ई-लर्निंग/ई-अधिगम (E-Learning) : अर्थ, उद्देश्य एवं उपयोगिता

वर्तमान समय में शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन एवं विकास लाने के लिए उच्च कोटि की विकसित सम्प्रेषण तथा अभिसूचना तकनीकी का उपयोग किया जाने लगा है, जिसमें कम्प्यूटर एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में सामने आया है। आज भारत क्या विश्व के सभी देशों में शिक्षा के क्षेत्र में कम्प्यूटर पर इंटरनेट सेवा का उपयोग किया जा रहा है। इसी के परिणामस्वरूप नवीन प्रत्ययों का विकास भी हुआ है; जैसे- कम्प्यूटर इंटरनेट, इंट्रानेट, एक्सट्रानेट, नेटवर्किंग प्रणाली, वेबसाइट, ई-स्कूल प्रणाली, ई-लर्निंग प्रणाली, आभासी कक्षा (Virtual Classroom) आदि। आज शिक्षा में इन सभी प्रत्ययों का उपयोग बड़ी तीव्रता से होने लगा है। नीचे जिन प्रत्ययों का विवरण दिया गया है, वह इस प्रकार है-
(1) ई-अधिगम (E-Learning)
(2) ई-स्कूल (E-School)
(3) आभासी कक्षा-कक्ष (Virtual Classroom)

ई-लर्निंग अथवा ऑनलाइन लर्निंग (E-Learning or Online Learning)

इलेक्ट्रानिक अधिगम (Electronic Learning) को ई-अधिगम (E-Learning) भी कहते हैं। इसे कम्प्यूटर प्रोत्साहित अधिगम भी कहते हैं। ई-अधिगम को कई अर्थों में प्रयुक्त किया जाता है। इस प्रत्यय का सम्बन्ध वृहद् अधिगम तकनीकी (Advanced Learning Technology) से अधिक है। ई-अधिगम में तकनीकी तथा अधिगम विधियों को सम्मिलित किया जाता है। इसमें कम्प्यूटर नेटवर्क तथा बहुमाध्यम तकनीकी का उपयोग किया जाता है। इसका आरम्भ ब्रिटेन में हुआ। ई-अधिगम को ऑन-लाइन अधिगम भी कहते हैं। आज अनेक उच्च शिक्षा संस्थाओं में ऑन-लाइन अधिगम की व्यवस्था की गई है।

ई-लर्निंग का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of E-Learning)

ई-अधिगम शिक्षा का एक नवीन प्रत्यय है। इसके अन्तर्गत इन्टरनेट तकनीकी का उपयोग पाठ्यवस्तु के प्रस्तुतीकरण एवं संचार में किया जाता है। ई-अधिगम जीवनपर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया को प्रोन्नत करती है।

ई-लर्निंग का अर्थ (Meaning of E-Learning)

(1) ई-अधिगम शिक्षा का एक नवीन प्रत्यय है जो परम्परागत अधिगम से भिन्न प्रकार का है। यह अधिगम की नवीन व्यवस्था करती है।
(2) ई-अधिगम की प्रमुख विशेषता यह है कि पाठ्यक्रम का प्रस्तुतीकरण कम्प्यूटर इंटरनेट प्रणाली से किया जाता है।
(3) ई-अधिगम में इंटरनेट के उपयोग से अधिगम के वातावरण का विस्तार किया जाता है। यह वातावरण छात्र-केन्द्रित होता है, जबकि परम्परागत शिक्षा में अधिगम वातावरण शिक्षक-केन्द्रित होता है।
(4) शिक्षा का नवीन प्रत्यय, ई-अधिगम जीवनपर्यन्त शिक्षा हेतु वातावरण का सृजन करती है।
(5) ई-अधिगम समाज को वास्तविक अधिगम के अवसर प्रदान करती है।

परिभाषाएँ (Definitions)

ई-अधिगम की अनेक परिभाषाएँ उपलब्ध हैं, उनमें से कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएँ निम्न हैं-

टाम केली तथा सिसको के अनुसार- “ई-अधिगम द्वारा अभिसूचना सम्प्रेषण की सहायता से शिक्षा तथा प्रशिक्षण दिया जाता है। प्रशिक्षण की क्रियाएँ, छात्र के अधिगम एवं प्रशिक्षण प्रकियाओं का उल्लेख नहीं किया जाता है। छात्र की आवश्यकताओं के अनुरूप ज्ञान तथा कौशल उत्तम ढंग से प्रदान किया जाता है।”

“E-learning is about information, communication, education and training. Regardless of how trainers categorize training and education, the learner only wants the skills and knowledge to do a better job or to answer the next question from a customer.” – Tom Kelly & Cisco

ब्राण्डोन हॉल के अनुसार – “जब अनुदेशन का संचार आंशिक या पूर्ण रूप में विद्युत यंत्रों के माध्यमों की सहायता से तथा वेबसाइट व इंटरनेट अथवा बहुमाध्यमों सी०डी०रोम०, डी०वी०डी० से किया जाता है, तब उसे ई-अधिगम कहते हैं।”

“…..instruction that is delivered electronically, in part or wholly via a Web browser,……through the Internet or an Intranet, or through multimedia platforms such CD-ROM or DVD.” – Brandon Hall

लर्निन सरक्विट्स के अनुसार “ई-अधिगम के उपयोग एवं प्रकिया का व्यापक क्षेत्र है; जैसे-वेब-आधारित अधिगम, कम्प्यूटर आधारित अधिगम तथा वास्तविक कक्षा शिक्षण को सम्मिलित किया जाता है। इन माध्यमों से पाठ्यवस्तु का संचार किया जाए तथा इंटरनेट का उपयोग किया जाए। दृश्य एवं श्रव्य टेप, सैटेलाइट प्रसारण में दूरदर्शन, सीडी रोम का उपयोग किया जाता है।”

“E-learning covers a wide set of application and processes and processes such as web-based learning, computer-based learning, virtual classrooms and digital collaboration. It includes the delivery of content via Internet, audio and videotape, satellite broadcast, interactive TV and CD-ROM.” –Learnin Circuits

रोजेनबर्ग (2001) के अनुसार “ई-अधिगम शुद्ध अभिसूचना को अपेक्षित व्यक्ति को सही समय पर तथा सही स्थान पर समुचित माध्यमों के उपयोग से प्रदान की जाती है।”

“E-learning provides the potential to provide the right information to the right people at the right times and places using the right medium.” – Rosenberg

ई-लर्निंग के उद्देश्य (Objectives of E-Learning)

ई-अधिगम से निम्नलिखित उद्देश्यों की प्राप्ति की जाती है-

(1) ई-अधिगम से पाठ्यवस्तु का संचार तथा सम्प्रेषण करना।
(2) ई-अधिगम से स्थानीय समुदाय तथा भूमण्डलीय समुदाय को शिक्षा की सुविधा प्रदान करना।
(3) ई-अधिगम से मुक्त रूप से सीखने का अवसर प्रदान करना।
(4) ई-अधिगम से शिक्षा का सभी को समान अवसर प्रदान करना।
(5) ई-अधिगम से मिश्रित माध्यमों को प्रोत्साहित करना।
(6) मुक्त-विश्वविद्यालयों में ई-अधिगम से शिक्षा प्रक्रिया की व्यवस्था करना।
(7) ऑनलाइन शिक्षा को ई-अधिगम से प्रोत्साहन तथा प्रोन्नत करना।
(8) ऑनलाइन शिक्षा से शोध अध्ययनों की तीव्रता से वृद्धि करना।
(9) ई-अधिगम से उच्च शिक्षा को मितव्ययी बनाना।
(10) इसके उपयोग से वृहद् अधिगम तकनीकी का विकास करना।

ई-लर्निंग के विभिन्न प्रारूप एवं शैलियाँ (Modes and Styles of E-learning)

ई-लर्निंग के विभिन्न प्रारूप एवं शैलियाँ इस प्रकार हैं-

(1) अवलंब अधिगम (Support Learning) – ई-लर्निंग अपनी इस भूमिका में चल रही शिक्षण-अधिगम गतिविधियों को सहारा देकर आगे बढ़ाने का कार्य कर रही होती है। इस प्रकार के ई-लर्निंग प्रारूप का उपयोग शिक्षक और विद्यार्थीगण दोनों ही अपने-अपने शिक्षण और ई-लर्निंग कार्यों को बेहतर बनाने हेतु कर सकते हैं। उदाहरण- Multimedia, Internet तथा Web technology का उपयोग कक्षा शिक्षण के दौरान शिक्षण और अधिगम दोनों ही कार्यों में अपेक्षित सफलता प्राप्त करने हेतु कर सकते हैं।

(2) मिश्रित अधिगम (Blended Learning)- ई-लर्निंग के इस प्रारूप में परंपरागत तथा सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी पर आधारित दोनों ही प्रकार की तकनीकियों के मिश्रित रूप का प्रयोग किया जाता है। केंद्रित इस प्रारूप को अपनाने में कार्यक्रम और गतिविधियों को इस प्रकार नियोजित और क्रियान्वित किया जाता है कि परंपरागत कक्षा शिक्षण तथा ई-लर्निंग आधारित अनुदेशन दोनों को उचित प्रतिनिधित्व देकर दोनों के ही लाभ अधिगम हेतु भलीभाँति उठाए जा सकते हैं।

(3) पूर्णरूपेण ई-लर्निंग (Complete E-Learning)- इस प्रकार के ई-लर्निंग प्रारूप में परंपरागत कक्षा शिक्षण का स्थान पूरी तरह से अवास्तविक कक्षा कक्ष शिक्षण द्वारा ले लिया जाता है। विद्यार्थियों के सामने पूरी तरह संरचित एवं निर्मित ई-लर्निंग कोर्स तथा अधिगम सामग्री होती है जिन्हें वे स्वतंत्र रूप से अपनी-अपनी अधिगम गति से ग्रहण करने का प्रयत्न करते हैं। उनकी बहुत सारी अधिगम गतिविधियाँ ‘ऑनलाइन’ ही संपन्न हो जाती हैं। इस प्रकार की ई-लर्निंग मुख्य रूप से दो निम्न संम्प्रेषण शैलियों का उपयोग करती है-

(i) एसेंक्रोनस संप्रेषण शैली (Asynchronous Communication Style) – इस संप्रेषण प्रणाली में अधिगम कोर्स संबधी सूचनाएँ तथा अधिगम अनुभव अधिगमकर्ता को ई-मेल द्वारा प्रेषित की जाती है अथवा ये उसे वेब पेज, वेब लोग या ब्लॉग्स, विकिज और रिकार्ड किए गए सीडी रोम (CD-ROM) एवं डीवीडी (DVD) के रूप में उपलब्ध रहती है। इस तरह इस प्रकार के सम्प्रेषण हेतु अध्यापक तथा विद्यार्थियों की समय विशेष में एक साथ उपस्थिति आवश्यक नहीं होती। अध्ययन सामग्री पहले से ही मौजूद रहती है। इस तरह की संप्रेषण शैली के प्रत्यक्ष रूप से आमने-सामने होने वाली अंतःक्रिया जो वास्तविक कक्षा शिक्षण में अध्यापक और विद्यार्थियों के बीच होती है, उसका नितांत अभाव रहता है।

(ii) सेंक्रोनेस संप्रेषण शैली (Synchronous Communication Style) – इस संप्रेषण शैली में अधिगम हेतु आवश्यक सीधा शिक्षक-शिक्षार्थी इंटरनेट पर ऑनलाइन चैटिंग तथा ऑडियो-वीडियो कांफ्रेंसिंग के रूप में होता रहता है। इस कार्य हेतु आवश्यक संप्रेषण करने के लिए एक समय विशेष में एक साथ इंटरनेट पर उपस्थित रहना होता है। परिणामस्वरूप इस प्रकार का संप्रेषण एक अध्यापक के लिए अपने विद्यार्थियों के साथ किसी भी प्रकार की आवश्यक सूचना, अधिगम सामग्री इत्यादि की भलीभाँति करने के अमूल्य अवसर प्रदान करता है। इस प्रकार के संप्रेषण में परंपरागत कक्षा शिक्षण की भाँति प्रत्यक्ष अंतःक्रिया करने के यथोचित प्रयत्न किए जाते हैं।

ई-लर्निंग के माध्यम (Media Used in E-Learning)

ई-अधिगम का उपयोग सम्पूर्ण विश्व में वेब या सीडी रोम की सहायता से किया जाता है। यह दूरवर्ती अधिगम के समान है। इसके अन्तर्गत माध्यमों की सहायता से संचार तथा सम्प्रेषण किया जाता है। इसमें अंग्रांकित माध्यमों का उपयोग किया जाता है-

(1) मुद्रित माध्यम (Print Media) – इसमें ई-पाठ्यवस्तु,  तथा पाठ्य-पुस्तकों का उपयोग किया जाता है।
(2) दृश्य माध्यम (Video Media) – इसमें दृश्य-टेप, केबिल, दृश्य प्रवाह, सैटेलाइट प्रसारण, दूरदर्शन आदि माध्यमों का उपयोग करते हैं।
(3) सम्प्रेषण माध्यम (Communication Media)– इस प्रकार के माध्यम को दो वर्गों में विभाजित किया गया है-

(a) असिन्क्रॉनस् माध्यम (Asynchronous) – इसके अन्तर्गत ई-मेल, सुनना, वाद-विवाद आदि को सम्मिलित किया जाता है।
(b) सिन्क्रॉनस् माध्यम (Synchronous) – इसके अन्तर्गत इंटरनेट, दृश्य सम्मेलन तथा टेलीकॉन्फ़्रेंसिंग का उपयोग किया जाता है।

ई-लर्निंग/ई-अधिगम (E-Learning) : अर्थ, उद्देश्य एवं उपयोगिता

ई-लर्निंग की तकनीकियाँ (Technologies Used in E-Learning)

ई-अधिगम को मिश्रित अधिगम (Blended Learning) भी कहते हैं। इसमें अनेक प्रकार के माध्यमों का उपयोग किया जाता है। इसमें प्रयुक्त की जाने वाली तकनीकी इस प्रकार की है-
(1) वेब आधारित शिक्षण सामग्री (Web-based Instructional Material)
(2) बहुमाध्यम सीडी रोम (Multi-media, CD-ROM)
(3) वेबसाइट (Website)
(4) ई-मेल (E-mail) तथा मोबाइल अधिगम (Mobile Learning)
(5) इंटरनेट पाठ्यवस्तु (Internet Text)
(6) अधिगम व्यवस्थित सॉफ्टवेयर (Learning Managed Software)
(7) अनुकरणीय (Simulation) भूमिका निर्वाह (Role-Playing)
(8) कम्प्यूटर सहाय आकलन (Computer Aided Assessment)
(9) आभासी-कक्षा शिक्षण (Virtual Classroom)
(10) खेल (Games)

ई-लर्निंग की उपयोगिता (Advantages of E-learning)

ई-लर्निंग की उपयोगिता इस प्रकार है-
(1) जिन अधिगमकर्त्ताओं के पास परंपरागत कक्षा शिक्षण से लाभ उठाने हेतु न तो समय होता है और न ही साधन, उन्हें ई-लर्निंग के माध्यम से यह सब कुछ आसानी से प्राप्त हो सकता है।
(2) ई-लर्निंग अधिगमकर्ताओं को उनकी अपनी जरूरतों, मानसिक स्तर, दक्षता, स्थानीय आवश्यकताओं तथा उपलब्ध संसाधनों के अनुरूप उचित शिक्षा, अनुदेशन और अधिगम अनुभव प्रदान करने का सामर्थ्य रखती है।
(3) ई-लर्निंग द्वारा उसी प्रकार की बेहतर अध्ययन सामग्री विद्यार्थियों को प्रदान की जा सकती है जैसी कि परंपरागत कक्षा शिक्षण में संलग्न विद्यार्थियों को प्राप्त होती है।
(4) परंपरागत कक्षा शिक्षण की तुलना में ई-लर्निंग इस दृष्टि से भी श्रेष्ठ सिद्ध होती है कि इसके माध्यम से सभी अधिगमकर्ताओं को समान अधिगम एवं प्रशिक्षण के अवसर प्राप्त हो सकते हैं।
(5) देश और दुनिया के किसी भी कोने में बैठे हुए अनगिनत अधिगमकर्ताओं को ई-लर्निंग उच्चकोटि का अनुदेशन तथा अधिगम अनुभव प्रदान करने की क्षमता रखती है।
(6) ई-लर्निंग का एक और मुख्य आकर्षण तथा विशेषता उसके लचीलेपन को लेकर है। यह किसी भी प्रकार के माध्यम द्वारा विद्यार्थी को उचित रूप से उपलब्ध हो सकती है।
(7) ई-लर्निंग का उपयोग विद्यार्थियों की रुचि और अभिप्रेरणा को उनके अधिगम में अच्छी तरह बनाये रखने में काफी उपयोगी है।
(8) ई-लर्निंग अपने विविध प्रारूपों तथा प्रदान करने के विभिन्न तरीकों को लेकर अध्यापक और विद्यार्थियों के बीच ऑनलाइन, ऑफलाइन तथा प्रत्यक्ष अन्तःक्रिया सम्पन्न करने की क्षमता रखती है।
(9) ई-लर्निंग में विद्यार्थियों द्वारा तैयार किये गये अधिगम की उपयुक्त जाँच और मूल्यांकन करने के उपयुक्त अवसर प्रदान करने का समुचित प्रावधान रहता है।
(10) इसमें समय पर उचित पृष्ठपोषण (feedback) प्राप्त होते हैं तथा यह उन्हें निदानात्मक तथा उपचारात्मक शिक्षण प्रदान करने में भी काफी सहायक हैं।
(11) गेमिंग तकनीक तथा अनुरूपित शिक्षण के अपने विशेष प्रारूपों के माध्यम से ई-लर्निंग शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को जीवंत रूप प्रदान करने की क्षमता रखती है।

ई-लर्निंग की सीमाएँ (Limitations of E-learning)

ई-लर्निंग की प्रमुख सीमाएँ भी हैं, जो इस प्रकार हैं-
(1) अपेक्षित कुशलता के अभाव में ई-लर्निंग द्वारा विद्यार्थियों को वांछित लाभों की प्राप्ति नहीं हो सकती।
(2) ई-लर्निंग के लिये यह आवश्यक है कि उसके सभी अधिगमकर्ताओं को अत्याधुनिक तकनीकी सुविधाएँ उन्हें उनके अधिगम स्थानों पर ही प्राप्त हो जायें।
(3) हमारे अधिकतम विद्यालयों में पर्याप्त रूप से ऐसे साधन नहीं हैं जिनसे ई-लर्निंग के माध्यम से उपयुक्त अनुदेशन तथा अधिगम की व्यवस्था की जा सके।
(4) ई-लर्निंग से अवगत होने और उसके उपयोग हेतु आवश्यक कुशलतायें अर्जित करने हेतु शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों का कोई उचित प्रावधान नहीं है।
(5) एक सबसे बड़ी कमी जो ई-लर्निंग की है वह यह है कि छात्रों को परम्परागत कक्षा शिक्षण की तरह यहाँ मेलजोल के अवसर प्राप्त नहीं होते।
(6) ई-लर्निंग को परम्परागत कक्षा शिक्षण या नियमित एवं औपचारिक शिक्षा व्यवस्था की तुलना में निम्न कोटि का अधिगम शिक्षा व्यवस्था का दर्जा दिया जाता है।
(7) इस अधिगम को कम्प्यूटर द्वारा प्रोन्नत किया जाता है। इसमें इंटरनेट प्रणाली का उपयोग किया जाता है जो एक महँगी व्यवस्था है।

विश्वविद्यालय शिक्षण में ई-लर्निंग का उपयोग (Use of E-Learning in University Teaching)

विश्वविद्यालय शिक्षण में ई-अधिगम का उपयोग अधिक प्रभावशाली होता है। यह प्रशिक्षण की प्रक्रिया को भी प्रोत्साहित करता है। प्रशासन तथा शिक्षण क्रियायें भी प्रभावशाली होती हैं। छात्रों को विभिन्न पाठ्यक्रमों को विभिन्न विश्वविद्यालयों के वेबसाइट पर अध्ययन का अवसर उपलब्ध होता है। वेबसाइट से व्याख्यान का लिखित रूप भी उपलब्ध हो जाता है तथा सहायक प्रणाली भी उपलब्ध होता है। इसके अन्तर्गत अध्ययन में अधिक लचीलापन होता है। स्वाध्याय के लिये अधिक अवसर मिलता है। अंशकालिक छात्रों के लिये अधिगम एक सहायक प्रणाली का कार्य करती है तथा उनकी पहुँच में भी होती है। व्यक्तिगत वेब से वातावरण का सृजन किया जाता है जिसमें वाद-विवाद तथा स्पष्टीकरण की भी सुविधा होती है। इससे परम्परागत बाधाओं को भी दूर किया जाता है और उद्देश्यों की प्राप्ति की जाती है। इसमें नेटवर्क तकनीकी का अधिक प्रयोग किया जाता है। ई-अधिगम का उपयोग दूरवर्ती शिक्षा तथा परम्परागत शिक्षा में किया जाता है। इनमें छात्रों और शिक्षकों के मध्य सामाजिक अन्तःप्रक्रिया होती है। डाक सेवाओं तथा अध्ययन केन्द्रों पर पुस्तकालयों की भी सुविधा प्रदान की जाती है। लिखित माध्यमों का भी उपयोग किया जाता है। इस माध्यमों के विकास के परिणामस्वरूप उच्च शिक्षा का अधिगम सुगम एवं मितव्ययी बना दिया गया है। ई-अधिगम का उच्च शिक्षा तथा विश्वविद्यालयी शिक्षा में महत्वपूर्ण योगदान है।

ई-अधिगम ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान किया है। दूरवर्ती शिक्षा ई-अधिगम पर ही आधारित है। कम्प्यूटर को अन्तःप्रक्रिया के लिये प्रयुक्त करने से छात्रों को ज्ञान प्राप्ति हेतु अधिगम में सक्रिय होना पड़ता है। यह ज्ञान प्रदान करने का विश्व की वास्तविक प्रणाली का प्रतिमान है। यह प्रतिमान ऐसे वातावरण का सृजन करता है जिसमें छात्रों को नवीन ज्ञान की खोज करनी होती है, जिसके लिये छात्रों को तत्पर रहना पड़ता है। कम्प्यूटर द्वारा सृजन किया गया वातावरण पूर्ण रूप से नियन्त्रित होता है। छात्रों को अधिगम के लिये कम स्वतन्त्रता प्रदान की जाती है। छात्रों को स्वामित्व के लिये स्वतन्त्रता दी जाती है। अनुकरणीय तथा अन्तःप्रक्रिया से छात्रों में अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन किया जाता है। शिक्षक चुनौतीपूर्ण समस्या को प्रस्तुत करता है, जिससे छात्रों में संवेदनशील चिन्तन का विकास किया जाता है और वे नवीन ज्ञान को प्राप्त करते हैं। इन परिस्थितियों में विविधता होनी चाहिये क्योंकि छात्रों में व्यक्तिगत भिन्नता अधिक होती है। छात्रों की बौद्धिक क्रियाओं की प्रकृति माध्यमों से अन्तः प्रक्रिया भिन्न प्रकार से करती है। छात्र अध्ययन में अधिक विषमता रखते हैं। उच्चारण अथवा शाब्दिक अनुक्रियाओं तथा लिखित कार्यों की शैली में अन्तर होता है। यह विषमता छात्रों की बौद्धिक योग्यताओं एवं क्षमताओं पर निर्भर होती है। इस प्रतिमान के अन्तर्गत इन बातों को ध्यान में रखना चाहिये। शिक्षण प्रतिमानों में अध्ययन विषयों की प्रकृति तथा कठिनाई स्तर को भी ध्यान में रखना चाहिये। इस प्रकार के शोधकार्यों में मुक्त अन्तः प्रक्रिया को अधिक महत्व दिया जाये।

कलात्मक विषयों के लिये ई-अधिगम प्रारूप की सम्भावना भिन्न प्रकार की है। इसके लिये कार्यक्रमों का प्रारूप भी भिन्न प्रकार का होता है। संगीत की प्रभावशीलता के लिये श्रोताओं के अर्थापन अनुभवों तथा उनके विचारों को ध्यान में रखना होता है। इसको माध्यमों से जोड़कर उनकी प्रभावशीलता का परीक्षण करना होता है। अपेक्षित श्रोताओं के अनुभवों के आधार पर संगीत की कलाओं को सुनिश्चित करना होता है और उसके लिये अधिनियमों का प्रतिपादन किया जाता है। अन्य कला के विषयों की प्रभावशीलता से विशिष्ट कलाओं की पहचान की जाती है। कलाओं का अर्थापन वस्तुनिष्ठ रूप में किया जाता है।

ऐसा कोई भी अध्ययन विषय नहीं है जिसके छात्रों को ई-अधिगम से लाभ प्राप्त न हो सके, जबकि अधिगम का अर्थापन वास्तविक अनुभव पर आधारित हो। अधिकांश छात्रों ने सम्भवतः ई-अधिगम में सक्रिय भाग लेकर अनुभव किया होगा। शैक्षिक वाद-विवाद तथा दृश्य-श्रव्य प्रस्तुतीकरण अधिक प्रभावशाली होता है। लिखित पाठ्यवस्तु से अधिगम प्रभावशाली होता है। लिखित कार्यों में प्रश्नों के उत्तर नहीं दिये जाते हैं, परन्तु उसके अर्थापन के कार्यक्रम में उत्तर प्राप्त हो जाते हैं। अन्तः प्रक्रिया में माध्यम चुनौती देते हैं तथा छात्र तत्पर एवं क्रियाशील हो जाते हैं। जो छात्र अपने उत्तरदायित्व के प्रति संवेदनशील होते हैं। वे प्रस्तुतीकरण में से पाठ्यवस्तु के तत्त्वों को खोज लेते हैं, नेटवर्क प्रणाली से पाठ्यवस्तु को आत्मसात कर लेते हैं तथा उस प्रकरण पर वाद-विवाद के लिये सक्षम होते हैं। विचारों को खोजते हैं तथा उनका सृजन भी करते हैं। ऐसी स्थिति में ई-अधिगम का माध्यम वास्तव में सशक्त होता है

ई-लर्निंग का मूल्यांकन (Evaluation of E-Learning)

पाठ्यक्रमों को ऑनलाइन के माध्यमों से अनेक प्रकार से सम्प्रेषण किया जाता है। छात्र इन कार्यक्रमों को अपनी आवश्यकताओं एवं रुचियों के अनुसार उपयोग करता है। प्रत्येक व्यक्ति का अधिगम का ढंग निजी होता है। यहाँ कुछ प्रश्न उत्पन्न होते हैं जिनके माध्यम से ई-अधिगम का मूल्यांकन किया जा सकता है-

(1) सीखने के ढंग तथा पाठ्यवस्तु के सम्प्रेषण के सम्बन्ध में जानकारी की आवश्यकता होती है जिससे समुचित मूल्यांकन की प्रविधियों का उपयोग किया जा सके। मूल्यांकन पाठ्यवस्तु की क्रियाओं पर आधारित होना चाहिये।
(2) अध्ययन की गहनता के लिये कितना समय दिया जा सकता है इसका बोध पाठ्यवस्तु की निर्धारण अवधि के आधार पर किया जाता है। पाठ्यवस्तु का सीधा सम्बन्ध अवधि से होता है।
(3) कुछ छात्र स्वाध्याय से सीखना पसन्द करते हैं और कुछ निर्देशित पाठ्यक्रम से सीखते हैं। कुछ दोनों मिश्रित ढंग से पाठ्यवस्तु सीखते हैं।
(4) परम्परागत शिक्षा में नामांकन तथा अध्यापन कार्यक्रमों को समयबद्ध किया जाता है, जबकि मुक्त शिक्षा में नामांकन तथा अध्ययन के कार्यक्रमों की समय सीमा नहीं होती है।
(5) सतत् शिक्षा में छात्रों की चयन प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है तथा प्रत्येक पाठ्यक्रम के लिये क्रेडिट अंक (Credit Points) दिये जाते हैं। आगामी कक्षा में इनके आधार पर ही प्रवेश दिया जाता है।
(6) ऑनलाइन कक्षाओं में सहायक प्रणाली का भी उपयोग किया जाता है जिससे अधिगम की कठिनाइयों का समाधान किया जाता है।
(7) चयन के लिये व्यापक विस्तार का उपयोग पाठ्यवस्तु की गहनता के लिये किया जाता है। आर्थिक सुविधाओं के अनुसार पाठ्यवस्तु का चयन किया जाता है। वृत्तिक पाठ्यक्रमों (Professional Courses) की शिक्षा भी मितव्ययी होती है।

इन बिन्दुओं के स्पष्टीकरण से ई-अधिगम के मूल्यांकन हेतु समुचित मूल्यांकन प्रविधि का चयन किया जाता है जिससे शुद्ध रूप से अधिगम का मूल्यांकन किया जा सके।

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