक क्रिया के लिए छात्र के निमित्त होते हैं, जिससे उसके व्यवहार में विशेष परिवर्तन होते हैं।

जॉयस एवं वील (Joyce and Weil) के अनुसार, “शिक्षण प्रतिमान एक योजना अथवा प्रारूप हैं, जिसे हम शिक्षण सम्बन्धी व्यवस्था करने (Tutorial setting) अथवा कक्षा-कक्षों में प्रत्यक्ष शिक्षण के लिए प्रारूप बनाने और शैक्षणिक सामग्री (पुस्तकें, फिल्म्स, टेप्स, कम्प्यूटर व्यवहृत कार्यक्रमों अथवा पाठ्यक्रमों को सम्मिलित करके) को आकार देने में उपयोग कर सकते हैं।”

शिक्षण प्रतिमान (Teaching Models)
शिक्षण प्रतिमान (Teaching Models)

शिक्षण प्रतिमानों की विशेषताएं (Characteristics of Teaching Models)

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर शिक्षण प्रतिमानों की निम्नलिखित विशेषताएं हो सकती हैं-

1. शिक्षण प्रतिमान शैक्षणिक व्यवस्था अथवा प्रत्यक्ष शिक्षण के लिए एक योजना या प्रारूप हैं।
2. शिक्षण प्रतिमान शिक्षक एवं छात्रों के मध्य अन्तः क्रिया को निर्धारित करते हैं।
3. शिक्षण प्रतिमान शिक्षक के लिए पथ-प्रदर्शक का कार्य करते हैं।
4. इनसे शिक्षक एवं छात्र दोनों को वांछित अनुभव प्राप्त होते हैं।
5. शिक्षण प्रतिमान शैक्षिक क्रियाओं एवं वातावरणीय परिस्थितियों के निर्माण की रूपरेखा प्रस्तुत करते हैं।
6. ये छात्र के व्यवहार परिवर्तन में सहायता करते हैं।

शिक्षण प्रतिमान के तत्व (Elements of Teaching Models)

किसी भी शिक्षण प्रतिमान के लिए जॉयस एवं वील ने निम्नलिखित तत्वों का उल्लेख किया है-

लक्ष्य (Goal)

किसी भी शिक्षण प्रतिमान का एक निश्चित लक्ष्य/उद्देश्य होता है। कुछ विद्वानों ने इसे केन्द्र बिन्दु (Focus) कहा है। चूँकि सभी शिक्षण प्रतिमानों में शिक्षक एवं छात्र की समस्त क्रियाएं इसी लक्ष्य या उद्देश्य या केन्द्र बिन्दु की प्राप्ति पर केन्द्रित रहती है। इसीलिए इसे लक्ष्य (Goal) कहा जाता है।

संरचना/अवस्था (Syntax or Phasing)

शिक्षण प्रतिमान का दूसरा तत्त्व संरचना/अवस्था है। इसमें शिक्षण सोपानों की व्याख्या की जाती है तथा शिक्षण क्रियाओं की व्यवस्था क्रम का निर्धारण किया जाता है ताकि अधिगम की परिस्थितियाँ उत्पन्न की जा सकें और शिक्षण लक्ष्यों की प्राप्ति हो सके। जॉयस एवं वील ने लिखा है, “प्रतिमान की संरचना/अवस्था प्रतिमान की सक्रियता का वर्णन करता है।”

सामाजिक प्रणाली (Social system)

शिक्षण को प्रभावपूर्ण बनाने में शिक्षण प्रतिमान की सामाजिक प्रणाली का विशेष महत्व है क्योंकि इस पद में शिक्षक एवं छात्र की क्रियाएं और उनके परस्पर सम्बन्धों का विवरण दिया रहता हैं। एक प्रतिमान से दूसरे प्रतिमान में शिक्षक का कार्य भिन्न-भिन्न होता है। किसी प्रतिमान में शिक्षक परावर्तक अथवा समूह क्रिया की सुविधाएं उपलब्ध कराने वाला होता है। दूसरे में किसी छात्र विशेष का परामर्श दाता और अन्य में कार्य देने वाला। किसी प्रतिमान में शिक्षक क्रिया के मध्य में, सूचना का स्रोत, व्यवस्थापक और परिस्थिति को गति देने वाला होता है। कुछ प्रतिमानों में शिक्षक और छात्रों के मध्य समान रूप से क्रियाएं बंटी रहती हैं। कुछ प्रतिमानों में छात्र केन्द्र में होता है। सामाजिक एवं बौद्धिक स्वतंत्रता को अधिक महत्व देने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। जॉयस एवं वील ने लिखा है, “सामाजिक व्यवस्था शिक्षक एवं छात्र की भूमिकाओं, सम्बन्धों एवं मानक के प्रकारों का वर्णन करती है, जो प्रोत्साहित की जाती है।”

प्रतिक्रिया-सिद्धान्त (Principles of Reaction)

शिक्षण प्रतिमान का यह प्रमुख पद है। इसमें शिक्षक की उन क्रियाओं का निर्धारण किया जाता है, जिसमें शिक्षक की क्रिया के प्रतिफल छात्र क्या प्रतिक्रियाएं करते हैं और उनका स्वरूप क्या है। जैसा कि जॉयस एवं वील ने लिखा है, “प्रतिक्रिया का सिद्धान्त शिक्षक को यह अवगत करता है कि सीखने वाले (छात्र) पर कैसे ध्यान रखा जाय, कैसे उत्तर प्राप्त किए जाये और सीखने वाला (छात्र) क्या कर रहा है?”

इस प्रकार कुछ प्रतिमानों में शिक्षक छात्रों की कुछ क्रियाओं को महत्व देते हुए व्यवहार को आकार (Shape) देने का प्रयास करता है और अन्य के प्रति तटस्थ स्थिति बनाए रखता है।

सहायक प्रणाली (Support system)

शिक्षण प्रतिमान का यह अति महत्वपूर्ण तत्त्व है। इसमें शिक्षक को अपनी सामान्य क्षमताओं, कौशलों तथा सामान्य रूप से कक्षा कक्ष में जो भी साधन उपलब्ध होते हैं, उनके अतिरिक्त किसी शिक्षण प्रतिमान विशेष का प्रयोग करने हेतु विशेष सहायता की आवश्यकता होती है। यह विशेष सहायता कुछ विशेष शिक्षण सामग्री जैसे स्लाइड, फिल्म, स्वअनुदेशन सामग्री, मॉडल, ग्राफिक्स, किसी स्थान विशेष की सैर, लचीला टाइमटेबल, शिक्षण-अधिगम परिस्थितियों का किसी विशेष रूप में आयोजन, अध्यापकों से विशेष प्रकार की शिक्षण कुशलताओं तथा शिक्षक व्यवहार की अपेक्षा आदि के रूप में हो सकती है। इस तरह प्रतिमान की सहायक प्रणाली शिक्षण हेतु एक उचित वातावरण तथा सुविधाओं की सृष्टि कर प्रतिमान की सफलता का मार्ग प्रशस्त करती है।

उपयोग (Application)

शिक्षण प्रतिमान का शिक्षण में किस स्थिति एवं किस रूप में प्रयोग किया जा सकता है। इसका ज्ञान भी शिक्षक को अवश्य होना चाहिए क्योंकि कुछ प्रतिमान लघु पाठों (Short Lessons) के शिक्षण हेतु अधिक उपयोगी सिद्ध होते हैं तो कुछ बड़े पाठों या छोटे-बड़े दोनों तरह के पाठों के शिक्षण में उपयोग में लाए जा सकते हैं। लक्ष्यों की प्राप्ति को लेकर भी प्रतिमानों में विभिन्नताएं पाई जाती हैं। जैसे- कुछ ज्ञानात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति पर अधिक बल देते हैं तो कुछ के द्वारा क्रियात्मक या भावात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति अच्छी तरह की जाती है। फलस्वरूप किसी शिक्षण प्रतिमान के द्वारा किसी विषय या प्रकरण विशेष का शिक्षण अच्छी तरह किया जा सकता है, जबकि दूसरे विषयों या अधिगम अनुभवों का अर्जन किन्हीं और प्रतिमानों द्वारा अच्छी तरह संभव होता है। अतः इस अंतिम तत्व के माध्यम से हमें यह जानकारी मिलती है कि कोई शिक्षण प्रतिमान किस रूप में उपयोगी सिद्ध हो सकता है।

शिक्षण प्रतिमान के प्रकार (Types of Teaching Models)

शिक्षण प्रतिमान की प्रक्रिया अभी प्रयोगशाला में है। इसीलिए विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने शोध परिणामों के आधार पर शिक्षण प्रतिमानों को वर्गीकृत किया है, जिनका विवरण निम्नलिखित हैं-

दार्शनिक शिक्षण प्रतिमान (Philosophical Teaching Models)

इजराइल सेफलर (Israil Sceffler) ने सन् 1964 में अपने शोध के आधार पर शिक्षण के तीन प्रतिमानों को प्रस्तुत किया था, जिन्हें उन्होंने दार्शनिक शिक्षण प्रतिमान (Philosophical Models of Teaching) कहा था, जो इस प्रकार हैं-

(i) प्रभाव शिक्षण प्रतिमान (The Impression Model of Teaching)
(ii) सूझ शिक्षण प्रतिमान (The Insight Model of Teaching)
(iii) नियम शिक्षण प्रतिमान (The Rule Model of Teaching)

मनोवैज्ञानिक शिक्षण प्रतिमान (Psychological Teaching Models)

जॉन पी. डेसेसो (John P. Dececco) ने सन् 1964 में शिक्षण प्रतिमानों को चार वर्गों में विभक्त करके मनोवैज्ञानिक शिक्षण प्रतिमान की संज्ञा दी थी, जो निम्नलिखित हैं-

(i) बुनियादी शिक्षण प्रतिमान (A Basic Model of Teaching)
(ii) कम्प्यूटर आधारित शिक्षण प्रतिमान (Computer Based Model of Teaching)
(iii) विद्यालय-अधिगम-शिक्षण प्रतिमान (School Learning-model of Teaching)
(iv) अन्त: क्रिया-शिक्षण प्रतिमान (Interaction Model of Teaching)

आधुनिक शिक्षण प्रतिमान (Modern Teaching Models)

जॉयस एवं वील (Joyce and Weil) ने 1972 ई. में 20 से भी अधिक शिक्षण प्रतिमानों का प्रस्तुत किया था, जिन्हें उन्होंने शिक्षण प्रतिमान परिवार (Families of Models of Teaching) की संज्ञा दी थी और उन्हें चार मुख्य परिवारों में वर्गीकृत करके प्रस्तुत किया था, जो निम्नलिखित हैं-

शिक्षण प्रतिमान परिवार- (Families of Teaching Models)

(i) सामाजिक परिवार (The Social Family)
(ii) सूचना प्रक्रिया परिवार (The Information Processing Family)
(iii) व्यक्तिगत परिवार (The personal Family)
(iv) व्यावहारिक व्यवस्था परिवार (The Behavioural system Family)

उपर्युक्त परिवारों के आधार पर ही जॉयस एवं वील ने शिक्षण प्रतिमानों को वर्गीकृत किया है, जिन्हें आधुनिक शिक्षण प्रतिमान (Modern Models of Teaching) कहा जाता है। इनका विवरण निम्नलिखित है-

सामाजिक अन्तःक्रिया शिक्षण प्रतिमान (Social Interaction Teaching Models)

सामाजिक अन्तः क्रिया शिक्षण प्रतिमान में मनुष्य के सामाजिक पक्ष के दृष्टिगत सामाजिक विकास पर विशेष ध्यान दिया जाता है। मानव अपने सामाजिक सम्बन्धों पर अधिक बल देता है। इसलिए इसका अध्ययन इस शिक्षण प्रतिमान में किया जाता है ताकि सम्बन्धित प्रजातांत्रिक व्यवहार को उत्पन्न करने, व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन दोनों में अभिवृद्धि करने और उत्पादक प्रजातांत्रिक सामाजिक व्यवस्था को सुनिश्चित करने के लिए नागरिकों को तैयार किया जा सके। इस शिक्षण प्रतिमान में चार प्रकार के शिक्षण प्रतिमान सम्मिलित हैं-

1. सामाजिक पूछताछ शिक्षण प्रतिमान (Social Inquiry Teaching Model)
2. समूह अन्वेषण शिक्षण प्रतिमान (Group Investigation Teaching Model)
3. जूरिस प्रूडेन्सियल शिक्षण प्रतिमान (Juris Prudential Teaching Model)
4. प्रयोगशाला शिक्षण प्रतिमान (Laboratory Teaching Model)

सूचना प्रक्रिया शिक्षण प्रतिमान (Information Processing Teaching Models)

सूचना प्रक्रिया शिक्षण प्रतिमान में मानव-प्राणियों के जन्मजात अन्तर्नाद की अभिवृद्धि के तरीकों पर बल दिया जाता है और उसके लिए आँकड़ों को प्राप्त करने तथा व्यवस्थित करने, समस्याओं की भावना समझने और समाधान खोजने का प्रयास किया जाता है। कुछ प्रतिमान सम्प्रत्यय निर्माण एवं परिकल्पना परीक्षण पर बल देते हैं और कुछ प्रतिमान सृजनात्मक चिन्तन उत्पन्न करते हैं। इस शिक्षण प्रतिमान में छ: प्रकार के शिक्षण प्रतिमान सम्मिलित हैं-

1. पूछताछ प्रशिक्षण प्रतिमान (Inquiry Training Model)
2. संप्रत्यय उपलब्धि शिक्षण प्रतिमान (Concept Attainment Teaching Model)
3. अग्रिम संगठक शिक्षण प्रतिमान (Advance Organizer Teaching Model)
4. आगमन-शिक्षण प्रतिमान (Induction Teaching Model)
5. जैविक विज्ञान पूछताछ शिक्षण प्रतिमान (Biological Science Inquiry Teaching Model)
6. विकासात्मक शिक्षण प्रतिमान (Developmental Teaching Model)

व्यक्तिगत शिक्षण प्रतिमान (Personal Models of Teaching)

व्यक्तिगत शिक्षण प्रतिमान में व्यक्तिगत विकास को विशेष महत्व दिया जाता है ताकि वे स्वयं के विषय में अधिक समझ सकें, अपनी शिक्षा के उत्तरदायित्व ले सकें और अपने अद्यतन विकास से आगे बढ़ने के लिए सीख सकें और उच्चस्तरीय जीवन-यापन के लिए अपनी खोज में अधिक सशक्त, अधिक संवेदनशील और अधिक रचनात्मक हो सकें। इस शिक्षण प्रतिमान में चार प्रकार के शिक्षण प्रतिमान सम्मिलित हैं-

1. सृजनात्मक शिक्षण प्रतिमान (Synectics Teaching Model)
2 निर्देश रहित शिक्षण प्रतिमान (Non-Directive Teaching Model)
3. कक्षा सभा शिक्षण प्रतिमान (Class room Meeting Teaching Model)
4. सजगता शिक्षण प्रतिमान (Awareness Teaching Model)

व्यवहार परिवर्तन शिक्षण प्रतिमान (Behaviour Modification Models of Teaching)

व्यवहार परिवर्तन शिक्षण प्रतिमान अधिगमकर्ता के वाह्य व्यवहार में परिवर्तन करने पर बल देते हैं, जिसके लिए वांछित व्यवहारों, कार्यों एवं विधियों पर विशेष रूप से धयान केन्द्रित किया जाता है। इस शिक्षण प्रतिमान में निम्नलिखित शिक्षण प्रतिमान सम्मिलित हैं

1. अभिक्रमित अध्ययन प्रतिमान (Programmed Learning Model)
2. सक्रिय अनुकूलन शिक्षण प्रतिमान (Operant Conditioning Teaching Model)

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