सतत एवं व्यापक मूल्यांकन (Continuous and Comprehensive Evaluation)

सतत एवं व्यापक मूल्यांकन
(Continuous and Comprehensive Evaluation)

सतत एवं व्यापक मूल्यांकन CCE विद्यालय आधारित मूल्यांकन की एक पद्धति है जिसमें विद्यार्थी के सभी पक्षों का मूल्यांकन किया जाता है। यह आंकलन की वह प्रक्रिया है जिसमें दो पक्षों पर जोर दिया जाता है-

1. मूल्यांकन में निरन्तरता
2. अधिगम संबंधी व्यवहारगत पक्षों का आकलन

केवल तीन घंटे की वर्ष भर में एक परीक्षा मात्र से ही छात्र का मूल्यांकन संभव नहीं हैं। इसके लिए आवश्यक है कि मूल्यांकन में

  • निरन्तरता हो
  • अधिगम में कमियों का पता लगाना
  • सही तकनीक का उपयोग करना
  • विद्यार्थी एवं अध्यापकों के फीडबैक सही के आधार पर पुनः प्रयास।

व्यापक मूल्यांकन का अर्थ है छात्रों के अभिवृद्धि एवं विकास के दोनों पक्षों, शैक्षिक एवं सह-शैक्षिक का आकलन किया जायें जो अधिगम के निम्न क्षेत्रों से जुडे हों
1. ज्ञान
2. बोध
3. प्रयोग
4. विश्लेषण
5. मूल्यांकन
6. सृजन
7. संश्लेषण

सतत एवं व्यापक मूल्यांकन
सतत एवं व्यापक मूल्यांकन

सतत एवं व्यापक मूल्यांकन की प्रविधियाँ

मूल्यांकन की प्रविधियाँ के माध्यम से छात्रों के ज्ञान तथा व्यवहार में हुए सम्पूर्ण परिवर्तनों की परख की जाती है।

बी. एस. ब्लूम के अनुसार, “एक उत्तम मूल्यांकन रीति वह साधन है जो व्यवहार के वांछित परिवर्तन के वैध परिणामों को प्राप्त करने में समर्थ है।”

मूल्यांकन की प्रमुख प्रविधियाँ निम्नलिखित हैं-

1. परीक्षा प्रविधि- परीक्षा प्रविधि में मौखिक, लिखित तथा प्रायोगिक परीक्षायें ली जाती है एवं लिखित पीरक्षाओं में वस्तुनिष्ठ तथा निबंधात्मक दो परीक्षायें होती है।

2. अभिवृत्ति मापनी- इस प्रतिधि में किसी कार्य के संबंध में कथनों या विवरणों का संग्रह होता है उनमें से उत्तरदात्ता, जिनसे सहमत होता है। उन पर (✓) का चिन्ह लगा देता है। अभिवृति मापनी द्वारा एक या एक से अधिक व्यक्तियों की धारण की मात्रा अथवा अभिवृति ज्ञात की जाती है।

3. अवलोकन- विशिष्ट लक्ष्यों के संदर्भ में किसी भी घटना या कार्य को ध्यान से देखना ही अवलोकन कहलाता है। अवलोकन के द्वारा छात्रों की बौद्धिक परिपक्वता तथा उनके सामाजिक और संवेगात्मक विकास की परख की जाती है, जिससे छात्रों में विकसित आदतों तथा अन्य कौशलों की जानकारी प्राप्त हो जाती है।

4. क्रम निर्धारण मान- क्रम-निधारण मान किसी छात्र के अंदर किसी गुण अथवा वस्तु के सीमित पक्षों का गुणात्मक विवेचन करती है।” राइटस्टोन के शब्दों में, “क्रम निर्धारण मान के कुछ चयनित शब्दों, वाक्यांशों, वाक्यों अथवा अनुच्छेदों की सूची होती है जिसके आगे निरीक्षण मूल्यों के किसी वस्तुनिष्ठ मान के आधार पर कोई मूल्य या क्रम अंकित करता है।”

5. समाजमिति विधि- एंड्रयू तथा बिली के शब्दों में, “समाजमिति एक रेखाचित्र है जिसमें कुछ चिन्ह व अंक किसी सामाजिक समूह में सदस्यों द्वारा सामाजिक स्वीकृति अथवा त्याग का ढंग प्रदर्शित करन के लिए उपयुक्त रहते है।”

6. छात्रों द्वारा उत्पादित वस्तुएँ- छात्रों द्वारा उत्पादित वस्तुओं से अभिप्राय उन वस्तुओं से है जिन्हें छात्र स्वंय तैयार करते है जैसे चित्र, मानचित्र, प्रतिरूप आदि। छात्रों द्वारा निर्मित वस्तुओं से उनकी रूचि, अभिरूचि, योग्यता तथा कुशलता की जाँच की जाती है।

7. पड़ताल सूचियाँ- पड़ताल सूची व्यक्तिगत सूचना तथा विचार जानने का प्रमुख साधन है। राइटस्टोन के अनुसार- “पड़ताल सूची जैसा कि उसके नाम से स्पष्ट है, कुछ चयनित शब्दों, वाक्यांशों तथा वाक्यों या अनुच्छेदों की एक-सूची होती है जिसके आगे निरीक्षक (✓) का चिन्ह अंकित कर देता है, जो कि निरीक्षक की उपस्थिति तथा अनुपस्थिति का सूचक होता है।”

8. अनुसूची- इस विधि द्वारा सर्वेक्षणकर्ता स्वयं अपने अध्ययन क्षेत्र में जाकर निर्धारित व्यक्तियों से प्रश्न पूछता तथा अनुसूची भरता है।

9. प्राप्तांक पत्र- प्राप्तांक पत्र के अन्तर्गत उत्तरदाता को एक व्यापक तथा विस्तृत स्तर की किसी वस्तु या व्यक्ति के भिन्न-भिन्न पक्षों से सम्बन्धित रूपरेखा दी जाती है। उत्तरदाता केवलएक पक्ष का ही निर्धारता करता है, प्राप्तांक पत्रों को अनेक कार्यों के मूल्यांकन के लिए प्रयोग किया जाता है।

10.साक्षात्कार- साक्षात्कार के द्वारा व्यक्ति की समस्याओं तथा गुणों का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। विद्यालय में छात्रों के समक्ष कई समस्यायें उत्पन्न होती हैं। इन विभिन्न समस्याओं को समझने के लिए छात्रों की सहायता करने के लिए साक्षात्कार एक महत्वपूर्ण युक्ति है। साक्षात्कार में निम्नलिखित तत्व समान रूप से पाया जाता है।
(i) विशिष्ट उद्देश्य।
(ii) मौखिक वार्तालाप।
(iii) साक्षात्कारकर्ता।
(iv) साक्षात्कार देने वाला व्यक्ति।
(v) व्यक्ति या व्यक्ति से सम्बंध।

11.अभिलेख- छात्रों द्वारा तैयार किये गये घटनावृत तथा संचित अभिलेख पत्र और छात्रों की डायरियाँ भी मूल्यांकन की महत्त्वपूर्ण प्रविधियाँ हैं। अभिलेख अग्रलिखित तीन प्रकार के होते हैं-

(i) घटना वृत्त- घटना वृत्त छात्रों के उस व्यवहार का अध्ययन किया जाता है जो वे किसी घटना या भावावेश की स्थिति में करते हैं। उसके माध्यम से छात्रों का दुसरे के प्रति दृष्टिकोण तथा व्यक्तित्व के अन्य पक्षों का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।

(ii) संचित अभिलेख पत्र- संचित अभिलेख के अन्तर्गत् छात्र की योग्यता, शैक्षिक प्रणाली तथा अन्य सम्बन्धित सूचनाओं का क्रमबद्ध विवरण प्रस्तुत किया जाता है।
राइटस्टोन के अनुसारः “संचित अभिलेख पत्र छात्रों के निर्देशन के लिए आवश्यक सूचना को लेखबद्ध करने, फाइल बनाने तथा उसका उपयोग करने की एक विधि है। यह प्रत्येक छात्र के शैक्षिक, मानसिक, शारीरिक, संवेगात्मक विकास की व्यक्तिगत संचित सूची प्रदान करता है।”
(iii) प्रश्नावली- बोगार्डस के शब्दों में, “प्रश्नावली विभिन्न व्यक्तियों के उत्तर देने के लिए दी गयी प्रश्नों की एक तालिका है।”
(i) प्रतिबन्धित प्रश्नावली।
(ii) चित्र प्रश्नावली।
(iii) खुली प्रश्नावली।
(iv) मिश्रित प्रश्नावली

(i) प्रतिबन्धित प्रश्नावली – इस प्रश्नावली का उपयोग उत्तरदाता से विशिष्ट और निश्चित उत्तर प्राप्त करने के उद्देश्य से किया जाता है। इसमें उत्तरदाता का सिर्फ हाँ या ना पर चिन्ह लगाना होता है।

(ii) चित्र प्रश्नावली – चित्र प्रश्नावली का उपयोग सामान्यतः अशिक्षित वर्ग तथा छात्रों के लिए अधिक उपयुक्त है। इसमें प्रश्नों के स्थान पर चित्र दिये होते हैं जिसके आधार पर छात्रों को प्रतिक्रिया करनी है।

(iii) खुली प्रश्नावली – खुली प्रश्नावली में प्रश्नों के आगे उत्तर के लिए रिक्त स्थान दिया रहता हैं। उत्तरदाता स्वयं की ओर से उत्तर देता है। इनमें उत्तरदाताओं को अपने विचार अभिव्यक्ति करने की स्वतंत्रता होती है।
(iv) मिश्रित प्रश्नावली – इसके  अन्तर्गत प्रतिबन्धित प्रश्नावली, चित्र प्रश्नावली और खुली प्रश्नावली तीनों ही प्रश्नावलियाँ सम्मिलित की जाती हैं।

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