अधिगम स्थानान्तरण (Transfer of Learning)

सामान्यतः देखा जाता है कि एक विषय का ज्ञान दूसरे विषय या क्रिया को सीखने में सहायता पहुँचाता है। उदाहरणार्थ— यदि किसी व्यक्ति ने साइकिल चलाने में कुशलता प्राप्त कर ली है तो इस ज्ञान से वह व्यक्ति मोटर साइकिल चलाना आसानी से सीख जाता है। कक्षा में सीखा गया गणित व्यक्ति को बाजार में क्रय-विक्रय करने में सहायता देता है इस प्रकार सीखे गये ज्ञान का स्थानान्तरण नवीन परिस्थितियों के साथ प्रतिक्रिया करने में सहायक होता है। मनोविज्ञान में इसको ‘प्रशिक्षण का स्थानान्तरण‘ (Transfer of Training) तथा हिन्दी में स्थानान्तरण के स्थान पर ‘संक्रमण‘ अथवा ‘अन्तरण‘ शब्दों का भी प्रयोग किया जाता है। इस आर्टिकल में अधिगम स्थानान्तरण (Transfer of Learning) का विस्तार से अध्ययन करेंगे।

अधिगम स्थानान्तरण का अर्थ (Meaning of Transfer of Learning)

अधिगम स्थानान्तरण का अर्थ है किसी विषय को सीखने से उपलब्ध ज्ञान अथवा किसी कार्य के अभ्यास से प्राप्त प्रशिक्षण का दूसरी अन्य परिस्थिति में प्रयोग करना। बालक, विद्यालय में अंग्रेजी पढ़ना सीखता है और बड़ा होने पर दूसरों से बातचीत अथवा पत्र व्यवहार करने में उसका प्रयोग करता है। इससे स्पष्ट है कि एक विषय का ज्ञान दूसरे विषय अथवा परिस्थिति में सहायक होता है। डॉ. सरयूप्रसाद चौबे ने इसको स्पष्ट करते हुए लिखा है- “यह सिद्धान्त कि एक विषय के अध्ययन से प्राप्त संस्कार उसी विषय तक सीमित नहीं रहते, वरन् अन्य विषयों तथा परिस्थितियों में भी उपयोगी सिद्ध होते हैं, शिक्षण के स्थानान्तरण के नाम से प्रसिद्ध है।”

उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि एक विषय अथवा परिस्थिति में अर्जित किया गया ज्ञान, आदत, दक्षता तथा कुशलता जब किसी दूसरी परिस्थिति में सहायक होते हैं, तो वह स्थिति अधिगम’ स्थानान्तरण की स्थिति होती है।

अधिगम स्थानान्तरण की परिभाषाएँ (Definitions of Transfer of Learning)

अधिगम स्थानान्तरण के अर्थ को स्पष्ट करने के लिये निम्न परिभाषाओं पर ध्यान देना आवश्यक हो जाता है-

(1) सोरेन्सन – “स्थानान्तरण एक परिस्थिति में अर्जित ज्ञान, प्रशिक्षण और आदतों का दूसरी परिस्थिति में स्थानान्तरित किये जाने का उल्लेख करता है।”

(2) कॉलसनिक – “एक परिस्थिति में अर्जित ज्ञान, दक्षता, आदत अभिवृत्ति या अन्य प्रतिक्रियाओं का जब दूसरी परिस्थिति में प्रयोग किया जाता है तो इसे अधिगम का स्थानान्तरण कहते हैं।”

(3) क्रो एवं क्रो–“अधिगम के एक क्षेत्र में प्राप्त आदत, चिन्तन, ज्ञान या कुशलता का जब दूसरी परिस्थिति में प्रयोग किया जाता है तो यह अधिगम का स्थानान्तरण कहलाता है।”

अधिगम स्थानान्तरण के प्रकार
(Kinds of Transfer of Learning)

अधिगम स्थानान्तरण के मुख्यतः दो प्रकार हैं- (1) सकारात्मक और (2) नकारात्मक

(1) सकारात्मक अधिगम स्थानान्तरण (Positive Transfer of Learning) – यदि एक विषय अथवा परिस्थिति का ज्ञान दूसरे विषय अथवा परिस्थिति में सहायता पहुँचाता है तो इस प्रकार के स्थानान्तरण को धनात्मक अधिगम स्थानान्तरण कहेंगे। उदाहरण के लिये कार चलाने वाला ड्राइवर ट्रक को चलाना शीघ्रता से सीख सकता है। कक्षा में सीखे गये गणित का प्रयोग भौतिक विज्ञान के संख्यात्मक प्रश्नों को हल करने में किया जाता है

(2) नकारात्मक अधिगम स्थानान्तरण (Negative Transfer of Learning) – यदि पहले सीखा हुआ ज्ञान, अनुभव या दक्षता नवीन प्रकार से सीखने में किसी प्रकार की बाधा पहुँचाते हैं तो इसको नकारात्मक अधिगम स्थानान्तरण कहते हैं। पूर्व अनुभव का नवीन समस्या समाधान में प्रतिकूल प्रभाव नकारात्मक स्थानान्तरण का संकेत देता है। उदाहरण के लिये- टेनिस का खिलाड़ी जब क्रिकेट खेलता है तो उसे कठिनाई का अनुभव होता है।

अधिगम स्थानान्तरण के सिद्धान्त
(Theories of Transfer of Learning)

अधिगम स्थानान्तरण के निम्न मुख्य सिद्धान्त हैं-

(1) मानसिक शक्ति का सिद्धान्त अथवा औपचारिक (नियमित) विनय का सिद्धान्त (Faculty Theory of Mind or Theory of Formal Discipline )– यह सिद्धान्त सबसे पुराना सिद्धान्त है तथा ‘शक्ति मनोविज्ञान‘ (Faculty Psychology) पर आधारित है। शक्ति मनोविज्ञान के समर्थकों का विचार है कि मानव का मस्तिष्क विभिन्न शक्तियों यथा-तर्क, चिन्तन, स्मृति, कल्पना आदि का योग है। औपचारिक विनय के सिद्धान्त के अनुसार हम इन शक्तियों को अभ्यास के द्वारा बलिष्ठ बना सकते हैं कि इनको हम किसी भी परिस्थिति में कुशलता से प्राप्त कर सकते हैं। इस सिद्धान्त के अनुसार पाठ्यक्रम में उन विषयों को स्थान मिलना चाहिये जो बुद्धि अथवा इन मानसिक शक्तियों को प्रखर करें। उदाहरण के लिये – भाषा तथा इतिहास के अध्ययन से स्मृति बलिष्ठ होती है। गणित के अध्ययन से तर्क शक्ति का विकास होता है। वैज्ञानिक प्रयोगों से निरीक्षण शक्ति प्रखर होती है।

आधुनिक युग में इस सिद्धान्त की कोई मान्यता नहीं है क्योंकि मनोवैज्ञानिक मस्तिष्क की शक्तियों के विभाजन में विश्वास नहीं करते हैं। इस सम्बन्ध में गेट्स एवं अन्य ने ठीक ही लिखा है, “स्थानान्तरण के तथ्यों की मानसिक शक्तियों की सामान्य और चतुर्मुख उन्नति के आधार पर व्याख्या नहीं की जा सकती है।”

(2) समान तत्वों का सिद्धान्त (Theory of Identical Elements) – समान तत्वों के सिद्धान्त के प्रतिपादक थार्नडाइक का मत है कि एक विषय का अध्ययन दूसरे विषय के अध्ययन में तभी सहायक होता है जबकि इन दोनों में परस्पर कुछ समानता हो। यदि दो विषयों में कोई समानता नहीं है तो उनमें से प्राप्त किसी एक का ज्ञान दूसरे विषय को सीखने में किसी प्रकार सहायक नहीं होगा। उदाहरण के लिये – मनोविज्ञान का अध्ययन करने के बाद हम शिक्षा मनोविज्ञान का अध्ययन करते हैं तो हमें बहुत ही सुविधा होती है। इसका कारण यह है कि दोनों विषयों में समान तत्व पाये जाते हैं।

थार्नडाइक के सिद्धान्त को प्रस्तुत करते हुए हर्बर्ट सोरेन्सन ने लिखा है – “समान तत्व सिद्धान्त के अनुसार एक परिस्थिति से दूसरी परिस्थिति में स्थानान्तरण उस सीमा तक होता है जितने समान तत्व या संघटक दोनों परिस्थितियों में विद्यमान रहते हैं।” वुडवर्थ ने इस सिद्धान्त में ‘तत्व’ शब्द के स्थान पर ‘घटक’ शब्द का प्रयोग किया। इसलिए मनोवैज्ञानिक इसको ‘समान घटक का सिद्धान्त’ कहते हैं। यह सिद्धान्त अध्यापकों के लिये अत्यधिक उपयोगी है।

(3) सामान्यीकरण का सिद्धान्त (Theory of Generalisation) – सामान्यीकरण के सिद्धान्त के प्रतिपादक सी. एच. जुड (Educational Psychology) ने इसके अर्थ को स्पष्ट करते हुए लिखा है – “जब एक छात्र अपने ज्ञान अथवा अनुभव के आधार पर किसी विषय के सामान्य सिद्धान्त को भली प्रकार समझ जाता है तब उसमें अपने प्रशिक्षण को दूसरी स्थितियों में स्थानान्तरित करने की क्षमता उत्पन्न हो जाती है।”

जब तक व्यक्ति कोई सामान्य सिद्धान्त या नियम नहीं समझ पाता है उस समय तक स्थानान्तरण की कम सम्भावना रहती है। सामान्यीकरण अवबोध का प्रतीक है। सामान्यीकरण करने में व्यक्ति तभी सफल होता है। जब वह पूरी क्रिया को ठीक प्रकार से समझ ले। उदाहरणार्थ-जो शिक्षक बाल व्यवहार के मनोविज्ञान को सीखने के सिद्धान्त को एवं व्यक्तिगत विभिन्नता के मनोविज्ञान को जानता हैं वह कक्षा भवन की परिस्थिति में और सफलतापूर्वक पढ़ाने में अपनी इस योग्यता का प्रयोग कर सकता है।

(4) समान्य एवं विशिष्ट तत्वों का सिद्धान्त (Theory of ‘G’ and ‘S’ Factors ) – सामान्य एवं विशिष्ट तत्वों का सिद्धान्त के प्रतिपादक स्पीयरमैन (Spearman) नामक मनोवैज्ञानिक का विचार है कि प्रत्येक विषय को सीखने के लिये बालक को सामान्य एवं विशष्ट योग्यता की आवश्यकता पड़ती है। प्रत्येक विषय के अध्ययन के परिणामस्वरूप व्यक्ति की ‘सामान्य योग्यता‘ (General Ability) से ‘विशिष्ट योग्यता‘ (Special Ability) में वृद्धि होती है। स्थानान्तरण विशेष योग्यता में न होकर सामान्य योग्यता में ही होता है। इस सिद्धान्त के अनुसार गणित, इतिहास, विज्ञान आदि विषयों में विशिष्ट की अपेक्षा सामान्य योग्यता की अधिक आवश्यकता पड़ती है। इस सिद्धान्त को ‘द्वितात्विक सिद्धान्त‘ (Two factor Theory) भी कहते हैं।

स्थानान्तरण की परिस्थितियाँ
(Conditions of Transfer)

रेबर्न के अनुसार, “स्थानान्तरण निश्चित परिस्थतियों में निश्चित मात्रा में हो सकता है।” इस कथन के अनुसार स्थानान्तरण पूर्ण रूप से न होकर केवल एक निश्चित मात्रा में होता है। केवल उस स्थिति में जबकि स्थानान्तरण के अनुकूल परिस्थितियाँ हों। ये परिस्थितियाँ अधोलिखित हैं-

(1) स्थानान्तरण सीखने वाले की इच्छा पर निर्भर करता है अर्थात् सीखने वाले में स्थानान्तरण करने की इच्छा होनी चाहिये।

(2) सीखने वाले का ज्ञान एवं शैक्षिक योग्यता जितनी अधिक होगी, उतनी ही अधिक योग्यता उसमें स्थानान्तरण की क्षमता की होगी। मन्द-बुद्धि बालकों की अपेक्षा कुशाग्र बुद्धि बालकों में स्थानान्तरण की क्षमता अधिक होती है।

(3) जिन छात्रों में परिस्थिति को समझने की क्षमता अधिक होती है वे अधिगम का स्थानान्तरण करने में अधिक सफल होते हैं। जब बालक किसी विषय को आसानी से समझ लेता है तो वह समानता के सिद्धान्त के आधार पर स्थानान्तरण करने में सफल होता है।

(4) यदि व्यक्ति अथवा बालक की विषय के प्रति अनुकूल मनोवृत्ति होती है तो वह धनात्मक स्थानान्तरण में सहायता पहुँचाती है।

(5) यदि दो विषयों में समान तत्वों की अधिकता है तो उसमें स्थानान्तरण अधिक होगा। उदाहरण के लिये -गणित का ज्ञान सांख्यिकी के अध्ययन में सहायता देगा।

(6) सीखने वाले में जितनी अधिक सामान्य बुद्धि है, उतना ही अधिक स्थानान्तरण करने में वह सफल होता है।

(7) यदि शिक्षण पद्धति प्रभावी है तो स्थानान्तरण अधिक होगा अन्यथा नहीं। यदि अध्यापक पढ़ाते समय दो विषयों में समानता पर प्रकाश डालता है या छात्रों को बताता है कि प्राप्त किया गया ज्ञान दैनिक जीवन में उपयोगी हो सकता है तो स्थानान्तरण की सम्भावना बढ़ जाती है।

(8) यदि बालक का विषय-सामग्री पर अच्छा अधिकार होगा तो वह उस विषय के ज्ञान को अन्य क्षेत्रों स्थानान्तरण करने में अधिक सफल होगा।

अधिगम स्थानान्तरण (Transfer of Learning)
अधिगम स्थानान्तरण (Transfer of Learning)

अधिगम स्थानान्तरण का शिक्षा में महत्व
(Importance of Transfer of Learning in Education)

अधिगम स्थानान्तरण का व्यक्ति के जीवन में अत्यधिक महत्व है। औपचारिक शिक्षा द्वारा बालक को जो कुछ सिखाया जाता है उसका उद्देश्य यही होता है कि बालक जीवन की विभिन्न समस्याओं को हल कर सके तथा भावी जीवन की विभिन्न परिस्थितियों के साथ सन्तोषजनक ढंग से समायोजन स्थापित कर सके। यदि वह ऐसा करने में स्वयं को असमर्थ पाता है तो प्रदान की गई औपचारिक शिक्षा व्यर्थ है।

आज, शिक्षा के समन्वित रूप को स्वीकार किया जाता है। यदि छात्र एक विषय में प्राप्त ज्ञान को अन्य किसी विषय में स्थानान्तरित नहीं कर पाता है तो शिक्षा का समन्वित रूप उभरकर सामने नहीं आयेगा। इस दृष्टिकोण से अधिगम स्थानान्तरण के महत्व को सभी के द्वारा स्वीकार किया गया है। अध्यापक को अधिगम स्थानान्तरण का शिक्षण देते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिये जिससे बालक द्वारा प्राप्त ज्ञान उसके स्वयं के लिये पूर्णतः उपयोगी सिद्ध हो सके।

(1) अध्यापक को चाहिये कि वह बालक को जो भी विषय पढ़ाये, उसमें निहित सिद्धान्तों को बालक के समक्ष स्पष्ट कर दे, जिससे कि बालक उन सिद्धान्तों का जीवन के विभिन्न पहलुओं में उपयोग कर सके।

(2) अध्यापक को यह स्पष्ट होना चाहिये कि उसे क्या सिखाना है तथा छात्र को भी यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि उसे क्या सीखना है अर्थात् उद्देश्यों का स्पष्टीकरण होना अति आवश्यक है।

(3) विद्यार्थी को भविष्य में जो कुछ बनना है उसी के अनुरूप शिक्षा दी जानी चाहिये। यदि कोई बालक व्यापारी बनना चाहता है तो उसे वाणिज्य एवं अर्थशास्त्र, नेता बनना चाहता है तो उसे राजनीति विज्ञान, इतिहास, आचारशास्त्र आदि की शिक्षा देनी चाहिये जिससे कि वह सीखी गई बातों को परिस्थितियों के अनुसार प्रयोग में ला सके।

(4) अध्यापक को चाहिए कि वह छात्रों में बोध शक्ति का विकास करे। यदि छात्र किसी समस्या को ठीक प्रकार से बोधगम्य करने में समर्थ हो जाता है तो उसे सीखने के स्थानान्तरण में सहायता मिलती है।

(5) अध्यापक अपने विषय का अध्यापन करते समय अन्य विषयों के साथ सम्बन्ध स्थापित करने का ध्यान रखे। यदि अध्यापक दो विषयों के मध्य समान तत्वों की ओर संकेत करता हुआ पढ़ायेगा तो छात्रों को स्थानान्तरण में सुविधा मिलेगी।

(6) अध्यापक को पाठ्यक्रम के निर्माण के समय शारीरिक रक्षा एवं स्वास्थ्य व्यावहारिक एवं विभिन्न प्रकार की सामाजिक क्रियाओं का ध्यान रखना चाहिए।

(7) अध्यापक को बालक का शारीरिक, मानसिक एवं संवेगात्मक स्वास्थ्य अच्छा बनाये रखने का प्रयास करना चाहिये जिससे कि बालक किसी विषय के ज्ञान को दूसरे विषयों अथवा परिस्थितियों में अच्छी तरह प्रयोग कर सके।

(8) अध्यापक विद्यालय में पढ़ाये जाने वाले पाठ्य विषयों का अध्यापन करते समय सम्भावित क्षेत्रों में स्थानान्तरण की सम्भावना को भी बालकों को स्पष्ट करे।

(9) अध्यापक को चाहिये वह बालकों को किताबी कीड़ा न बनाये वरन् उन्हें कार्य एवं अनुभव द्वारा सीखने का अवसर प्रदान करे जिससे कि वह व्यावहारिक जीवन में सफल हो सके।

(10) अध्यापक को चाहिये कि वह बालकों के स्तर के अनुकूल शिक्षण-पद्धति का प्रयोग करे जिससे बालकों के ज्ञानार्जन करने में एवं स्थानान्तरण करने में सुविधा प्राप्त हो सके।

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