अभिक्रमित अनुदेशन (Programmed Instruction)

अभिक्रमित अनुदेशन (Programmed Instruction) सम्प्रत्य का आविर्भाव 20वीं सदी की देन है। सन् 1920 में ओहियो स्टेट यूनीवर्सिटी, अमेरिका (Ohio State University, America) के मनोवैज्ञानिक सिडनी एल. प्रेसी (Sindey L.Pressey) ने सर्वप्रथम शिक्षण मशीन का विकास किया था। प्रेसी ने मशीन की सहायता से शिक्षण की व्यवस्था की थी, जिसकी सहायता से छात्रों को एक क्रम में प्रश्न दिए जाते थे और छात्रों की प्रतिक्रिया की जाँच भी साथ-साथ होती थी, जिसे ड्रम-ट्यूटर (Drum Tutor) कहा गया था परन्तु इसे अधिक सफलता नहीं मिली थी और सन् 1932 में इस पर कार्य बन्द कर दिया गया था। तत्पश्चात् बी.एफ. स्किनर (B.F. Skinner) ने 1943 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान प्रयोगशाला में प्रेसी के विचार को अग्रसर करते हुए अधिगम के ‘सिद्धान्त सक्रिय अनुबद्ध अनुक्रिया’ (Operent Conditioning Theory) का प्रतिपादन किया था, जो बाद में अभिक्रमित अनुदेशन के विकास का आधार बना। सन् 1950 में एन.ए. क्राउडर (N.A. Crowder) ने शाखात्मक अनुदेशन (Branching Instruction) का विकास किया। इसी क्रम में 1950 में ही शैफील्ड (Sheffield) ने शाखात्मक अनुदेशन के विभिन्न रूप एवं उनके विकल्प मार्गों की खोज की। सन् 1960 में राबर्ट मेंगर (Robert Mager) ने क्राउडर एवं स्किनर के अभिक्रमित अनुदेशन सम्बन्धी कार्यों का पुर्नावलोकन किया और परम्परागत शिक्षण विधि की तुलना में अभिक्रमित अनुदेशन द्वारा शिक्षण में श्रेष्ठता सिद्ध करने का प्रयास किया। टी.एफ. गिलबर्ट (T.F. Gilbert) ने सन् 1962 में मेथेटिक्स (Mathetics) का विकास कर अभिक्रमित अनुदेशन की एक नई विधि का प्रतिपादन किया। इसी वर्ष 1962 में ही स्लेक (Slak) ने मेथेटिक्स सिद्धान्तों पर आधारित अभिक्रमित अनुदेशन का निर्धारण किया। आइ. के. डेवीज (I.K.Davies) ने 1970 में अभिक्रमित अनुदेशन सामग्री के निर्माण में शिक्षण नीतियों एवं शिक्षण प्रविधियों के निर्धारण पर बल दिया था। सन् 1980 में प्रणाली विश्लेषण पर विशेष कार्य किया। इस प्रकार अभिक्रमित अनुदेशन के विकास पर सतत कार्य एवं शोध हो रहे हैं।

भारत में अभिक्रमित अनुदेशन का विकास (Development of Programmed Instruction in India)

भारत में अभिक्रमित अनुदेशन पर विशेष कार्य नहीं हुआ है। सर्वप्रथम सन् 1963 में सेन्ट्रल पेड़ागोजिकल इन्स्टीट्यूट, इलाहाबाद (Central Pedagogical Institute, Allahabad) में अभिक्रमित अनुदेशन पर एक त्रिदिवसीय विचारगोष्ठी का आयोजन किया गया। तदुपरान्त अन्य प्रदेशों में भी गोष्ठियाँ आयोजित की गई। सन् 1965 में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद, नई दिल्ली के मनोविज्ञान विभाग द्वारा अभिक्रमित अनुदेशन पर सेमीनार, सिम्पोजियम एवं कार्यशालाओं का आयोजन कर शिक्षाविदों का ध्यान इस ओर आकृष्ट किया था। 1966 ई. में शर्मा एवं देसाई ने विभिन्न विषयों में अभिक्रमित अध्ययन सामग्री का सृजन किया और उसकी प्रभावशीलता का मूल्यांकन किया। तत्पश्चात् 1971 में शाह ने चार अभिक्रमित अध्ययन प्रणालियों पर शोधकार्य किया। इसी प्रकार 1972 में कृष्णमूर्ति ने सात प्रकार की अभिक्रमित अध्ययन प्रणालियों पर शोधकार्य करके इस कार्य को आगे बढ़ाया।

तदुपरान्त 1980 में शिक्षा में उच्च अध्ययन केन्द्र, एम.एस. यूनिवर्सिटी, बड़ौदा, मेरठ विश्वविद्यालय, मेरठ तथा हिमाचल यूनिवर्सिटी, शिमला में एम.एड., एम.फिल. एवं डाक्टरेट स्तर पर अभिक्रमित अनुदेशन पर लघुशोध कार्य एवं शोधकार्य कराए जाने पर विशेष बल दिया गया। तत्पश्चात् राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद, नई दिल्ली में शैक्षिक तकनीकी केन्द्र (Centre of Educational Technology) की स्थापना की गई, जिसमें अभिक्रमित अनुदेशन सामग्री का निर्माण किया जा रहा है।

अभिक्रमित अनुदेशन का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Programmed Instruction)

अभिक्रमत अनुदेशन अंग्रेजी के Programmed Instruction का हिन्दी रूपान्तर है। यह दो शब्दों के योग से बना है- Programmed + Instruction. इसमें Programmed का अर्थ है अभिक्रमित अथवा क्रमबद्ध अथवा योजनाबद्ध और Instruction का अर्थ है अनुदेशन (Direction) अथवा शिक्षण (Teaching). इस प्रकार Programmed Instruction (अभिक्रमित अनुदेशन) का अर्थ है- क्रमबद्ध या योजनाबद्ध अनुदेशन अथवा शिक्षण, इसमें पढ़ाई जाने वाली विषयवस्तु को अनेक छोटे-छोटे एवं नियोजित खण्डों एवं सोपानों में छात्रों के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, छात्र स्वयं प्रयास करके अपनी गति से ज्ञानार्जन करता हुआ आगे बढ़ता है। छात्र द्वारा कृत प्रयासों से सम्पन्न हुए कार्य की तत्क्षण प्रतिपुष्टि प्रदान की जाती है। इससे प्रतिपल छात्र को उसकी सफलता की जानकारी मिलती रहती है, जो उसे पुनर्बलन का कार्य करती है। इससे उसमें आत्मविश्वास बढ़ता है।

अभिक्रमित अनुदेशन शैक्षिक सामग्री को छोटे-छोटे पदों में विभाजित कर उसे इस प्रकार तारतम्ययुक्त अथवा शृंखलाबद्ध करने की प्रक्रिया है जिसके सहारे अधिगमकर्ता जहाँ तक जानता है, उससे आगे के ज्ञान एवं नवीन ज्ञान को स्वयं ही सीख सके।

दूसरे शब्दों में कह सकते है कि “अभिक्रमित अनुदेशन, शिक्षण अधिगम की एक विधि है जिसमें अधिगम के स्रोतों, साधनों एवं सामग्रियों को नियोजन और संगठित करने का प्रयास इस प्रकार किया जाता है जिससे अधिगमकर्ता शिक्षण के सुनिश्चित उद्देश्यों तक पहुँच जाये।”

अभिक्रमित अनुदेशन के अर्थ के स्पष्टीकरण हेतु विभिन्न विद्वानों के विचार निम्नलिखित हैं-

स्मिथमूरे के अनुसार (Smith & Moore) – “अभिक्रमित अनुदेशन किसी अधिगम सामगी को क्रमिक पदों की शृंखला में व्यवस्थित करने वाली एक क्रिया है जिसके द्वारा छात्रों को उनकी परिचित पृष्ठभूमि से एक नवीन तथा जटिल प्रत्ययों सिद्धान्तों तथा अवबोधों की ओर ले जाया जाता है।”

“Programmed instruction is the process of arranging the material into a series of sequential steps, usually it moves the students from familiar background into complex and new set of concept, principles and under standing.”

जेम्स ई. एस्पिच तथा विलियम्स (Jems E. Espich & William) के अनुसार, “अभिक्रमित अनुदेशन से अभिप्राय अनुभवों की उस नियोजित शृंखला से है जो उद्दीपक अनुक्रिया सम्बन्ध के सन्दर्भ में प्रभावशाली माने जाने वाली दक्षता की ओर अग्रसर करती है।”

“Programmed Instructions is a planned sequence of experiences leading to proficiency in term of stimulus response relationship.”

स्टोफल के अनुसार, “ज्ञान के छोटे अंशों को एक तार्किक क्रम में व्यवस्थित करने को अभिक्रम तथा इसकी सम्पूर्ण प्रक्रिया को अभिक्रमित अनुदेशन कहा जाता है।”

“The arrangement of tiny bits of knowledge into logical sequence is called the programmed and its process is called programmed learning.”

डी. एल. कुक के अनुसार, “अभिक्रमिक अधिगम, स्व-शिक्षण विधियों के व्यापक सम्प्रत्यय को स्पष्ट करने के लिये प्रयुक्त एक विधा है।”

“Programmed learning is a term some times used synonimously to refer to the broader concept of auto-instructional method.”

जे. डनहिल (J. Dunhill) के अनुसार “अभिक्रमित अनुदेशन शिक्षा की एक विधि है, जो यह सुनिश्चित करने में हमारी सहायता करेगी कि प्रत्येक छात्र (अपना अध्ययन) बिल्कुल उन्हीं बातों से प्रारम्भ करता है, जिसे वह जानता है और स्पष्ट लक्ष्य के लिए अपनी सर्वोत्तम गति से अग्रसर होता है।”

“Programmed Instruction is a method… of education, which will assist us to ensure that each pupil starts from precisely what he knows and proceeds at his own best pace to a clear-cut objectives.” J. Dunhill : A Teacher Training Manual

जेम्स एम. ली (James M. Lee) के अनुसार “अभिक्रमित अनुदेशन सीखी जाने वाली सामग्री (विषयवस्तु) को इस ढंग से प्रस्तुत करने को व्यक्त करता है, जिसमें छात्र से विषयवस्तु को सीखने की पूर्व नियोजित विशिष्ट प्रक्रियाओं को सावधानीपूर्वक अनुसरण करने, जिस विषयवस्तु को उसने सीखा है, से शुद्धता के आधार पर जाँच करने और अन्त में उस विशिष्ट ज्ञान (बातों) का उसी समय या कुछ समय बाद पुनर्बलन करने की अपेक्षा की जाती है।”

“Programmed instruction refers to presenting material to be learned is such a manner that the student is required to go through carefully preplanned specific processes of learning the material, of testing himself on the accuracy with which he has learned the material and finally of reinforcing these specific learnings more or less immediately.” –James M. Lee : Principles and Methods of Secondary Education

शिक्षा-शब्दकोश में अभिक्रमित अनुदेशन का अर्थ इस प्रकार व्यक्त किया गया है, “अभिक्रमित अनुदेशान एक अनुदेशन है, जिसमें एक निर्दिष्ट निष्पत्ति के स्तर को प्राप्त करने में छात्रों की सहायता कार्यपुस्तक, पाठ्यपुस्तक अथवा यांत्रिक और/अथवा इलेक्ट्रॉनिक युक्ति के अभिक्रमित उपयोग द्वारा (i) ग्रोटे चरणों में अनुदेशन प्रदान करना, (ii) अनुदेशन में प्रत्येक चरण के विषय में एक या अधिक प्रश्न पूछना और तत्क्षण ज्ञान कराना कि प्रत्येक उत्तर सही है अथवा गलत, (iii) छात्रों को स्वयं अपनी गति से उन्नति करने के सुयोग्य बनाना या तो व्यक्तिगत रूप से स्व गति के माध्यम से अथवा समूह के रूप में समूह-गति के माध्यम से।”

1. “Programmed instruction is instruction utilizing a workbook, textbook or mechanical and or electronic device programmed to help pupils attain a specified level of performance (i) providing instruction in small steps, (ii) asking one or more questions about each step in the instruction and providing instant knowledge of whether each answer is right of by wrong,and (iii) enabling pupils to progress at their own pace, either individually through self-pacing or as a team through group pacing.” –Dictionary of Education

“अभिक्रमित अनुदेशन वह अनुदेशन है जिसमें पाठ्य सामग्री को छोटे-छोटे पदों में विभजित कर उन्हें इस प्रकार तार्किक क्रम में व्यवस्थित किया जाता है। कि अधिगमकर्त्ता स्वतः ही अपनी गति से सीखता हुआ प्रवेशित व्यवहार (ज्ञात ज्ञान) से अन्तिम व्यवहार (नवीन एवं वांछित ज्ञान) तक पहुँच जाता है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा सकता है कि अभिक्रमित अध्ययन वह अनुदेशन है जिसमें पाठ्यसामग्री को छोटे-छोटे पदों में विभाजित करके शृंखलाबद्ध किया जाता है तथा इसे छात्रों के सक्षम क्रमानुसार प्रस्तुत करके कम से कम गलतियाँ करते हुए उन्हें नवीन एवं जटिल विषय-वस्तु की शिक्षा उनकी अपनी गति के अनुसार प्रदान की जाती है। इस सारी प्रक्रिया में छात्रों को अपनी प्रगति के ज्ञान द्वारा पृष्ठपोषण (Feedback) प्राप्त होता है।

अभिक्रमित अनुदेशन (Programmed Instruction)
अभिक्रमित अनुदेशन (Programmed Instruction)

अभिक्रमित अनुदेशन की विशेषताएँ (Characteristics of Programmed Instruction)

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर अभिक्रमित अध्ययन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नांकित हैं-

1. इसमें पाठ्य सामग्री को छोटे-छोटे खण्डों में विभक्त कर शृंखलाबद्ध करके छात्रों के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है।
2. इसमें प्रत्येक पद आगे वाले पद से स्वाभाविक रूप से तार्किक क्रम में सम्बद्ध रहता है।
3. इसमें छात्र को स्वयं अपनी गति से सीखने एवं उन्नति करने के अवसर प्राप्त होते हैं।
4. इससे विषयवस्तु के अधिगम में छात्रों की जिज्ञासा सतत बनी रहती है।
5. इसमें छात्रों को वैयक्तिक ढंग से अधिगम की स्वतंत्रता रहती है।
6. अभिक्रमित सामग्री व्यक्तिनिष्ठ होती है इसमें एक समय में केवल एक ही व्यक्ति सीखता है।
7. अभिक्रमित अनुदेशन वैयक्तिक विभिन्नताओं के सिद्धान्त पर आधारित है।
8. सीखने वाले को सक्रिय तथा सतत् अनुक्रिया करनी पड़ती है।
9. इसमें प्रत्येक छात्र अपनी गति के अनुसार सीखता है।
10. छात्र को उसके उत्तर के सही या गलत होने की सूचना तुरन्त मिल जाती है, इस प्रकार छात्रों को तत्काल पृष्ठपोषण (Feedback) मिलता रहता है।
11. इसमें उद्दीपन, अनुक्रिया तथा पुनर्बलन, ये तीनों तत्व क्रियाशील रहते हैं।
12. यह प्रणाली मनोवैज्ञानिक अधिगम सिद्धान्तों पर आधारित है।
13. इसमें छात्रों की कमजोरियों का निदान किया जाता है और उनके लिए उपचारात्मक अनुदेशन भी दिया जाता है। यह विधि एक अनुवर्ग शिक्षण की भाँति कार्य करती है।
14. इसके अनेक रूप हैं जिसके सिद्धान्त, अवधारणायें तथा प्रशिक्षण की प्रविधियों से हुआ है जिससे शिक्षण की प्रक्रिया प्रभावशाली होती है।

अभिक्रमित अनुदेशन के उद्देश्य (Objectives of Programmed Instruction)

अभिक्रमित अनुदेशन के निम्नलिखित मुख्य उद्देश्य होते हैं :

(1) अधिगमकर्ता को अपनी गति से सीखने में सहायता देना।

(2) अधिगमकर्ता को अध्यापक की शारीरिक अनुपस्थिति में सीखने में सहायता देना।

(3) स्वाध्याय करना तथा अपने कार्य की तुलना अपने दिये हुए उत्तरों से करना।

(4) सामग्री को नियंत्रित प्रकार से तार्किक रूप से चरणबद्ध रूप में प्रस्तुत करना।

अभिक्रमित अनुदेशन के आधारभूत सिद्धान्त (Principles of Programmed Instruction)

लघुपदीय सिद्धान्त (Principle of Small Steps)

यह सिद्धान्त सीखने की खण्ड विधि पर आधारित है इसमें सिखाई जाने वाली सामग्री या विषय-वस्तु को छोटे-छोटे पदों या फ्रेमों में विभक्त किया जाता है, फिर छात्र के सम्मुख प्रस्तुत किया जाता है।

सक्रिय-अनुक्रिया सिद्धान्त (Principle of Active Responding)

यह सिद्धान्त बी.एफ. स्किनर द्वारा प्रतिपादित सक्रिय अनुबद्ध अनुक्रिया (Operant Conditioning Theory) अधिगम सिद्धान्त पर आधारित है। इस मत के अनुसार सीखने की आवश्यक शर्त सक्रियता है।

तात्कालिक पृष्ठपोषण का सिद्धान्त (Principle of Immediate feedback)

यह सिद्धान्त थार्नडाइक के सन्तोषप्रद अनुभव सिद्धान्त पर आधारित है। सन्तोषप्रद अनुभव ही किसी व्यक्ति को सीखने की प्रेरणा देते हैं।

स्वगति सिद्धान्त (Principle of Self-pacing)

यह सिद्धान्त स्व-अध्ययन एवं स्व-अधिगम पर आधारित है। इसमें सीखने वाला अपनी योग्यता तथा क्षमता के अनुसार एक फ्रेम से दूसरे फ्रेम तक जाने का प्रयास करता है। इस सिद्धान्त का आधार व्यक्तिगत विभिन्नताएँ हैं।

स्व-परीक्षण सिद्धान्त (Principle of Self-Testing)

इस अनुदेशन में छात्र विषय-वस्तु के प्रति छोटे-छोटे फ्रेमों के माध्यम से अपनी अनुक्रिया व्यक्त करता है। इससे उसकी निष्पति का रिकॉर्ड रखने में सुविधा होती है। छात्र इस रिकॉर्ड द्वारा अपना मूल्यांकन स्वयं कर सकता है।

अभिक्रमित अनुदेशन की आवश्यकता एवं क्षेत्र (Need and Scope of Programmed Instruction)

अभिक्रमित अनुदेशन द्वारा छात्रों को वैयक्तिक ढंग से अधिगम प्राप्त करने की स्वतन्त्रता रहती है। इससे उनमें आत्मनिर्भरता एवं आत्म-अभिव्यक्ति की भावना का अभ्युदय होता है।

वर्तमान समय में प्रत्येक व्यक्ति कम समय में अच्छा काम एवं अच्छी उपलब्धि अर्जित करना चाहता है। शिक्षण प्राप्त करते समय भी वह यह चाहता है कि, वह जो कुछ सीख रहा है उसमें सिद्धहस्त एवं प्रवीण हो जाए और समय भी कम लगे। इस आवश्यकता की पूर्ति में अभिक्रमित अनुदेशन महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इससे छात्रों की समस्याओं का कम समय में अच्छी तरह निदान भी हो जाता है और वे कम समय मे विषय-वस्तु का गहनता से अधिगम करने में सफलता प्राप्त कर लेते हैं।

छात्रों में स्वाध्याय की भावना का विकास करना वर्तमान समय में आवश्यक माना जा रहा है, क्योंकि छात्रों में नकल करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही हैं। इस पर अंकुश लगाने के लिए अनेक प्रयास भी किये – जा रहे हैं किन्तु सफलता नहीं मिल पा रही है। इसमें भी अभिक्रमित अनुदेशन बहुत सहायक भूमिका निभाता है। इससे छात्रों में स्वाध्याय करने की आदत का विकास होता है, नकल करने की कोई गुंजाइश भी नहीं -रहती, छात्र स्वयं अभिप्रेरित होकर सीखने की ओर अग्रसर होते हैं।

अस्तु अभिक्रमित अनुदेशन विविध शैक्षिक समस्याओं के समाधान में बहुत ही सहायक है। कोठारी आयोग ने अपने प्रतिवेदन में अभिक्रमित अनुदेशन की महत्ता में कारण अन्य विषयों में भी अभिक्रमित सामग्री तैयार करने की वकालत की है। वर्तमान समय में अभिक्रमित अनुदेशन का क्षेत्र बहुत व्यापक एवं विस्तृत होता चला जा रहा है। इसके प्रमुख क्षेत्र निम्नवत् हैं –

(1 ) व्यावसायिक एवं औद्योगिक प्रतिष्ठानों में

(2) प्रतिरक्षा एवं सैन्यबलों में

(3) अध्यापकों को शैक्षिक कौशल सिखाने में

(4) प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा प्रदान करने में

(5) जनसंचार माध्यमों से पाठ सम्प्रेषित करने में

(6) औपचारिक, अनौपचारिक एवं औपचारिकेतर शैक्षिक अभिकरणों में

(7) प्रतिभाशाली, मंदितमना, विकलांग बालकों के अधिगम में।

(8) पत्रचार शिक्षा, खुली शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा में।

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